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शनिवार, 19 मार्च 2022

अवतार सन 2100ई0!!

 अवतार सन 2100ई0!! #अशोकबिन्दु



देश व दुनिया में ऐसे नायक चाहिए जो मजहबियों, अलगाववादियों, जातिवादियों, आतंकवादियों, भीड़ हिंसा ,मजहबी उन्माद आदि पर हॉबी हों। 



इतना तो है कि अब से लगभग 75 वर्ष पहले सभी भारतीय बिरादरियां राजनैतिक बैनर तले एक साथ आ गयी थीं। कुछ अपवादों को छोड़ कर।



देश व दुनिया भर में इस आधार पर ध्रुवीकरण तेज हो गया था। मजहबी उन्मादी, अलगाववादी, आतंकवादी आदि के मजहब से भी तीस प्रतिशत  लोग भी उन लोगों के साथ आ चुके जो राष्टवाद, विश्व बंधुत्व, भारतीयता को बढ़ावा दे रहे थे। हालांकि दुनिया तीन भागों में बंट चुकी थी।तीसरी दुनिया के नाम से जाने जाने वाले देश राष्ट्रवाद, विश्वबन्धुत्व, भारतीयता से प्रभावित हो रहे थे।क्योंकि यहां पर किसी जाति, मजहब ,किसी की संस्कृति का विरोध न कर जातिवाद, मजहबवाद ,भीड़ हिंसा, मजहबी उन्माद,अलगाववाद,आतंकवाद आदि का सिर्फ विरोध था। 'विश्व सरकार ग्रन्थ साहिब' -को बढ़ावा था जिसमें सभी जाति, मजहब, देश के सन्तों ,सूफी संतों आदि के इंसानी व रूहानी सन्देशों का संकलन था। 


#गोधरा कांड की प्रक्रिया में खड़ा हुआ #गुजरात कांड  में कुछ ऐसे चरित्र उभर कर आये थे जो 'सेक्युलर फोर्स' के अंतर्गत कार्य कर रहे थे। जो हर प्रकार की जातिवादी,मजहबी, उन्मादी, कट्टरपन, आतंकवाद आदि के खिलाफ थे।जिसके लिए वे उनका फाइनल डिसीजन होता था- हिंसा के खिलाफ हिंसा लेकिन पहला कदम अहिंसा।इस चरित्र के लोग अंडरग्राउंड थे। क्योकि इनके खिलाफ हर जाति व हर मजहब के कट्टरपंथी व उन्मादी लोग थे।


गोधरा कांड प्रतिक्रिया में उभरी हिंसा अर्थात प्रतिहिंसा के बीच ये सेक्युलर फोर्स बच्चों, औरतों, उदारवादियों, निष्पक्ष व्यक्तियों आदि के साथ खड़ी थी।



भविष्य त्रिपाठी अपने सर जी के फाइलों को देख रहा था।  
एक फाइल पर लिखा था - भविष्य : कथांश । उसको खोलते ही उसे नजर आए यह गद्यांश......



तीन नेत्री एलियन-'हफदमस'-सन सन6050ई0!

 सन 6050ई0!
हफदमस जो कि तीन नेत्री एक एलियन था।
"यह समुद्र देखरहा हूँ मैं, इसके अंदर एक पूरा का पूरा शहर मुंबई मौजूद है।"

उड़न तश्तरी यान के अंदर एक स्क्रीन पर समुद्र के अंदर की मुंबई को दिखाया जा रहा था जिसमें 4 गोताखोर मौजूद थे । 
मानव आबादी के प्रमाण 250 ईसा पूर्व तक मिलते हैं। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में यह दीप समूह मौर्य साम्राज्य का भाग बने जब बहुत सम्राट अशोक महान का शासन था । कुछ आरंभिक शताब्दियों में मुंबई के नियंत्रण से संबंधित इतिहास सातवाहन साम्राज्य और इंडो सीथियन वेस्टर्न सैट्रेप के बीच विवाद था । बाद में हिंदू सिल्हारा वंश के राजाओं ने यहां 1343 ईस्वी तक राज्य किया। जब तक की गुजरात के राजा ने सप्त दीपों पर अधिकार नहीं कर लिया। एलीफेंटा गुफाओं ,बलकेश्वर मंदिर आदि में इस काल के अवशेष मिले थे। सन 15 34 ईसवी में पुर्तगालियों ने गुजरात के बहादुर शाह से यह  द्वीप समूह छीन लिए जो कि बाद में चार्ल्स   द्वितीय इंग्लैंड को दहेज रूप में दे दिए गए । यह द्वीप सन 1668 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी  को मात्र 10 पाउंड प्रतिवर्ष की दर पर पट्टे पर दे दिए ।सन 1687 ईस्वी में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने मुख्यालय सूरत से हस्तांतरित कर यहां मुंबई स्थापित किए। अंततः नगर मुंबई प्रेसीडेंसी का मुख्यालय बन गया सन 1817 के बाद नगर को विस्तृत पैमाने पर सिविल कार्यों द्वारा वर्तमान शहर के रूप में स्थापित किया गया ।इसमें सभी दीपों को एक जुड़े हुए दीप में जोड़ने की परियोजना मुख्य थी । इस परियोजना को हार्न बाय बेल्लार्ड कहा गया ।जो सन 1845 में पूर्ण हुआ तथा सन 18  53 में भारत की प्रथम यात्री रेलवे लाइन स्थापित हुई। अमेरिकी नागर युद्ध के दौरान विश्व का प्रमुख सूती व्यवसाय बाजार बना  जिससे इसकी अर्थव्यवस्था मजबूत हुई। साथ ही साथ नगर का विस्तार कई गुना बढ़ गया । सन 18 69 में स्वेज नहर के खुलने के बाद से अरब सागर का सबसे बड़ा  पत्तन बन गया ।

हम गूगल से सर्च करते हुए मुंबई के संबंध में विभिन्न जानकारियां एकत्रित करते रहे।
 हम सोच रहे थे - वो एलियंस पृथु मही की मानव जाति से काफी नाराज थे ।
मानव जाति इस धरती को ही नहीं बरन अंतरिक्ष को भी प्रदूषित कर चुकी थी। प्रकृति व ब्रहमांड में मानव जाति के विकास ने सहज और स्वत:  जीवन में विकार खड़े क र दिए थे। जिसका प्रभाव स्वयं मानव जाति की ही प्रकृति स्थूलता और सूक्ष्म पर पड़ा ।मानव जाति दयनीय अवस्था में पहुंच चुकी थी ।

वन्य समाज,आदिवासी अपना सहजीवन और व्यवस्था को बचाए हुए तो थे लेकिन जीवन संघर्ष बढ़ गया था ।
उत्तरी ध्रुव, साइबेरिया आदि क्षेत्र पुन: हरियाली से भरने लगे थे ।
अनेक ग्लेशियर पिघल चुके थे। गोमुख से ऊपर सेआने वाली अनेक जलधाराएं सूख चुकी थी । समुद्रों के तल बढ़ गए थे । अनेक समुद्र तटीय क्षेत्र डूब चुके थे। बचे खुचे मानवों में 85% जनता को अपना जीवन जीना मुश्किल हो रहा था । आपसी कलह, संघर्ष और युद्ध बढ़ गए थे । परिवार व्यवस्था ,रिश्ते नाते बिखर चुके थे ।अनेक शहरों को समुद्र निगल चुके थे । इन शहरों में एक शहर- मुंबई। 
 4 गोताखोर उसमें थे ।



तीन नेत्री एलियन 'हफदमस' उड़न तश्तरी के अंदर स्क्रीन से विभिन्न स्रोतों से विभिन्न सूचनाएं एकत्रित कर रहा था उड़नतश्तरी की गति बहुत धीमी हो चुकी थी । धरती पर खड़ी एक उड़नतश्तरी में से एक छोटा सा यान निकल कर आकाश में गति करने लगा था।
हफदमस ने अपनी उड़नतश्तरी को नीचे धरती पर उतार दिया इस पृथु मही के अनेक बड़े हवाई अड्डों का पुनर्निर्माण और परिमार्जन किया जा रहा था । 
पेरू की प्राचीन सभ्यता इका के अवशेषों को आधुनिक ढंग से ठीक किया जा रहा था। दूर-दूर तक पत्थरों की जड़ाई से बनी सीधी और वृत्ताकार रेखाओं वाले स्थल को  पुनः जीवित किया जा रहा था। जिसकी एक दीवार पर एक राकेट बना हुआ था । राकेट के बीच में एक व्यक्ति आश्चर्यजनक हेलमेट लगाए हुए दिखाया गया था । जिसे मातृ देवी भी कहा जा रहा था। दक्षिण अमेरिका की इंडीज पहाड़ियों में बसी एक झील के पास एक प्राचीन नगर के अवशेषों को भी पुनर्जीवित किया जा रहा था। वहां के सूर्य मंदिर को पुनः स्थापित किया जा रहा था।
महाभारत युद्ध के बाद विश्व में विभिन्न नगरों में इक्ष्वाकु वंश की मूर्ति निर्माण कला प्रसारित हुई थी।कोणार्क के सूर्य मंदिर के तरह पश्चिम के अनेक देशों में सूर्य मंदिर भी स्थापित किए गए थे या स्थापित की जाने लगे थे।

लेकिन... लेकिन...

 हफदमस उड़नतश्तरी से बाहर निकलते हुए जब आगे बढ़ा तो काले रंग के अनेक लड़के लड़कियों ने उन्हें घेर लिया और साथ-साथ चलने लगे।

सन 1498 ईस्वी में जब वास्कोडिगामा भारत आया तब उन दिनों भी मुंबई वर्तमान नगर की तरह स्थापित नहीं हो पाया था।वह उस समय भी 7 दीपों के रूप में था । जहां का वातावरण पूर्ण रूप से प्राकृतिक था। इन द्वीपों पर कश्यप वंशी मछुआरे रहा करते थे जो अपने को यवन  आर्य  (ययाति पुत्र तुर्वसुवंशी)कहते थे।कुछ अपने को रावण (र - अवन) वंशी भी मानते थे। सन 1498 ईस्वी में वास्कोडिगामा की यात्रा के वक्त, उस समय का 'सर जी'- का एक चरित्र था-दितान्त ,जो कि समाज में तुर्क माना जाता था लेकिन वह अपने को यवन आर्य कहता। वह कहता था कि हमारे पूर्वज कभी कृष्ण सागर के आसपास विशेषकर आनातोलिया में बस गए थे । जो मलेक्षों में ब्राह्मण के रूप में सम्मानित थे।


साइबेरिया की प्रयोगशाला से!

  साइबेरिया के जंगलों के बीच एक प्रयोगशाला।
तीन नेत्रधारी दो युवक रूस की एक युवती के साथ बैठे थे।
सामने डिजिटल बॉल पर चल चित्र आ रहे थें।
चलचित्र में---

ईशा पूर्व लगभग 567 वर्ष।
तब एक पांच छह साल का बालक?जिसे कोई 'प्र-ओत', तो कोई 'प्रा-ओटा' पुकारते थे।
वह समुद्री तट?!

समुद्र में समुद्र की ऊंची ऊंची कुश्ती लहरों के बीच एक नौका में आंख बंद पड़ी वेदों की छोरियां सुना जाता है की वे दोनों की छोरियां भारत से आई थी समुद्री लुटेरों ने एक जहाज को लूटा था वह जहाज कलिंग राज्य भारत के किसी बंदरगाह से चला था और समुद्र में लूट लिया गया जब यह जहाज भारत से चला था तो दोनों किशोरियों बालिका थी उन्हें किसी व्यापारी ने बेच दिया था कुछ व्यक्तियों के साथ बे बालिकाएं भी समुद्र में कूद गई थी उस जहाज से लूट के दौरान आग भी लग गई थी बेहोशी हालत में दोनों एक द्वीप के तट पर लग गई थी जब होश आया तो कुछ समय उनके परेशानी और बेचैनी में बीता घास फूस पत्ते खाकर काम चलाया ।
उन्हें ध्यान आया की उनकी मां मुसीबत के समय आंख बंद करके बैठती थी और मन ही मन बुदबुदा टी  थी हमारी कोई समस्या नहीं है हम तो दिव्य प्रकाश से भरे हैं जिसके प्रभाव हमारे सारे विकार नष्ट हो रहे हैं दोनों उस टापू पर अधिकतर समय ध्यान में बिताते थी लगभग 5 साल बीत गए 1 दिन समुद्री तूफान आया जिसमें वह दोनों बहे गई जब तूफान शांत हुआ तो उन पर कुछ मछुआरों की निगाह पड़ी एक सन्यासी ने अपनी झोपड़ी में उसे आश्रित दिया बड़ी को  प्रे फेस नाम से व छोटी को प्रेमबल नाम से पुकारा जाने लगा। दोनों के बीच पांच छह वर्षिय प्रोटागोरस कुछ समय के लिए खेलने लगा और ध्यान करना भी सीखा।
"पूर्व के सन्तों को नमन!"


उस भूमिगत एलियन्स प्रयोगशाला, साइबेरिया में उस चलचित्र से अपना ध्यान हटा कर  समकेदल वम्मा के बारे में सोचने लगी।

समकेदल वम्मा...?!
सन 5012ई0 का ही शायद समय था...
....सम्कदेल वम्मा मुश्किल मेँ था.अब कैसे यान को वह आगे निकाले?दुश्मनोँ के यान से छोड़ी जा रही घातक तरंगे यान को नुकसान पहुँचा सकती थी.ऐसे मेँ उसने अनेक धरतियोँ पर उपस्थित अपने सहयोगियोँ से एक साथ सम्पर्क साधा.


"मेरे यान को घेर लिया गया है."


सम्कदेल वम्मा के सहयोगियोँ के द्वारा अपने अपने नियन्त्रण कक्ष से अपने अपने कृत्रिम उपग्रहोँ मेँ फिट हथियारोँ से दुश्मन के यानोँ पर घातक तरंगे छोड़ी जाने लगीँ.अनेक यान नष्ट भी हुए.


लेकिन....?!


सम्कदेल वम्मा के यान मेँ आग लग गयी .


"मित्रोँ!सर! यान मेँ आग लग गयी है. दुश्मनोँ के यानोँ से छोड़ी जाने वाली घातक तरंगोँ से मेरा यान अब भी घिरा हुआ है. कोई अपने कृत्रिम उपग्रह से पायलटहीन यान भेजेँ . लेकिन.....?!मैँ......मैँ... ....मैँ.....आ.....आ...(कराहते हुए) आत्मसमर्पण करने जा रहा हूँ."

फिर सम्कदेल वम्मा ने सिर झुका लिया.


सम्कदेल वम्मा ने अपने बेल्ट पर लगा एक स्बीच आफ कर दिया.जिससे उसके ड्रेश पर की जहाँ तहाँ टिमटिमाती रोशनियाँ बन्द हो गयीँ. इसके साथ ही यानोँ से घातक तरंगोँ का अटैक समाप्त हो गया और जैसे ही उसने अपने यान का दरवाजा खोला एक विशेष प्रकार की चुम्बकीय तरंगोँ ने उसे खीँच कर दुश्मन के एक यान मेँ पहुंचा दिया.वह यान के बन्द होते दरबाजे की ओर देखने लगा.

"दरबाजे की ओर क्योँ देख रहे हो?" 


"तुम?!"


"हाँ मै,तुम हमसे दोस्ती कर लो.मौज करोगे."


"मेरा मौज मेरे मिशन मेँ है." 


" हा S S S S हा S S S S हा S S S हा S S S S हा S S S " -  ठाहके लगाते हुए.

फिर-

"धर्म मेँ क्या रखा है? जेहाद मेँ क्या रखा है ? ' जय कुरुशान जय कुरुआन' का जयघोष छोड़ो.'जय काम' बोलो 'जय अर्थ' बोलो.जितना 'काम'और 'अर्थ'मेँ मजा है उतना 'धर्म'और 'मोक्ष'मेँ कहाँ ? 'काम'और'अर्थ'की लालसा पालो,'धर्म'और 'मोक्ष' की नहीँ."


"तुम मार दो मेरे तन को.तभी तुम्हारी भलाई है."



" सम्कदेल वम्मा! अपने पिता की तरह क्या तुम मरना पसन्द करोगे? "


" पिता कैसा पिता?शरीर तो नश्वर ही है . तू हमेँ मारेगा ? भूल गया तू क्या कुरुशान को अर्थात गीता सन्देश को ? भूल गया तू क्या कुरुआन को -हुसैन की शहादत को ? "


"सम्कदेल! तू भी अपने पिता की तरह बोलता है? "


"हूँ! तुम जैसे भोगवादी! धन लोलुप! कामुक!थू! "

"सम्कदेल!"


"हमारी कोशिसेँ बेकार नहीँ जायेगी . क्योँ न बार बार मर कर बार बार जन्म लेना पड़े? राम कृष्ण के जन्म हेतु अतीत मेँ कारण छिपे होते है. तेरा अहंकार जाग कर जब तक सौ प्रतिशत नहीँ हो जाता तब तक तू मोक्ष नहीँ पा सकता, इसके लिए तुझे बार बार जन्म लेना पड़ सकता है. तू चाहे मेरे इस शरीर को मार दे लेकिन तेरा अहंकार चकनाचूर करने को मैँ फिर जन्म लूँगा -देव रावण . "


" अपनी फिलासफी तू अपने पास रख. कुछ दिनोँ बाद ब्राहमाण्ड की सारी शक्तियाँ हमारे हाथ मेँ होगी. तुम मुट्ठी भर लोग क्या करोगे? अब हम वो दुर्योधन बनेँगे जो कृष्ण को भी अपने साथ रखेगा ,कृष्ण की नारायणी सेना भी. अब मैँ वह रावण बनूंगा जो विभीषण से प्रेम करेगा,राम के पास नहीँ जाने देगा.अगर जायेगा भी तो जिन्दा नहीँ जाएगा."


