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शनिवार, 1 मई 2021

तीन नेत्री एलियन-'हफदमस'-सन सन6050ई0!

 सन 6050ई0!

हफदमस जो कि तीन नेत्री एक एलियन था।

"यह समुद्र देखरहा हूँ मैं, इसके अंदर एक पूरा का पूरा शहर मुंबई मौजूद है।"


उड़न तश्तरी यान के अंदर एक स्क्रीन पर समुद्र के अंदर की मुंबई को दिखाया जा रहा था जिसमें 4 गोताखोर मौजूद थे । 

मानव आबादी के प्रमाण 250 ईसा पूर्व तक मिलते हैं। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में यह दीप समूह मौर्य साम्राज्य का भाग बने जब बहुत सम्राट अशोक महान का शासन था । कुछ आरंभिक शताब्दियों में मुंबई के नियंत्रण से संबंधित इतिहास सातवाहन साम्राज्य और इंडो सीथियन वेस्टर्न सैट्रेप के बीच विवाद था । बाद में हिंदू सिल्हारा वंश के राजाओं ने यहां 1343 ईस्वी तक राज्य किया। जब तक की गुजरात के राजा ने सप्त दीपों पर अधिकार नहीं कर लिया। एलीफेंटा गुफाओं ,बलकेश्वर मंदिर आदि में इस काल के अवशेष मिले थे। सन 15 34 ईसवी में पुर्तगालियों ने गुजरात के बहादुर शाह से यह  द्वीप समूह छीन लिए जो कि बाद में चार्ल्स   द्वितीय इंग्लैंड को दहेज रूप में दे दिए गए । यह द्वीप सन 1668 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी  को मात्र 10 पाउंड प्रतिवर्ष की दर पर पट्टे पर दे दिए ।सन 1687 ईस्वी में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने मुख्यालय सूरत से हस्तांतरित कर यहां मुंबई स्थापित किए। अंततः नगर मुंबई प्रेसीडेंसी का मुख्यालय बन गया सन 1817 के बाद नगर को विस्तृत पैमाने पर सिविल कार्यों द्वारा वर्तमान शहर के रूप में स्थापित किया गया ।इसमें सभी दीपों को एक जुड़े हुए दीप में जोड़ने की परियोजना मुख्य थी । इस परियोजना को हार्न बाय बेल्लार्ड कहा गया ।जो सन 1845 में पूर्ण हुआ तथा सन 18  53 में भारत की प्रथम यात्री रेलवे लाइन स्थापित हुई। अमेरिकी नागर युद्ध के दौरान विश्व का प्रमुख सूती व्यवसाय बाजार बना  जिससे इसकी अर्थव्यवस्था मजबूत हुई। साथ ही साथ नगर का विस्तार कई गुना बढ़ गया । सन 18 69 में स्वेज नहर के खुलने के बाद से अरब सागर का सबसे बड़ा  पत्तन बन गया ।


हम गूगल से सर्च करते हुए मुंबई के संबंध में विभिन्न जानकारियां एकत्रित करते रहे।

 हम सोच रहे थे - वो एलियंस पृथु मही की मानव जाति से काफी नाराज थे ।

मानव जाति इस धरती को ही नहीं बरन अंतरिक्ष को भी प्रदूषित कर चुकी थी। प्रकृति व ब्रहमांड में मानव जाति के विकास ने सहज और स्वत:  जीवन में विकार खड़े क र दिए थे। जिसका प्रभाव स्वयं मानव जाति की ही प्रकृति स्थूलता और सूक्ष्म पर पड़ा ।मानव जाति दयनीय अवस्था में पहुंच चुकी थी ।


वन्य समाज,आदिवासी अपना सहजीवन और व्यवस्था को बचाए हुए तो थे लेकिन जीवन संघर्ष बढ़ गया था ।

