Powered By Blogger

रविवार, 27 नवंबर 2011

एलियन्स आक्रमण की सम्भावनाओं के बीच !

सन 2025ई की 14 नवम्बर तिथि ! भविष्य रांची के रेलवे स्टेशन पर पहुँच
भी न पाया था कि एक सन्यासी भविष्य को देख कर बोला -"भविष्य,आप को भी
फुर्सत मिल गयी प्रयोगशाला से ."

"ओम आमीन!"


"ओम तत सत आमीन!"


दोनों बातचीत करते हुए प्लेटफार्म की और बढ़ गये थे .


"राजा कुरु!ये भी दो हुए हैं .मैं हस्तिन वंश के कुरु की बात नहीँ कर
रहा हूँ "-सन्यासी बोला.


"जानता हूँ आप अग्नीन्ध्र पुत्र की बात कर रहे हैँ."-भविष्य बोला .


भविष्य ! कोरिया व साइबेरिया क्षेत्र के कभी राजा रहे थे
कुरु.रोम,साइबेरिया,कुमायूँ,आदि मेँ बोली जाने वाली आदि भाषाओं की मूल
भाषा प्रियव्रत की कबीलाई भाषा थी .उत्तराखण्ड का नाम कूर्मांचल भी मिलता
है .


पृथु महि जब विनाश की ओर अग्रसर हुई है एलियन्स की गतिविधियां तेज
हुई हैँ.सन 2011ई0के 14 नवम्बर को प्रख्याक पैरानमिल लेखक माइकल कोहन का
कहना था -"पिछले कुछ समय से रुस उड़नतश्तरियाँ और संभावित एलियन यानों की
गतिविधियों का प्रमुख अड्ढा बना हुआ है जिन्हेँ सेना और सिविल एजेंसियों
ने भी देखा है."
वैदिककाल मेँ धरती पर तैंतीस करोड़ देवता थे अर्थात जो भी मानव थे
वे देवता तुल्य थे .इस पृथुमहि पर उन आत्माओं अर्थात अस्थूल एलियन्स के
नियंत्रण केन्द्र थे -काबा ,कैलाश व काशी.'कश्मीर काशी सुहोत्र पुत्र
काशिक ने,काव्य अर्थात काबा उशाना काव्य(शुक्राचार्य) व हिरण्याकशिपु
पुत्री दिव्या ने स्थापना की.ऋषभ देव ने कैलाश पर्वत को अपना स्थान
बनाया.सभी आत्माएं सतमय होती हैँ लेकिन शरीर धारण करने के बाद माया मोह
लोभ व काम के कारण उस हिसाब से अपने शरीर को निर्देशित नहीं कर पातीँ या
फिर कामकाजी बुद्धि का साथ नहीँ पा पातीँ .और ऐसे मेँ संसार मेँ उलझ कर
नरकीय,प्रेत,पितर,आदि योनियों की सम्भावनाओं मेँ जीना आरम्भ कर दिया .
जानवर कम होते गये लेकिन उनकी आत्माएं मानवशरीर धारण कर आती रहीं .आज भी
सम्भवता तैतीस करोड़ मानव ही देव योनि की सम्भावनाओं मेँ जीते होंगे .


"भविष्य!आप ठहरे वैज्ञानिक,आपको मेरी बातें निराधार लग रही होंगी ?"

भविष्य सिर्फ मुस्कुरा दिया .


रांची स्टेशन पर ही कुछ दूर किशोर किशोरियां आर एस एस की
स्थापना के सौ वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य मेँ इश्तहार,स्टीकर,आदि बांट
रहे थे .कुछ मुस्लिम लड़कों ने इन किशोर किशोरियों को छेंड़ना शुरु कर
दिया.बहस बाजी के बाद नौवत मारपीट की आ गयी.प्रचार सामग्री नष्ट कर दी
गयी .सैन्य बल व अन्य व्यक्ति तमाशबीन बने देखते रहे .


एक औरत चीख रही थी -" जब तक चापलूस हिन्दुओं का शासन था तो
सेक्यूलरवाद के नाम पर तुष्टिकरण नीति चलती रही अब सेक्यूलवाद कहाँ मर
गया ?"