"यह तो वक्त बतायेगा,जनाब . वक्त आने पर अच्छे अच्छे की बुद्धि काम नहीँ करती.आप क्या चीज हैँ ?"


"हूँ!"


फिर-


" सम्कदेल! जानता हूँ धर्म मोक्ष देता है लेकिन तुम क्या यह नहीँ जानते कि अधर्म भी मोक्ष देता है?मैँ आखिरी वार कह रहा हूँ कि मेरे साथ आ जाओ. नहीँ तो मरने को तैयार हो जाओ."


" मार दो, मेरे शरीर को मार दो."


"डरना नहीँ मरने से?"


"क्योँ डरुँ? चल मार."


सम्कदेल वम्मा के सहयोगी अपने अपने ठिकाने से अन्तरिक्ष मेँ आ चुके थे.


लेकिन...?!


सम्कदेल वम्मा ......?!


""" *** """


एक चालकहीन कम्प्यूटरीकृत यान सनडेक्सरन धरती पर आ कर सम्कदेल वम्मा के मृतक शरीर को छोड़ गया था. आरदीस्वन्दी भागती हुई मृतक शरीर के पास आयी और शान्त भाव मेँ खड़ी हो गयी.


उसके मन मस्तिष्क मेँ सम्कदेल वम्मा के कथन गूँज उठे.


".....शरीर तो नश्वर है . हमे तू मारेगा? भूल गया कुरुशान को अर्थात गीता सन्देश को ? ..... हमारी कोशिसेँ बेकार नहीँ जाएगी. क्योँ न बार बार मर कर बार बार जन्म लेना पड़े?"


आरदीस्वन्दी अभी कुछ समय पहले सम्कदेल वम्मा व देव रावण की वार्ता को सचित्र देख रही थी.आरदीस्वन्दी ने सिर उठा कर देखा कि यान अन्तरिक्ष से वापस आ रहे थे.


कुछ दूर एक विशालकाय स्क्रीन पर अन्तरिक्ष युद्ध के चित्र प्रसारित हो रहे थे. देव रावण के अनेक यानोँ को नष्ट किया जा चुका था.


अब भी-


"..... तेरा अहंकार जाग कर जब तक सौ प्रतिशत नहीँ हो जाता तब तक तू भी मोक्ष नहीँ पा सकता है, इसके लिए तुझे भी बार बार जन्म लेना पड़ सकता है. तू चाहे मेरे इस शरीर ......!?
पुन:


....सम्कदेल वम्मा मुश्किल मेँ था.अब कैसे यान को वह आगे निकाले?दुश्मनोँ के यान से छोड़ी जा रही घातक तरंगे यान को नुकसान पहुँचा सकती थी.ऐसे मेँ उसने अनेक धरतियोँ पर उपस्थित अपने सहयोगियोँ से एक साथ सम्पर्क साधा.


"मेरे यान को घेर लिया गया है."


सम्कदेल वम्मा के सहयोगियोँ के द्वारा अपने अपने नियन्त्रण कक्ष से अपने अपने कृत्रिम उपग्रहोँ मेँ फिट हथियारोँ से दुश्मन के यानोँ पर घातक तरंगे छोड़ी जाने लगीँ.अनेक यान नष्ट भी हुए.


लेकिन....?!


सम्कदेल वम्मा के यान मेँ आग लग गयी .


"मित्रोँ!सर! यान मेँ आग लग गयी है. दुश्मनोँ के यानोँ से छोड़ी जाने वाली घातक तरंगोँ से मेरा यान अब भी घिरा हुआ है. कोई अपने कृत्रिम उपग्रह से पायलटहीन यान भेजेँ . लेकिन.....?!मैँ......मैँ... ....मैँ.....आ.....आ...(कराहते हुए) आत्मसमर्पण करने जा रहा हूँ."

फिर सम्कदेल वम्मा ने सिर झुका लिया.


सम्कदेल वम्मा ने अपने बेल्ट पर लगा एक स्बीच आफ कर दिया.जिससे उसके ड्रेश पर की जहाँ तहाँ टिमटिमाती रोशनियाँ बन्द हो गयीँ. इसके साथ ही यानोँ से घातक तरंगोँ का अटैक समाप्त हो गया और जैसे ही उसने अपने यान का दरवाजा खोला एक विशेष प्रकार की चुम्बकीय तरंगोँ ने उसे खीँच कर दुश्मन के एक यान मेँ पहुंचा दिया.वह यान के बन्द होते दरबाजे की ओर देखने लगा.

"दरबाजे की ओर क्योँ देख रहे हो?" 


"तुम?!"


"हाँ मै,तुम हमसे दोस्ती कर लो.मौज करोगे."


"मेरा मौज मेरे मिशन मेँ है." 


" हा S S S S हा S S S S हा S S S हा S S S S हा S S S " -  ठाहके लगाते हुए.

फिर-

"धर्म मेँ क्या रखा है? जेहाद मेँ क्या रखा है ? ' जय कुरुशान जय कुरुआन' का जयघोष छोड़ो.'जय काम' बोलो 'जय अर्थ' बोलो.जितना 'काम'और 'अर्थ'मेँ मजा है उतना 'धर्म'और 'मोक्ष'मेँ कहाँ ? 'काम'और'अर्थ'की लालसा पालो,'धर्म'और 'मोक्ष' की नहीँ."


"तुम मार दो मेरे तन को.तभी तुम्हारी भलाई है."



" सम्कदेल वम्मा! अपने पिता की तरह क्या तुम मरना पसन्द करोगे? "


" पिता कैसा पिता?शरीर तो नश्वर ही है . तू हमेँ मारेगा ? भूल गया तू क्या कुरुशान को अर्थात गीता सन्देश को ? भूल गया तू क्या कुरुआन को -हुसैन की शहादत को ? "


"सम्कदेल! तू भी अपने पिता की तरह बोलता है? "


"हूँ! तुम जैसे भोगवादी! धन लोलुप! कामुक!थू! "

"सम्कदेल!"


"हमारी कोशिसेँ बेकार नहीँ जायेगी . क्योँ न बार बार मर कर बार बार जन्म लेना पड़े? राम कृष्ण के जन्म हेतु अतीत मेँ कारण छिपे होते है. तेरा अहंकार जाग कर जब तक सौ प्रतिशत नहीँ हो जाता तब तक तू मोक्ष नहीँ पा सकता, इसके लिए तुझे बार बार जन्म लेना पड़ सकता है. तू चाहे मेरे इस शरीर को मार दे लेकिन तेरा अहंकार चकनाचूर करने को मैँ फिर जन्म लूँगा -देव रावण . "


" अपनी फिलासफी तू अपने पास रख. कुछ दिनोँ बाद ब्राहमाण्ड की सारी शक्तियाँ हमारे हाथ मेँ होगी. तुम मुट्ठी भर लोग क्या करोगे? अब हम वो दुर्योधन बनेँगे जो कृष्ण को भी अपने साथ रखेगा ,कृष्ण की नारायणी सेना भी. अब मैँ वह रावण बनूंगा जो विभीषण से प्रेम करेगा,राम के पास नहीँ जाने देगा.अगर जायेगा भी तो जिन्दा नहीँ जाएगा."


"यह तो वक्त बतायेगा,जनाब . वक्त आने पर अच्छे अच्छे की बुद्धि काम नहीँ करती.आप क्या चीज हैँ ?"


"हूँ!"


फिर-


" सम्कदेल! जानता हूँ धर्म मोक्ष देता है लेकिन तुम क्या यह नहीँ जानते कि अधर्म भी मोक्ष देता है?मैँ आखिरी वार कह रहा हूँ कि मेरे साथ आ जाओ. नहीँ तो मरने को तैयार हो जाओ."


" मार दो, मेरे शरीर को मार दो."


"डरना नहीँ मरने से?"


"क्योँ डरुँ? चल मार."


सम्कदेल वम्मा के सहयोगी अपने अपने ठिकाने से अन्तरिक्ष मेँ आ चुके थे.


लेकिन...?!


सम्कदेल वम्मा ......?!


""" *** """


एक चालकहीन कम्प्यूटरीकृत यान सनडेक्सरन धरती पर आ कर सम्कदेल वम्मा के मृतक शरीर को छोड़ गया था. आरदीस्वन्दी भागती हुई मृतक शरीर के पास आयी और शान्त भाव मेँ खड़ी हो गयी.


उसके मन मस्तिष्क मेँ सम्कदेल वम्मा के कथन गूँज उठे.


".....शरीर तो नश्वर है . हमे तू मारेगा? भूल गया कुरुशान को अर्थात गीता सन्देश को ? ..... हमारी कोशिसेँ बेकार नहीँ जाएगी. क्योँ न बार बार मर कर बार बार जन्म लेना पड़े?"


आरदीस्वन्दी अभी कुछ समय पहले सम्कदेल वम्मा व देव रावण की वार्ता को सचित्र देख रही थी.आरदीस्वन्दी ने सिर उठा कर देखा कि यान अन्तरिक्ष से वापस आ रहे थे.


