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शनिवार, 28 नवंबर 2020

श्रुति बनाम स्मृति ! श्रुति हमारी अंदर की आसमानी स्थिति, जो हमें ऋषि बनाती है::अशोकबिन्दु

 सन्देश!

पुस्तक -'#सत्यकाउदय'!

पुस्तक - '#अक्षरसत्य'!!

पुस्तक-'#वयंरक्षाम:'

इन पुस्तकों का अध्ययन व #अंतरप्रेरणा के बाद.....


प्रकृति अभियान(यज्ञ),उसकी दशा व वो जिसमें उतरना वह ऋषि!वह जो ऋषि में उतरे वही श्रुति वही #सुरति!!वही पुस्तक रूप में अब #वेद!!


योग का आठवां अंग-#समाधि।

जहां #सिकन्दर अपनी अंतिम स्वासें गिन रहा था, वह क्षेत्र भी कभी आर्य का आभा क्षेत्र था। क्षेत्र ,परिस्थिति व पन्थ विशेष के आधार पर अभिव्यक्ति के माध्यम व तरीके बदलते रहे हैं। वहां कभी #मेसोपोटामिया सभ्यता पनपी।

पुरातत्व विद डॉक्टर फ्रेंक फोर्ड और लैंगडन आदि कहते हैं कि प्रोटोएलमाइट सभ्यता का ही विकसित रूप सुमेर सभ्यता है।#प्रोटोएलमाइट जाति क्या है?प्रोटोएलमाइट जाति है-चाक्षुष कुल या जाति।जिसके छह महारथियों ने बिलोचिस्तान और ईरान होते हुए एलाम और मेसोपोटामिया को जीत कर  अपने राज्य में स्थापित किए थे। भूमध्य सागरीय क्षेत्र व मिश्र के कुछ कबीले/जंगली लोग अब भी कहते हैं कि हमारा पूर्वज दूसरी धरती से आया था।जो मत्स्य मानव था।प्रलय के वक्त उसी प्रजाति /वरुण से मनु की नौका को बचाया गया था। पश्चिम व #बेबीलोनियन पौराणिक कथाओं में भी ,शत पथ व मत्स्य पुराण में भी इन घटनाओं का वर्णन है।


योग का आठवां अंग-#समाधि।


#नक्शबंदी सम्प्रदाय के आदि सन्त भाव व मन से सनातन धर्म को मानते थे।एक समय वह भी था जब धर्म का #मजहबीकरण नहीं हुआ था।क्षेत्र, भाषा, भौगोलिक परिस्थितियों आदि विशेष के कारण कर्मकांड, रीतिरिवाज आदि व मानव नस्ल में भेद रहा है।दुनिया में लगभग  चार मानव नस्ल सदा रही हैं। नक्शबंदी सम्प्रदाय  में आठ नियम रहे हैं-श्वास में चैतन्य, चरणों पर दृष्टि, यात्रा, एकांतबास, ईश्वरी स्मृति, ईश्वर के प्रति एकांत गमन, ईश्वरी ध्यान तथा आत्म विस्मृति। आत्म विस्मृति या समाधि का मतलब सांसारिकता के प्रति असावधान हो जाना और खोए खोए अपनी दिनचर्या व कर्तव्य निभाते जाना।यहां पर अपने कोई अधिकार नहीं रह जाते। हम उस दशा को पा जाते हैं कि उसकी मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता। वह सारथी बन जाता है।हमारे हाड़मांस शरीर व हमारी सांसारिक, सामाजिक, भौतिक स्थिति कोई भी हो सकती है।अमीर होकर भी आम सामान्य सी। 

  #शेष


#अशोकबिन्दु






सोमवार, 16 नवंबर 2020

भईया दूज:: यम शक्ति को नमन!!अशोकबिन्दु

 हमारी व्याख्याएं व जगत को देखने का तरीका दूसरा है।


अपनी सम्पूर्णता में जीने से ही शांति हैं, सुकून है,सन्तुष्टि है।

योग कोई हाथ पैर चलना, लम्बी गहरी सांसे छोड़ना निकलना आदि नहीं है सिर्फ।

योग/सम्पूर्णता की प्राप्ति के आठ अंग हैं।

पहला अंग है-यम।

खोना व पाना का संग है।हर पल एक की प्राप्ति होती है तो एक से दूरी...लेकिन अंततः दोनों से मुक्ति।

इस लिए कहा गया है-आचार्य है मृत्यु, योगी होना है मृत्यु। यम भी है मृत्यु। एक का छूटना।



सत्य, अहिंसा, अस्तेय,अपरिग्रह व ब्रह्मचर्य पांच यम हैं। यही आदि सनातन धर्म स्तम्भ हैं। ऋषभ देव का पंच महाव्रत है। इस पंच महाव्रत को धारण करने वाला जिन है ,धरती का आदि वीर है।।

प्रकृति व ब्रह्म के बीच परस्पर सम्मान कब है?


