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गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

अब घबराना क्या?ओ3म - आम��न!

एक चमकीला अण्डाकार पारदर्शी पत्थर ! जो कि जो कि उच्चस्तरीय सम्वेदी सुपर कम्पयूटर पीढी का था.पारदर्शी दीवारों से बने एक पिरामिड के अन्दर एक पारदर्शी टेबिल पर वह रखा था.जिस पर निगाहें थीं-सनडेक्सरन धरती निबासी तीन नेत्रधारी युवती 'आरदीस्वन्दी 'की .'त्राटक' योग मेँ बैठी वह - " ओ3म आमीन तत सत! " की बारम्बार उच्चारण कर रही थी.



कुछ समय बाद उस अण्डाकार पारदर्शी पत्थर के अन्दर विभिन्न रंग के प्रकाश किरण उभरना प्रारम्भ हुईं.उन रंगीन प्रकाश किरणों ने तश्वीरों का रूप धारण कर लिया.अन्तरिक्ष के बीच 'सनडेक्सरन' धरती की तश्वीर उभरी.



और....


एक तीन नेत्रधारी बालिका-'सहक्न्न' जो कि क्रोध मेँ थी.एक बर्फीला मैदान.......'सहक्न्न' का यान अब बर्फीले मैदान के ऊपर आकाश में था.कुछ मिनट बाद बर्फीली पहाड़ियां आना प्रारम्भ हो गयीं,जिसके बीच से अपना यान बड़ी आसानी से निकालते हुए आगे जा कर एक स्थान पर उतार दिया.यान से बाहर आते हुए-"कक्लेश्श ककइ जजएया! " जयघोष के साथ वह आगे बढ़ गयी.




यह क्या....?!


पृथु मही पर स्थित कैलाश पर्वत की भांति यह सामने का पर्वत !



वह उस पर्वत की ओर बढ़ी.वह जो स्पेशल सूट पहने हुई थी,जिस पर अनेक रंग बिरंगी रोशनी करते मटर के दाने के बराबर उभार थे.सूर्य चक्र स्थान से एक स्वीच आन हुआ और सामने पर्वत के एक हिस्से की बर्फ पिघलने लगी.बर्फ पिघलते ही एक गुफा नजर आने लगी.गुफा के अन्दर एक मूर्ति-'एक तीन नेत्रधारी की जिसके एक हाथ मेँ अजगर दूसरे हाथ मेँ दूज का चन्द्रमा ' .

'सहक्न्न' कुछ समय तक मूर्ति के सामने आँख बन्द कर खड़ी रही.पृथु मही के समयानुसार लगभग आधा घण्टा और वहाँ के बारह दिन बाद उसने अपनी आँखे खोलीं.



अब वह शान्त भाव मेँ थी.



दाहिने ओर गुफा के अन्दर ही एक और गुफा......दाहिनी ओर मुड़ कर वह उस गुफा मेँ प्रवेश कर गयी.....और एक चौकोर काले पत्थर पर रखी एक पाण्डुलिपि को उठाती है,उठाती है तो.....?!



"जजएया कक्ल एश्श ! "
- जयघोष के साथ गुफा से बाहर आगयी.बर्फीली चोटियों का तेज कम्पन से हिल रही थीं. उसका यान हिमखण्डों से ढक चुक था.


कुछ देर बाद पुन: अन्दर वाली गुफा मेँ आकर पाण्डुलिपि के पन्नों को पलटते हुए -


" न जाने यह किस भाषा मेँ लिखी गयी है ? पुरातत्वविदों के अनुसार इसे सम्भवत: पृथु मही के समयानुसार ईस्वी बाद छठी या सातवीं शताब्दी में लिखा गया है?"



इधर पृथु मही पर-




14 अगस्त 1947 !

इस तारीख को समाप्त होने मेँ अभी लगभग पैँतालीस मिनट कम थे.एक कमरे मेँ एक कुर्ताधारी युवा नेता बेचैनी के साथ कमरे मेँ टहल रहा था कि कमरे का दरबाजा खुला तो -



" क्या खबर लाये हो ? बात में कितनी सच्चाई है? "




आने वाला युवक एक मुसलमान था.



"सर! खबर सत्य है.देश की आजादी ......."



- कि पाँच शस्त्रधारी तेजी से अन्दर आ घुसे और दोनोँ को जबरदस्ती पकड़ कर बाहर खींच लाये. बाहर भी पाँच शस्त्रधारी व्यक्ति खड़े थे.जंगल में ले जाकर दोनों की हत्या कर दी गयी.



"साले ,बड़े ईमानदार बनते थे . सुभाष को छोड़ो , पटेल अम्बेडकर शायद ही सन पचास तक बच सकें? "




सभी हत्यारे जंगल से चले गये लेकिन.......'सनडेक्सरन ' धरती के तीन निवासी अपने अण्डाकार यान से उतर कर टहल रहे थे कि दोनोँ लाशों को देख कर एक लाशों को स्पर्श करते हुए -

"यय्ह्ह त्त अअभ्भ जज्लल्द मर् र ! "

अर्थात यह तो अभी जल्दी मरे हैं.

* * *



'आरदीस्वन्दी' की निगाहें अब भी अण्डाकार पारदर्शी पत्थर पर थीं.जिस पर स्पष्ट था कि तीनों सनडेक्सरन निवासी दोनों हिन्दुस्तानी नेताओं की लाशों को ले कर पृथु मही को छोड़ कर अपने यान से अन्तरिक्ष में यात्रा पर थे.



"यह तीनों तो - कन्कनेरसु,सस्कनपल और हह्नसरक हैं लेकिन यह जा कहाँ रहे हैं ? यह.... यह..... यह तो.............जरुर यह'हा हा हूस 'पर जा रहे हैँ. "



"सावधान ! " - 'आरदीस्वन्दी' के अन्त : कर्ण मेँ यह आवाज गूँजी.



"यहाँ,यहाँ ऐसा .......?! कोई सुपर माइण्ड है ?कौन.... ? "



अण्डाकार पत्थर पर उभरने वाली तश्वीरें विलीन हो चुक थी.


'आरदीस्वन्दी' अन्त:मुख अर्थात मन ही मन बोली-"कौन हैँ आप?"



आरदीस्वन्दी के अन्त:कर्ण में-



"सब पता चल जाएगा.चली आओ मेरी इन ध्वनि तरंगों के आधार पर मेरे पास. "



"क्या?"


"घबराओ मत!ओ3म आमीन!"



"ओ3म आमीन....?!"फिर आरदीस्वन्दी मुस्कुरायी.



"आती हूँ!अब घबराना क्या?ओ3म आमीन! "



* * *



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