Powered By Blogger

मंगलवार, 21 सितंबर 2021

पृथु महि पर मानव सत्ताएं?

 फील्ड जहां तहां विद्यार्थियों के झुंड बैठे हुए थे।


'भविष्य::कथांश'- नाम की एक पुस्तक एक विद्यार्थी के हाथ में थी। "यह पुस्तक हमारे 'सर जी'- ने लिखी है।"- वह विद्यार्थी बोला जिसके हाथ में यह पुस्तक थी।

एक लड़की ने उसके हाथ से पुस्तक ले ली।


'लेखक परिचय'- पृष्ठ पर  नजर डालते हुए वह छात्रा बोली-"अरे, यह सर जी का तो जन्म स्थान-ददिउरी सुनासीर?यह तो हमारे गांव के ही समीप है।"

"तुम्हारा गांव कौन सा है?"

" मोहिउद्दीनपुर।"





फिर वह छात्रा खामोश हो कर उस पृष्ठ को पढ़ने लगी।



इधर कालेज के गेट की ओर ऑफिस की तरफ एक अधेड़ व्यक्ति को एक युवक के साथ खड़ा हुआ देखकर एक विद्यार्थी बोला -" अरे, सर जी तो यही है। अच्छा,उन्होंने एम ए फाइनल  इतिहास का फार्म यही से भरा था।साथ में आशांक सर हैं।"


फिर वह विद्यार्थी उठ कर चल दिया।

"सर जी से मिल लें।"


"ओह, यह...?!" -वह छात्रा के मुख से निकल गया।


"क्यों ,क्या बात?!"

"बस, यूं ही...?!"


कल सर जी ने फेसबुक पर जो पोस्ट की ,वह मानवता का मार्मिक दर्द है। 14अगस्त से दुनिया में कोई यह।मैसेज देने को तैयार नहीं है कि कैसे हथियारों के होड़ व भावी युद्ध की विभीषिका से बचा जाए?


और उधर एलियन्स..?!



एलियन्स भी परेशान हो उठे हैं, इस पृथु महि पर मानव सत्ता की दशा व दिशा को लेकर।जो कि पूरे सौर परिवार को ही नहीं पूरे ब्रह्मांड को प्रभावित कर रहा है।


और-



सन 1993ई0!!

अशोक अब युवा हो चला था।

उसने डायरी  उठायी, जिसे वह पलटने लगा।

डायरी में एक पृष्ठ पर उसकी निगाहें रुक गईं।

जिसमें उसने लिख रखा था--

एक विशाल कक्ष!

इस विशाल कक्ष के मध्य एक विशाल टेबिल पर - सहकन्न की लाश उपस्थित थी और एक परखनली सहित परखनली स्टैंड एक शीशे के गिलास एवं कुछ अन्य सामिग्री रखी थी।


कुछ समय पश्चात रोबेट उस टेबिल  के पास आकर कुछ समय के लिए रुकता है फिर वहां से चला जाता है।

लगभग एक घंटा बाद एक गुफा से बाहर आकर रोबोट बाहर खड़े डायनासोर के मुख में प्रवेश कर जाता है।


-- अशोक यह अपने मकान की छत पर पड़ी चारपाई पर बैठा सोच रहा था और जैसा कि पहले स्पष्ट हो चुका है इससे पूर्व सोंच को किशोर अशोक अपने छत पर पड़े छप्पर के नीचे पड़ी  चारपाई पर लेटे लेटे अपने ख्यालों में ले आया था।



 बरसात समाप्त हो चुकी थी।


अशोक ने एकाएक अपनी निगाहें आसमान पर डालीं-आसमान साफ था। वह बाहर चारपाई डाल कर लेट गया।और सो गया।



-और फिर स्वप्न में!



भयावह अंधेरी रात में तेजी के साथ ठोकरें खाते खाते गिरते जाते जैसे तैसे भागते आगे बढ़ता जा रहा था।भागते भागते पीछे मुड़ भी वह (यानी कि किशोरावस्था का अशोक) देखता जा रहा था- पीछे एक विशालकाय जंतु उसके पीछे दौड़ता आ रहा था।

..........अब वह जाए तो कहां जाए आगे सर्पों का के समूह और पीछे वह विशालकाय जंतु (डायनासोर).......वह जिस पेड़ पर चढ़ा था उसकी एक टहनी पर एक विशालकाय अजगर!


@@@@@           @@@@@@               @@@@@@@



पृथु महि पर मानव सत्ताएं?!


सर जी कहते रहे हैं कि इस दुनिया में सबसे खतरनाक प्राणी है - मानव, क्योंकि उसमें इंसानियत है ही नहीं।दो प्रतिशत से भी कम मानव होमोसेपियन्स प्रजाति का है।सभी अभी आदम प्रवृति में ही जीते हैं।



आज कल क्या हो रहा है?अफगनिस्तान में अमेरिका के पलायन और तालिबान के शासन के बाद पूरी दुनिया हथियारों की होड़ व भावी विश्व युद्ध में ही जी रहा है।



मुंबई में अमिताभ बच्चन एक बच्ची के साथ खेल रहे थे। 


सामने स्क्रीन पर उनकी निगाह गयी।

एक न्यूज चैनल मोदी के जन्मदिन पर एक कार्यक्रम को दिखा रहा था।


वह सोफे पर बैठ कर ट्यूटर पर कमेंट्स देखने लगे।

एक कमेंट्स को देख कर वह मुस्कुरा दिए।



"मैं हूँ आपके आसमां का ही सितारा,

विश्वास है चमकूँगा आपके ही रोशनी से।"



उन्हें एक नई फिल्म के लिए ऑफर आया था, जिसके लिए एक फाइल मेज पर रखी थी। 


वह उस फाइल को उठा कर देखने लगे।


उस फाइल को पढ़ते - पढ़ते वे गम्भीर हो हो गए ।  जिसमें एक बुजुर्ग के जीवन को दर्शाया गया था।



अचानक उनका ध्यान ट्यूटर पर उनकी एक एक पुरानी पोस्ट की ओर गया।जिस पर किसी की कमेंट को ....?!



फाइल मेज पर रख कर वह ट्यूटर पर उस पोस्ट को देखने लगें। वह पोस्ट तो मिल गई लेकिन ..?!वह कमेंट गयाब?!

"वह कमेंट उसने हटा क्यों दिया?!"


वह किसी सोंच में पड़ गए।


"हम भी बुढ़ापे पर?!नींद में उस तरह का स्वप्न... वह कमेंट... और अब यह फ़ाइल....?!अब विधाता हमसे क्या करवाना चाहता है?हमें इस फ़िल्म पर ओके कर देना चाहिए क्या?!"


मैं (लेखक) बेचैनी के साथ कमरे में इधर उधर टहल रहा था।

"हम भी न जाने कितना इधर उधर का सोंचते रहते हैं?"

रात्रि के 11.35pm बज रहे थे।

"मालिक, तेरी मर्जी।बैसे तो जीवन जीना मुश्किल हो जाता है। ये इच्छाएं ही दुःख का कारण हैं, गुलामी, मजबूरी का कारण है। असमर्थतता परेशान कर देती है।ये होना चाहिए, वो होना चाहिए ....हूँ!लेकिन सामर्थ्य क्या है? इसलिए निरन्तर अभ्यास चाहिए।आदतें ही जीवन को बेहतर बनाती हैं और आदतें ही जीवन को मुश्किल में लाती हैं।निरन्तर अभ्यास में रहना जरूरी है।मालिक, तू ही जाने।"

और---


रुतबा?!


तुम, तुम्हारे ठेकेदार, तुम्हारे बच्चे किसकी नजर में रुतबा दिखाना चाहते हैं? अफसोस, जो तुम्हारे बच्चे विद्यार्थी का चोंगा ओढ़े विद्यालय में, क्लास में,शिक्षकों के सामने बैठते हैं तो किस रुतबा में बैठते हैं?किस रुतबा में हरकतें करते हैं? 


कुदरत से बढ़ कर तुम व तुम्हारे बच्चे नहीं हो सकते।ईश्वर से बढ़कर तुम व तुम्हारे बच्चे नहीं हो सकते। कुदरत व ईश्वर के सामने तुम्हारी सारी धारणाएं, मनसूबे, रुतबा काम आने वाला नहीं।कोई गबाही काम आने वाली नहीं?!


