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गुरुवार, 5 नवंबर 2020

साइबेरिया की प्रयोगशाला से!

  साइबेरिया के जंगलों के बीच एक प्रयोगशाला।

तीन नेत्रधारी दो युवक रूस की एक युवती के साथ बैठे थे।

सामने डिजिटल बॉल पर चल चित्र आ रहे थें।

चलचित्र में---


ईशा पूर्व लगभग 567 वर्ष।

तब एक पांच छह साल का बालक?जिसे कोई 'प्र-ओत', तो कोई 'प्रा-ओटा' पुकारते थे।

वह समुद्री तट?!


समुद्र में समुद्र की ऊंची ऊंची कुश्ती लहरों के बीच एक नौका में आंख बंद पड़ी वेदों की छोरियां सुना जाता है की वे दोनों की छोरियां भारत से आई थी समुद्री लुटेरों ने एक जहाज को लूटा था वह जहाज कलिंग राज्य भारत के किसी बंदरगाह से चला था और समुद्र में लूट लिया गया जब यह जहाज भारत से चला था तो दोनों किशोरियों बालिका थी उन्हें किसी व्यापारी ने बेच दिया था कुछ व्यक्तियों के साथ बे बालिकाएं भी समुद्र में कूद गई थी उस जहाज से लूट के दौरान आग भी लग गई थी बेहोशी हालत में दोनों एक द्वीप के तट पर लग गई थी जब होश आया तो कुछ समय उनके परेशानी और बेचैनी में बीता घास फूस पत्ते खाकर काम चलाया ।

उन्हें ध्यान आया की उनकी मां मुसीबत के समय आंख बंद करके बैठती थी और मन ही मन बुदबुदा टी  थी हमारी कोई समस्या नहीं है हम तो दिव्य प्रकाश से भरे हैं जिसके प्रभाव हमारे सारे विकार नष्ट हो रहे हैं दोनों उस टापू पर अधिकतर समय ध्यान में बिताते थी लगभग 5 साल बीत गए 1 दिन समुद्री तूफान आया जिसमें वह दोनों बहे गई जब तूफान शांत हुआ तो उन पर कुछ मछुआरों की निगाह पड़ी एक सन्यासी ने अपनी झोपड़ी में उसे आश्रित दिया बड़ी को  प्रे फेस नाम से व छोटी को प्रेमबल नाम से पुकारा जाने लगा। दोनों के बीच पांच छह वर्षिय प्रोटागोरस कुछ समय के लिए खेलने लगा और ध्यान करना भी सीखा।

"पूर्व के सन्तों को नमन!"



उस भूमिगत एलियन्स प्रयोगशाला, साइबेरिया में उस चलचित्र से अपना ध्यान हटा कर  समकेदल वम्मा के बारे में सोचने लगी।


समकेदल वम्मा...?!

सन 5012ई0 का ही शायद समय था...

....सम्कदेल वम्मा मुश्किल मेँ था.अब कैसे यान को वह आगे निकाले?दुश्मनोँ के यान से छोड़ी जा रही घातक तरंगे यान को नुकसान पहुँचा सकती थी.ऐसे मेँ उसने अनेक धरतियोँ पर उपस्थित अपने सहयोगियोँ से एक साथ सम्पर्क साधा.


"मेरे यान को घेर लिया गया है."


सम्कदेल वम्मा के सहयोगियोँ के द्वारा अपने अपने नियन्त्रण कक्ष से अपने अपने कृत्रिम उपग्रहोँ मेँ फिट हथियारोँ से दुश्मन के यानोँ पर घातक तरंगे छोड़ी जाने लगीँ.अनेक यान नष्ट भी हुए.


लेकिन....?!


सम्कदेल वम्मा के यान मेँ आग लग गयी .


"मित्रोँ!सर! यान मेँ आग लग गयी है. दुश्मनोँ के यानोँ से छोड़ी जाने वाली घातक तरंगोँ से मेरा यान अब भी घिरा हुआ है. कोई अपने कृत्रिम उपग्रह से पायलटहीन यान भेजेँ . लेकिन.....?!मैँ......मैँ... ....मैँ.....आ.....आ...(कराहते हुए) आत्मसमर्पण करने जा रहा हूँ."