कुछ दूर एक विशालकाय स्क्रीन पर अन्तरिक्ष युद्ध के चित्र प्रसारित हो रहे थे. देव रावण के अनेक यानोँ को नष्ट किया जा चुका था.


अब भी-


"..... तेरा अहंकार जाग कर जब तक सौ प्रतिशत नहीँ हो जाता तब तक तू भी मोक्ष नहीँ पा सकता है, इसके लिए तुझे भी बार बार जन्म लेना पड़ सकता है. 
और....




जंगल के बीच एक विशालकाय इमारत ! इमारत के बाहर अनेक जीव जन्तुओँ एवं महापुरूषोँ-कृष्ण विदुर ,महावीर जैन ,बुद्ध, चाणक्य, ईसा मसीह ,सुकरात, कालिदास ,दारा शिकोह, कबीर, शेरशाह सूरी ,गुरूनानक ,राजा राममोहनराय, सावित्री फूले ,राम कृष्ण परमहंस ,महात्मा गाँधी, एपीजे अब्दुल कलाम, साँई बाबा, ओशो , अन्ना हजारे, आदि की प्रतिमाएँ पेँड़ पौधोँ के बीच स्थापित थीँ . इमारत के अन्दर वातावरण आध्यात्मिक था. वेद कुरान बाइबिल आदि से लिए गये अमर वचन जहाँ -तहाँ दीवारोँ पर लिखे थे. इसके साथ ही सभी ग्रन्थोँ के प्रतीक चिह्न अंकित थे. मन्द मन्द 'ओ3म -आमीन' की ध्वनि गूँज रही थी. जहाँ अनेक औरतेँ नजर आ रही थीँ पुरुष कहीँ भी नजर नहीँ आ रहे थे. हाँ,इस इस इमारत के अन्दर एक अधेड़ पुरुष उपस्थित था जो श्वेत वस्त्र धारी था .इस इमारत का नाम था-'सद्भावना' .एक अण्डाकार यान आकाश मेँ चक्कर लगा रहा था. एक कमरे के अन्दर दीवारोँ पर फिट स्क्रीन्स के सामने किशोरियाँ एवं युवतियाँ उपस्थित थे. अधेड़ पुरुष के सामने उपस्थित स्क्रीन पर अण्डाकार यान को देख कर उसने अपना हाथ घुमाया और वह स्क्रीन गायब हो गयी. सामने रखी माचिस के बराबर एक यन्त्र लेकर फिर वह उठ बैठा. इधर अण्डाकार यान हवाई अड्डे पर उतर चुका था.
* * * *
पृथ्वी से लाखोँ प्रकाश वर्ष दूर एक धरती-सनडेक्सरन . जहाँ मनुष्य रहता तो था लेकिन ग्यारह फुट लम्बे और तीन नेत्रधारी . एक बालिका 'आरदीस्वन्दी'जो तीननेत्र धारी थी , वह बोली -देखो ,माँ पहुँची पृथ्वी पर क्या?एक किशोर 'सम्केदल वम्मा' दीवार मेँ फिट स्क्रीन पर अतीत के एक वैज्ञानिक, जिन्हेँ लोग त्रिपाठी जी कहकर पुकारते थे, को सुन रहा था . जो कह रहे थे कि आज से लगभग एक सौ छप्पन वर्ष पूर्व इस ( पृथ्वी) पर एक वैज्ञानिक हुए थे एपीजे अब्दुल कलाम. उन्होने कहा था कि हमेँ इस लिए याद नहीँ किया जायेगा कि हम धर्म स्थलोँ जातियोँ के लिए संघर्ष करते रहे थे. आज सन 2164ईँ0 की दो अक्टूबर! विश्व अहिँसा दिवस . आज मैँ इस सेमीनार मेँ कहना चाहूगा कि कुछ भू सर्वेक्षक बता रहे हैँ कि सूरत , ग्वालियर, मुरादाबाद, हरिद्वार ,उत्तरकाशी, बद्रीनाथ ,मानसरोवर, चीन स्थित साचे ,हामी, लांचाव, बीजिँग, त्सियांगटाव ,उत्तरी- द्क्षणी कोरिया, आदि की भूमि के नीचे एक दरार बन कर ऊपर आ रही है, जो हिन्दप्राय द्वीप को दो भागोँ मेँ बाँट देगी. यह दरार एक सागर का रुप धारण कर लेगी जिसमेँ यह शहर समा जाएँगे. इस भौगोलिक परिवर्तन से भारत और चीन क्षेत्र की भारी तबाही होगी जिससे एक हजार वर्ष बाद भी उबरना मुश्किल होगा. सम्केदल वम्मा आरदीस्वन्दी से बोला -" त्रिपाठी जी कहते रहे लेकिन पूँजीवादी सत्तावादी व स्वार्थी तत्वोँ के सामने उनकी न चली.
सन2165ई0 की फरवरी! इस चटक ने अरब की खाड़ी और उधर चीन के सागर से होकर प्रशान्त महासागर को मिला दिया. भारतीय उप महाद्वीप की चट्टान खिसक कर पूर्व की ओर बढ़ गयी थी. म्यामार,वियतनाम आदि बरबादी के गवाह बन चुके थे." बालिका बोली कि देखो न,माँ पृथ्वी पर पहुँची कि नहीं... आज सन 5010ई0 की 19 जनवरी! उस अण्डाकार यान से एक तीन नेत्र धारी युवती के साथ एक बालिका बाहर आयी जो कि तीन नेत्रधारी ही थी. अधेड़ व्यक्ति कुछ युवतियोँ के साथ जिनके स्वागत मेँ खड़ा था.
* * * *
"सर ! आपके इस इमारत 'सद्भावना' मेँ तो मेँ प्रवेश नहीँ कर सकूँगी?"- सनडेक्सरन से आयी महिला बोली. तो अधेड़ व्यक्ति बोला कि अफस्केदीरन !तुम ऐसा क्योँ सोचती हो? अफस्केदीरन बोल पड़ी-"सोचते होँगे आपकी धरती के लोग,आप जानते हैँ मैँ किस धरती से हूँ?" जेटसूट से एक वृद्धा उड़ कर धरती पर आ पहुँची. "नारायण!" वृद्धा को देख कर अधेड़ व्यक्ति बोला- "मात श्री !"फिर नारायण उसके पैर छूने लगा. " मैँ कह चुकी हूँ मेरे पैर न छुआ करो." "तब भी......" नारयण ने वृद्धा के पैर छू लिए. इमारत'सद्भावना' के समीप ही बने अतिथिकक्ष मेँ सभी प्रवेश कर गये. आखिर अफस्केदीरन ने ऐसा क्योँ कहा कि सद्भावना मेँ तो मैँ प्रवेश नहीँ कर सकूँगी? दरअसल सद्भावना मेँ औरतोँ का प्रवेश वर्जित था.क्योँ आखिर क्योँ ?इस इमारत को महागुरु ने बनवाया था. जहाँ उन्होँने अपना सारा जीवन गुजार दिया. उन्होँने ही यह नियम बनाया कि इस इमारत मेँ कोई औरत प्रवेश नहीँ करेगी. यह क्या कहते हो आप ? एक को छोड़ कर सब औरतेँ हैँ. तब भी...... बात तब की है जब महागुरु युवावस्था मेँ थे. वह अपनी शादी के लिए लेट होते जा रहे थे. परम्परागत समाज मेँ लोग तरह तरह की बात करने लगे थे. तब वह मन ही मन चिड़चिड़े होने लगे थे कि कोई लड़की हमसे बात करना तक पसन्द नहीँ करती, हमेँ अपने जीवन मेँ पसन्द करना दूर की बात. सामने वाले पर अपनी इच्छाएँ थोपना क्या प्रेम होता है? सद्भावना मेँ उपस्थित स्त्रियाँ ह्यूमोनायड थे. 




शैतान नहीँ क्या ये ? : एलियंस

पृथु महि के इन्सानोँ के बारे मेँ जो कहेँ कम ही है . अपने पैरों पर
कुल्हाड़ी ये मारेँ ही अन्य इन्सानों ,जन्तुओँ ,वनस्पतियोँ ,आदि के
अतिरिक्त अंतरिक्ष मेँ भी विकार पैदा कर डाले .इन लोगोँ के चरित्र की
मुख्य विशेषता है -आचरण ,मन व बोली से अंतर होना.
इनका ज्ञानी भी अज्ञानी है .

पृथुमही के एक नगर मेँ रामलीला चल रहा था .दो बहुरुपिया चेहरा पर
मुखौटा लगाये घूम रहे थे .राजसी वेश मेँ ये दोनों अपने सिर पर पगड़ी बांधे
हुए थे . इनका कद लगभग तीन फुट था.

"चटपकचटापच!अब देखते हैँ कि यहाँ क्या क्या हो रहा है ?"