* * *

भविष्य अपने कमरे मेँ अकेला बैठा मानीटर युक्त दीवार पर
चलचित्र देख रहा था .

कि-


जब से ये दुनिया बनी है सत्य व अहिंसा को लेकर चलने वाले महापुरुष
आते ही रहे हैँ लेकिन मनुष्य असभ्य ही रहा.इस असभ्य मानव ने प्रकृति की
छोंड़ो धरती पर जीवन का अस्तित्व ही खतरे मेँ डाल दिया .मानव का इतिहास
हिंसा व द्वेष से भरा है .सत्य व अहिंसा के पन्नों को सिर्फ स्वर्णिम कह
कर काम चला लिया गया .

अन्तरिक्ष की अन्य धरतियों के मनुष्य तक इस धरती के मानव की मूर्खता
से असन्तुष्ट हैं और वे इस धरती पर आक्रमण करने की भी योजना बना रहे है
लेकिन उनका आक्रमण प्रकृति सुरक्षा के लिए है.


यहाँ का मानव यहाँ पर भी अपने द्वेषभावना से ही एलियन्स से युद्ध
करने को तैयार हो जायेगा लेकिन सुधरने का प्रयत्न नहीं करेगा .

इधर साइबेरिया निर्जन बर्फीले मैदान मेँ चार एलियंस घूम रहे थे उनका
तश्तरीयान कुछ दूरी पर था .ये स्थान इर्कुत्सक के समीप था जहां पहले भी
ये एलियन्स उतर चुके थे .


निर्जन स्थानों पर आते हैँ एलियन्स ?योगी भी चुनते थे निर्जन स्थान
.करते थे आत्मसाक्षात्कार .जुड़ते थे इसके बाद चेतना केन्द्रों से .और
एलियन्स ....!?

शनिवार, 26 नवंबर 2011

साइरियस से साइबेरिया तक !

दोनों तीन नेत्री थे .
दसलोफीन अकेली रह गयी थी .वह कदफनेडरीस को जाते देख रही थी.

वह जिन बूतों के समीप खड़ी थी उनके बीच एक शिला पर एक नक्शा बना हुआ था जिसमेँ भूमध्यसागरीय क्षेत्र व साइबेरियाई क्षेत्र के बीच एक मोटी सी लाइन खिंची दिखायी दे रही थी .जो दो बराबर भाग मेँ ताशकंद व काकेकश के करीब दो भागों मे बंटी थी .जहां बँटी स्थिति पर एक पर्वत व एक कछुआ बना हुआ था .दसलोफीन इस नक्शे को देखते देखते -"ऐहह ममतर.....?" मत्स्यावतार युग के शुरुआत मेँ एक आकाशीय पिण्ड साइरियस अर्थात लुन्धक से एक मत्स्यमानव भूमध्य सागर मेँ उतरा था.फिर ....!?ये साइरियस ....?!कूर्म .....?!साईबेरिया के कभी राजा थे -कुरु.जो अग्नीन्ध्र के पुत्र व प्रियव्रत के पौत्र थे .रोम ,साइबेरिया,कुमायूँ,आदि मेँ बोली जाने वाली आदिभाषाओं की मूलभाषा प्रियव्रत के कबीले की भाषा थी.सुना जाता है प्रियव्रत ने रोम की स्थापना की थी.उत्तराखण्ड का एक नाम कूर्मांचल भी मिलता है.सन2011के14नवम्बर को प्रख्यात पैरानामिल लेखक माइकल कोहान ने साइबेरिया क्षेत्र मेँ एलियन्स गतिविधियों का होना स्वीकारा.इर्कुत्सक मेँ एलियन यान उतरने की घटनाएं होती .
दक्षिण भारत महत्वपूर्ण तो होगा लेकिन सूक्ष्म शक्तियां कूर्म क्षेत्र अर्थात हिमालय,साइबेरिया आदि से भी महत्वपूर्ण होगी। कोरो शक्ति व कोरो-ना शक्ति के बीच महा संघर्ष होगा।आत्मा के अलावा कोरो क्या?लेकिन उस को नजरअंदाज कब तक करेगा मनुज? कुदरत उसी के माध्यम से सफाई करेगी!!एक डेढ़ प्रतिशत मौन के सागर में डूब विष पीने का काम करेंगे।उनसे ही सब थमेगा।सनातन है आत्मा, आत्मा से जुड़ व्यवहार स्वीकार करना होगा।
2011से 2025 ई0 के बीच का समय कोरो अर्थात सहज के लिए बेहतर तो होगा लेकिन जब 98 प्रतिशत कोरो-ना अर्थात असहजता तो दिखेगा वह ही।खेल असल और होगा...
 कोई फाइनल खेल नहीं.... सनातन तो निरन्तर है...वहां विकास नहीं वरन विकासशीलता....