..........            ..........                 ...........            ...........  


भैया दूज!

.

.


यम / मृत्यु को जीतना।सम्मान देना।


आध्यत्म में सन्देश :: जगत में जो भी स्त्री पुरुष हैं, भाई बहिन हैं। सभी में मालिक की रोशनी मौजूद है।सब मिशन/प्रकृति अभियान(यज्ञ) में लगे हैं। सभी एक जगत पिता से हैं। सभी अपनी अपनी व्यस्तता के बीच अर्थात जगत की चकाचौंध में  इस को भूल गए हैं। जब हम इसे याद करेगें और इस भाव में आकर एक दूसरे के निष्काम सम्मान को बढ़ाएंगे तो आध्यात्मिक राज्य स्थापित होगा। सभी की उम्र बढ़ेगी।


अनन्त यात्रा में लीनता ही प्रेम। जहां कम्पन, स्पंदन, तरंगें, प्रकाश...गतिमान... आत्मियता... आत्मा... सम्वेदना जो सर्वत्र व्याप्त...! ऐसे में स्त्री पुरुष के बोध का भी भान नहीं। जब स्त्री पुरुष के बोध का भान हो भी तो वह भाई बहिन के रूप में क्योकि प्रेम अर्थात अनन्त सागर में लीनता में कुछ भी इंद्रियक नहीं, स्थूल नहीं। 


#अशोकबिन्दु


यमस्वसर्नमस्तेऽसु यमुने लोकपूजिते।

वरदा भव मे नित्यं सूर्यपुत्रि नमोऽस्तु ते ।।

                   ❤️ लोकश्रुति है कि यमराज व्यस्तताओं के कारण कभी बहन यमुना के घर नहीं जा पाते थे। इस कारण यमुना को बहुत दुःख होता था। एक बार कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को यमराज अचानक बहन यमुना के घर पहुंचे, तो यमुना बहुत प्रसन्न हुईं और उन्होंने अपने अतिव्यस्त भाई यमराज की खूब आवभगत की ! यमराज ने प्रसन्न हो कर वर दिया कि आज के दिन बहन के घर भोजन करने वालों को यम का भय नहीं होगा और उनकी आयु में वृद्धि होगी। इस परंपरा के माध्यम से हर भाई-बहन के बीच परस्पर स्नेह  सतत बढ़ता रहे, इसी सद्कामना के साथ आप सबको भाई दूज के पावन पर्व की अनंत शुभकामनाएँ ! साथ ही साथ आप सब को भगवान चित्रगुप्त के पूजनोत्सव की भी असीम मंगलकामनाएँ 😍🙏💐💐





गुरुवार, 5 नवंबर 2020

साइबेरिया की प्रयोगशाला से!

  साइबेरिया के जंगलों के बीच एक प्रयोगशाला।

तीन नेत्रधारी दो युवक रूस की एक युवती के साथ बैठे थे।

सामने डिजिटल बॉल पर चल चित्र आ रहे थें।

चलचित्र में---


ईशा पूर्व लगभग 567 वर्ष।

तब एक पांच छह साल का बालक?जिसे कोई 'प्र-ओत', तो कोई 'प्रा-ओटा' पुकारते थे।

वह समुद्री तट?!


