Powered By Blogger

शनिवार, 28 नवंबर 2020

श्रुति बनाम स्मृति ! श्रुति हमारी अंदर की आसमानी स्थिति, जो हमें ऋषि बनाती है::अशोकबिन्दु

 सन्देश!

पुस्तक -'#सत्यकाउदय'!

पुस्तक - '#अक्षरसत्य'!!

पुस्तक-'#वयंरक्षाम:'

इन पुस्तकों का अध्ययन व #अंतरप्रेरणा के बाद.....


प्रकृति अभियान(यज्ञ),उसकी दशा व वो जिसमें उतरना वह ऋषि!वह जो ऋषि में उतरे वही श्रुति वही #सुरति!!वही पुस्तक रूप में अब #वेद!!


योग का आठवां अंग-#समाधि।

जहां #सिकन्दर अपनी अंतिम स्वासें गिन रहा था, वह क्षेत्र भी कभी आर्य का आभा क्षेत्र था। क्षेत्र ,परिस्थिति व पन्थ विशेष के आधार पर अभिव्यक्ति के माध्यम व तरीके बदलते रहे हैं। वहां कभी #मेसोपोटामिया सभ्यता पनपी।

पुरातत्व विद डॉक्टर फ्रेंक फोर्ड और लैंगडन आदि कहते हैं कि प्रोटोएलमाइट सभ्यता का ही विकसित रूप सुमेर सभ्यता है।#प्रोटोएलमाइट जाति क्या है?प्रोटोएलमाइट जाति है-चाक्षुष कुल या जाति।जिसके छह महारथियों ने बिलोचिस्तान और ईरान होते हुए एलाम और मेसोपोटामिया को जीत कर  अपने राज्य में स्थापित किए थे। भूमध्य सागरीय क्षेत्र व मिश्र के कुछ कबीले/जंगली लोग अब भी कहते हैं कि हमारा पूर्वज दूसरी धरती से आया था।जो मत्स्य मानव था।प्रलय के वक्त उसी प्रजाति /वरुण से मनु की नौका को बचाया गया था। पश्चिम व #बेबीलोनियन पौराणिक कथाओं में भी ,शत पथ व मत्स्य पुराण में भी इन घटनाओं का वर्णन है।


योग का आठवां अंग-#समाधि।


#नक्शबंदी सम्प्रदाय के आदि सन्त भाव व मन से सनातन धर्म को मानते थे।एक समय वह भी था जब धर्म का #मजहबीकरण नहीं हुआ था।क्षेत्र, भाषा, भौगोलिक परिस्थितियों आदि विशेष के कारण कर्मकांड, रीतिरिवाज आदि व मानव नस्ल में भेद रहा है।दुनिया में लगभग  चार मानव नस्ल सदा रही हैं। नक्शबंदी सम्प्रदाय  में आठ नियम रहे हैं-श्वास में चैतन्य, चरणों पर दृष्टि, यात्रा, एकांतबास, ईश्वरी स्मृति, ईश्वर के प्रति एकांत गमन, ईश्वरी ध्यान तथा आत्म विस्मृति। आत्म विस्मृति या समाधि का मतलब सांसारिकता के प्रति असावधान हो जाना और खोए खोए अपनी दिनचर्या व कर्तव्य निभाते जाना।यहां पर अपने कोई अधिकार नहीं रह जाते। हम उस दशा को पा जाते हैं कि उसकी मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता। वह सारथी बन जाता है।हमारे हाड़मांस शरीर व हमारी सांसारिक, सामाजिक, भौतिक स्थिति कोई भी हो सकती है।अमीर होकर भी आम सामान्य सी। 

  #शेष


#अशोकबिन्दु






सोमवार, 16 नवंबर 2020

भईया दूज:: यम शक्ति को नमन!!अशोकबिन्दु

 हमारी व्याख्याएं व जगत को देखने का तरीका दूसरा है।


अपनी सम्पूर्णता में जीने से ही शांति हैं, सुकून है,सन्तुष्टि है।

योग कोई हाथ पैर चलना, लम्बी गहरी सांसे छोड़ना निकलना आदि नहीं है सिर्फ।

योग/सम्पूर्णता की प्राप्ति के आठ अंग हैं।

पहला अंग है-यम।

खोना व पाना का संग है।हर पल एक की प्राप्ति होती है तो एक से दूरी...लेकिन अंततः दोनों से मुक्ति।

इस लिए कहा गया है-आचार्य है मृत्यु, योगी होना है मृत्यु। यम भी है मृत्यु। एक का छूटना।



सत्य, अहिंसा, अस्तेय,अपरिग्रह व ब्रह्मचर्य पांच यम हैं। यही आदि सनातन धर्म स्तम्भ हैं। ऋषभ देव का पंच महाव्रत है। इस पंच महाव्रत को धारण करने वाला जिन है ,धरती का आदि वीर है।।

प्रकृति व ब्रह्म के बीच परस्पर सम्मान कब है?


..........            ..........                 ...........            ...........  


भैया दूज!

.

.


यम / मृत्यु को जीतना।सम्मान देना।


आध्यत्म में सन्देश :: जगत में जो भी स्त्री पुरुष हैं, भाई बहिन हैं। सभी में मालिक की रोशनी मौजूद है।सब मिशन/प्रकृति अभियान(यज्ञ) में लगे हैं। सभी एक जगत पिता से हैं। सभी अपनी अपनी व्यस्तता के बीच अर्थात जगत की चकाचौंध में  इस को भूल गए हैं। जब हम इसे याद करेगें और इस भाव में आकर एक दूसरे के निष्काम सम्मान को बढ़ाएंगे तो आध्यात्मिक राज्य स्थापित होगा। सभी की उम्र बढ़ेगी।


अनन्त यात्रा में लीनता ही प्रेम। जहां कम्पन, स्पंदन, तरंगें, प्रकाश...गतिमान... आत्मियता... आत्मा... सम्वेदना जो सर्वत्र व्याप्त...! ऐसे में स्त्री पुरुष के बोध का भी भान नहीं। जब स्त्री पुरुष के बोध का भान हो भी तो वह भाई बहिन के रूप में क्योकि प्रेम अर्थात अनन्त सागर में लीनता में कुछ भी इंद्रियक नहीं, स्थूल नहीं। 


#अशोकबिन्दु


यमस्वसर्नमस्तेऽसु यमुने लोकपूजिते।

वरदा भव मे नित्यं सूर्यपुत्रि नमोऽस्तु ते ।।

                   ❤️ लोकश्रुति है कि यमराज व्यस्तताओं के कारण कभी बहन यमुना के घर नहीं जा पाते थे। इस कारण यमुना को बहुत दुःख होता था। एक बार कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को यमराज अचानक बहन यमुना के घर पहुंचे, तो यमुना बहुत प्रसन्न हुईं और उन्होंने अपने अतिव्यस्त भाई यमराज की खूब आवभगत की ! यमराज ने प्रसन्न हो कर वर दिया कि आज के दिन बहन के घर भोजन करने वालों को यम का भय नहीं होगा और उनकी आयु में वृद्धि होगी। इस परंपरा के माध्यम से हर भाई-बहन के बीच परस्पर स्नेह  सतत बढ़ता रहे, इसी सद्कामना के साथ आप सबको भाई दूज के पावन पर्व की अनंत शुभकामनाएँ ! साथ ही साथ आप सब को भगवान चित्रगुप्त के पूजनोत्सव की भी असीम मंगलकामनाएँ 😍🙏💐💐





गुरुवार, 5 नवंबर 2020

साइबेरिया की प्रयोगशाला से!