कुछ वर्ष तक लेनिन को साइबेरिया में एक स्थान पर नजरबन्ध  रखा गया।
दिल्ली में नेहरू के प्रधानमंत्री बनने के बाद  सुभाष बाबू भी साइबेरिया में नजरबंद रहे।
इस साइबेरिया में--
उत्तरी ध्रुव अब इधर ही आ रहा है।
शाहजहाँपुर में बाबूजी का तो कहना है-ध्रुव अपने स्थान से खिसकेगा। विनाश उत्तर से ही चलेगा।
उधर-
कैलाश पर्वत!

ये तिकोना आकार प्राकृतिक पहाड़ नहीं वरन एक पिरामिड है जिस पर बर्फ जमी रहती है-रूसी वैज्ञानिकों की एक टीम(1999)
.
.

कैलाश पर्वत पर आज तक कोई क्यों नहीं चढ़ पाया है?
-------------------------------------------------------------
हिंदू धर्म में कैलाश पर्वत का बहुत महत्व है, क्योंकि यह भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। लेकिन इसमें सोचने वाली बात ये है कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को अभी तक 7000 से ज्यादा लोग फतह कर चुके हैं, जिसकी ऊंचाई 8848 मीटर है, लेकिन कैलाश पर्वत पर आज तक कोई नहीं चढ़ पाया, जबकि इसकी ऊंचाई एवरेस्ट से लगभग 2000 मीटर कम यानी 6638 मीटर है। यह अब तक रहस्य ही बना हुआ है।
.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक पर्वतारोही ने अपनी किताब में लिखा था कि उसने कैलाश पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की थी, लेकिन इस पर्वत पर रहना असंभव था, क्योंकि वहां शरीर के बाल और नाखून तेजी से बढ़ने लगते हैं। इसके अलावा कैलाश पर्वत बहुत ही ज्यादा रेडियोएक्टिव भी है।
...
कैलाश पर्वत पर कभी किसी के नहीं चढ़ पाने के पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं। कुछ लोगों का मानना है कि कैलाश पर्वत पर शिव जी निवास करते हैं और इसीलिए कोई जीवित इंसान वहां ऊपर नहीं पहुंच सकता। मरने के बाद या वह जिसने कभी कोई पाप न किया हो, केवल वही कैलाश फतह कर सकता है।


ऐसा भी माना जाता है कि कैलाश पर्वत पर थोड़ा सा ऊपर चढ़ते ही व्यक्ति दिशाहीन हो जाता है। चूंकि बिना दिशा के चढ़ाई करना मतलब मौत को दावत देना है, इसीलिए कोई भी इंसान आज तक कैलाश पर्वत पर नहीं चढ़ पाया।
.
सन 1999 में रूस के वैज्ञानिकों की टीम एक महीने तक माउंट कैलाश के नीचे रही और इसके आकार के बारे में शोध करती रही। वैज्ञानिकों ने कहा कि इस पहाड़ की तिकोने आकार की चोटी प्राकृतिक नहीं, बल्कि एक पिरामिड है जो बर्फ से ढका रहता है। माउंट कैलाश को "शिव पिरामिड" के नाम से भी जाना जाता है।
.
जो भी इस पहाड़ को चढ़ने निकला, या तो मारा गया, या बिना चढ़े वापिस लौट आया।
.
सन 2007 में रूसी पर्वतारोही सर्गे सिस्टिकोव ने अपनी टीम के साथ माउंट कैलाश पर चढ़ने की कोशिश की। सर्गे ने अपना खुद का अनुभव बताते हुए कहा : 'कुछ दूर चढ़ने पर मेरी और पूरी टीम के सिर में भयंकर दर्द होने लगा। फिर हमारे पैरों ने जवाब दे दिया। मेरे जबड़े की मांसपेशियाँ खिंचने लगी, और जीभ जम गयी। मुँह से आवाज़ निकलना बंद हो गयी। चढ़ते हुए मुझे महसूस हुआ कि मैं इस पर्वत पर चढ़ने लायक नहीं हूँ। मैं फ़ौरन मुड़ कर उतरने लगा, तब जाकर मुझे आराम मिला।
...
"कर्नल विल्सन ने भी कैलाश चढ़ने की कोशिश की थी। बताते हैं : "जैसे ही मुझे शिखर तक पहुँचने का थोड़ा-बहुत रास्ता दिखता, कि बर्फ़बारी शुरू हो जाती। और हर बार मुझे बेस कैम्प लौटना पड़ता। "चीनी सरकार ने फिर कुछ पर्वतारोहियों को कैलाश पर चढ़ने को कहा। मगर इस बार पूरी दुनिया ने चीन की इन हरकतों का इतना विरोध किया कि हार कर चीनी सरकार को इस पहाड़ पर चढ़ने से रोक लगानी पड़ी।कहते हैं जो भी इस पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश करता है, वो आगे नहीं चढ़ पाता, उसका हृदय परिवर्तन हो जाता है।यहाँ की हवा में कुछ अलग बात है। आपके बाल और नाखून 2 दिन में ही इतने बढ़ जाते हैं, जितने 2 हफ्ते में बढ़ने चाहिए। शरीर मुरझाने लगता है। चेहरे पर बुढ़ापा दिखने लगता है।कैलाश पर चढ़ना कोई खेल नहीं

29,000 फ़ीट ऊँचा होने के बाद भी एवरेस्ट पर चढ़ना तकनीकी रूप से आसान है। मगर कैलाश पर्वत पर चढ़ने का कोई रास्ता नहीं है। चारों ओर खड़ी चट्टानों और हिमखंडों से बने कैलाश पर्वत तक पहुँचने का कोई रास्ता ही नहीं है। ऐसी मुश्किल चट्टानें चढ़ने में बड़े-से-बड़ा पर्वतारोही भी घुटने तक दे।हर साल लाखों लोग कैलाश पर्वत के चारों ओर परिक्रमा लगाने आते हैं। रास्ते में मानसरोवर झील के दर्शन भी करते हैं।लेकिन एक बात आज तक रहस्य बनी हुई है। अगर ये पहाड़ इतना जाना जाता है तो आज तक इस पर कोई चढ़ाई क्यों नहीं कर पाया।


----------
मेरें Nokia फ़ोन से भेजा गया

बुधवार, 16 नवंबर 2011

The White House Auto-Response Message

----------
मेरें Nokia फ़ोन से भेजा गया

------Original message------
From: The White House <whitehouse@autoresponder.govdelivery.com>
To: <akvashokbindu@gmail.com>
Date: गुरुवार, 18 नवंबर, 2010 12:20:02 अपराह्न GMT
Subject: The White House Auto-Response Message

Due to the high volume of messages received at this address, the White House is unable to process the email you just sent. To contact the White House, please visit:

http://www.whitehouse.gov/contact [http://www.whitehouse.gov/contact]

Thank you.