समुद्र में समुद्र की ऊंची ऊंची कुश्ती लहरों के बीच एक नौका में आंख बंद पड़ी वेदों की छोरियां सुना जाता है की वे दोनों की छोरियां भारत से आई थी समुद्री लुटेरों ने एक जहाज को लूटा था वह जहाज कलिंग राज्य भारत के किसी बंदरगाह से चला था और समुद्र में लूट लिया गया जब यह जहाज भारत से चला था तो दोनों किशोरियों बालिका थी उन्हें किसी व्यापारी ने बेच दिया था कुछ व्यक्तियों के साथ बे बालिकाएं भी समुद्र में कूद गई थी उस जहाज से लूट के दौरान आग भी लग गई थी बेहोशी हालत में दोनों एक द्वीप के तट पर लग गई थी जब होश आया तो कुछ समय उनके परेशानी और बेचैनी में बीता घास फूस पत्ते खाकर काम चलाया ।

उन्हें ध्यान आया की उनकी मां मुसीबत के समय आंख बंद करके बैठती थी और मन ही मन बुदबुदा टी  थी हमारी कोई समस्या नहीं है हम तो दिव्य प्रकाश से भरे हैं जिसके प्रभाव हमारे सारे विकार नष्ट हो रहे हैं दोनों उस टापू पर अधिकतर समय ध्यान में बिताते थी लगभग 5 साल बीत गए 1 दिन समुद्री तूफान आया जिसमें वह दोनों बहे गई जब तूफान शांत हुआ तो उन पर कुछ मछुआरों की निगाह पड़ी एक सन्यासी ने अपनी झोपड़ी में उसे आश्रित दिया बड़ी को  प्रे फेस नाम से व छोटी को प्रेमबल नाम से पुकारा जाने लगा। दोनों के बीच पांच छह वर्षिय प्रोटागोरस कुछ समय के लिए खेलने लगा और ध्यान करना भी सीखा।

"पूर्व के सन्तों को नमन!"



उस भूमिगत एलियन्स प्रयोगशाला, साइबेरिया में उस चलचित्र से अपना ध्यान हटा कर  समकेदल वम्मा के बारे में सोचने लगी।


समकेदल वम्मा...?!

सन 5012ई0 का ही शायद समय था...

....सम्कदेल वम्मा मुश्किल मेँ था.अब कैसे यान को वह आगे निकाले?दुश्मनोँ के यान से छोड़ी जा रही घातक तरंगे यान को नुकसान पहुँचा सकती थी.ऐसे मेँ उसने अनेक धरतियोँ पर उपस्थित अपने सहयोगियोँ से एक साथ सम्पर्क साधा.


"मेरे यान को घेर लिया गया है."


सम्कदेल वम्मा के सहयोगियोँ के द्वारा अपने अपने नियन्त्रण कक्ष से अपने अपने कृत्रिम उपग्रहोँ मेँ फिट हथियारोँ से दुश्मन के यानोँ पर घातक तरंगे छोड़ी जाने लगीँ.अनेक यान नष्ट भी हुए.


लेकिन....?!


सम्कदेल वम्मा के यान मेँ आग लग गयी .


"मित्रोँ!सर! यान मेँ आग लग गयी है. दुश्मनोँ के यानोँ से छोड़ी जाने वाली घातक तरंगोँ से मेरा यान अब भी घिरा हुआ है. कोई अपने कृत्रिम उपग्रह से पायलटहीन यान भेजेँ . लेकिन.....?!मैँ......मैँ... ....मैँ.....आ.....आ...(कराहते हुए) आत्मसमर्पण करने जा रहा हूँ."

फिर सम्कदेल वम्मा ने सिर झुका लिया.


सम्कदेल वम्मा ने अपने बेल्ट पर लगा एक स्बीच आफ कर दिया.जिससे उसके ड्रेश पर की जहाँ तहाँ टिमटिमाती रोशनियाँ बन्द हो गयीँ. इसके साथ ही यानोँ से घातक तरंगोँ का अटैक समाप्त हो गया और जैसे ही उसने अपने यान का दरवाजा खोला एक विशेष प्रकार की चुम्बकीय तरंगोँ ने उसे खीँच कर दुश्मन के एक यान मेँ पहुंचा दिया.वह यान के बन्द होते दरबाजे की ओर देखने लगा.

"दरबाजे की ओर क्योँ देख रहे हो?" 


"तुम?!"


"हाँ मै,तुम हमसे दोस्ती कर लो.मौज करोगे."


"मेरा मौज मेरे मिशन मेँ है." 


" हा S S S S हा S S S S हा S S S हा S S S S हा S S S " -  ठाहके लगाते हुए.

फिर-

"धर्म मेँ क्या रखा है? जेहाद मेँ क्या रखा है ? ' जय कुरुशान जय कुरुआन' का जयघोष छोड़ो.'जय काम' बोलो 'जय अर्थ' बोलो.जितना 'काम'और 'अर्थ'मेँ मजा है उतना 'धर्म'और 'मोक्ष'मेँ कहाँ ? 'काम'और'अर्थ'की लालसा पालो,'धर्म'और 'मोक्ष' की नहीँ."