फिर सम्कदेल वम्मा ने सिर झुका लिया.


सम्कदेल वम्मा ने अपने बेल्ट पर लगा एक स्बीच आफ कर दिया.जिससे उसके ड्रेश पर की जहाँ तहाँ टिमटिमाती रोशनियाँ बन्द हो गयीँ. इसके साथ ही यानोँ से घातक तरंगोँ का अटैक समाप्त हो गया और जैसे ही उसने अपने यान का दरवाजा खोला एक विशेष प्रकार की चुम्बकीय तरंगोँ ने उसे खीँच कर दुश्मन के एक यान मेँ पहुंचा दिया.वह यान के बन्द होते दरबाजे की ओर देखने लगा.

"दरबाजे की ओर क्योँ देख रहे हो?" 


"तुम?!"


"हाँ मै,तुम हमसे दोस्ती कर लो.मौज करोगे."


"मेरा मौज मेरे मिशन मेँ है." 


" हा S S S S हा S S S S हा S S S हा S S S S हा S S S " -  ठाहके लगाते हुए.

फिर-

"धर्म मेँ क्या रखा है? जेहाद मेँ क्या रखा है ? ' जय कुरुशान जय कुरुआन' का जयघोष छोड़ो.'जय काम' बोलो 'जय अर्थ' बोलो.जितना 'काम'और 'अर्थ'मेँ मजा है उतना 'धर्म'और 'मोक्ष'मेँ कहाँ ? 'काम'और'अर्थ'की लालसा पालो,'धर्म'और 'मोक्ष' की नहीँ."


"तुम मार दो मेरे तन को.तभी तुम्हारी भलाई है."



" सम्कदेल वम्मा! अपने पिता की तरह क्या तुम मरना पसन्द करोगे? "


" पिता कैसा पिता?शरीर तो नश्वर ही है . तू हमेँ मारेगा ? भूल गया तू क्या कुरुशान को अर्थात गीता सन्देश को ? भूल गया तू क्या कुरुआन को -हुसैन की शहादत को ? "


"सम्कदेल! तू भी अपने पिता की तरह बोलता है? "


"हूँ! तुम जैसे भोगवादी! धन लोलुप! कामुक!थू! "

"सम्कदेल!"


"हमारी कोशिसेँ बेकार नहीँ जायेगी . क्योँ न बार बार मर कर बार बार जन्म लेना पड़े? राम कृष्ण के जन्म हेतु अतीत मेँ कारण छिपे होते है. तेरा अहंकार जाग कर जब तक सौ प्रतिशत नहीँ हो जाता तब तक तू मोक्ष नहीँ पा सकता, इसके लिए तुझे बार बार जन्म लेना पड़ सकता है. तू चाहे मेरे इस शरीर को मार दे लेकिन तेरा अहंकार चकनाचूर करने को मैँ फिर जन्म लूँगा -देव रावण . "


" अपनी फिलासफी तू अपने पास रख. कुछ दिनोँ बाद ब्राहमाण्ड की सारी शक्तियाँ हमारे हाथ मेँ होगी. तुम मुट्ठी भर लोग क्या करोगे? अब हम वो दुर्योधन बनेँगे जो कृष्ण को भी अपने साथ रखेगा ,कृष्ण की नारायणी सेना भी. अब मैँ वह रावण बनूंगा जो विभीषण से प्रेम करेगा,राम के पास नहीँ जाने देगा.अगर जायेगा भी तो जिन्दा नहीँ जाएगा."


"यह तो वक्त बतायेगा,जनाब . वक्त आने पर अच्छे अच्छे की बुद्धि काम नहीँ करती.आप क्या चीज हैँ ?"


"हूँ!"


फिर-


" सम्कदेल! जानता हूँ धर्म मोक्ष देता है लेकिन तुम क्या यह नहीँ जानते कि अधर्म भी मोक्ष देता है?मैँ आखिरी वार कह रहा हूँ कि मेरे साथ आ जाओ. नहीँ तो मरने को तैयार हो जाओ."