हम कोशिस करते रहे हैं, सिर्फ कुदरत व ईश्वर को साक्षी मान कर कार्य करने की।

हमारे शिक्षण का 26 वां वर्ष 01 जुलाई 2021 से शुरू हो चुका है।इस बीच हमने अनेक कहानिया  सजोई है।बस, सजोने वाला चाहिए।हर पल, हर जगह वे बिखरी पड़ीं है।बस, सजोने वाला चाहिए। जो हमने अनेक वेबसाइड में सुरक्षित कर रखी हैं।


हमने जीवन महसूस किया है।समाज, परिवार संस्थाओं में कुछ लोग अपने स्तर से कुदरत व खुदा के दरबार में बेहतर होते हैं।लेकिन समाज,परिवार, संस्थाओं में जातिवादियों, मज़हबीयों, हांहजूरों,चाटुकारों, चन्द् रुपयों की खातिर, झूठा रुतबा आदि के लिए जीने वालों के बीच  निर्दोष होकर भी दोषी साबित हो जाते हैं।

चरित्र समाज, समाज, संस्थाओं की नजर में जीना अलग होता है।कुदरत व खुदा, महापुरुषों आदि की नजर में जीना अलग होता है।


हमें दुःख होता है जो माता पिता, गुरुजनों, शिक्षको के सामने रुतबा दिखाते हैं। हमने देखा है, जो आगे चल समाज में महानता का पथ चूमे हैं वे माता पिता,गुरुजनों,शिक्षकों के प्रति उदार, नम्र हुए हैं।अफसोस है कि आज नई पीढ़ी में अब समीकरण बदल रहे है।


www.ashokbindu.blogspot.com


रविवार, 12 सितंबर 2021

डायनासोर की वह धरती?!

 सन 1993ई0!!

अशोक अब युवा हो चला था।

उसने डायरी  उठायी, जिसे वह पलटने लगा।

डायरी में एक पृष्ठ पर उसकी निगाहें रुक गईं।

जिसमें उसने लिख रखा था--

एक विशाल कक्ष!

इस विशाल कक्ष के मध्य एक विशाल टेबिल पर - सहकन्न की लाश उपस्थित थी और एक परखनली सहित परखनली स्टैंड एक शीशे के गिलास एवं कुछ अन्य सामिग्री रखी थी।


कुछ समय पश्चात रोबेट उस टेबिल  के पास आकर कुछ समय के लिए रुकता है फिर वहां से चला जाता है।

लगभग एक घंटा बाद एक गुफा से बाहर आकर रोबोट बाहर खड़े डायनासोर के मुख में प्रवेश कर जाता है।


-- अशोक यह अपने मकान की छत पर पड़ी चारपाई पर बैठा सोच रहा था और जैसा कि पहले स्पष्ट हो चुका है इससे पूर्व सोंच को किशोर अशोक अपने छत पर पड़े छप्पर के नीचे पड़ी  चारपाई पर लेटे लेटे अपने ख्यालों में ले आया था।



 बरसात समाप्त हो चुकी थी।


अशोक ने एकाएक अपनी निगाहें आसमान पर डालीं-आसमान साफ था। वह बाहर चारपाई डाल कर लेट गया।और सो गया।



-और फिर स्वप्न में!



भयावह अंधेरी रात में तेजी के साथ ठोकरें खाते खाते गिरते जाते जैसे तैसे भागते आगे बढ़ता जा रहा था।भागते भागते पीछे मुड़ भी वह (यानी कि किशोरावस्था का अशोक) देखता जा रहा था- पीछे एक विशालकाय जंतु उसके पीछे दौड़ता आ रहा था।

..........अब वह जाए तो कहां जाए आगे सर्पों का के समूह और पीछे वह विशालकाय जंतु (डायनासोर).......वह जिस पेड़ पर चढ़ा था उसकी एक टहनी पर एक विशालकाय अजगर!




गुरुवार, 2 सितंबर 2021

क्या सच में एलियन्स?!


 05.40pm-05.58pm!

टेलर दोद राम, कुम्हरवाली गली, कटरा, शाहजहाँपुर,उप्र!