"तुम मार दो मेरे तन को.तभी तुम्हारी भलाई है."



" सम्कदेल वम्मा! अपने पिता की तरह क्या तुम मरना पसन्द करोगे? "


" पिता कैसा पिता?शरीर तो नश्वर ही है . तू हमेँ मारेगा ? भूल गया तू क्या कुरुशान को अर्थात गीता सन्देश को ? भूल गया तू क्या कुरुआन को -हुसैन की शहादत को ? "


"सम्कदेल! तू भी अपने पिता की तरह बोलता है? "


"हूँ! तुम जैसे भोगवादी! धन लोलुप! कामुक!थू! "

"सम्कदेल!"


"हमारी कोशिसेँ बेकार नहीँ जायेगी . क्योँ न बार बार मर कर बार बार जन्म लेना पड़े? राम कृष्ण के जन्म हेतु अतीत मेँ कारण छिपे होते है. तेरा अहंकार जाग कर जब तक सौ प्रतिशत नहीँ हो जाता तब तक तू मोक्ष नहीँ पा सकता, इसके लिए तुझे बार बार जन्म लेना पड़ सकता है. तू चाहे मेरे इस शरीर को मार दे लेकिन तेरा अहंकार चकनाचूर करने को मैँ फिर जन्म लूँगा -देव रावण . "


" अपनी फिलासफी तू अपने पास रख. कुछ दिनोँ बाद ब्राहमाण्ड की सारी शक्तियाँ हमारे हाथ मेँ होगी. तुम मुट्ठी भर लोग क्या करोगे? अब हम वो दुर्योधन बनेँगे जो कृष्ण को भी अपने साथ रखेगा ,कृष्ण की नारायणी सेना भी. अब मैँ वह रावण बनूंगा जो विभीषण से प्रेम करेगा,राम के पास नहीँ जाने देगा.अगर जायेगा भी तो जिन्दा नहीँ जाएगा."


"यह तो वक्त बतायेगा,जनाब . वक्त आने पर अच्छे अच्छे की बुद्धि काम नहीँ करती.आप क्या चीज हैँ ?"


"हूँ!"


फिर-


" सम्कदेल! जानता हूँ धर्म मोक्ष देता है लेकिन तुम क्या यह नहीँ जानते कि अधर्म भी मोक्ष देता है?मैँ आखिरी वार कह रहा हूँ कि मेरे साथ आ जाओ. नहीँ तो मरने को तैयार हो जाओ."


" मार दो, मेरे शरीर को मार दो."


"डरना नहीँ मरने से?"


"क्योँ डरुँ? चल मार."


सम्कदेल वम्मा के सहयोगी अपने अपने ठिकाने से अन्तरिक्ष मेँ आ चुके थे.


लेकिन...?!


सम्कदेल वम्मा ......?!


""" *** """


एक चालकहीन कम्प्यूटरीकृत यान सनडेक्सरन धरती पर आ कर सम्कदेल वम्मा के मृतक शरीर को छोड़ गया था. आरदीस्वन्दी भागती हुई मृतक शरीर के पास आयी और शान्त भाव मेँ खड़ी हो गयी.


उसके मन मस्तिष्क मेँ सम्कदेल वम्मा के कथन गूँज उठे.


".....शरीर तो नश्वर है . हमे तू मारेगा? भूल गया कुरुशान को अर्थात गीता सन्देश को ? ..... हमारी कोशिसेँ बेकार नहीँ जाएगी. क्योँ न बार बार मर कर बार बार जन्म लेना पड़े?"


आरदीस्वन्दी अभी कुछ समय पहले सम्कदेल वम्मा व देव रावण की वार्ता को सचित्र देख रही थी.आरदीस्वन्दी ने सिर उठा कर देखा कि यान अन्तरिक्ष से वापस आ रहे थे.


कुछ दूर एक विशालकाय स्क्रीन पर अन्तरिक्ष युद्ध के चित्र प्रसारित हो रहे थे. देव रावण के अनेक यानोँ को नष्ट किया जा चुका था.


अब भी-


"..... तेरा अहंकार जाग कर जब तक सौ प्रतिशत नहीँ हो जाता तब तक तू भी मोक्ष नहीँ पा सकता है, इसके लिए तुझे भी बार बार जन्म लेना पड़ सकता है. तू चाहे मेरे इस शरीर ......!?