कुछ दूरी पर मनचले लड़कोँ का झुण्ड एक लड़की के साथ अभद्रता का
व्यवहार कर रहा था.
"मानव क्या श्रेष्ठ है ?"
"मूर्ख भी है ."
"अपराधियोँ ,माफियाओँ और जातिवादियोँ को फूल माला चढ़ा कर अपना
नेता चुनता है .सत पर जीने वालोँ को सनकी पागल कहता है .धर्म की गलियोँ
मेँ धर्म की दुर्दशा हो ."
"देखो ये सड़ा गला क्या खा रहे हैँ ?"

"इसे ये अचार कहते है .उन बोतलोँ मेँ सिरका ......?!."
"वो मधुशाला ?"
दोनोँ मधुशाला की ओर बढ़ गये .
"मधुशाला यानि की ये लोग मधु पी रहे हैँ ? मधु पिया जा सकता है . "
एक बहुरूपिया सूंघता हुआ बोला -
" नहीँ,धोखा ! हनी नहीँ "
नशे मेँ धुत्त व्यक्ति हंस पड़े .
जब दोनोँ एक शिवभक्तोँ के एक पाण्डाल मेँ पहुँचे तो -
"ऐ शिवभक्त कैसे? "

भाँग के नशे
मेँ धुत्त एक शिवभक्त बोला -"आओ ,प्रसाद चखो ."
दोनोँ एक दृसरे को देखने लगे.

" पृथुमहि पर मनुज कैसा है ? धार्मिकोँ व आध्यात्मिकोँ मेँ तक धर्म
व आध्यात्म नहीँ .सब के सब शूद्र कर्म मेँ!"

"ब्रह्मांश व प्रकृतिअंश होकर भी अपने ब्रह्मांशीय व प्राकृतिक
अंशोँ के लिए इनसे सम्बंधित अंशोँ को छोंड़कर क्रत्रिम अंशोँ के लिए अपने
ब्रह्मांश व प्राकृतिक अंशोँ को नजरांदाज कर देना कहाँ तक उचित है ?"

दोनों बहुरूपिया मेला के बाहर आ गये थे .सड़क किनारे ही एक हरे बाग
को काटा जा रहा था .
"ये हरे बाग को काट रहे ?"
" प्रकृति माँ के पूजक कहाँ ....? "
" हूँ ,ये पाँचोँ तत्वोँ को पूजते भी हैँ और अपने स्वार्थ के लिए
इनको प्रदूषित भी कर रहे हैँ ."



साइरियस से साइबेरिया तक !



दोनों तीन नेत्री थे .
दसलोफीन अकेली रह गयी थी .वह कदफनेडरीस को जाते देख रही थी.

वह जिन बूतों के समीप खड़ी थी उनके बीच एक शिला पर एक नक्शा बना हुआ था जिसमेँ भूमध्यसागरीय क्षेत्र व साइबेरियाई क्षेत्र के बीच एक मोटी सी लाइन खिंची दिखायी दे रही थी .जो दो बराबर भाग मेँ ताशकंद व काकेकश के करीब दो भागों मे बंटी थी .जहां बँटी स्थिति पर एक पर्वत व एक कछुआ बना हुआ था .दसलोफीन इस नक्शे को देखते देखते -"ऐहह ममतर.....?" मत्स्यावतार युग के शुरुआत मेँ एक आकाशीय पिण्ड साइरियस अर्थात लुन्धक से एक मत्स्यमानव भूमध्य सागर मेँ उतरा था.फिर ....!?ये साइरियस ....?!कूर्म .....?!साईबेरिया के कभी राजा थे -कुरु.जो अग्नीन्ध्र के पुत्र व प्रियव्रत के पौत्र थे .रोम ,साइबेरिया,कुमायूँ,आदि मेँ बोली जाने वाली आदिभाषाओं की मूलभाषा प्रियव्रत के कबीले की भाषा थी.सुना जाता है प्रियव्रत ने रोम की स्थापना की थी.उत्तराखण्ड का एक नाम कूर्मांचल भी मिलता है.सन2011के14नवम्बर को प्रख्यात पैरानामिल लेखक माइकल कोहान ने साइबेरिया क्षेत्र मेँ एलियन्स गतिविधियों का होना स्वीकारा.इर्कुत्सक मेँ एलियन यान उतरने की घटनाएं होती .
दक्षिण भारत महत्वपूर्ण तो होगा लेकिन सूक्ष्म शक्तियां कूर्म क्षेत्र अर्थात हिमालय,साइबेरिया आदि से भी महत्वपूर्ण होगी। कोरो शक्ति व कोरो-ना शक्ति के बीच महा संघर्ष होगा।आत्मा के अलावा कोरो क्या?लेकिन उस को नजरअंदाज कब तक करेगा मनुज? कुदरत उसी के माध्यम से सफाई करेगी!!एक डेढ़ प्रतिशत मौन के सागर में डूब विष पीने का काम करेंगे।उनसे ही सब थमेगा।सनातन है आत्मा, आत्मा से जुड़ व्यवहार स्वीकार करना होगा।
2011से 2025 ई0 के बीच का समय कोरो अर्थात सहज के लिए बेहतर तो होगा लेकिन जब 98 प्रतिशत कोरो-ना अर्थात असहजता तो दिखेगा वह ही।खेल असल और होगा...
 कोई फाइनल खेल नहीं.... सनातन तो निरन्तर है...वहां विकास नहीं वरन विकासशीलता....

कुछ वर्ष तक लेनिन को साइबेरिया में एक स्थान पर नजरबन्ध  रखा गया।
दिल्ली में नेहरू के प्रधानमंत्री बनने के बाद  सुभाष बाबू भी साइबेरिया में नजरबंद रहे।
इस साइबेरिया में--
उत्तरी ध्रुव अब इधर ही आ रहा है।
शाहजहाँपुर में बाबूजी का तो कहना है-ध्रुव अपने स्थान से खिसकेगा। विनाश उत्तर से ही चलेगा।
उधर-
कैलाश पर्वत!

ये तिकोना आकार प्राकृतिक पहाड़ नहीं वरन एक पिरामिड है जिस पर बर्फ जमी रहती है-रूसी वैज्ञानिकों की एक टीम(1999)
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कैलाश पर्वत पर आज तक कोई क्यों नहीं चढ़ पाया है?
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हिंदू धर्म में कैलाश पर्वत का बहुत महत्व है, क्योंकि यह भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। लेकिन इसमें सोचने वाली बात ये है कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को अभी तक 7000 से ज्यादा लोग फतह कर चुके हैं, जिसकी ऊंचाई 8848 मीटर है, लेकिन कैलाश पर्वत पर आज तक कोई नहीं चढ़ पाया, जबकि इसकी ऊंचाई एवरेस्ट से लगभग 2000 मीटर कम यानी 6638 मीटर है। यह अब तक रहस्य ही बना हुआ है।
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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक पर्वतारोही ने अपनी किताब में लिखा था कि उसने कैलाश पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की थी, लेकिन इस पर्वत पर रहना असंभव था, क्योंकि वहां शरीर के बाल और नाखून तेजी से बढ़ने लगते हैं। इसके अलावा कैलाश पर्वत बहुत ही ज्यादा रेडियोएक्टिव भी है।
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कैलाश पर्वत पर कभी किसी के नहीं चढ़ पाने के पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं। कुछ लोगों का मानना है कि कैलाश पर्वत पर शिव जी निवास करते हैं और इसीलिए कोई जीवित इंसान वहां ऊपर नहीं पहुंच सकता। मरने के बाद या वह जिसने कभी कोई पाप न किया हो, केवल वही कैलाश फतह कर सकता है।


ऐसा भी माना जाता है कि कैलाश पर्वत पर थोड़ा सा ऊपर चढ़ते ही व्यक्ति दिशाहीन हो जाता है। चूंकि बिना दिशा के चढ़ाई करना मतलब मौत को दावत देना है, इसीलिए कोई भी इंसान आज तक कैलाश पर्वत पर नहीं चढ़ पाया।
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सन 1999 में रूस के वैज्ञानिकों की टीम एक महीने तक माउंट कैलाश के नीचे रही और इसके आकार के बारे में शोध करती रही। वैज्ञानिकों ने कहा कि इस पहाड़ की तिकोने आकार की चोटी प्राकृतिक नहीं, बल्कि एक पिरामिड है जो बर्फ से ढका रहता है। माउंट कैलाश को "शिव पिरामिड" के नाम से भी जाना जाता है।
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जो भी इस पहाड़ को चढ़ने निकला, या तो मारा गया, या बिना चढ़े वापिस लौट आया।
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सन 2007 में रूसी पर्वतारोही सर्गे सिस्टिकोव ने अपनी टीम के साथ माउंट कैलाश पर चढ़ने की कोशिश की। सर्गे ने अपना खुद का अनुभव बताते हुए कहा : 'कुछ दूर चढ़ने पर मेरी और पूरी टीम के सिर में भयंकर दर्द होने लगा। फिर हमारे पैरों ने जवाब दे दिया। मेरे जबड़े की मांसपेशियाँ खिंचने लगी, और जीभ जम गयी। मुँह से आवाज़ निकलना बंद हो गयी। चढ़ते हुए मुझे महसूस हुआ कि मैं इस पर्वत पर चढ़ने लायक नहीं हूँ। मैं फ़ौरन मुड़ कर उतरने लगा, तब जाकर मुझे आराम मिला।
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"कर्नल विल्सन ने भी कैलाश चढ़ने की कोशिश की थी। बताते हैं : "जैसे ही मुझे शिखर तक पहुँचने का थोड़ा-बहुत रास्ता दिखता, कि बर्फ़बारी शुरू हो जाती। और हर बार मुझे बेस कैम्प लौटना पड़ता। "चीनी सरकार ने फिर कुछ पर्वतारोहियों को कैलाश पर चढ़ने को कहा। मगर इस बार पूरी दुनिया ने चीन की इन हरकतों का इतना विरोध किया कि हार कर चीनी सरकार को इस पहाड़ पर चढ़ने से रोक लगानी पड़ी।कहते हैं जो भी इस पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश करता है, वो आगे नहीं चढ़ पाता, उसका हृदय परिवर्तन हो जाता है।यहाँ की हवा में कुछ अलग बात है। आपके बाल और नाखून 2 दिन में ही इतने बढ़ जाते हैं, जितने 2 हफ्ते में बढ़ने चाहिए। शरीर मुरझाने लगता है। चेहरे पर बुढ़ापा दिखने लगता है।कैलाश पर चढ़ना कोई खेल नहीं