हम टेलर की दुकान पर बैठे थे।दुकान पर दोद राम के अलावा अन्य कोई न था।

बात करते करते दोनों भावुक हो गए थे।सूक्ष्म आभासों पर बात हो रही थी।

भारत की भूमि में विष्णु बाल रूप में क्या अवतार ले चुके हैं?

सद चर्चा..!?पूर्व के सूक्ष्म आभासों के साथ।


26 जून 2016 ई0 को....?!



हम अर्द्ध निद्रा में वह देख ही रहे थे।आंख खुल जाने के बाद भी कुछ सेकंड हम उस दशा में थे।

26 जून 2016 ई0 को सुबह तीन बजे, हमारी आंख खुल गयी। अभी चित् में वह सब था ,जैसे कि आंखों के सामने हो। अनेक प्रकाश आकृतियां...?! हमने देखा था हम सारी दुनिया में लाशें ही लाशें देख रहे थे। हमारा यह हाड़ मास शरीर भी लाशों के बीच दबा था। यहाँ पर हम स्पष्ट रूप से देख रहे थे-अपने तीन रूप।
हमारा सूक्ष्म शरीर अभी स्थूल शरीर की ओर अभी मोहित था।

इस बीच आवाज गूंजी-
"तू धरती का राजा है, उठ।अपना कार्य शुरू कर।" हमारा सूक्ष्म शरीर स्थूल के साथ खड़ा था।हमारा तीसरा रूप आगे बढ़ गया था-अनेक प्रकाश आकृतियां की ओर।जय गुरुदेव, बाबूजीमहाराज आदि अनेक सन्त हमें प्रकाश आकृति के रूप में दिख रहे थे।


......आदि बातों को बताते बताते हमारे आंखों में अनेक बार आंसू आ गये थे।
एक बार तो दोद राम के आंखों में भी आंसू आ गए।
इसके साथ साथ हमने अपने सूक्ष्म जगत के अन्य आभास भी भावुकता में कह डाले।







हम सोंचने लगे कि-

"पृथ्वी पर प्रगति की गति धीमी है । दूसरे ग्रहों पर सभ्यताएं इस हद तक विकसित है कि तुम कल्पना भी नहीं कर सकते हो । लगभग बीस हजार वर्ष पहले यह उससे भी ज्यादा जब मनुष्यों ने ऐसे विकसित प्राणियों को देखा तो वे उनको भगवान समझने लगे अगली शताब्दी में वे और भी बड़ी संख्या में वापस आएंगे मनुष्यों के इस प्रकोप को शांत करने के लिए जो कि उन साधनों के द्वारा जिन पर उनको बहुत महारत हासिल है इस ग्रह को मिटाने में सक्षम है चीजों को शांत करना जरूरी होगा और यह स्वीकार करना कि उत्कृष्ट लोगों को समय के साथ पृथ्वी पर शांति स्थापित करने के लिए नेतृत्व अपने हाथ में लेना होगा तब मनुष्य के बीच एकता स्थापित होगी जो उनकी आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देगी ।"-
 💐💐बाबूजी दिव्यलोक से💐💐


@@@@       @@@@@@       @@@@@            @@@@  @@@@@@@


हम नीचे सिर झुकाए कमरे में धीमें धीमे इधर उधर चल रहे थे।हम सोंच में थे।

रात्रि के साढ़े बारह बज रहे थे।




हम-

सूक्ष्म जगत इतिहास की ओर भी!
हम इतिहास के अनेक तथ्य स्वप्न में सूक्ष्म शक्तियों के माध्यम से जानते रहे हैं।यहां तक कि अपने पूर्वजों का इतिहास भी।
कल रात्रि अर्थात आज सुबह लगभग ढाई बजे हमने बालक रूप मे विष्णु को पाकिस्तान की ओर से आते देखा। 
अब हमें लगता है कि यह सत्य है कि विष्णु, इन्द्र आदि का स्थान इराक, ईरान, केस्पियन सागर(कश्यप सागर),काकेक्स पर्वत आदि ही था।कश्यप ऋषि का स्थान भी उधर ही बताया जाता है।कश्यप ऋषि ने काकेकस पर्वत पर तपस्या की थी। 
अभी कुछ महीनों पहले हमने जर्मनी की कुछ सूक्ष्म शक्तियां देखी थीं।जो आर्य मूल की थीं।

ये सब क्या?!