पुन:



....सम्कदेल वम्मा मुश्किल मेँ था.अब कैसे यान को वह आगे निकाले?दुश्मनोँ के यान से छोड़ी जा रही घातक तरंगे यान को नुकसान पहुँचा सकती थी.ऐसे मेँ उसने अनेक धरतियोँ पर उपस्थित अपने सहयोगियोँ से एक साथ सम्पर्क साधा.


"मेरे यान को घेर लिया गया है."


सम्कदेल वम्मा के सहयोगियोँ के द्वारा अपने अपने नियन्त्रण कक्ष से अपने अपने कृत्रिम उपग्रहोँ मेँ फिट हथियारोँ से दुश्मन के यानोँ पर घातक तरंगे छोड़ी जाने लगीँ.अनेक यान नष्ट भी हुए.


लेकिन....?!


सम्कदेल वम्मा के यान मेँ आग लग गयी .


"मित्रोँ!सर! यान मेँ आग लग गयी है. दुश्मनोँ के यानोँ से छोड़ी जाने वाली घातक तरंगोँ से मेरा यान अब भी घिरा हुआ है. कोई अपने कृत्रिम उपग्रह से पायलटहीन यान भेजेँ . लेकिन.....?!मैँ......मैँ... ....मैँ.....आ.....आ...(कराहते हुए) आत्मसमर्पण करने जा रहा हूँ."

फिर सम्कदेल वम्मा ने सिर झुका लिया.


सम्कदेल वम्मा ने अपने बेल्ट पर लगा एक स्बीच आफ कर दिया.जिससे उसके ड्रेश पर की जहाँ तहाँ टिमटिमाती रोशनियाँ बन्द हो गयीँ. इसके साथ ही यानोँ से घातक तरंगोँ का अटैक समाप्त हो गया और जैसे ही उसने अपने यान का दरवाजा खोला एक विशेष प्रकार की चुम्बकीय तरंगोँ ने उसे खीँच कर दुश्मन के एक यान मेँ पहुंचा दिया.वह यान के बन्द होते दरबाजे की ओर देखने लगा.

"दरबाजे की ओर क्योँ देख रहे हो?" 


"तुम?!"


"हाँ मै,तुम हमसे दोस्ती कर लो.मौज करोगे."


"मेरा मौज मेरे मिशन मेँ है." 


" हा S S S S हा S S S S हा S S S हा S S S S हा S S S " -  ठाहके लगाते हुए.

फिर-

"धर्म मेँ क्या रखा है? जेहाद मेँ क्या रखा है ? ' जय कुरुशान जय कुरुआन' का जयघोष छोड़ो.'जय काम' बोलो 'जय अर्थ' बोलो.जितना 'काम'और 'अर्थ'मेँ मजा है उतना 'धर्म'और 'मोक्ष'मेँ कहाँ ? 'काम'और'अर्थ'की लालसा पालो,'धर्म'और 'मोक्ष' की नहीँ."


"तुम मार दो मेरे तन को.तभी तुम्हारी भलाई है."



" सम्कदेल वम्मा! अपने पिता की तरह क्या तुम मरना पसन्द करोगे? "


" पिता कैसा पिता?शरीर तो नश्वर ही है . तू हमेँ मारेगा ? भूल गया तू क्या कुरुशान को अर्थात गीता सन्देश को ? भूल गया तू क्या कुरुआन को -हुसैन की शहादत को ? "


"सम्कदेल! तू भी अपने पिता की तरह बोलता है? "


"हूँ! तुम जैसे भोगवादी! धन लोलुप! कामुक!थू! "

"सम्कदेल!"


"हमारी कोशिसेँ बेकार नहीँ जायेगी . क्योँ न बार बार मर कर बार बार जन्म लेना पड़े? राम कृष्ण के जन्म हेतु अतीत मेँ कारण छिपे होते है. तेरा अहंकार जाग कर जब तक सौ प्रतिशत नहीँ हो जाता तब तक तू मोक्ष नहीँ पा सकता, इसके लिए तुझे बार बार जन्म लेना पड़ सकता है. तू चाहे मेरे इस शरीर को मार दे लेकिन तेरा अहंकार चकनाचूर करने को मैँ फिर जन्म लूँगा -देव रावण . "


" अपनी फिलासफी तू अपने पास रख. कुछ दिनोँ बाद ब्राहमाण्ड की सारी शक्तियाँ हमारे हाथ मेँ होगी. तुम मुट्ठी भर लोग क्या करोगे? अब हम वो दुर्योधन बनेँगे जो कृष्ण को भी अपने साथ रखेगा ,कृष्ण की नारायणी सेना भी. अब मैँ वह रावण बनूंगा जो विभीषण से प्रेम करेगा,राम के पास नहीँ जाने देगा.अगर जायेगा भी तो जिन्दा नहीँ जाएगा."