29,000 फ़ीट ऊँचा होने के बाद भी एवरेस्ट पर चढ़ना तकनीकी रूप से आसान है। मगर कैलाश पर्वत पर चढ़ने का कोई रास्ता नहीं है। चारों ओर खड़ी चट्टानों और हिमखंडों से बने कैलाश पर्वत तक पहुँचने का कोई रास्ता ही नहीं है। ऐसी मुश्किल चट्टानें चढ़ने में बड़े-से-बड़ा पर्वतारोही भी घुटने तक दे।हर साल लाखों लोग कैलाश पर्वत के चारों ओर परिक्रमा लगाने आते हैं। रास्ते में मानसरोवर झील के दर्शन भी करते हैं।लेकिन एक बात आज तक रहस्य बनी हुई है। अगर ये पहाड़ इतना जाना जाता है तो आज तक इस पर कोई चढ़ाई क्यों नहीं कर पाया।

वह पांच वर्षीय बालक !

दो आकाशगंगाएं जब टकराती हैं तो लाखों सौर परिवार उजड़ जाते हैं.ब्राहमण्ड मेँ एक आकाशगंगा अब ब्राह्माण्डखोर के नाम चर्चित हो चुकी थी.

आरदीस्वन्दी की मां अफस्केदीरन व सद्भावना इमारत के संस्थापक महागुरु अर्थात उन्मुक्त जिन का शिष्य नारायण अब वृद्ध हो चुके थे.दोनो इस समय
मेडिटेशन मेँ थे.
अब से 1220 पूर्व अर्थात सन 4800 ई0 के 19 जनवरी ! ओशो पुण्यतिथि !!
एक हाल में बैठा उन्मुक्त जिन मेडिटेशन मेँ था.उसके कान मेँ आवाज गूँजी -
"आर्य,उन्मुक्त! तुम अभी जिन नहीं हुए हो.जिन के नाम पर तुम पाखण्डी हो.तुम को अभी कठोर तपस्या करनी होगी. "

'उन्मुक्त जिन' के अज्ञातबास मेँ जाने के बाद कुख्यात औरतें ब्राह्माण्ड मेँ बेखौफ होकर आतंकवाद मचाने लगीं ,इन कुख्यात औरतों के बीच एत पांच वर्षीय बालक ठहाके लगा रहा था.

यह कलि औरतें......?!
पांच वर्षीय बालक मानीटर पर ब्राह्माण्डखोर की सक्रियता को देख देख ठहाके लगा रहा था.

इधर उन्मुक्त जिन एक वर्फीली जगह मेँ एक गुफा अन्दर मेडिटेशन मेँ था.

सन4800ई का वह पांच वर्षीय बालक......?!
अफस्केदीरन ने जब नारायण की ओर देखा तो नारायण अपने स्थान पर न था.

ब्राह्मण्डभक्षी !

अचानक वह सोते सोते जाग उठा.


स्वपन मेँ उसने यह क्या देख लिया?


मेडिटेशन से जब उसने अपने माइण्ड का सम्पर्क अपनी कम्प्यूटर प्रणाली से किया तो उसके माइण्ड मेँ टाइम स्मरण हुआ-1.29ए.एम. गुरुवार,25 सितम्बर 5020ई0!


खैर...


भविष्यवाणी थी कि घोर कलियुग के आते आते आदमी इतना छोटा हो जाएगा कि चने के खेत मेँ भी छिप सकता है.भाई ,शब्दोँ मेँ मत जाईए. वास्तव मेँ अब आदमी मानवीय मूल्योँ से दूर हो कर छोटा (शूद्र)ही हो जाएगा.हाँ,इतना नहीँ कि चने के खेत मेँ छिप जाये.


क्या कहा,छिप सकता है?


चना एवं उससे सम्बन्धित उत्पाद आदमी के छोटेपन (विकारोँ)को छिपा सकते हैँ.जब सबके लिए वृहस्पति खराब होगा तो.....?वृहस्पति किसके लिए खराब हो सकता है ?वृहस्पति किससे खुश रह सकता है?पीले रंग (थेरेपी )वस्त्र और बेसन से बने उत्पाद....?!और भाई हनुमान भक्तोँ द्वारा वन्दरोँ को चने खिलाना... ...?! सन 1980ई0 तक व्यायामशालाओँ व स्वास्थ्य केन्द्रोँ के द्वारा नाश्ते मेँ चने पर जोर.....


और यह....?अरे यह क्या ?


वैज्ञानिकोँ ने प्रयोगशाला मेँ चने के काफी बड़े बड़े पौधे विकसित कर लिए . वे नीबू करौँदे के पौधोँ के बराबर .....?!


खैर..?!

वह बालक सोते सोते जाग उठा.

और-


"भविष्यखोर, नहीँ ब्राह्माण्डखोर."
-वह बुदबुदाया.


फिर-

" किस सिद्धान्त पर'ब्राह्माण्डखोर'आर्थात'ब्राह्माण्डभक्षी'अर्थात ब्राह्माण्ड को खाने वाला....ब्राह्माण्ड का भक्षण....?!"


उस बालक ने प्रस्तुत की-'ब्राह्मण्डक्षी'वेबसाइड.


मचा दिया जिसने साधारण जन मानस मेँ तहलका.

लेकिन ,वह बालक कौन...?दुनिया अन्जान.


पहुँचा वह एक बुजुर्ग महान वैज्ञानिक के पास.


वह बुजुर्ग महान वैज्ञानिक उस बालक के माइण्ड के चेकअप बाद चौँका -


"ताज्जुब है ! एक सुपर कम्पयूटर से हजार गुना क्षमता रखने वाला इसका माइण्ड ? समाज इसे पागल कहता है ? इसके माइण्ड की यह कण्डीशन ? इतनी उच्च कण्डीशन कि स्वयं इस बालक का मन व शरीर ही इसको न झेल पाये और अपने रूम से निकलने के बाद अपने शरीर व मन को सँभाल पाये ? परिवार व समाज की उम्मीदोँ पर खरा न उतर पाये? क्या क्या? क्या ऐसा भी होता है? तो.....ऐसे मेँ इसे चाहिए ' सुपर मेडिटेशन '. मेडिटेशन के बाद इसका मन जब शान्त शान्ति व धैर्य धारण करे तो इसके स्वपन चिन्तन सम्पूर्ण मानवता के लिए वरदान साबित हो सकते है ? इनका एकान्त जितना महान होता है उतना ही कमरे से बाहर निकलने के बाद..... यह सब भीड़ मेँ कामकाजी बुद्धि न होने के कारण...."


पुन:


"इस बालक की वेबसाइडोँ मेँ जो भी है वह मात्र इसके अन्तर्द्वन्द,सामाजिक प्राकृतिक क्रियाओँ व्यवहारों के परिणाम स्वरूप विचलन से उपजे तथ्योँ का परिणाम है लेकिन सुपरमेडिटेशन के बाद जब इसका मन मस्तिष्क शान्त होगा तब......?!इस दुनिया का आम आदमी उस स्तर तक लाखोँ वर्षोँ बाद पहुँच पायेगा. वाह ! इसका माइण्ड....?!वास्तव मेँ इस बालक को व्यवसायी व मीडिया की गिरफ्त से दूर रखना होगा और फिर मीडिया के एक पार्ट ने अनेक बार जनमान स को मौत के मुँह मेँ भी ढकेला है,भय विछिप्तता के मुँह मेँ भी ढकेला है."



