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सोमवार, 25 अप्रैल 2011

गोधन के लिए संघर्ष!

गरीब तबके के लोग एक परिवार से संघर्ष करके एक गाय को अपने कबीले मे ले आये थे.


बालक फदेस्हरर बोला -" एक गाय के लिए मानव मानव के बीच संघर्ष ? "

"इतनी ही अक्ल होती तो बात ही फिर दूसरी होती.हर सृष्टि के बाद ऋग्वैदिक काल मे आर्य विद्वान एक 'आर्ट आफ लिविंग' देते हैं लेकिन मानव आगे चल कर साम्प्रदायिकता , सत्तावाद व पूंजीवाद की कठपुतली बन कर रह जाता है . 21 मई 2011ई0 के दो माह पूर्व लगभग! दिन गुरुवार 24 मार्च रंगपंचमी पर्व,दोहा नदी के तट पर स्थित एक शहर अंगदीय(शाहजहाँपुर) के समीप स्थित एक कस्बा ईश गढ़ (खुदागंज) मे यह पर्व बड़ी धूम से मनाया जा रहा था.जहां स्थित एक देवि स्थल पर अपने धरती के कुछ व्यक्ति अपने सूक्ष्म शरीर मे उपस्थित थे. इसी धरती के निबासी चर्चा कर रहे थे. "



* * * *

खुदागंज का ही एक देवि स्थल के प्रांगण मे एक पीपल वृक्ष के नीचे-



"आदिकारण श्रीनारायण अर्थात ईश्वरीय तत्व से ही है सब कुछ."


"सब कुछ कैसे ? वर्तमान के प्रलय काल के लिए तो मनुष्य दोषी है ! मनुष्य से क्या प्रकृति प्रभावित नही होती ? "


" प्रकृति ही प्रकृति को प्रभावित करती है .मनुष्य जो करता है वह अपनी ऐच्छिक व शारीरिक आवश्यकताओं वश चेष्टाएं करता है.कर्म तो आत्मा से होते है. "



"रेडियोएक्टिव प्रदूषण से बचने के उपाय तो होंगे ? जापान मे देखो क्या चल रहा है,रेडियशन से क्या उपाय हो सकते हैं गरीब व्यक्ति के सामने ? "



"आध्यात्मिक ज्ञान के साथ साथ योग,कलर थेरेपी सुगन्ध थेरेपी प्रकाश थेरेपी आदि,गाय का गोबर मूत्र दूध घी आदि...और आत्मबल."



"गाय के गोबर से लिपी जमीन दीवारों पर रेडियेशन का प्रभाव नहीं पड़ता."


"हमारे पूर्वजों ने कहा था कि गाय के सींगों पर पृथ्वी टिकी है,तो इसका मतलब क्या है? यहां गाय के सींगों से मतलब गाय के सम्मान से है."



"भविष्य में बचे खुचे मनुष्यों के द्वारा गाय का सम्मान एक मजबूरी हो जाता है.गोमूत्र तो मनुष्य के प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का अच्छा उपाय है ही,रेडियेशन आदि के कारण कैंसर होने की संभावना समाप्त करता है."



"इस पर अब तो अनेक वैज्ञानिक शोध भी सामने आये हैं."



"यदि बाल्यावस्था से ही मनुष्य गौमूत्र व उसके दूध से बने उत्पाद के साथ साथ आयुर्वेद आदि को दिनचर्या का हिस्सा बना लिया जाए तो मनुष्य अपनी उम्र व स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं से उबरा रह सकता है. "




"गौरबशाली भारत का इतिहास घर घर मे गाय पालन व सम्मान का इतिहास था."



" रुसी वैज्ञानिक सिरोविच ने कहा है कि आण्विक विकरण से रक्षा पर अपने प्रयोग के दौरान पाया कि गाय के घी की अग्नि में आहुति देने पर उसकी जो सुवास निकलती है वह जहाँ जहाँ तक फैलती है उससे सारा वातावरण आण्विक विकरण से मुक्त हो जाता है. "



" शायद हजरत मोहम्मद साहब ने भी कहा है कि गाय का दूध गिजा है,घी दबा है और गोस्त बीमारी है . "



" हमने सुना है कि दिवाकर अपना घर बच्चे छोंड़ मांड् या चला गया है. "



" सही ही सुना है."



"जब बाबा ही बनना था तो शादी क्यों की ?"



"क्या गृहस्थ सन्यासी नहीं हो सकता ? और फिर पहले अपने परिवार को मना कर वह सन्यासी बना.साल मे दो तीन बार घर आता भी रहता है."



"हाँ,बात गोधन की हो रही थी.सर जी के साहित्य से पता चलता है कि जीवों वनस्पतियों की प्रजातियां खत्म हो रही हैं ऐसे में दो तीन हजार वर्ष बाद गोधन को पाने की लालसा मे संघर्ष तेज हो सकते है ."



अब इकसठवीं सदी-



युवती फदेस्हरर व बालक हफ्कदम एक तिब्बती अधेड़ स्त्री के साथ पैदल ही समुद्र तट के विपरीत दिशा में आगे बढ़ते जा रहे थे . मत्स्य मानव की विशालकाय प्रतिमा पीछे ही छूट गयी थी.



दायीं ओर कुछ लोग गाय को लेकर झगड़ रहे थे.जब उन्होने इन तीनो को देखा तो कुछ पल के लिए स्थिर हो गये.
जब तीनों उधर ही बढ़ गये तो वे सब शान्त भाव से इधर ही बढ़ चले.


* * * *




युवती फदेस्हरर व बालक हफ्क्दम तिब्बती अधेड़ स्त्री के साथ मिट्टी से बने एक चौकोर चबूतरे पर बैठे हुए थे . कबीला के लोग सामने जमीन पर बैठे थे .गाय को घेरे कुछ दबंग युवक खड़े थे.
इस गरीब कबीला के कुछ लोग गाय को चुरा कर ले तो आये थे लेकिन फिर यहां गाय के दूध ,मूत्र व गोबर के इस्तेमाल को लेकर आपस मेँ झगड़ पड़े थे.



फदेस्हरर गाय को घेरे दबंग युवकों से बोली-



"आप सब को अब भी सीख नहीं लेनी अपने पुरखों की करतूतों से.मानव शक्ल हो सब ,सनातन महापुरुषों के सम्मान में कुछ तो करो.आपके परिजन सामर्थ्यवान है,बस इतना ही काफी है ? इन गरीबों को आप सब बन्धुआ तो रख सकते हो लेकिन इनके बच्चों के लिए गोरस की व्यवस्था क्यों नहीं? वीर भोग्या बसुन्धरा!यदि यह बिचारे गरीब अपने बच्चों के जीवन के लिए वीरता दिखाते है तो इसके लिए सिर्फ यही दोषी न."

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