उत्तरी ध्रुव, साइबेरिया आदि क्षेत्र पुन: हरियाली से भरने लगे थे ।

अनेक ग्लेशियर पिघल चुके थे। गोमुख से ऊपर सेआने वाली अनेक जलधाराएं सूख चुकी थी । समुद्रों के तल बढ़ गए थे । अनेक समुद्र तटीय क्षेत्र डूब चुके थे। बचे खुचे मानवों में 85% जनता को अपना जीवन जीना मुश्किल हो रहा था । आपसी कलह, संघर्ष और युद्ध बढ़ गए थे । परिवार व्यवस्था ,रिश्ते नाते बिखर चुके थे ।अनेक शहरों को समुद्र निगल चुके थे । इन शहरों में एक शहर- मुंबई। 

 4 गोताखोर उसमें थे ।




तीन नेत्री एलियन 'हफदमस' उड़न तश्तरी के अंदर स्क्रीन से विभिन्न स्रोतों से विभिन्न सूचनाएं एकत्रित कर रहा था उड़नतश्तरी की गति बहुत धीमी हो चुकी थी । धरती पर खड़ी एक उड़नतश्तरी में से एक छोटा सा यान निकल कर आकाश में गति करने लगा था।

हफदमस ने अपनी उड़नतश्तरी को नीचे धरती पर उतार दिया इस पृथु मही के अनेक बड़े हवाई अड्डों का पुनर्निर्माण और परिमार्जन किया जा रहा था । 

पेरू की प्राचीन सभ्यता इका के अवशेषों को आधुनिक ढंग से ठीक किया जा रहा था। दूर-दूर तक पत्थरों की जड़ाई से बनी सीधी और वृत्ताकार रेखाओं वाले स्थल को  पुनः जीवित किया जा रहा था। जिसकी एक दीवार पर एक राकेट बना हुआ था । राकेट के बीच में एक व्यक्ति आश्चर्यजनक हेलमेट लगाए हुए दिखाया गया था । जिसे मातृ देवी भी कहा जा रहा था। दक्षिण अमेरिका की इंडीज पहाड़ियों में बसी एक झील के पास एक प्राचीन नगर के अवशेषों को भी पुनर्जीवित किया जा रहा था। वहां के सूर्य मंदिर को पुनः स्थापित किया जा रहा था।

महाभारत युद्ध के बाद विश्व में विभिन्न नगरों में इक्ष्वाकु वंश की मूर्ति निर्माण कला प्रसारित हुई थी।कोणार्क के सूर्य मंदिर के तरह पश्चिम के अनेक देशों में सूर्य मंदिर भी स्थापित किए गए थे या स्थापित की जाने लगे थे।


लेकिन... लेकिन...


 हफदमस उड़नतश्तरी से बाहर निकलते हुए जब आगे बढ़ा तो काले रंग के अनेक लड़के लड़कियों ने उन्हें घेर लिया और साथ-साथ चलने लगे।


सन 1498 ईस्वी में जब वास्कोडिगामा भारत आया तब उन दिनों भी मुंबई वर्तमान नगर की तरह स्थापित नहीं हो पाया था।वह उस समय भी 7 दीपों के रूप में था । जहां का वातावरण पूर्ण रूप से प्राकृतिक था। इन द्वीपों पर कश्यप वंशी मछुआरे रहा करते थे जो अपने को यवन  आर्य  (ययाति पुत्र तुर्वसुवंशी)कहते थे।कुछ अपने को रावण (र - अवन) वंशी भी मानते थे। सन 1498 ईस्वी में वास्कोडिगामा की यात्रा के वक्त, उस समय का 'सर जी'- का एक चरित्र था-दितान्त ,जो कि समाज में तुर्क माना जाता था लेकिन वह अपने को यवन आर्य कहता। वह कहता था कि हमारे पूर्वज कभी कृष्ण सागर के आसपास विशेषकर आनातोलिया में बस गए थे । जो मलेक्षों में ब्राह्मण के रूप में सम्मानित थे।