  साइबेरिया के जंगलों के बीच एक प्रयोगशाला।

तीन नेत्रधारी दो युवक रूस की एक युवती के साथ बैठे थे।

सामने डिजिटल बॉल पर चल चित्र आ रहे थें।

चलचित्र में---


ईशा पूर्व लगभग 567 वर्ष।

तब एक पांच छह साल का बालक?जिसे कोई 'प्र-ओत', तो कोई 'प्रा-ओटा' पुकारते थे।

वह समुद्री तट?!


समुद्र में समुद्र की ऊंची ऊंची कुश्ती लहरों के बीच एक नौका में आंख बंद पड़ी वेदों की छोरियां सुना जाता है की वे दोनों की छोरियां भारत से आई थी समुद्री लुटेरों ने एक जहाज को लूटा था वह जहाज कलिंग राज्य भारत के किसी बंदरगाह से चला था और समुद्र में लूट लिया गया जब यह जहाज भारत से चला था तो दोनों किशोरियों बालिका थी उन्हें किसी व्यापारी ने बेच दिया था कुछ व्यक्तियों के साथ बे बालिकाएं भी समुद्र में कूद गई थी उस जहाज से लूट के दौरान आग भी लग गई थी बेहोशी हालत में दोनों एक द्वीप के तट पर लग गई थी जब होश आया तो कुछ समय उनके परेशानी और बेचैनी में बीता घास फूस पत्ते खाकर काम चलाया ।

उन्हें ध्यान आया की उनकी मां मुसीबत के समय आंख बंद करके बैठती थी और मन ही मन बुदबुदा टी  थी हमारी कोई समस्या नहीं है हम तो दिव्य प्रकाश से भरे हैं जिसके प्रभाव हमारे सारे विकार नष्ट हो रहे हैं दोनों उस टापू पर अधिकतर समय ध्यान में बिताते थी लगभग 5 साल बीत गए 1 दिन समुद्री तूफान आया जिसमें वह दोनों बहे गई जब तूफान शांत हुआ तो उन पर कुछ मछुआरों की निगाह पड़ी एक सन्यासी ने अपनी झोपड़ी में उसे आश्रित दिया बड़ी को  प्रे फेस नाम से व छोटी को प्रेमबल नाम से पुकारा जाने लगा। दोनों के बीच पांच छह वर्षिय प्रोटागोरस कुछ समय के लिए खेलने लगा और ध्यान करना भी सीखा।

"पूर्व के सन्तों को नमन!"



उस भूमिगत एलियन्स प्रयोगशाला, साइबेरिया में उस चलचित्र से अपना ध्यान हटा कर  समकेदल वम्मा के बारे में सोचने लगी।


समकेदल वम्मा...?!

सन 5012ई0 का ही शायद समय था...

....सम्कदेल वम्मा मुश्किल मेँ था.अब कैसे यान को वह आगे निकाले?दुश्मनोँ के यान से छोड़ी जा रही घातक तरंगे यान को नुकसान पहुँचा सकती थी.ऐसे मेँ उसने अनेक धरतियोँ पर उपस्थित अपने सहयोगियोँ से एक साथ सम्पर्क साधा.


"मेरे यान को घेर लिया गया है."


सम्कदेल वम्मा के सहयोगियोँ के द्वारा अपने अपने नियन्त्रण कक्ष से अपने अपने कृत्रिम उपग्रहोँ मेँ फिट हथियारोँ से दुश्मन के यानोँ पर घातक तरंगे छोड़ी जाने लगीँ.अनेक यान नष्ट भी हुए.


लेकिन....?!


सम्कदेल वम्मा के यान मेँ आग लग गयी .


"मित्रोँ!सर! यान मेँ आग लग गयी है. दुश्मनोँ के यानोँ से छोड़ी जाने वाली घातक तरंगोँ से मेरा यान अब भी घिरा हुआ है. कोई अपने कृत्रिम उपग्रह से पायलटहीन यान भेजेँ . लेकिन.....?!मैँ......मैँ... ....मैँ.....आ.....आ...(कराहते हुए) आत्मसमर्पण करने जा रहा हूँ."

फिर सम्कदेल वम्मा ने सिर झुका लिया.


सम्कदेल वम्मा ने अपने बेल्ट पर लगा एक स्बीच आफ कर दिया.जिससे उसके ड्रेश पर की जहाँ तहाँ टिमटिमाती रोशनियाँ बन्द हो गयीँ. इसके साथ ही यानोँ से घातक तरंगोँ का अटैक समाप्त हो गया और जैसे ही उसने अपने यान का दरवाजा खोला एक विशेष प्रकार की चुम्बकीय तरंगोँ ने उसे खीँच कर दुश्मन के एक यान मेँ पहुंचा दिया.वह यान के बन्द होते दरबाजे की ओर देखने लगा.

"दरबाजे की ओर क्योँ देख रहे हो?" 


"तुम?!"


"हाँ मै,तुम हमसे दोस्ती कर लो.मौज करोगे."


"मेरा मौज मेरे मिशन मेँ है." 


" हा S S S S हा S S S S हा S S S हा S S S S हा S S S " -  ठाहके लगाते हुए.

फिर-

"धर्म मेँ क्या रखा है? जेहाद मेँ क्या रखा है ? ' जय कुरुशान जय कुरुआन' का जयघोष छोड़ो.'जय काम' बोलो 'जय अर्थ' बोलो.जितना 'काम'और 'अर्थ'मेँ मजा है उतना 'धर्म'और 'मोक्ष'मेँ कहाँ ? 'काम'और'अर्थ'की लालसा पालो,'धर्म'और 'मोक्ष' की नहीँ."


"तुम मार दो मेरे तन को.तभी तुम्हारी भलाई है."



" सम्कदेल वम्मा! अपने पिता की तरह क्या तुम मरना पसन्द करोगे? "


" पिता कैसा पिता?शरीर तो नश्वर ही है . तू हमेँ मारेगा ? भूल गया तू क्या कुरुशान को अर्थात गीता सन्देश को ? भूल गया तू क्या कुरुआन को -हुसैन की शहादत को ? "


"सम्कदेल! तू भी अपने पिता की तरह बोलता है? "


"हूँ! तुम जैसे भोगवादी! धन लोलुप! कामुक!थू! "

"सम्कदेल!"