"यह तो वक्त बतायेगा,जनाब . वक्त आने पर अच्छे अच्छे की बुद्धि काम नहीँ करती.आप क्या चीज हैँ ?"


"हूँ!"


फिर-


" सम्कदेल! जानता हूँ धर्म मोक्ष देता है लेकिन तुम क्या यह नहीँ जानते कि अधर्म भी मोक्ष देता है?मैँ आखिरी वार कह रहा हूँ कि मेरे साथ आ जाओ. नहीँ तो मरने को तैयार हो जाओ."


" मार दो, मेरे शरीर को मार दो."


"डरना नहीँ मरने से?"


"क्योँ डरुँ? चल मार."


सम्कदेल वम्मा के सहयोगी अपने अपने ठिकाने से अन्तरिक्ष मेँ आ चुके थे.


लेकिन...?!


सम्कदेल वम्मा ......?!


""" *** """


एक चालकहीन कम्प्यूटरीकृत यान सनडेक्सरन धरती पर आ कर सम्कदेल वम्मा के मृतक शरीर को छोड़ गया था. आरदीस्वन्दी भागती हुई मृतक शरीर के पास आयी और शान्त भाव मेँ खड़ी हो गयी.


उसके मन मस्तिष्क मेँ सम्कदेल वम्मा के कथन गूँज उठे.


".....शरीर तो नश्वर है . हमे तू मारेगा? भूल गया कुरुशान को अर्थात गीता सन्देश को ? ..... हमारी कोशिसेँ बेकार नहीँ जाएगी. क्योँ न बार बार मर कर बार बार जन्म लेना पड़े?"


आरदीस्वन्दी अभी कुछ समय पहले सम्कदेल वम्मा व देव रावण की वार्ता को सचित्र देख रही थी.आरदीस्वन्दी ने सिर उठा कर देखा कि यान अन्तरिक्ष से वापस आ रहे थे.


कुछ दूर एक विशालकाय स्क्रीन पर अन्तरिक्ष युद्ध के चित्र प्रसारित हो रहे थे. देव रावण के अनेक यानोँ को नष्ट किया जा चुका था.


अब भी-


"..... तेरा अहंकार जाग कर जब तक सौ प्रतिशत नहीँ हो जाता तब तक तू भी मोक्ष नहीँ पा सकता है, इसके लिए तुझे भी बार बार जन्म लेना पड़ सकता है. 

और....



सन 6020ई0 का विजयादशमी पर्व! मातृदेवी की भव्य प्रतिमा के समक्ष शस्त्रपूजन कार्यक्रम चल रहा था.सनडेक्सरन नि वासी बालक हफ्कदम के एक युवती के साथ मंच पर उपस्थित था. दोनों तीननेत्री थे. एक वृद्व सन्यासी जो कि हरा व लाल रंग के वस्त्र पहने था.हवन कुण्ड की अग्नि प्रजव्लित करते हुए बोला -"जीवों में चेतना के दो अंश होते हैं-परमात्मांश व प्रकृतिअंश.इन दोनों में सन्तुलन का सिद्धान्त ही (एक ओर स्थापित श्री अर्द्धनारीश्वर प्रतिमा को देखकर) श्रीअर्द्धनारीश्वर स्वरुप में छिपादर्शन है.आज विजयादशमी पर आप सगुणप्रेमियोँ के द्वारा मातृदेवी के समक्ष शस्त्रों की पूजा का मतलब क्या है?प्रकृति को बचाने को शस्त्र उठने ही चाहिए लेकिन शस्त्र सिर्फ स्थूल ही नहीं होते.हर कोई प्रकृति का संरक्षक सगुण व क्षत्रिय है." आकाश में अनेक यान तेजी के साथ तेज आवाज करते हुए मड़राने लगे. 
और... " हा... हा.. हा.. हा.....! " - अपने नियन्त्रण कक्ष से एक  वृद्ध राजसी व्यक्ति ठहाके लगा रहा था. यह वृद्ध व्यक्ति...?!अचानक वह चौंका.स्क्रीन पर दिख रहा था कि सारे नष्ट किये जा रहे थे और अब बालक हफ्कदम हँसते हुए बोला-"देवरावण!तू ..."



