फील्ड जहां तहां विद्यार्थियों के झुंड बैठे हुए थे।
'भविष्य::कथांश'- नाम की एक पुस्तक एक विद्यार्थी के हाथ में थी। "यह पुस्तक हमारे 'सर जी'- ने लिखी है।"- वह विद्यार्थी बोला जिसके हाथ में यह पुस्तक थी।
एक लड़की ने उसके हाथ से पुस्तक ले ली।
'लेखक परिचय'- पृष्ठ पर नजर डालते हुए वह छात्रा बोली-"अरे, यह सर जी का तो जन्म स्थान-ददिउरी सुनासीर?यह तो हमारे गांव के ही समीप है।"
"तुम्हारा गांव कौन सा है?"
" मोहिउद्दीनपुर।"
फिर वह छात्रा खामोश हो कर उस पृष्ठ को पढ़ने लगी।
इधर कालेज के गेट की ओर ऑफिस की तरफ एक अधेड़ व्यक्ति को एक युवक के साथ खड़ा हुआ देखकर एक विद्यार्थी बोला -" अरे, सर जी तो यही है। अच्छा,उन्होंने एम ए फाइनल इतिहास का फार्म यही से भरा था।साथ में आशांक सर हैं।"
फिर वह विद्यार्थी उठ कर चल दिया।
"सर जी से मिल लें।"
"ओह, यह...?!" -वह छात्रा के मुख से निकल गया।
"क्यों ,क्या बात?!"
"बस, यूं ही...?!"
कल सर जी ने फेसबुक पर जो पोस्ट की ,वह मानवता का मार्मिक दर्द है। 14अगस्त से दुनिया में कोई यह।मैसेज देने को तैयार नहीं है कि कैसे हथियारों के होड़ व भावी युद्ध की विभीषिका से बचा जाए?
और उधर एलियन्स..?!
एलियन्स भी परेशान हो उठे हैं, इस पृथु महि पर मानव सत्ता की दशा व दिशा को लेकर।जो कि पूरे सौर परिवार को ही नहीं पूरे ब्रह्मांड को प्रभावित कर रहा है।
और-
सन 1993ई0!!
अशोक अब युवा हो चला था।
उसने डायरी उठायी, जिसे वह पलटने लगा।
डायरी में एक पृष्ठ पर उसकी निगाहें रुक गईं।
जिसमें उसने लिख रखा था--
एक विशाल कक्ष!
इस विशाल कक्ष के मध्य एक विशाल टेबिल पर - सहकन्न की लाश उपस्थित थी और एक परखनली सहित परखनली स्टैंड एक शीशे के गिलास एवं कुछ अन्य सामिग्री रखी थी।
कुछ समय पश्चात रोबेट उस टेबिल के पास आकर कुछ समय के लिए रुकता है फिर वहां से चला जाता है।
लगभग एक घंटा बाद एक गुफा से बाहर आकर रोबोट बाहर खड़े डायनासोर के मुख में प्रवेश कर जाता है।
-- अशोक यह अपने मकान की छत पर पड़ी चारपाई पर बैठा सोच रहा था और जैसा कि पहले स्पष्ट हो चुका है इससे पूर्व सोंच को किशोर अशोक अपने छत पर पड़े छप्पर के नीचे पड़ी चारपाई पर लेटे लेटे अपने ख्यालों में ले आया था।
बरसात समाप्त हो चुकी थी।
अशोक ने एकाएक अपनी निगाहें आसमान पर डालीं-आसमान साफ था। वह बाहर चारपाई डाल कर लेट गया।और सो गया।
-और फिर स्वप्न में!
भयावह अंधेरी रात में तेजी के साथ ठोकरें खाते खाते गिरते जाते जैसे तैसे भागते आगे बढ़ता जा रहा था।भागते भागते पीछे मुड़ भी वह (यानी कि किशोरावस्था का अशोक) देखता जा रहा था- पीछे एक विशालकाय जंतु उसके पीछे दौड़ता आ रहा था।
..........अब वह जाए तो कहां जाए आगे सर्पों का के समूह और पीछे वह विशालकाय जंतु (डायनासोर).......वह जिस पेड़ पर चढ़ा था उसकी एक टहनी पर एक विशालकाय अजगर!
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पृथु महि पर मानव सत्ताएं?!
