शनिवार, 13 सितंबर 2025
अग्नि काल ?!😢😢
एक अन्य सर जी अशोकबिन्दु ने कहीं पर लिखा है कि हमें तो जल प्रलय के बाद अग्निकाल भी दिखाई दे रहा है जिसमें शायद ही इंसान बचे।
इसमें वे स्वयं को भगवान शंकर के साथ अंतरिक्ष में जाते देखते हैं।
और…
पृथ्वी का कोर ग्रह की सबसे भीतरी परत है, जो एक घना और गर्म गोला है जो मुख्यतः लोहे और निकल से बना है। यह हमारे ग्रह का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो इसके चुंबकीय क्षेत्र से लेकर इसकी आंतरिक ऊष्मा तक, हर चीज़ को प्रभावित करता है। कोर दो अलग-अलग परतों में विभाजित है: ठोस आंतरिक कोर और तरल बाहरी कोर।
संरचना और संरचना
कोर दो मुख्य भागों से बना है:
* आंतरिक कोर: यह सबसे भीतरी भाग है, लगभग 1,221 किमी (759 मील) की त्रिज्या वाला एक ठोस गोला। 5,400°C (9,800°F) तक के तापमान, जो सूर्य की सतह के बराबर है, के बावजूद, ऊपर की परतों से आने वाला अत्यधिक दबाव लोहे और निकल को ठोस अवस्था में रखता है।
* बाहरी कोर: आंतरिक कोर के चारों ओर लगभग 2,260 किमी (1,400 मील) मोटी एक तरल परत है। यह परत भी लोहे और निकल से बनी है, लेकिन दबाव उतना ज़्यादा नहीं होता, इसलिए धातुएँ पिघली हुई, कम श्यानता वाली अवस्था में होती हैं। इस तरल धातु की अशांत, संवहनी गति पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करने के लिए ज़िम्मेदार है।
तापमान और दबाव
क्रोड के भीतर तापमान और दबाव अत्यधिक होते हैं और गहराई के साथ बढ़ते हैं। तापमान मेंटल की सीमा पर लगभग 4,500°C (8,132°F) से लेकर आंतरिक कोर के केंद्र में 5,400°C (9,800°F) से अधिक तक होता है। दबाव भी बहुत ज़्यादा होता है, जो समुद्र तल पर वायुमंडलीय दबाव से 3.6 मिलियन गुना अधिक होता है।
चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण
तरल बाहरी कोर के भीतर की गति ही पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण करती है। इस प्रक्रिया को जियोडायनेमो कहते हैं। जैसे-जैसे बाहरी कोर ठंडा होता है, आंतरिक कोर की सीमा के पास तरल लोहा जम जाता है, जिससे ऊष्मा और हल्के तत्व निकलते हैं। यह तरल बाहरी कोर के भीतर अशांत संवहन धाराओं को प्रेरित करता है। चूँकि पिघला हुआ लोहा एक उत्कृष्ट विद्युत चालक है, इसलिए ये गतिशील धाराएँ विद्युत धाराएँ उत्पन्न करती हैं। ये विद्युत धाराएँ, बदले में, एक शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती हैं जो अंतरिक्ष में दूर तक फैला होता है और चुंबकीय क्षेत्र (मैग्नेटोस्फीयर) का निर्माण करता है। यह चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी को हानिकारक सौर हवाओं और ब्रह्मांडीय विकिरण से बचाता है, जिससे हमारे ग्रह पर जीवन संभव होता है।
लेकिन पार्वती ,गणेश को वो धरती पर ही देखते हैं। अर्थात पार्वती व गणेश स्तर की चेतना धरती पर तब भी होती है।
भविष्य त्रिपाठी अब खामोश।
" और भविष्य…..?! "
" नादिरा! सर जी कहते रहे हैं कि धरती ही नहीं ब्रह्मण्ड का कण कण,जर्रा जर्रा को व्याख्या सनातन है । "
मखानी इंटर कालेज में ही …
" और अशोक बिंदु जी?! सुनाओ ? "
" सुनाओ कुछ ? "
" क्या सुनाये ?!"
" क्या सोंच रहे थे ? वही सुनाओ? "
" भविष्य : कथांश नाम से हमारी एक पुस्तक की योजना है ।उस पर ही सोंच रहे थे। "
"कुछ पढ़ाया भी करो ? "
" इसका भी वक्त आएगा । "
" रस्तोगी मैडम आपको बहुत याद करती हैं। दैनिक जागरण में वे आपको पढ़ती रहती हैं। "
" ठीक है । हां , हम ' उरमज्द ' के बारे में भी सोंच रहे थे । "
" यह क्या है ? "
" अवेस्ता में वरुण का नाम 'उरमज्द' मिलता है। "
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