Unsubscribe [https://messages.whitehouse.gov/accounts/USEOPWH/subscriber/one_click_unsubscribe?destination=akvashokbindu%40gmail.com&verification=3.89c24124c231712a711a2f2cf6b6ebd9] | Privacy Policy [http://www.whitehouse.gov/privacy/]

The White House �� 1600 Pennsylvania Ave NW �� Washington, DC 20500 �� 202-456-1111

मंगलवार, 15 नवंबर 2011

रुहेलखण्ड को चाहिए रुहेलखण्ड प्रदेश

बरेली मण्डल (रुहेलखण्ड) ,उत्तर प्रदेश को चार भागों में बांटने की उप्र सरकार की घोषणा के साथ इस विषय पर आम जनता में चर्चा खास हो गयी है. बरेली ,बदायूं ,पीलीभीत , शाहजहांपुर की जनता में इसकी प्रतिक्रिया भी देखने को मिल रही है .विविध सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि कुछ लोग रुहेलखण्ड के पक्ष में व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में न शामिल होने के सम्बंध में सम्पर्क प्रारम्भ कर दिया है . मानवता हिताय सेवा समिति के संस्थापक अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु' ने बताया कि इस पर मण्डल के वरिष्ठ व्यक्तियों से सम्पर्क किया जा रहा है . विचारविमर्श के बाद अगली रणनीति बनायी जाएगी .

----------
मेरें Nokia फ़ोन से भेजा गया

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

सुनो ,आरदीस्वन्दी से जा कर कहना .

मानीटर पर चलचित्र आ रहे थे . ये चलचित्र भुम्सन्दा धरती के थे
.आरदीस्वन्दी अपनी पच्चीस सदस्यीय टीम के साथ भयानक जंगल में थी.
लाखों प्रकाशवर्ष दूर एक धरती सनडेक्सरन,जहां के मूलनिवासी
त्रीनेत्री थे . आरदीस्वन्दी का वह चमकीला अण्डाकार पारदर्शी पत्थर!जो कि
उच्च स्तरीय सम्वेदी कम्पयूटर पीढ़ी का था.पारदर्शी दीवारों से बने एक
पिरामिड के अन्दर एक पारदर्शी टेबिल पर जो रखा हुआ था.जिसमें बर्फीले
मैदानों के चलचित्र आ रहे थे.इन चलचित्रों मेँ एक यति कहीँ जाता हुआ
दिखायी दे रहा था .

बर्फीले मैदान मेँ चल रही बर्फीली हवाओं के बीच वह यति!

वह कभी कभी चीख पड़ता था .अनेक आवाज निकालता था .जैसे कि -

"कपचटतिकुक पच चकती कच तकचट काटापका . यपचपजगड फज ख दचडीफ खचायठी
. चाकपी चकती . चकती ! चकती ! चटकतचि चमगजीफ कचयी .चकती! "

फिर वह एक गुफा के बाहर खड़ा हो चीखने लगा -
"चकती !......चकती......चकती! चटपकी छटत पछ द छ मथ चखड इखट . चकती ! चकती ! "

गुफा के अंदर अनेक लाशेँ रखी हुई थीं .जिनका विशालकाय शरीर व कद
लगभग ग्यारह फुट था.

इधर भुम्सनदा के जंगल में आरदीस्वन्दी अपनी टीम के साथ एक नदी के
किनारे पहाड़ी पर एक गुफा के सामने थे.सभी तम्बूओं को उखाड़ने मेँ लगे
थे.बरसात तेज हो चुकी थी.सभी सामान को उठा उठा कर गुफा मेँ ले जा कर रख
रहे थे.

अचानक आरदीस्वन्दी ने इधर उधर देख और फिर -
"कदफनेडरीस व दसलोफानी ! कदफनेडरीस व दसलोफानी कहनाह हयहेइ."

एक युवती बोली -"दोनों बूतों के पास गये थे."

कदफनेडरीस एक तीननेत्री युवक व दसलोफानी एक युवती जो तीन नेत्री
तो नहीं थी लेकिन सनडेक्सरन से ही कदफनेडरीस के साथ आयी थी . दोनों सह
जीवन जी रहे थे.


दसलोफिन अकेली रह गयी थी . बूतों के पास खड़ी वह कदफनेडरीस को
जाते देख रही थी .

"सुनो,आरदीस्वन्दी से जाकर कहना...."-दसलोफीन जब बोलने को हुई थी तो.... !?