"हमारी कोशिसेँ बेकार नहीँ जायेगी . क्योँ न बार बार मर कर बार बार जन्म लेना पड़े? राम कृष्ण के जन्म हेतु अतीत मेँ कारण छिपे होते है. तेरा अहंकार जाग कर जब तक सौ प्रतिशत नहीँ हो जाता तब तक तू मोक्ष नहीँ पा सकता, इसके लिए तुझे बार बार जन्म लेना पड़ सकता है. तू चाहे मेरे इस शरीर को मार दे लेकिन तेरा अहंकार चकनाचूर करने को मैँ फिर जन्म लूँगा -देव रावण . "


" अपनी फिलासफी तू अपने पास रख. कुछ दिनोँ बाद ब्राहमाण्ड की सारी शक्तियाँ हमारे हाथ मेँ होगी. तुम मुट्ठी भर लोग क्या करोगे? अब हम वो दुर्योधन बनेँगे जो कृष्ण को भी अपने साथ रखेगा ,कृष्ण की नारायणी सेना भी. अब मैँ वह रावण बनूंगा जो विभीषण से प्रेम करेगा,राम के पास नहीँ जाने देगा.अगर जायेगा भी तो जिन्दा नहीँ जाएगा."


"यह तो वक्त बतायेगा,जनाब . वक्त आने पर अच्छे अच्छे की बुद्धि काम नहीँ करती.आप क्या चीज हैँ ?"


"हूँ!"


फिर-


" सम्कदेल! जानता हूँ धर्म मोक्ष देता है लेकिन तुम क्या यह नहीँ जानते कि अधर्म भी मोक्ष देता है?मैँ आखिरी वार कह रहा हूँ कि मेरे साथ आ जाओ. नहीँ तो मरने को तैयार हो जाओ."


" मार दो, मेरे शरीर को मार दो."


"डरना नहीँ मरने से?"


"क्योँ डरुँ? चल मार."


सम्कदेल वम्मा के सहयोगी अपने अपने ठिकाने से अन्तरिक्ष मेँ आ चुके थे.


लेकिन...?!


सम्कदेल वम्मा ......?!


""" *** """


एक चालकहीन कम्प्यूटरीकृत यान सनडेक्सरन धरती पर आ कर सम्कदेल वम्मा के मृतक शरीर को छोड़ गया था. आरदीस्वन्दी भागती हुई मृतक शरीर के पास आयी और शान्त भाव मेँ खड़ी हो गयी.


उसके मन मस्तिष्क मेँ सम्कदेल वम्मा के कथन गूँज उठे.


".....शरीर तो नश्वर है . हमे तू मारेगा? भूल गया कुरुशान को अर्थात गीता सन्देश को ? ..... हमारी कोशिसेँ बेकार नहीँ जाएगी. क्योँ न बार बार मर कर बार बार जन्म लेना पड़े?"


आरदीस्वन्दी अभी कुछ समय पहले सम्कदेल वम्मा व देव रावण की वार्ता को सचित्र देख रही थी.आरदीस्वन्दी ने सिर उठा कर देखा कि यान अन्तरिक्ष से वापस आ रहे थे.


कुछ दूर एक विशालकाय स्क्रीन पर अन्तरिक्ष युद्ध के चित्र प्रसारित हो रहे थे. देव रावण के अनेक यानोँ को नष्ट किया जा चुका था.


अब भी-


"..... तेरा अहंकार जाग कर जब तक सौ प्रतिशत नहीँ हो जाता तब तक तू भी मोक्ष नहीँ पा सकता है, इसके लिए तुझे भी बार बार जन्म लेना पड़ सकता है. तू चाहे मेरे इस शरीर ......!?

पुन:



....सम्कदेल वम्मा मुश्किल मेँ था.अब कैसे यान को वह आगे निकाले?दुश्मनोँ के यान से छोड़ी जा रही घातक तरंगे यान को नुकसान पहुँचा सकती थी.ऐसे मेँ उसने अनेक धरतियोँ पर उपस्थित अपने सहयोगियोँ से एक साथ सम्पर्क साधा.


"मेरे यान को घेर लिया गया है."


सम्कदेल वम्मा के सहयोगियोँ के द्वारा अपने अपने नियन्त्रण कक्ष से अपने अपने कृत्रिम उपग्रहोँ मेँ फिट हथियारोँ से दुश्मन के यानोँ पर घातक तरंगे छोड़ी जाने लगीँ.अनेक यान नष्ट भी हुए.


लेकिन....?!


सम्कदेल वम्मा के यान मेँ आग लग गयी .


"मित्रोँ!सर! यान मेँ आग लग गयी है. दुश्मनोँ के यानोँ से छोड़ी जाने वाली घातक तरंगोँ से मेरा यान अब भी घिरा हुआ है. कोई अपने कृत्रिम उपग्रह से पायलटहीन यान भेजेँ . लेकिन.....?!मैँ......मैँ... ....मैँ.....आ.....आ...(कराहते हुए) आत्मसमर्पण करने जा रहा हूँ."

फिर सम्कदेल वम्मा ने सिर झुका लिया.


सम्कदेल वम्मा ने अपने बेल्ट पर लगा एक स्बीच आफ कर दिया.जिससे उसके ड्रेश पर की जहाँ तहाँ टिमटिमाती रोशनियाँ बन्द हो गयीँ. इसके साथ ही यानोँ से घातक तरंगोँ का अटैक समाप्त हो गया और जैसे ही उसने अपने यान का दरवाजा खोला एक विशेष प्रकार की चुम्बकीय तरंगोँ ने उसे खीँच कर दुश्मन के एक यान मेँ पहुंचा दिया.वह यान के बन्द होते दरबाजे की ओर देखने लगा.

"दरबाजे की ओर क्योँ देख रहे हो?" 


"तुम?!"


"हाँ मै,तुम हमसे दोस्ती कर लो.मौज करोगे."


"मेरा मौज मेरे मिशन मेँ है." 


" हा S S S S हा S S S S हा S S S हा S S S S हा S S S " -  ठाहके लगाते हुए.

फिर-

"धर्म मेँ क्या रखा है? जेहाद मेँ क्या रखा है ? ' जय कुरुशान जय कुरुआन' का जयघोष छोड़ो.'जय काम' बोलो 'जय अर्थ' बोलो.जितना 'काम'और 'अर्थ'मेँ मजा है उतना 'धर्म'और 'मोक्ष'मेँ कहाँ ? 'काम'और'अर्थ'की लालसा पालो,'धर्म'और 'मोक्ष' की नहीँ."


"तुम मार दो मेरे तन को.तभी तुम्हारी भलाई है."