सर जी कहते रहे हैं कि इस दुनिया में सबसे खतरनाक प्राणी है - मानव, क्योंकि उसमें इंसानियत है ही नहीं।दो प्रतिशत से भी कम मानव होमोसेपियन्स प्रजाति का है।सभी अभी आदम प्रवृति में ही जीते हैं।
आज कल क्या हो रहा है?अफगनिस्तान में अमेरिका के पलायन और तालिबान के शासन के बाद पूरी दुनिया हथियारों की होड़ व भावी विश्व युद्ध में ही जी रहा है।
मुंबई में अमिताभ बच्चन एक बच्ची के साथ खेल रहे थे।
सामने स्क्रीन पर उनकी निगाह गयी।
एक न्यूज चैनल मोदी के जन्मदिन पर एक कार्यक्रम को दिखा रहा था।
वह सोफे पर बैठ कर ट्यूटर पर कमेंट्स देखने लगे।
एक कमेंट्स को देख कर वह मुस्कुरा दिए।
"मैं हूँ आपके आसमां का ही सितारा,
विश्वास है चमकूँगा आपके ही रोशनी से।"
उन्हें एक नई फिल्म के लिए ऑफर आया था, जिसके लिए एक फाइल मेज पर रखी थी।
वह उस फाइल को उठा कर देखने लगे।
उस फाइल को पढ़ते - पढ़ते वे गम्भीर हो हो गए । जिसमें एक बुजुर्ग के जीवन को दर्शाया गया था।
अचानक उनका ध्यान ट्यूटर पर उनकी एक एक पुरानी पोस्ट की ओर गया।जिस पर किसी की कमेंट को ....?!
फाइल मेज पर रख कर वह ट्यूटर पर उस पोस्ट को देखने लगें। वह पोस्ट तो मिल गई लेकिन ..?!वह कमेंट गयाब?!
"वह कमेंट उसने हटा क्यों दिया?!"
वह किसी सोंच में पड़ गए।
"हम भी बुढ़ापे पर?!नींद में उस तरह का स्वप्न... वह कमेंट... और अब यह फ़ाइल....?!अब विधाता हमसे क्या करवाना चाहता है?हमें इस फ़िल्म पर ओके कर देना चाहिए क्या?!"
मैं (लेखक) बेचैनी के साथ कमरे में इधर उधर टहल रहा था।
"हम भी न जाने कितना इधर उधर का सोंचते रहते हैं?"
रात्रि के 11.35pm बज रहे थे।
"मालिक, तेरी मर्जी।बैसे तो जीवन जीना मुश्किल हो जाता है। ये इच्छाएं ही दुःख का कारण हैं, गुलामी, मजबूरी का कारण है। असमर्थतता परेशान कर देती है।ये होना चाहिए, वो होना चाहिए ....हूँ!लेकिन सामर्थ्य क्या है? इसलिए निरन्तर अभ्यास चाहिए।आदतें ही जीवन को बेहतर बनाती हैं और आदतें ही जीवन को मुश्किल में लाती हैं।निरन्तर अभ्यास में रहना जरूरी है।मालिक, तू ही जाने।"
और---
रुतबा?!
तुम, तुम्हारे ठेकेदार, तुम्हारे बच्चे किसकी नजर में रुतबा दिखाना चाहते हैं? अफसोस, जो तुम्हारे बच्चे विद्यार्थी का चोंगा ओढ़े विद्यालय में, क्लास में,शिक्षकों के सामने बैठते हैं तो किस रुतबा में बैठते हैं?किस रुतबा में हरकतें करते हैं?
कुदरत से बढ़ कर तुम व तुम्हारे बच्चे नहीं हो सकते।ईश्वर से बढ़कर तुम व तुम्हारे बच्चे नहीं हो सकते। कुदरत व ईश्वर के सामने तुम्हारी सारी धारणाएं, मनसूबे, रुतबा काम आने वाला नहीं।कोई गबाही काम आने वाली नहीं?!
हम कोशिस करते रहे हैं, सिर्फ कुदरत व ईश्वर को साक्षी मान कर कार्य करने की।
हमारे शिक्षण का 26 वां वर्ष 01 जुलाई 2021 से शुरू हो चुका है।इस बीच हमने अनेक कहानिया सजोई है।बस, सजोने वाला चाहिए।हर पल, हर जगह वे बिखरी पड़ीं है।बस, सजोने वाला चाहिए। जो हमने अनेक वेबसाइड में सुरक्षित कर रखी हैं।
हमने जीवन महसूस किया है।समाज, परिवार संस्थाओं में कुछ लोग अपने स्तर से कुदरत व खुदा के दरबार में बेहतर होते हैं।लेकिन समाज,परिवार, संस्थाओं में जातिवादियों, मज़हबीयों, हांहजूरों,चाटुकारों, चन्द् रुपयों की खातिर, झूठा रुतबा आदि के लिए जीने वालों के बीच निर्दोष होकर भी दोषी साबित हो जाते हैं।
चरित्र समाज, समाज, संस्थाओं की नजर में जीना अलग होता है।कुदरत व खुदा, महापुरुषों आदि की नजर में जीना अलग होता है।
हमें दुःख होता है जो माता पिता, गुरुजनों, शिक्षको के सामने रुतबा दिखाते हैं। हमने देखा है, जो आगे चल समाज में महानता का पथ चूमे हैं वे माता पिता,गुरुजनों,शिक्षकों के प्रति उदार, नम्र हुए हैं।अफसोस है कि आज नई पीढ़ी में अब समीकरण बदल रहे है।
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