इस बालक ने मीडिया के सामने बस इतना बयान दिया-


" खामोश रहना ही ठीक है.मेरे अन्दर जो पैदा होता है,मैँ उसे नहीँ झेल पाता हूँ.विछिप्तता की स्थिति तक पहुँच जाता हूँ.अपने शरीर को मार देने की भी इच्छा चलने लगती है.ऐसे मेँ .......?!आप मेरे बयानोँ के आधार पर इस धरती पर व अन्य धरतियोँ पर भय या विछिप्तता का ही वातावरण बनायेँगे "



मानीटर युक्त दीवार पर बुजुर्ग महान वैज्ञानिक के साथ इस बालक को दर्शाया गया था.जिसे सम्बन्धित घटनाओँ के साथ कभी भविष्य त्रिपाठी ने कम्प्यूटर पर ग्राफ किया था.


" सन 2008 ई0 की 10 सितम्बर को पृथ्वी पर प्रारम्भ होने वाले महाप्रयोग के सम्बन्ध मेँ कुछ टीवी चैनलस जानस मेँ कितनी भयाक्रान्त स्थिति पैदा कर दिए थे ? कुछ लोग विछिप्त हो गए,यहाँ तक कि आत्महत्या तक कर बैठे.हमेँ के सम्बन्ध मेँ खामोश ही रहना चाहिए.सन 5020ई0 मेँ जो होँगे,वे देखेँगे इसे. "



पुन:-


"यह बालक व साइन्टिस्ट अभी तो मात्र मेरा स्वपन है जो इक्कयानवे वीँ सदी मेँ पूर्ण होगा.क्या डेट ? हाँ, याद आया 25 सित म्बर5020ई0 ......?!"


" भविष्य,क्या सोँच रहे हो ? "



क्या,भविष्य? यह व्यक्ति भविष्य?
हाँ,यह भविष्य ही अर्थात भविष्य त्रिपाठी ही.


"आओ आओ , आप भी देखो-नादिरा खानम.आज से ढाई सौ वर्ष पूर्व अर्थात सन 2008ई0के 25 सितम्बर दिन वृहस्पतिवार ,01.29
A.M.को 'सर जी'के द्वारा देखे गये स्वपन का विस्तार है यह मेरा स्वपन ."

इधर अन्तरिक्ष मेँ ब्राह्माण्डभक्षी विनाश करता चला जा रहा था.

सम्कदेल का अन्त!

....सम्कदेल वम्मा मुश्किल मेँ था.अब कैसे यान को वह आगे निकाले?दुश्मनोँ के यान से छोड़ी जा रही घातक तरंगे यान को नुकसान पहुँचा सकती थी.ऐसे मेँ उसने अनेक धरतियोँ पर उपस्थित अपने सहयोगियोँ से एक साथ सम्पर्क साधा.


"मेरे यान को घेर लिया गया है."


सम्कदेल वम्मा के सहयोगियोँ के द्वारा अपने अपने नियन्त्रण कक्ष से अपने अपने कृत्रिम उपग्रहोँ मेँ फिट हथियारोँ से दुश्मन के यानोँ पर घातक तरंगे छोड़ी जाने लगीँ.अनेक यान नष्ट भी हुए.


लेकिन....?!


सम्कदेल वम्मा के यान मेँ आग लग गयी .


"मित्रोँ!सर! यान मेँ आग लग गयी है. दुश्मनोँ के यानोँ से छोड़ी जाने वाली घातक तरंगोँ से मेरा यान अब भी घिरा हुआ है. कोई अपने कृत्रिम उपग्रह से पायलटहीन यान भेजेँ . लेकिन.....?!मैँ......मैँ... ....मैँ.....आ.....आ...(कराहते हुए) आत्मसमर्पण करने जा रहा हूँ."

फिर सम्कदेल वम्मा ने सिर झुका लिया.


सम्कदेल वम्मा ने अपने बेल्ट पर लगा एक स्बीच आफ कर दिया.जिससे उसके ड्रेश पर की जहाँ तहाँ टिमटिमाती रोशनियाँ बन्द हो गयीँ. इसके साथ ही यानोँ से घातक तरंगोँ का अटैक समाप्त हो गया और जैसे ही उसने अपने यान का दरवाजा खोला एक विशेष प्रकार की चुम्बकीय तरंगोँ ने उसे खीँच कर दुश्मन के एक यान मेँ पहुंचा दिया.वह यान के बन्द होते दरबाजे की ओर देखने लगा.

"दरबाजे की ओर क्योँ देख रहे हो?"


"तुम?!"


"हाँ मै,तुम हमसे दोस्ती कर लो.मौज करोगे."


"मेरा मौज मेरे मिशन मेँ है."


" हा S S S S हा S S S S हा S S S हा S S S S हा S S S " - ठाहके लगाते हुए.

फिर-

"धर्म मेँ क्या रखा है? जेहाद मेँ क्या रखा है ? ' जय कुरुशान जय कुरुआन' का जयघोष छोड़ो.'जय काम' बोलो 'जय अर्थ' बोलो.जितना 'काम'और 'अर्थ'मेँ मजा है उतना 'धर्म'और 'मोक्ष'मेँ कहाँ ? 'काम'और'अर्थ'की लालसा पालो,'धर्म'और 'मोक्ष' की नहीँ."


"तुम मार दो मेरे तन को.तभी तुम्हारी भलाई है."



" सम्कदेल वम्मा! अपने पिता की तरह क्या तुम मरना पसन्द करोगे? "


" पिता कैसा पिता?शरीर तो नश्वर ही है . तू हमेँ मारेगा ? भूल गया तू क्या कुरुशान को अर्थात गीता सन्देश को ? भूल गया तू क्या कुरुआन को -हुसैन की शहादत को ? "


"सम्कदेल! तू भी अपने पिता की तरह बोलता है? "


"हूँ! तुम जैसे भोगवादी! धन लोलुप! कामुक!थू! "

"सम्कदेल!"


"हमारी कोशिसेँ बेकार नहीँ जायेगी . क्योँ न बार बार मर कर बार बार जन्म लेना पड़े? राम कृष्ण के जन्म हेतु अतीत मेँ कारण छिपे होते है. तेरा अहंकार जाग कर जब तक सौ प्रतिशत नहीँ हो जाता तब तक तू मोक्ष नहीँ पा सकता, इसके लिए तुझे बार बार जन्म लेना पड़ सकता है. तू चाहे मेरे इस शरीर को मार दे लेकिन तेरा अहंकार चकनाचूर करने को मैँ फिर जन्म लूँगा -देव रावण . "


" अपनी फिलासफी तू अपने पास रख. कुछ दिनोँ बाद ब्राहमाण्ड की सारी शक्तियाँ हमारे हाथ मेँ होगी. तुम मुट्ठी भर लोग क्या करोगे? अब हम वो दुर्योधन बनेँगे जो कृष्ण को भी अपने साथ रखेगा ,कृष्ण की नारायणी सेना भी. अब मैँ वह रावण बनूंगा जो विभीषण से प्रेम करेगा,राम के पास नहीँ जाने देगा.अगर जायेगा भी तो जिन्दा नहीँ जाएगा."


"यह तो वक्त बतायेगा,जनाब . वक्त आने पर अच्छे अच्छे की बुद्धि काम नहीँ करती.आप क्या चीज हैँ ?"


"हूँ!"


फिर-


" सम्कदेल! जानता हूँ धर्म मोक्ष देता है लेकिन तुम क्या यह नहीँ जानते कि अधर्म भी मोक्ष देता है?मैँ आखिरी वार कह रहा हूँ कि मेरे साथ आ जाओ. नहीँ तो मरने को तैयार हो जाओ."


" मार दो, मेरे शरीर को मार दो."


"डरना नहीँ मरने से?"


"क्योँ डरुँ? चल मार."


सम्कदेल वम्मा के सहयोगी अपने अपने ठिकाने से अन्तरिक्ष मेँ आ चुके थे.


लेकिन...?!


सम्कदेल वम्मा ......?!


""" *** """


एक चालकहीन कम्प्यूटरीकृत यान सनडेक्सरन धरती पर आ कर सम्कदेल वम्मा के मृतक शरीर को छोड़ गया था. आरदीस्वन्दी भागती हुई मृतक शरीर के पास आयी और शान्त भाव मेँ खड़ी हो गयी.


उसके मन मस्तिष्क मेँ सम्कदेल वम्मा के कथन गूँज उठे.


".....शरीर तो नश्वर है . हमे तू मारेगा? भूल गया कुरुशान को अर्थात गीता सन्देश को ? ..... हमारी कोशिसेँ बेकार नहीँ जाएगी. क्योँ न बार बार मर कर बार बार जन्म लेना पड़े?"


आरदीस्वन्दी अभी कुछ समय पहले सम्कदेल वम्मा व देव रावण की वार्ता को सचित्र देख रही थी.आरदीस्वन्दी ने सिर उठा कर देखा कि यान अन्तरिक्ष से वापस आ रहे थे.


कुछ दूर एक विशालकाय स्क्रीन पर अन्तरिक्ष युद्ध के चित्र प्रसारित हो रहे थे. देव रावण के अनेक यानोँ को नष्ट किया जा चुका था.