किशोरावस्था से हम अपने अंदर व अपने समीप कभी कभी अनेक रहस्य का आभास पाते रहे हैं।

हम स्वयं क्या हैं? अभी हम मन, बुद्धि, आचरण, दशा से क्या है? यदि हम उस अस्तित्व से जुड़ जाएं तो क्या होगा?

अभी तो हम सिर्फ असफल कोशिस ही करते हैं।

जरूर यह सब पुराने संस्कारों का परिणाम है?

जब हम कक्षा पांच में तो हम किस हाल में भी थे? हम आज कल के कक्षा पांच के विद्यार्थियों  से हट कर थे।हम वह गम्भीर लेख व पुस्तकें पढ़ने लगे थे जो हमारे साथ के अन्य सहपाठी पढ़ना पसन्द न करते थे।
हम उस वक्त दर्शन व आध्यत्म की पुस्तकें व लेख पढ़ने लगे थे।

भीड़ में हम अवश्य सहमे से रहते थे। और उस वक्त हम अन्य धरतियों पर के प्राणियों के बारे में सोंचने लगे थे।हमें स्वप्न आने लगे थे।



उन दिनों ही हम -


हम सोंच रहे थे-भविष्य में एलियन्स पृथु महि पर आक्रमण करेंगे।


उधर अंतरिक्ष मे एक धरती 'हा- हा- हूस'- जहाँ विशालकाय जंतु!! मिस्टर एस की पुत्री -'रुचिको'को वहीं छोंड़ दिया गया था।


एक विशालकाय डायनासोर!


वह चलता तो लगता कि सारी धरती कांप रही हो।


'ह ह न स र क'-एक पहाड़ी की आड़ ले खड़ा हो जाता है।


कुछ समय पश्चात डायनासोर तो आगे बढ़ जाता है लेकिन ' ह ह न स र क'- दो फन वाले एक सांप का शिकार हो जाता है। सांप उसके बांये पैर से लिपट गया था।काफी प्रयत्न के बाद उस दो मुहे वाले साँप से उसने पीछा छुड़ाया और आगे बढ़ गया।



और--


मिस्टर एस की पुत्री-रुचिको सस्कनपल को अपनी ओर आते देख कर सहमी सहमी एक वृक्ष तले झाड़ी में दुबक जाती है।लेकिन-


सस्कनपल उस झाड़ी के समीप ही आ चुका था।


उस झाड़ी में दो मुहे सांप की फुसकार पर रुचिको डर कर खड़ी हो जाती है।

तो सस्कनपल उसे देख मुस्कुरा देता है।और.....




किसी धरती पर एक कमरे में महात्मा गांधी शक्ल एक बुजुर्ग व्यक्ति टहल रहा था।


वह-

"इन महान वैज्ञानिकों ने पृथु महि के महात्मा गांधी का क्लोन अर्थात हमें बना कर सफलता तो पा ली है, लेकिन....!? हमारा नाम दिया गया है- ब्रह्मांड बी.गांधी।"


@@@@@          @@@@@            @@@@@@             @@@@@@



कुछ वर्षों पूर्व हम काफी अमेरिकी राष्ट्रपति भवन- व्हाइट हाउस को पत्र भेजा करते थे।

ऐसा हम बिल क्लिंटन के समय से कर रहे थे। आगे चलकर हम लगभग 2009ई0से व्हाइट हाउस की बेवसाइट पर लिखने लगे थे। बराक ओबामा  फिर हमें अपने  पर्सनल e mail भेजने लगे थे। ऐसा शायद उनके द्वारा न होकर शायद उनके आफिस से ही होता हो? एक दो बार उनके पत्नी के भी e mail हमें प्राप्त हुए। हम विश्व व इंसानों  की समस्याओं  को लिख कर उस ओर अपने समाधान लिखता था। 


हमें पूरा विश्वास है कि  बराक ओबामा के पहले शपथ समारोह में एलियन्स सूक्ष्म रूप से उपस्थित थे।



और....



वह पांच वर्षीय बालक !

दो आकाशगंगाएं जब टकराती हैं तो लाखों सौर परिवार उजड़ जाते हैं.ब्राहमण्ड मेँ एक आकाशगंगा अब ब्राह्माण्डखोर के नाम चर्चित हो चुकी थी.