" सम्कदेल वम्मा! अपने पिता की तरह क्या तुम मरना पसन्द करोगे? "


" पिता कैसा पिता?शरीर तो नश्वर ही है . तू हमेँ मारेगा ? भूल गया तू क्या कुरुशान को अर्थात गीता सन्देश को ? भूल गया तू क्या कुरुआन को -हुसैन की शहादत को ? "


"सम्कदेल! तू भी अपने पिता की तरह बोलता है? "


"हूँ! तुम जैसे भोगवादी! धन लोलुप! कामुक!थू! "

"सम्कदेल!"


"हमारी कोशिसेँ बेकार नहीँ जायेगी . क्योँ न बार बार मर कर बार बार जन्म लेना पड़े? राम कृष्ण के जन्म हेतु अतीत मेँ कारण छिपे होते है. तेरा अहंकार जाग कर जब तक सौ प्रतिशत नहीँ हो जाता तब तक तू मोक्ष नहीँ पा सकता, इसके लिए तुझे बार बार जन्म लेना पड़ सकता है. तू चाहे मेरे इस शरीर को मार दे लेकिन तेरा अहंकार चकनाचूर करने को मैँ फिर जन्म लूँगा -देव रावण . "


" अपनी फिलासफी तू अपने पास रख. कुछ दिनोँ बाद ब्राहमाण्ड की सारी शक्तियाँ हमारे हाथ मेँ होगी. तुम मुट्ठी भर लोग क्या करोगे? अब हम वो दुर्योधन बनेँगे जो कृष्ण को भी अपने साथ रखेगा ,कृष्ण की नारायणी सेना भी. अब मैँ वह रावण बनूंगा जो विभीषण से प्रेम करेगा,राम के पास नहीँ जाने देगा.अगर जायेगा भी तो जिन्दा नहीँ जाएगा."


"यह तो वक्त बतायेगा,जनाब . वक्त आने पर अच्छे अच्छे की बुद्धि काम नहीँ करती.आप क्या चीज हैँ ?"


"हूँ!"


फिर-


" सम्कदेल! जानता हूँ धर्म मोक्ष देता है लेकिन तुम क्या यह नहीँ जानते कि अधर्म भी मोक्ष देता है?मैँ आखिरी वार कह रहा हूँ कि मेरे साथ आ जाओ. नहीँ तो मरने को तैयार हो जाओ."


" मार दो, मेरे शरीर को मार दो."


"डरना नहीँ मरने से?"


"क्योँ डरुँ? चल मार."


सम्कदेल वम्मा के सहयोगी अपने अपने ठिकाने से अन्तरिक्ष मेँ आ चुके थे.


लेकिन...?!


सम्कदेल वम्मा ......?!


""" *** """


एक चालकहीन कम्प्यूटरीकृत यान सनडेक्सरन धरती पर आ कर सम्कदेल वम्मा के मृतक शरीर को छोड़ गया था. आरदीस्वन्दी भागती हुई मृतक शरीर के पास आयी और शान्त भाव मेँ खड़ी हो गयी.


उसके मन मस्तिष्क मेँ सम्कदेल वम्मा के कथन गूँज उठे.


".....शरीर तो नश्वर है . हमे तू मारेगा? भूल गया कुरुशान को अर्थात गीता सन्देश को ? ..... हमारी कोशिसेँ बेकार नहीँ जाएगी. क्योँ न बार बार मर कर बार बार जन्म लेना पड़े?"


आरदीस्वन्दी अभी कुछ समय पहले सम्कदेल वम्मा व देव रावण की वार्ता को सचित्र देख रही थी.आरदीस्वन्दी ने सिर उठा कर देखा कि यान अन्तरिक्ष से वापस आ रहे थे.


कुछ दूर एक विशालकाय स्क्रीन पर अन्तरिक्ष युद्ध के चित्र प्रसारित हो रहे थे. देव रावण के अनेक यानोँ को नष्ट किया जा चुका था.


अब भी-


"..... तेरा अहंकार जाग कर जब तक सौ प्रतिशत नहीँ हो जाता तब तक तू भी मोक्ष नहीँ पा सकता है, इसके लिए तुझे भी बार बार जन्म लेना पड़ सकता है. 

और....



सन 6020ई0 का विजयादशमी पर्व! मातृदेवी की भव्य प्रतिमा के समक्ष शस्त्रपूजन कार्यक्रम चल रहा था.सनडेक्सरन नि वासी बालक हफ्कदम के एक युवती के साथ मंच पर उपस्थित था. दोनों तीननेत्री थे. एक वृद्व सन्यासी जो कि हरा व लाल रंग के वस्त्र पहने था.हवन कुण्ड की अग्नि प्रजव्लित करते हुए बोला -"जीवों में चेतना के दो अंश होते हैं-परमात्मांश व प्रकृतिअंश.इन दोनों में सन्तुलन का सिद्धान्त ही (एक ओर स्थापित श्री अर्द्धनारीश्वर प्रतिमा को देखकर) श्रीअर्द्धनारीश्वर स्वरुप में छिपादर्शन है.आज विजयादशमी पर आप सगुणप्रेमियोँ के द्वारा मातृदेवी के समक्ष शस्त्रों की पूजा का मतलब क्या है?प्रकृति को बचाने को शस्त्र उठने ही चाहिए लेकिन शस्त्र सिर्फ स्थूल ही नहीं होते.हर कोई प्रकृति का संरक्षक सगुण व क्षत्रिय है." आकाश में अनेक यान तेजी के साथ तेज आवाज करते हुए मड़राने लगे. 
और... " हा... हा.. हा.. हा.....! " - अपने नियन्त्रण कक्ष से एक  वृद्ध राजसी व्यक्ति ठहाके लगा रहा था. यह वृद्ध व्यक्ति...?!अचानक वह चौंका.स्क्रीन पर दिख रहा था कि सारे नष्ट किये जा रहे थे और अब बालक हफ्कदम हँसते हुए बोला-"देवरावण!तू ..."



सरकारें बदलने से कुछ नहीं होने का, व्यवस्थाएं बदलने की जरूरत::अशोकबिन्दु


 "गांव की सरकार से क्या अभिप्राय है?"


05 नवम्बर 2022 ई0! राष्ट्र सन्त श्री तुकडोजी महाराज पुण्य तिथि!!


 सहकारिता,मानवता,परस्पर सहयोग से जीता मानव समाज जब प्राकृतिक कृषि पशुपालन लघु उद्योग कुटीर उद्योग आदि के वातावरण में जीवन जिए तो ऐसे में समाज और सामाजिकता घटित होती है। कबीलाई संस्कृति,आश्रम पद्धति वास्तव में हमें प्रकृति के बीच ससम्मान जीवन दे सकती है। शहरीकरण,स्मार्ट सिटी के स्थान पर स्मार्ट विलेज की परंपरा खड़ी होनी चाहिए। विद्यार्थी जीवन के बाद अनेक युवक युवतियां प्रकृति के बीच निकल आए और सरकार के सहयोग से पशुपालन, बागवानी ,कृषि ,औषधियों,योगा, जीविका आदि के लिए बहुउद्देश्य  उपक्रम खड़ा करें । शहरों, पूजी पतियों की व्यवस्था की ओर नहीं। मानवता, सहकारिता और बहुद्देशीय संस्थाओं की ओर अब हम सब बढ़े ।अधिक विभाग ,अनेक विभाग खड़े करने की जरूरत नहीं है ।

हर व्यक्ति का सैनिक करण और कृषि का व्यवसायीकरण आवश्यक है । हर व्यक्ति का योगीकरण आवश्यक है।


 नैतिक पार्टी के संस्थापक सी वी पांडे की गांव सरकार का हम समर्थन करते हैं । आज राष्ट्र संत श्री टुकड़ोंजी महाराज की पुण्यतिथि है । इस समय प्रदेश में विधानसभा चुनाव का माहौल है। हम किसी पार्टी का प्रचार प्रसार करने नहीं आए हैं । हम यह कहने आए हैं जनतंत्र में हम को प्रबंधन के लिए जनता को ही दोषी मानते हैं । क्योंकि जनता ही सरकार चुनती हैं। जनता ही चेयरमैन,विधायक ,सांसद आदि चुनती है। हमें इससे मतलब होना चाहिए कि क्या होना चाहिए क्या नहीं होना चाहिए ? जीवन को समझो । इस धरती पर बड़े-बड़े सूरमा आए धराशायी हो गए ।कृत्रिम व्यवस्थाओं ने प्रकृति को ही नहीं मानव जीवन में भी विकार खड़े कर दिए हैं। गांव की सरकार का मतलब शहरीकरण नहीं है। कृत्रिम व्यवस्थाओं,पूंजीवादी व्यवस्था से जुड़ना नहीं है बरन उस कबीलाई और सहकारी व्यवस्था से जुड़ना है जो प्रकृत से बिना छेड़छाड़ किए या कम छेड़छाड़ के खड़ी हो । 


16 वी सदी से जो सामाजिक और आर्थिक विकास बनता है उसने भौतिक भोग वाद को ही जन्म दिया है और कार्यात्मक संरचना को तोड़ा है। प्राकृतिक जीवन को नष्ट किया है। 


'सर जी'-कुछ समय तक हमारे नजदीक रहे। वे कहते थे हम सिर्फ प्रकृति अंश हैं और ब्रह्म अंश। हम सबके अलावा सब ब्राह्मण्ड में प्रकृति अभियान के हिसाब से चलता है।


किसानों के लिए राष्ट्रीय किसान आय आयोग बनाया जाए ।


किसानों को स्वयं अपने उपज की कीमत निर्धारित करने का अधिकार हो।

#भविष्यकथांश


हमारी पुस्तक-' विश्व सरकार ग्रन्थ साहिब::भूमिका'


अशोक कुमार वर्मा "बिंदु"/अशोक बिन्दु भैया


www.akvashokbindu.blogspot.com

बुधवार, 19 अगस्त 2020

सद्भावना में मशीनी औरतें..... अशोकबिन्दु


जंगल के बीच एक विशालकाय इमारत ! इमारत के बाहर अनेक जीव जन्तुओँ एवं महापुरूषोँ-कृष्ण विदुर ,महावीर जैन ,बुद्ध, चाणक्य, ईसा मसीह ,सुकरात, क........

ABLAL

जंगल के बीच एक विशालकाय इमारत ! इमारत के बाहर अनेक जीव जन्तुओँ एवं महापुरूषोँ-कृष्ण विदुर ,महावीर जैन ,बुद्ध, चाणक्य, ईसा मसीह ,सुकरात, कालिदास ,दारा शिकोह, कबीर, शेरशाह सूरी ,गुरूनानक ,राजा राममोहनराय, सावित्री फूले ,राम कृष्ण परमहंस ,महात्मा गाँधी, एपीजे अब्दुल कलाम, साँई बाबा, ओशो , अन्ना हजारे, आदि की प्रतिमाएँ पेँड़ पौधोँ के बीच स्थापित थीँ . इमारत के अन्दर वातावरण आध्यात्मिक था. वेद कुरान बाइबिल आदि से लिए गये अमर वचन जहाँ -तहाँ दीवारोँ पर लिखे थे. इसके साथ ही सभी ग्रन्थोँ के प्रतीक चिह्न अंकित थे. मन्द मन्द 'ओ3म -आमीन' की ध्वनि गूँज रही थी. जहाँ अनेक औरतेँ नजर आ रही थीँ पुरुष कहीँ भी नजर नहीँ आ रहे थे. हाँ,इस इस इमारत के अन्दर एक अधेड़ पुरुष उपस्थित था जो श्वेत वस्त्र धारी था .इस इमारत का नाम था-'सद्भावना' .एक अण्डाकार यान आकाश मेँ चक्कर लगा रहा था. एक कमरे के अन्दर दीवारोँ पर फिट स्क्रीन्स के सामने किशोरियाँ एवं युवतियाँ उपस्थित थे. अधेड़ पुरुष के सामने उपस्थित स्क्रीन पर अण्डाकार यान को देख कर उसने अपना हाथ घुमाया और वह स्क्रीन गायब हो गयी. सामने रखी माचिस के बराबर एक यन्त्र लेकर फिर वह उठ बैठा. इधर अण्डाकार यान हवाई अड्डे पर उतर चुका था.

* * * *

पृथ्वी से लाखोँ प्रकाश वर्ष दूर एक धरती-सनडेक्सरन . जहाँ मनुष्य रहता तो था लेकिन ग्यारह फुट लम्बे और तीन नेत्रधारी . एक बालिका 'आरदीस्वन्दी'जो तीननेत्र धारी थी , वह बोली -देखो ,माँ पहुँची पृथ्वी पर क्या?एक किशोर 'सम्केदल वम्मा' दीवार मेँ फिट स्क्रीन पर अतीत के एक वैज्ञानिक, जिन्हेँ लोग त्रिपाठी जी कहकर पुकारते थे, को सुन रहा था . जो कह रहे थे कि आज से लगभग एक सौ छप्पन वर्ष पूर्व इस ( पृथ्वी) पर एक वैज्ञानिक हुए थे एपीजे अब्दुल कलाम. उन्होने कहा था कि हमेँ इस लिए याद नहीँ किया जायेगा कि हम धर्म स्थलोँ जातियोँ के लिए संघर्ष करते रहे थे. आज सन 2164ईँ0 की दो अक्टूबर! विश्व अहिँसा दिवस . आज मैँ इस सेमीनार मेँ कहना चाहूगा कि कुछ भू सर्वेक्षक बता रहे हैँ कि सूरत , ग्वालियर, मुरादाबाद, हरिद्वार ,उत्तरकाशी, बद्रीनाथ ,मानसरोवर, चीन स्थित साचे ,हामी, लांचाव, बीजिँग, त्सियांगटाव ,उत्तरी- द्क्षणी कोरिया, आदि की भूमि के नीचे एक दरार बन कर ऊपर आ रही है, जो हिन्दप्राय द्वीप को दो भागोँ मेँ बाँट देगी. यह दरार एक सागर का रुप धारण कर लेगी जिसमेँ यह शहर समा जाएँगे. इस भौगोलिक परिवर्तन से भारत और चीन क्षेत्र की भारी तबाही होगी जिससे एक हजार वर्ष बाद भी उबरना मुश्किल होगा. सम्केदल वम्मा आरदीस्वन्दी से बोला -" त्रिपाठी जी कहते रहे लेकिन पूँजीवादी सत्तावादी व स्वार्थी तत्वोँ के सामने उनकी न चली.

सन2165ई0 की फरवरी! इस चटक ने अरब की खाड़ी और उधर चीन के सागर से होकर प्रशान्त महासागर को मिला दिया. भारतीय उप महाद्वीप की चट्टान खिसक कर पूर्व की ओर बढ़ गयी थी. म्यामार,वियतनाम आदि बरबादी के गवाह बन चुके थे." बालिका बोली कि देखो न,माँ पृथ्वी पर पहुँची कि नहीं... आज सन 5010ई0 की 19 जनवरी! उस अण्डाकार यान से एक तीन नेत्र धारी युवती के साथ एक बालिका बाहर आयी जो कि तीन नेत्रधारी ही थी. अधेड़ व्यक्ति कुछ युवतियोँ के साथ जिनके स्वागत मेँ खड़ा था.

* * * *

"सर ! आपके इस इमारत 'सद्भावना' मेँ तो मेँ प्रवेश नहीँ कर सकूँगी?"- सनडेक्सरन से आयी महिला बोली. तो अधेड़ व्यक्ति बोला कि अफस्केदीरन !तुम ऐसा क्योँ सोचती हो? अफस्केदीरन बोल पड़ी-"सोचते होँगे आपकी धरती के लोग,आप जानते हैँ मैँ किस धरती से हूँ?" जेटसूट से एक वृद्धा उड़ कर धरती पर आ पहुँची. "नारायण!" वृद्धा को देख कर अधेड़ व्यक्ति बोला- "मात श्री !"फिर नारायण उसके पैर छूने लगा. " मैँ कह चुकी हूँ मेरे पैर न छुआ करो." "तब भी......" नारयण ने वृद्धा के पैर छू लिए. इमारत'सद्भावना' के समीप ही बने अतिथिकक्ष मेँ सभी प्रवेश कर गये. आखिर अफस्केदीरन ने ऐसा क्योँ कहा कि सद्भावना मेँ तो मैँ प्रवेश नहीँ कर सकूँगी? दरअसल सद्भावना मेँ औरतोँ का प्रवेश वर्जित था.क्योँ आखिर क्योँ ?इस इमारत को महागुरु ने बनवाया था. जहाँ उन्होँने अपना सारा जीवन गुजार दिया. उन्होँने ही यह नियम बनाया कि इस इमारत मेँ कोई औरत प्रवेश नहीँ करेगी. यह क्या कहते हो आप ? एक को छोड़ कर सब औरतेँ हैँ. तब भी...... बात तब की है जब महागुरु युवावस्था मेँ थे. वह अपनी शादी के लिए लेट होते जा रहे थे. परम्परागत समाज मेँ लोग तरह तरह की बात करने लगे थे. तब वह मन ही मन चिड़चिड़े होने लगे थे कि कोई लड़की हमसे बात करना तक पसन्द नहीँ करती, हमेँ अपने जीवन मेँ पसन्द करना दूर की बात. सामने वाले पर अपनी इच्छाएँ थोपना क्या प्रेम होता है? सद्भावना मेँ उपस्थित स्त्रियाँ ह्यूमोनायड थे. (…जारी)

मंगलवार, 4 अगस्त 2020

आगामी गुलामी की तैयारी

सन5020ई0!




पृथ्वी से लाखों प्रकाश वर्ष दूर एक धरती सनडेक्सरन।

जहां के मूल निवासी तीन नेत्रधारी व 11फुट लम्बे स्त्री पुरुष।


जहां से भी काफी दूर अंतरिक्ष में एक धरती -भुमसन्दा।
जहां के जंगली इलाका में एक शिविर लगा था।अधिकतर स्त्री पुरुष तीन नेत्रधारी थे। जो किसी किसी रिसर्च पर यहाँ आये हुए थे।


सत्तावाद, पूंजीवाद, माफिया वाद की मिलीभगत ने बार बार इतिहास दोहराया है। 

पृथु महि (पृथ्वी) से भी कुछ स्त्री पुरुष मौजूद थे।

दसलोफीन यवती तीन नेत्रधारी नहीं थी।वह जरूर पृथ्वी की रही होगी।


कदफनेडरीस नाम का युवक तीन नेत्रधारी था। जो शिविर की ओर ही जा रहा था।

दसलोफीन कुछ दूरी पीछे विशाल काय पत्थरों, शिलाओं की ओर थी।


एक शिला पर पृथु महि का नक्शा बना हुआ था।

जिसमें भूमध्यसागरीय क्षेत्र व साइबेरिया क्षेत्र के बीच एक  मोटी सी लाइन खींची दिखाई दे रही थी। जो ताशकन्द  व ककेकस के करीब दो भागों में बंटी थी। जहां पर एक पर्वत व एक कछुआ बना था।


जहां दसलोफीन  उपस्थित थी।



वह मन ही मन सोंच रही थी-ब्रह्मांड में जो भी धरती देखो, मनुष्य ही वहां के विनाश का कारण बना।


आम आदमी अपनी आजादी का भ्रम ही सिर्फ पाला रहा।जब आजाद हुआ तो उसकी पूरी धरती थी।अर्थात उसकी आजादी से पूर्व मानव सभ्यता समाप्त हो चुकी थी।

कुछ लोग तो सन 1947 की भारत आजादी को आजादी को भ्रम समझने लगे थे। सन1947ई0 से सत्तावादियो, पूंजीपतियों व माफियाओं की मिलीभगत सत्ता पर कायम रहने के लिए आगामी तैयारी करने लगे थे।जो आगामी गुलामी की ही तैयारी ही थी।


एक ओर शिला पर पशुपति की उकरी तश्वीर को देख कर -

किसी न किसी रूप में ये शक्ति के दर्शन कहीं न कहीं हो जाते हैं।

पृथु महि पर कहीं ब्रह्मा, विष्णु, महेश ब्रह्मांड की अन्य धरतियों से आये महापुरुष तो नहीं?








रविवार, 7 जून 2020

दसलोफीन के साथ अब क्या होगा?