अब भी-


"..... तेरा अहंकार जाग कर जब तक सौ प्रतिशत नहीँ हो जाता तब तक तू भी मोक्ष नहीँ पा सकता है, इसके लिए तुझे भी बार बार जन्म लेना पड़ सकता है. तू चाहे मेरे इस शरी





सोमवार, 6 सितंबर 2010

भविष्य !फिर....24 फरबरी 2165ई0:अरब सागर से प्रशांत महासागर तक?


" भविष्य!फिर...."

प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध ने विश्व को झकझोर कर रख दिया था.हालाँकि ऐसे मेँ परिस्थितियाँ बनी अनेक देशोँ के स्वतन्त्रता की.जिसका लाभ उठाकर हिन्दुस्तान मेँ नेता जी सुभाष चन्द्र बोस नायक बन कर उभरे .नौ सेना विद्रोह के साथ साथ ब्रिटिश शासन के अन्य स्तम्भ भी विद्रोह की चपेट मेँ आ गये. यूरोपीय उपनिवेशवाद के स्थान पर अमेरीकी भौतिक उपनिवेशवाद अपना स्थान जमाने लगा .



इक्कीसवीँ सदी के प्रारम्भ के साथ मानवतावादी अण्डरवर्ल्ड ग्रुप मेँ एक नाम सामने आया -देवकृष्णा का. हिन्दुस्तान के ही एक जंगल मेँ तमाम मानवतावादी अण्डरवर्ल्ड ग्रुपस की उपस्थिति मेँ देवकृष्णा को मिशन का प्रथम नायक बनाया गया.सुनने को तो यह मिला कि जब देवकृष्णा को नायक घोषित किया गया तो उस वक्त एलियन्स भी उपस्थित थे.खैर जो भी हो,देवकृष्णा का सम्बन्ध तिब्बत के एक क्षेत्र से रहा था,जो चीन के अधिकार मेँ था.आपात काल मेँ जीता तिब्बत अपनी संस्कृति व दर्शन के अस्तित्व के लिए चिन्तित था.देवकृष्णा ने अपने सम्बोधनोँ मेँ अनेक बार घोषणा की थी कि जिस तरह महाभारत मेँ द्वारिका का स्थान था वही आने वाले समय मेँ तिब्बत का होगा लेकिन कृष्ण की भूमिका कौन निभायेगा?भविष्य मेँ सामने आ जायेगा.




काफी वर्ष पहले से ही कुछ वैज्ञानिक गांधी का क्लोन बनाने की कोशिस मेँ थे लेकिन सफलता प्राप्त नहीँ कर पा रहे थे.मैँ उन दिनोँ बरेली कालेज,बरेली मेँ बीएससी सेकण्ड का छात्र था.यूपी मेँ मुलायम सिँह यादव की सरकार थी.पूर्व प्रधानमन्त्री विश्वनाथ प्रताप सिँह व राजबब्बर के नेतृत्व मेँ यूपी का किसान भूमि अधिग्रहण एवं भूमि की कीमतोँ के सम्बन्ध मेँ आन्दोलनरत था.हर शनिवार को मैँ बरेली से मीरानपुर कटरा आ जाता था.एक बार इस यात्रा के दौरान मेरी मुलाकात विश्वा नाम की एक युवती से हुई, जिसने मुझे आलोक वम्मा नामक एक युवक से मिलाने का वादा किया .एक महीने बाद मैँ जब बरेली स्थित श्यामतगंज मेँ विश्वा के आवास पर पहुँचा तो उसने मेरी मुलाकात आलोक वम्मा से करायी.



आलोक वम्मा से सम्पर्क के बाद मुझे अनेक विचारकोँ ,वैज्ञानिकोँ ,क्रान्तिकारियोँ,यहाँ तक कि कुछ अहिँसक नक्सलियोँ से मिलवाया गया था.मेरा लक्ष्य तो एम एस सी पूरी करने के बाद वैज्ञानिक बनने का था.एम एस सी पूरी करने के बाद मुझे झारखण्ड स्थित एक जंगल मेँ भूमिगत अनुसन्धानशाला मेँ ले जाया गया.जहाँ मेरी कल्पनाओँ को साकार करने की पृष्ठभूमि मिली.



लेकिन यह क्या ? इस धरती पर वैज्ञानिक गांधी का क्लोन बनाने की सोँचते ही रह गये.


गग्नध देवय उर्फ ब्राह्माण्ड बी.गांधी ......?!कुछ एलियन्स के द्वारा जानकारी मिली कि अन्तरिक्ष मेँ एक अन्य धरती पर महात्मा गांधी की शक्ल का एक व्यक्ति उपस्थित है. जो मानवतावादी ब्राह्माण्ड शक्ति दल का संरक्षक है. एलियन्स का जिक्र हुआ है तो मैँ आपको बता दूँ,इस धरती के कुछ वैज्ञानिक ऐसे हैँ,जिनकी मुलाकात एलियन्स से हुई है. मेरी भी एलियन्स से मुलाकात हो चुकी है.
मै बता दूँ कि अने तथ्य ऐसे होते हैँ जो अनुसन्धानशालाओँ और पुरातत्व विभाग तक ही सीमित हो कर रह जाते हैँ.



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लगभग एक वर्ष बाद सन 2165ई0 की फरबरी,


भारतीय उपमहाद्वीप एवं चीन को दो भागोँ मेँ बाँटने की योजना?



आखिर सफलता पा ली कुशक्तियोँ ने .



24 फरबरी को भूमि तीब्र भूकम्प के साथ चटक गयी.
इन दो भूमियोँ के बीच अब सागर....?! भूकम्प और सुनामी लहरेँ;बाँधोँ के टूटने से बाढ़ . गुजरात के सूरत से हरिद्वार,उत्तर काशी,मानसरोवर होते हुए चीन की भूमि को चीरते हुए उत्तरी दक्षिणी कोरिया आदि से हो इस चटक ने अरब की खाड़ी और उधर चीन सागर से हो कर प्रशान्त महासागर को मिला दिया . भारतीय उपमहाद्वीप की चट्टान खिसक कर पूर्व की ओर बढ़ गयी थी. म्यामार, वियतनाम, आदि बर्बादी के गवाह बन चुके थे.



इससे क्या मिला कुशक्तियोँ को?



लेकिन !



जन धन प्रकृति की हानि जरुर हुई.



प्रकृति के अन्धविदोहन एवं कृत्रिम जीवन के स्वीकार्य ने पृथ्वी पर दो हजार चार ई0 से ही तेजी के साथ परिवर्तन प्रारम्भ कर दिए थे. सुनामी लहरोँ के बाद यह परिवर्तन और तेज हो गये थे . सुनामी लहरेँ भी क्या प्राकृतिक थीँ या फिर किसी कुशक्ति की हरकत थी ?इस पर मतभेद रहा था.



एलियन्स के सम्बन्ध मेँ ?



सन1947ई0 मेँ कुछ शक्तियोँ के एलियन्स से क्या सम्पर्क हुए थे कि वे पृथ्वी और अन्तरिक्ष मेँ अपनी साजिशेँ रचने लगे. पृथ्वी का मनुष्य आखिर कब तक जगेगा?अपने स्वार्थोँ मेँ अन्धा हो पृक्रति व ब्राह्माण्ड मेँ भी विकृतियाँ फैला दीँ .



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जन्म के वक्त ही मेरा नाम रख दिया गया था-भविष्य . उस वक्त हम भी उस अंडरवर्ड मानवता वादी टीम में शामिल थे जिसकी स्थापना मोनिका नाम की एक जासूस युवती ने की थी।


सेक्युलर फोर्स ......


गुजरात कांड के ही बीच नहीं वरन देश विदेश की अन्य मजहबी, उन्मादी, भीड़ हिंसा के खिलाफ सेक्युलर फोर्स सक्रिय थी। वह नक्सलियों को देश विरोधी, अलगाववादी एजेंटों, नेताओं के चंगुल से निकलने की कोशिश में थी। अमेरिका व रूस के शीत युद्ध के बीच पिसते तीसरे ग्रुप स आदि को लेकर वह चिंतित था।

यह सेम्युलर फोर्स देश व दुनिया के सभी अलगाववादी, आतंकवादी, कट्टरपंथी व्यक्तियों, समूहों के खिलाफ थी। विश्व बंधुत्व, बसुधैवकुटुम्बकम, विश्व सरकार, विश्व संसद, इंसानियत, रूहानी आंदोलन के समर्थन में थी यह सिर्फ।


अवतार 2100 क्या !?

सन 2011-2025 ई0 तक का समय देश व दुनिया के लिए काफी महत्वपूर्ण था।

नई पीढ़ी से कुछ ऐसे चरित्र अवतार का वातावरण बन गया था जो जातिवादी, मजहबी ,उन्मादी चरित्रों के खिलाफ समाज में खड़े हो सकें।

अनेक आध्यात्मिक संगठन इसमें सहायक थे। युद्धों, भीड़ हिंसा, स्कूलों में सभी जाति, मजहब के बच्चों के बीच सदभाव आदि ने कुछ ऐसे चरित्र खड़े करना शुरू कर दिए थे जो जाति मजहब की भावना से ऊपर उठ कर थे।