सरकारें बदलने से कुछ नहीं होने का, व्यवस्थाएं बदलने की जरूरत::अशोकबिन्दु


 "गांव की सरकार से क्या अभिप्राय है?"


05 नवम्बर 2022 ई0! राष्ट्र सन्त श्री तुकडोजी महाराज पुण्य तिथि!!


 सहकारिता,मानवता,परस्पर सहयोग से जीता मानव समाज जब प्राकृतिक कृषि पशुपालन लघु उद्योग कुटीर उद्योग आदि के वातावरण में जीवन जिए तो ऐसे में समाज और सामाजिकता घटित होती है। कबीलाई संस्कृति,आश्रम पद्धति वास्तव में हमें प्रकृति के बीच ससम्मान जीवन दे सकती है। शहरीकरण,स्मार्ट सिटी के स्थान पर स्मार्ट विलेज की परंपरा खड़ी होनी चाहिए। विद्यार्थी जीवन के बाद अनेक युवक युवतियां प्रकृति के बीच निकल आए और सरकार के सहयोग से पशुपालन, बागवानी ,कृषि ,औषधियों,योगा, जीविका आदि के लिए बहुउद्देश्य  उपक्रम खड़ा करें । शहरों, पूजी पतियों की व्यवस्था की ओर नहीं। मानवता, सहकारिता और बहुद्देशीय संस्थाओं की ओर अब हम सब बढ़े ।अधिक विभाग ,अनेक विभाग खड़े करने की जरूरत नहीं है ।

हर व्यक्ति का सैनिक करण और कृषि का व्यवसायीकरण आवश्यक है । हर व्यक्ति का योगीकरण आवश्यक है।


 नैतिक पार्टी के संस्थापक सी वी पांडे की गांव सरकार का हम समर्थन करते हैं । आज राष्ट्र संत श्री टुकड़ोंजी महाराज की पुण्यतिथि है । इस समय प्रदेश में विधानसभा चुनाव का माहौल है। हम किसी पार्टी का प्रचार प्रसार करने नहीं आए हैं । हम यह कहने आए हैं जनतंत्र में हम को प्रबंधन के लिए जनता को ही दोषी मानते हैं । क्योंकि जनता ही सरकार चुनती हैं। जनता ही चेयरमैन,विधायक ,सांसद आदि चुनती है। हमें इससे मतलब होना चाहिए कि क्या होना चाहिए क्या नहीं होना चाहिए ? जीवन को समझो । इस धरती पर बड़े-बड़े सूरमा आए धराशायी हो गए ।कृत्रिम व्यवस्थाओं ने प्रकृति को ही नहीं मानव जीवन में भी विकार खड़े कर दिए हैं। गांव की सरकार का मतलब शहरीकरण नहीं है। कृत्रिम व्यवस्थाओं,पूंजीवादी व्यवस्था से जुड़ना नहीं है बरन उस कबीलाई और सहकारी व्यवस्था से जुड़ना है जो प्रकृत से बिना छेड़छाड़ किए या कम छेड़छाड़ के खड़ी हो । 


16 वी सदी से जो सामाजिक और आर्थिक विकास बनता है उसने भौतिक भोग वाद को ही जन्म दिया है और कार्यात्मक संरचना को तोड़ा है। प्राकृतिक जीवन को नष्ट किया है। 


'सर जी'-कुछ समय तक हमारे नजदीक रहे। वे कहते थे हम सिर्फ प्रकृति अंश हैं और ब्रह्म अंश। हम सबके अलावा सब ब्राह्मण्ड में प्रकृति अभियान के हिसाब से चलता है।


किसानों के लिए राष्ट्रीय किसान आय आयोग बनाया जाए ।


किसानों को स्वयं अपने उपज की कीमत निर्धारित करने का अधिकार हो।

#भविष्यकथांश


हमारी पुस्तक-' विश्व सरकार ग्रन्थ साहिब::भूमिका'


अशोक कुमार वर्मा "बिंदु"/अशोक बिन्दु भैया


www.akvashokbindu.blogspot.com