 "साइरियस से साइबेरिया तक!'
ब्लॉग-'भविष्य:कथांश'पर!
सर जी के भी मन को दाद देनी होगी।

किशोरावस्था से ही वे किसी अज्ञात में खो किसी अज्ञात का ििइंतजार करने लगे थे।

उनदिनों वे हरितक्रांति विद्या मंदिर में कक्षा 07-08 में रहे होंगे।

मन जब अंतर्मुखी होने लगे तो वह अमन हो जाता है, जो अनन्त का द्वार है।तब कुछ कहना ही क्या?


वे दोनों-

दसलोफीन  और कदफनेडरीस !
इनमें से कदफनेदरीस तीन नेत्र धारी एक युवक व दसलोफीन सामान्य युवती,हम लोगों के समाज में जैसी।

दोनों सहचर्य मित्र थे।

वह जहां खड़ी थी, वहां अनेक बूत व चटटाने खड़ीं थीं।
जंगली इलाका था।
युवक उससे दूर जा रहा था।

एक शिला पर पृथु महि का नक्शा बना था।

जिसमें भूमध्य सागरीय क्षेत्र व साइबेरिया क्षेत्र के बीच एक मोटी सी लाइन खींची दिखाई दे रही थी।जो ताशकंद व काकेकश के बीच दो भागों में बंटी थी।जहां पर एक पर्वत व एक कछुआ बना था।

पृथ्वी से लाखों प्रकाश वर्ष दूर एक धरती-सनडेक्सरन ।जहां के मूल निवासी तीन नेत्रधारी व 11फुट लंबे स्त्री पुरुष।

 समकेदल वम्मा!
समकेदल वम्मा का अंतरिक्ष यान एयर पोर्ट से उड़ान भर बिशेष तकनीक से अदृश्य हो ही पाया था कि.

सन5012ई0 की 14 जून!

उसके यान पर हमला बोल दिया गया था।

कुछ कुशक्तियां ऐसी पैदा हो गयी थीं जो विज्ञान व नवीन तकनीकी के माध्यम से विभिन्न देवी देवताओं को बना कर पृथु महि की 85-90 प्रतिशत गरीब जनता को बहलाए फुसलाए थी।

कुछ नकली युग प्रवर्तक भी विज्ञान ने खड़े कर दिए थे।

और-

सन2165ई0!

भारतीय उप महाद्वीप व चीन की भूमि को दो भागों में बांटने की योजना थी।


आखिर सफलता पा भी ली थी कुशक्तियों ने।

24फरबरी 2165ई0 को भूमि तीब्र भूकम्प के साथ चटक गयी थी।


गुजरात के सूरत से हरिद्वार, उत्तर काशी, मानसरोवर होते हुए चीन की भूमि को चीरते हुए उत्तरी कोरिया दक्षिणी कोरिया आदि से होकर इस चटक ने अरब सागर और चीन सागर से होकर प्रशांत महासागर को मिला दिया था।


सोंच से बाहर निकल कर -

दसलोफिन अकेली खड़ी कदफनेडरिस को जाते देख रही थी।

"सुनो,आरदीस्वन्दी से जाकर कहना...।"
दस लो फीन जब बोलने को हुई तो.....!??

ये दोनों अंतरिक्ष में एक 'भुम्सनदा'' नाम की धरती पर थे।

भुम्सनदा धरती के ही जंगल में एक शिविर में आरदीस्वन्दी उपस्थित थी। वह अपनी टीम के साथ यहां आयी थी। जिसमें दस लो फीन व उसका सहचर्य कद फने डरिस भी शामिल था।

इसके बाद?!
दस लो फीन?!
खैर!

इधर इस धरती-पृथु महि पर!
तीन नेत्रधारी बालक हफ़क़दम सन डेक्सरन धरती से आयी युवती फदेसहरर के साथ था।

दोनों एयरपोर्ट पर थे।जो भुम सनदा धरती की ओर रवाना होने वाले थे।


उधर सन डेक्सरन धरती पर!

आर दी स्वंदी कि वृद्ध मां अफ स्केदीर्न दीवार पर आ रहे चलचित्र को देख रही थी।यह चल चित्र भुम सनदा धरती के थे।


अंतरिक्ष में एक क्वासर क्षेत्र!

ये क्वासर क्षेत्र?!


अंतरिक्ष में वह धरती जहां जल ही जल ।

नारायण नाम का एक वृद्ध  जहां एक मत्स्य नारी के साथ जल की लहरों के बीच था।


भुम सनदा धरती पर तेज मूसलाधार बरसात हो रही थी।

अकेली पड़ गयी दस लो फीन के साथ अब क्या होने वाला था?

@@@@@@      @@@@@          @@@@@@    @@@




सूक्ष्म जगत में हमारा वह मिशन पीछे क्यों धकिल गया?

अनेक प्रकाशआकृतियां संग हमारा अमेरिका जाना सूक्ष्म/स्वप्न में हुआ था।


अब..?!

 अप्रैल 2018ई0 से क्या हो गया ?

सूक्ष्म जगत में अनेक स्वपनों में सुधार हुआ है।स्थिति सुधरी है लेकिन अब वह स्वप्न अमेरिका जाने वाला?!उसका दिखना...


चलो, मालिक मर्जी।


लेकिन हमारे लिए 'भविष्य:कथांश'-श्रृंखला का क्या होगा?


क्या ये श्रृंखला अधूरी रह जाएगी?

अब--

भविष्य त्रिपाठी की  आगामी जीवन गाथा का क्या होगा?

उधर-


उधर न्यूमैक्सिको में?!


जून1947 में गिरी उड़नतश्तरीयां की असलियत को आगे कैसे लाया जाएगा?


अमेरिका तन्त्र भी अब मान रहा है कि हां, जून1947 ई0में न्यूमैसिको में उड़नतश्तरीयां गिरी थीं।

हमने #ह्वाइटहाउस की ई मेल पर अनेक मैसेज भेजे हैं।हालांकि उसका परिणाम अच्छा।मिला है।

ऐ कबीरा पुण्य सदन!?

उफ्फ!

सब गड़बड़ा गया।


सन2007ई0 से ही हम अपने मिशन से भटके हैं।


पुरानी आदतें, संस्कार ऐसे धुलने वाले नहीं।

लेकिन---


25 दिसम्बर 2014ई0 !?


चलो, ठीक है।


मालिक की मर्जी!


