मनुष्य जातिवाद/मजहबवाद/संस्था वाद/आदि के लिए नहीं है.
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
प्रकृति अभियान को समझिए....चेतना/ईश्वर के अभियान को समझिए.मनुष्य स्वयम क्या है?वह प्रकृतिअंश व ब्रह्म अंश है.हम प्रकृतिअंश व् ब्रह्मअंश हैं. प्रकृतिअंश व ब्रह्मअंश में समसम्मान/समअस्तित्व(श्री अर्धनारीश्वर अबधारना) बिना हमारा क्या है?तुम्हारी कृत्रिम सोंच/व्यवस्था/वस्तुएं /आदि कब तक चलेंगी?जो क्षणभंगुर है,उसमें रमने से क्षणभंगुर आनन्द/वस्तुओं /भूत योनि आदि की सम्भावनाओं को प्राप्त होंगे.....देव/आत्मा/आदि स्तर को नहीं....कुरुशान(गीता) में भी श्री कृष्ण कहते हैं--- तू जिसमें लीन(भजे गा) लीन होगा,उसको ही प्राप्त होगा.इसलिए अपने मन का भी प्रवन्धन करो.तनप्रवन्धन से ही सिर्फ भला नहीं होने वाला. और फिर हम मन के 10 भाग में से भी 01 भाग सही से इस्तेमाल नहीं करते.
---------------------------------------
स्तर | प्राकृतिक | साधना
---------------------------------------
स्थूल|काम | ब्रह्मचर्य
---------------------------------------
भाव |भय | अभय
|घृणा | प्रेम
|क्रोध | करुणा
|हिंसा | मैत्री
---------------------------------------
सूक्ष्म |सन्देह | श्रद्धा
| बिचार| विवेक
---------------------------------------
मनस |कल्पना|सङ्कल्प
|स्वप्न |अतीन्द्रिय
| | दर्शन
---------------------------------------
हमारे अंदर भी नगेटिव- पजटिव अर्थात स्त्री -पुरुष अर्थात प्रकृति- ब्रह्म होता है.अतः योग से हम आंतरिक सम्भोग(सम अस्तित्व/समसम्मान/आदि) की दशा भी पा सकते है. जिसके बाद हम अपने अचेतन मन (कल्प वृक्ष/कामधेनु) को पा कर अपनी कामनाओं को पूर्ण कर सकते हैं.
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
प्रकृति अभियान को समझिए....चेतना/ईश्वर के अभियान को समझिए.मनुष्य स्वयम क्या है?वह प्रकृतिअंश व ब्रह्म अंश है.हम प्रकृतिअंश व् ब्रह्मअंश हैं. प्रकृतिअंश व ब्रह्मअंश में समसम्मान/समअस्तित्व(श्री अर्धनारीश्वर अबधारना) बिना हमारा क्या है?तुम्हारी कृत्रिम सोंच/व्यवस्था/वस्तुएं /आदि कब तक चलेंगी?जो क्षणभंगुर है,उसमें रमने से क्षणभंगुर आनन्द/वस्तुओं /भूत योनि आदि की सम्भावनाओं को प्राप्त होंगे.....देव/आत्मा/आदि स्तर को नहीं....कुरुशान(गीता) में भी श्री कृष्ण कहते हैं--- तू जिसमें लीन(भजे गा) लीन होगा,उसको ही प्राप्त होगा.इसलिए अपने मन का भी प्रवन्धन करो.तनप्रवन्धन से ही सिर्फ भला नहीं होने वाला. और फिर हम मन के 10 भाग में से भी 01 भाग सही से इस्तेमाल नहीं करते.
---------------------------------------
स्तर | प्राकृतिक | साधना
---------------------------------------
स्थूल|काम | ब्रह्मचर्य
---------------------------------------
भाव |भय | अभय
|घृणा | प्रेम
|क्रोध | करुणा
|हिंसा | मैत्री
---------------------------------------
सूक्ष्म |सन्देह | श्रद्धा
| बिचार| विवेक
---------------------------------------
मनस |कल्पना|सङ्कल्प
|स्वप्न |अतीन्द्रिय
| | दर्शन
---------------------------------------
हमारे अंदर भी नगेटिव- पजटिव अर्थात स्त्री -पुरुष अर्थात प्रकृति- ब्रह्म होता है.अतः योग से हम आंतरिक सम्भोग(सम अस्तित्व/समसम्मान/आदि) की दशा भी पा सकते है. जिसके बाद हम अपने अचेतन मन (कल्प वृक्ष/कामधेनु) को पा कर अपनी कामनाओं को पूर्ण कर सकते हैं.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें