कुल्हाड़ी ये मारेँ ही अन्य इन्सानों ,जन्तुओँ ,वनस्पतियोँ ,आदि के
अतिरिक्त अंतरिक्ष मेँ भी विकार पैदा कर डाले .इन लोगोँ के चरित्र की
मुख्य विशेषता है -आचरण ,मन व बोली से अंतर होना.
इनका ज्ञानी भी अज्ञानी है .
पृथुमही के एक नगर मेँ रामलीला चल रहा था .दो बहुरुपिया चेहरा पर
मुखौटा लगाये घूम रहे थे .राजसी वेश मेँ ये दोनों अपने सिर पर पगड़ी बांधे
हुए थे . इनका कद लगभग तीन फुट था.
"चटपकचटापच!अब देखते हैँ कि यहाँ क्या क्या हो रहा है ?"
कुछ दूरी पर मनचले लड़कोँ का झुण्ड एक लड़की के साथ अभद्रता का
व्यवहार कर रहा था.
"मानव क्या श्रेष्ठ है ?"
"मूर्ख भी है ."
"अपराधियोँ ,माफियाओँ और जातिवादियोँ को फूल माला चढ़ा कर अपना
नेता चुनता है .सत पर जीने वालोँ को सनकी पागल कहता है .धर्म की गलियोँ
मेँ धर्म की दुर्दशा हो ."
"देखो ये सड़ा गला क्या खा रहे हैँ ?"
"इसे ये अचार कहते है .उन बोतलोँ मेँ सिरका ......?!."
"वो मधुशाला ?"
दोनोँ मधुशाला की ओर बढ़ गये .
"मधुशाला यानि की ये लोग मधु पी रहे हैँ ? मधु पिया जा सकता है . "
एक बहुरूपिया सूंघता हुआ बोला -
" नहीँ,धोखा ! हनी नहीँ "
नशे मेँ धुत्त व्यक्ति हंस पड़े .
जब दोनोँ एक शिवभक्तोँ के एक पाण्डाल मेँ पहुँचे तो -
"ऐ शिवभक्त कैसे? "
भाँग के नशे
मेँ धुत्त एक शिवभक्त बोला -"आओ ,प्रसाद चखो ."
दोनोँ एक दृसरे को देखने लगे.
" पृथुमहि पर मनुज कैसा है ? धार्मिकोँ व आध्यात्मिकोँ मेँ तक धर्म
व आध्यात्म नहीँ .सब के सब शूद्र कर्म मेँ!"
"ब्रह्मांश व प्रकृतिअंश होकर भी अपने ब्रह्मांशीय व प्राकृतिक
अंशोँ के लिए इनसे सम्बंधित अंशोँ को छोंड़कर क्रत्रिम अंशोँ के लिए अपने
ब्रह्मांश व प्राकृतिक अंशोँ को नजरांदाज कर देना कहाँ तक उचित है ?"
दोनों बहुरूपिया मेला के बाहर आ गये थे .सड़क किनारे ही एक हरे बाग
को काटा जा रहा था .
"ये हरे बाग को काट रहे ?"
" प्रकृति माँ के पूजक कहाँ ....? "
" हूँ ,ये पाँचोँ तत्वोँ को पूजते भी हैँ और अपने स्वार्थ के लिए
इनको प्रदूषित भी कर रहे हैँ ."
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