वक़्त आने दो।

सन2011ई0 से 25 तक का समय विशेष समय है।इस वक्त जो साहस के साथ खड़ा रहा, वही धरती का भोग करेगा।

दुनिया व देश के हालात ऐसे हो जाएंगे जैसे कुत्ते के गले में फंसी हड्डी!व्यक्ति स्तर पर,परिवार व संस्था स्तर पर,समाज स्तर पर.... सब गड़बड़... उलझन, जटिल!जैविक घड़ी चौपट, नियमितता चौपट, संकल्प शक्ति चौपट.....85/90प्रतिशत के साथ ऐसा ही।अमेरिका ,ब्रिटेन आदि देश की व्यवस्था भी चौपट.... आत्मनिर्भर, शिल्पकार, अध्यत्मिक व्यक्ति ही उबरने में।वक्त है, गुजर जाएगा लेकिन....इस वक्त में 85/90 प्रतिशत...!!?
समस्याओं का निदान मानवता व अध्यत्मवाद से ही है।विश्व बंधुत्व से ही है।


इस वक्त आवास की समस्या है।साथ में फैमिली है, इस कारण और भी।


देखते हैं, अब मोदी सरकार आयी है। क्या होता है? सन्तों की माने तो कुछ भी अच्छा नहीं1होने वाला आम आदमी की हैसियत से। अभी तो सफाई होनी है।।सफाई में भी कितना बबाल होता है?

अब आगे-

दस लो फीन?! उस ओर सूक्ष्म अब क्यों नहीं?

चलो, मालिक पर छोड़ते है ।








गुरुवार, 4 जून 2020

क्या विश्व अराजकता व विश्व युद्ध की ओर बढ़ रहा है::युधिष्ठर

सन 5020ई0!
एक इमारत-सद्भावना!चारो ओर जंगल ही जंगल!

दो युवक तीन युवतियों के साथ झाड़ी झंखाड़ को हटाते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे।  सभी के हाथों में भाला थे।


इस जंगल अब भी कुछ आदिवासी अपने को पांडवों के वंशज का मानते हैं।


सब आपस में बात भी करते जा रहे थे।


अब से दस हजार वर्ष पहले विदुर व युधिष्ठर इस शिला पर बैठे परेशान हो रहे थे।


युधिष्ठर!आप भी कहने लगे कि विश्व अराजकता व विश्व युद्ध की ओर बढ़ रहा है? लेकिन ??चलो ठीक है कि दुर्योधन ,शकुनि आदि भटके रास्ते पर हैं लेकिन आप लोगों का क्या कर्तव्य है?


हम पांडव तो पांच गांव लेकर ही सन्तुष्ट होने को तैयार है लेकिन....



ये लेकिन वेकिन क्या?संसार आपको धर्मराज व सत्य वादी कहना शुरू कर रहा है और आप?


सन2020 ई0 में भी ?


सन2020 ई0 में भी धर्म ,सन्यास, सन्त, आध्यत्म, सनातन ,राज धर्म आदि के नाम पर....



हूँ!अराजकता, गरीबी, बेरोजगारी, गृहयुद्ध, विश्व युद्ध आदि में...


सद्भावना -ये इमारत?!

 मांसाहार की जड़े बड़ी गहरी हैं।जो मांस का जीभ से स्वाद नहीं लेते है,वे अन्य इंद्रियों से स्वाद ले रहे हैं, ले रहे थे।

मंगलवार, 11 फ़रवरी 2020

साइबेरिया में लेनिन::अशोकबिन्दु

साइबेरिया में लेनिन!!
@@@@@@@@@@@@


 सन 1903 ईस्वी !

बोल्शेविक कल की स्थापना का समय !

रूस भर में इतने ही लोग?

 सर! ये सिर्फ प्रतिनिधि हैं अपने अपने क्षेत्र से ।

आप सब जानते हैं लगभग 4 साल हम साइबेरिया में निर्वासित थे।

 यस सर !

व्लादिमीर इलिच उलियानोव लेनिन को सन 1895 ई0 गिरफ्तार करके सेंट पीटर्सबर्ग की जेल में भेज दिया गया था।
 निकोलस द्वितीय रूस का शासक जार था, जिसने उदारवादी विचारों पर प्रतिबंध लगा दिया था।
 विश्वविद्यालय पर भी नियंत्रण बढ़ा दिया गया था।
 हजारों लोगों को देश निकाला दे दिया गया था।
 उसने सैकड़ों निर्दोष व्यक्तियों को जेलों में डाल दिया था।
 रूस की जनता त्राहि-त्राहि करने लगी थी ।
किसानों की दशा दयनीय हो चुकी थी ।
मजदूरों में असंतोष व्याप्त हो चुका था
संत 18 83 ईसवी में जयाजीं  प्लेखानोवा ने रूसी समाजवादी लोकतांत्रिक पार्टी की स्थापना की थी.समाजवाद का प्रचार पूरे रूस में तेजी से फैल रहा था...



इधर सन 1896 ई0 में साइबेरिया ????प


साइबेरिया में........



वो एलियन्स ???!!!
एलियन्स के लिए  साइबेरिया की धरती  सदियों से परिचित रही थी....

इस बार.....????



लेनिन साइबेरिया की धरती से अनन्त शक्तियों का अहसास कर रहा था!!!



खैर!!!!




इधर राय पुर, फरुखाबाद से.....????



@@@@@@@@@@@@@





सन  1905ई0 !

बंगाल में लार्ड कर्जन द्वारा विभाजन!!!


 उधर रूस जापान युद्ध में रूस की पराजय!!

इस पराजय के बाद रूस की जनता में असंतोष की लहर उत्पन्न हो गई दूसरी ओर मजदूरों तथा आम लोगों में गरीबी के कारण आक्रोश बढ़ रहा था मजदूरों ने 22 जनवरी 1905 ईस्वी को रविवार के दिन 11 मांग पत्र चार्टर जार को प्रदान करने का निर्णय किया..

लगभग 1 लाख 50,000 मजदूर पादरी गोपन के नेतृत्व में अपनी मां को को लेकर सेंट पीटर्सबर्ग में स्थित शाही महल की और चल दिए दूसरी ओर जार निकोलस द्वितीय सैनिकों ने निहत्थे मजदूरों पर गोलियां चला दी 1000 से भी अधिक मजदूर मारे गए यह घटना रूस के इतिहास में खूनी रविवार के नाम से जानी जाती है..शीघ्र ही मजदूरों ने पूरे देश में हड़तालें कर दीं.. इस प्रकार प्रशासन का कामकाज डप्प हो गया.30अक्टूबर 1905 को जार ने क्रांतिकारियों के दमन के साथ साथ सुधारों की घोषणा करके क्रांति को दबा दिया.. ये क्रांति असफल तो जरूर हुई लेकिन सन 1917 की क्रांति का रास्ता खोल दिया..


   रूसी क्रांतिकारियों के उद्देश्य थे किसानों को भू स्वामित्व ,उद्योगों पर मजदूरों का नियंत्रण, समाजवादी व्यवस्था की स्थापना, समानता का समर्थन ,शांति की स्थापना आदि  ।


वो पादरी????


पादरी गोपन कौन????



साइबेरिया, अरुणाचल आदि क्षेत्र के साथ हम अपने सूक्ष्म को कुछ प्रकाशकृतियो के साथ रूस में पाते रहे हैं,आखिर????