आरदीस्वन्दी की मां अफस्केदीरन व सद्भावना इमारत के संस्थापक महागुरु अर्थात उन्मुक्त जिन का शिष्य नारायण अब वृद्ध हो चुके थे.दोनो इस समय
मेडिटेशन मेँ थे.

अब से 1220 पूर्व अर्थात सन 4800 ई0 के 19 जनवरी ! ओशो पुण्यतिथि !!
एक हाल में बैठा उन्मुक्त जिन मेडिटेशन मेँ था.उसके कान मेँ आवाज गूँजी -

"आर्य,उन्मुक्त! तुम अभी जिन नहीं हुए हो.जिन के नाम पर तुम पाखण्डी हो.तुम को अभी कठोर तपस्या करनी होगी. "


'उन्मुक्त जिन' के अज्ञातबास मेँ जाने के बाद कुख्यात औरतें ब्राह्माण्ड मेँ बेखौफ होकर आतंकवाद मचाने लगीं ,इन कुख्यात औरतों के बीच एत पांच वर्षीय बालक ठहाके लगा रहा था.


यह कलि औरतें......?!

पांच वर्षीय बालक मानीटर पर ब्राह्माण्डखोर की सक्रियता को देख देख ठहाके लगा रहा था.


इधर उन्मुक्त जिन एक वर्फीली जगह मेँ एक गुफा अन्दर मेडिटेशन मेँ था.


सन4800ई का वह पांच वर्षीय बालक......?!

अफस्केदीरन ने जब नारायण की ओर देखा तो नारायण अपने स्थान पर न था.


कक्षा 09c!!चुनावी राजनीति, नागरिकशास्त्र में चर्चा करते करते हम भावुक हो गए थे।

चौथा पीरियड,07 सितम्बर 2021 ई0!! सब कुछ ठीक है।कार्लमार्क्स ने कहा है कि दुनिया को बर्बाद करने वाले सत्तावादी, पूंजीवादी,पुरोहित्वादी हैं। आचार्य चतुरसेन कहते हैं कि जब इन्द्र पद का सृजन हुआ तो क्या हुआ था?तब भी भृष्टाचार था।सन 1947 के आजादी के वक्त भी भृष्टाचार था।

ब्रिटेन के एक मंत्री कह चुके हैं कि एलियन्स धरती पर आक्रमण कर सकते हैं। ब्रह्मांड में खतरनाक प्राणी कौन है?सिर्फ मानव ।उसने इस धरती पर ही नहीं ब्रह्मांड में भी प्रदूषण खड़े कर दिए हैं। हम किशोरावस्था से ही इस पर सहमत रहे हैं कि एलियन्स हैं।


हम सोंचने लगे कि-


"पृथ्वी पर प्रगति की गति धीमी है । दूसरे ग्रहों पर सभ्यताएं इस हद तक विकसित है कि तुम कल्पना भी नहीं कर सकते हो । लगभग बीस हजार वर्ष पहले यह उससे भी ज्यादा जब मनुष्यों ने ऐसे विकसित प्राणियों को देखा तो वे उनको भगवान समझने लगे अगली शताब्दी में वे और भी बड़ी संख्या में वापस आएंगे मनुष्यों के इस प्रकोप को शांत करने के लिए जो कि उन साधनों के द्वारा जिन पर उनको बहुत महारत हासिल है इस ग्रह को मिटाने में सक्षम है चीजों को शांत करना जरूरी होगा और यह स्वीकार करना कि उत्कृष्ट लोगों को समय के साथ पृथ्वी पर शांति स्थापित करने के लिए नेतृत्व अपने हाथ में लेना होगा तब मनुष्य के बीच एकता स्थापित होगी जो उनकी आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देगी ।"-

 💐💐बाबूजी दिव्यलोक से💐


पुरातत्व विभाग, विश्व पौराणिक कथाएं, वन्य समाज कबीले आदि इस बात के सबूत हैं कि समय समय पर दूसरी धरती के मनुष्यों/एलियन्स ने इस धरती के मानव समाज को प्रशिक्षित किया है।