" मार दो, मेरे शरीर को मार दो."


"डरना नहीँ मरने से?"


"क्योँ डरुँ? चल मार."


सम्कदेल वम्मा के सहयोगी अपने अपने ठिकाने से अन्तरिक्ष मेँ आ चुके थे.


लेकिन...?!


सम्कदेल वम्मा ......?!


""" *** """


एक चालकहीन कम्प्यूटरीकृत यान सनडेक्सरन धरती पर आ कर सम्कदेल वम्मा के मृतक शरीर को छोड़ गया था. आरदीस्वन्दी भागती हुई मृतक शरीर के पास आयी और शान्त भाव मेँ खड़ी हो गयी.


उसके मन मस्तिष्क मेँ सम्कदेल वम्मा के कथन गूँज उठे.


".....शरीर तो नश्वर है . हमे तू मारेगा? भूल गया कुरुशान को अर्थात गीता सन्देश को ? ..... हमारी कोशिसेँ बेकार नहीँ जाएगी. क्योँ न बार बार मर कर बार बार जन्म लेना पड़े?"


आरदीस्वन्दी अभी कुछ समय पहले सम्कदेल वम्मा व देव रावण की वार्ता को सचित्र देख रही थी.आरदीस्वन्दी ने सिर उठा कर देखा कि यान अन्तरिक्ष से वापस आ रहे थे.


कुछ दूर एक विशालकाय स्क्रीन पर अन्तरिक्ष युद्ध के चित्र प्रसारित हो रहे थे. देव रावण के अनेक यानोँ को नष्ट किया जा चुका था.


अब भी-


"..... तेरा अहंकार जाग कर जब तक सौ प्रतिशत नहीँ हो जाता तब तक तू भी मोक्ष नहीँ पा सकता है, इसके लिए तुझे भी बार बार जन्म लेना पड़ सकता है. तू चाहे मेरे इस शरीर ......!?

पुन:



....सम्कदेल वम्मा मुश्किल मेँ था.अब कैसे यान को वह आगे निकाले?दुश्मनोँ के यान से छोड़ी जा रही घातक तरंगे यान को नुकसान पहुँचा सकती थी.ऐसे मेँ उसने अनेक धरतियोँ पर उपस्थित अपने सहयोगियोँ से एक साथ सम्पर्क साधा.


"मेरे यान को घेर लिया गया है."


सम्कदेल वम्मा के सहयोगियोँ के द्वारा अपने अपने नियन्त्रण कक्ष से अपने अपने कृत्रिम उपग्रहोँ मेँ फिट हथियारोँ से दुश्मन के यानोँ पर घातक तरंगे छोड़ी जाने लगीँ.अनेक यान नष्ट भी हुए.


लेकिन....?!


सम्कदेल वम्मा के यान मेँ आग लग गयी .


"मित्रोँ!सर! यान मेँ आग लग गयी है. दुश्मनोँ के यानोँ से छोड़ी जाने वाली घातक तरंगोँ से मेरा यान अब भी घिरा हुआ है. कोई अपने कृत्रिम उपग्रह से पायलटहीन यान भेजेँ . लेकिन.....?!मैँ......मैँ... ....मैँ.....आ.....आ...(कराहते हुए) आत्मसमर्पण करने जा रहा हूँ."

फिर सम्कदेल वम्मा ने सिर झुका लिया.


सम्कदेल वम्मा ने अपने बेल्ट पर लगा एक स्बीच आफ कर दिया.जिससे उसके ड्रेश पर की जहाँ तहाँ टिमटिमाती रोशनियाँ बन्द हो गयीँ. इसके साथ ही यानोँ से घातक तरंगोँ का अटैक समाप्त हो गया और जैसे ही उसने अपने यान का दरवाजा खोला एक विशेष प्रकार की चुम्बकीय तरंगोँ ने उसे खीँच कर दुश्मन के एक यान मेँ पहुंचा दिया.वह यान के बन्द होते दरबाजे की ओर देखने लगा.

"दरबाजे की ओर क्योँ देख रहे हो?" 


"तुम?!"


"हाँ मै,तुम हमसे दोस्ती कर लो.मौज करोगे."