हिमालय सिर्फ पत्थर, शैलों, मिट्टी, वनस्पतियों आदि मात्रा से भरी भौतिक रचना नहीं है।वह चेतना का कुम्भ, प्राणाहुति शरीर है।जहां अनेक आत्माएं साधना लीन हैं।उसका अहसास स्थूलता में जीने वाले नहीं कर सकते।वे सिर्फ मान सकते हैं कि  हिमालय महान है।इस सृष्टि के लिए हिमालय अति।महत्वपूर्ण है।यह वर्तमान।में सबसे महान पर्वत है।
हम तो यह कहेंगे कि उसे संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा अंतरराष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जाए।और आधुनिक भौतिक भोगवादी हस्तक्षेप खत्म हो।
उसकी नैसर्गिकता, सहजता बनी रहनी चाहिए।
पश्चिम के पौराणिक कथाओं में भी स्वर्ग वहीं सांकेतिक किया गया है।
मानव सभ्यता की शुरुआत इसी पर्वत से शुरू हुए।कश्मीर हो या नेपाल, हिंदुकुश की पहाड़ियां हो या अरुणाचल की,कैलाश पर्वत हो या शिवालिक ....पूरा का पूरा हिमालय क्षेत्र हम एक सूक्ष्म आभा से भरा  महसूस देखते है।
अभी अनेक रहस्य हैं जो उजागर होने बाकी हैं, जो मानव की समझ से परे हैं।
कुमायूं या कूर्माचल के अतीत की ओर जाते हैं तो उसके सूक्ष्म आभा की चमक हमें पवित्र रोम राज्य तक नजर आती है। और जब हम शिवालिक पहाङियों के अतीत की ओर झांकते हैं तो उसके सूक्ष्म आभा की चमक #रामपिथेक्स  की आड़ में अफ्रीका तक नजर आती है।कब #मानसरोवर के माध्यम से #काकभुशुण्डि #क्रोप्रजाति के माध्यम से अतीत में जाते हैं तो सूक्ष्म आभा की चमक मिस्र, श्रीलंका, कोरिया तक महसूस होती है। 
 मानव सभ्यता अब भी स्थूल दृष्टि वह भी भौतिक भोगवादी,संकीर्ण से परे नहीं कहीं पर जा पा रही है।हम महसूस करते हैं कि अभी हम मानव सभ्यता का इतिहास मात्र 3 प्रतिशत ही जान पाए हैं।और  हमारी संकीर्ण दृष्टि अभी प्रागैतिहासिकता, प्रागैतिहासिक व एतिहासिक के बीच की संरचनाओं को समझना तो दूर अभी हम ऐतिहासिक तथ्यों को भी ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं।
कुल मिला कर हम कहना चाहेंगे कि हम व जगत के तीन रूप हैं-स्थूल, सूक्ष्म व कारण।अभी हम स्थूल तक ही उसका सत्य ही उसके ही हिसाब से नहीं समझ पाए हैं। #काकेशस #तुर आदि मध्य एशिया के महान पहाड़ियां भी हम हिमालय की दिव्या का सूक्ष्म प्रभाव मानते है। केंद्र का प्रभाव आस पास क्षेत्र तक जाता है। साइबेरिया के जंगल ,दक्षिण का पठार अपने में अनेक एलियन्स सम्बन्धों का सूक्ष्म आभास भी छिपाए हुए है। #नाग #नागा #बलियर आदि के माध्यम से हम मानव व अन्य शक्ति का आभास पाते हैं। #मत्स्यमानव #मछुआरों #कशयप  आदि के माध्यम से हम भूमध्य सागरीय क्षेत्र, मिस्र आदि में मानव व किसी दिव्य शक्ति के बीच सम्बन्ध को #एलियन्स #परग्रही #आकाशीयशक्ति #आकाशतत्व ,मेसोपोटामिया, सीरिया में हम #वरुण को एक काल में।मनु के रूप।में देखते हैं।जहां #पुल #रस #रूस #सारसेन आदि के माध्यम से #जल तत्व पर नियंत्रक योगियों  के माध्यम से हिमालय से सूक्ष्म आभा का अहसास पाते हैं।

पुराने कबीले अफ्रीका व भूमध्य सागरीय क्षेत्र में मिलते है। वहाँ कुछ कबीले  अब भी अपना आदि पूर्वज दूसरी धरती से आया बताते हैं।