"मेरा मौज मेरे मिशन मेँ है." 


" हा S S S S हा S S S S हा S S S हा S S S S हा S S S " -  ठाहके लगाते हुए.

फिर-

"धर्म मेँ क्या रखा है? जेहाद मेँ क्या रखा है ? ' जय कुरुशान जय कुरुआन' का जयघोष छोड़ो.'जय काम' बोलो 'जय अर्थ' बोलो.जितना 'काम'और 'अर्थ'मेँ मजा है उतना 'धर्म'और 'मोक्ष'मेँ कहाँ ? 'काम'और'अर्थ'की लालसा पालो,'धर्म'और 'मोक्ष' की नहीँ."


"तुम मार दो मेरे तन को.तभी तुम्हारी भलाई है."



" सम्कदेल वम्मा! अपने पिता की तरह क्या तुम मरना पसन्द करोगे? "


" पिता कैसा पिता?शरीर तो नश्वर ही है . तू हमेँ मारेगा ? भूल गया तू क्या कुरुशान को अर्थात गीता सन्देश को ? भूल गया तू क्या कुरुआन को -हुसैन की शहादत को ? "


"सम्कदेल! तू भी अपने पिता की तरह बोलता है? "


"हूँ! तुम जैसे भोगवादी! धन लोलुप! कामुक!थू! "

"सम्कदेल!"


"हमारी कोशिसेँ बेकार नहीँ जायेगी . क्योँ न बार बार मर कर बार बार जन्म लेना पड़े? राम कृष्ण के जन्म हेतु अतीत मेँ कारण छिपे होते है. तेरा अहंकार जाग कर जब तक सौ प्रतिशत नहीँ हो जाता तब तक तू मोक्ष नहीँ पा सकता, इसके लिए तुझे बार बार जन्म लेना पड़ सकता है. तू चाहे मेरे इस शरीर को मार दे लेकिन तेरा अहंकार चकनाचूर करने को मैँ फिर जन्म लूँगा -देव रावण . "


" अपनी फिलासफी तू अपने पास रख. कुछ दिनोँ बाद ब्राहमाण्ड की सारी शक्तियाँ हमारे हाथ मेँ होगी. तुम मुट्ठी भर लोग क्या करोगे? अब हम वो दुर्योधन बनेँगे जो कृष्ण को भी अपने साथ रखेगा ,कृष्ण की नारायणी सेना भी. अब मैँ वह रावण बनूंगा जो विभीषण से प्रेम करेगा,राम के पास नहीँ जाने देगा.अगर जायेगा भी तो जिन्दा नहीँ जाएगा."


"यह तो वक्त बतायेगा,जनाब . वक्त आने पर अच्छे अच्छे की बुद्धि काम नहीँ करती.आप क्या चीज हैँ ?"


"हूँ!"


फिर-


" सम्कदेल! जानता हूँ धर्म मोक्ष देता है लेकिन तुम क्या यह नहीँ जानते कि अधर्म भी मोक्ष देता है?मैँ आखिरी वार कह रहा हूँ कि मेरे साथ आ जाओ. नहीँ तो मरने को तैयार हो जाओ."


" मार दो, मेरे शरीर को मार दो."


"डरना नहीँ मरने से?"


"क्योँ डरुँ? चल मार."


सम्कदेल वम्मा के सहयोगी अपने अपने ठिकाने से अन्तरिक्ष मेँ आ चुके थे.


लेकिन...?!


सम्कदेल वम्मा ......?!


""" *** """


एक चालकहीन कम्प्यूटरीकृत यान सनडेक्सरन धरती पर आ कर सम्कदेल वम्मा के मृतक शरीर को छोड़ गया था. आरदीस्वन्दी भागती हुई मृतक शरीर के पास आयी और शान्त भाव मेँ खड़ी हो गयी.


उसके मन मस्तिष्क मेँ सम्कदेल वम्मा के कथन गूँज उठे.


".....शरीर तो नश्वर है . हमे तू मारेगा? भूल गया कुरुशान को अर्थात गीता सन्देश को ? ..... हमारी कोशिसेँ बेकार नहीँ जाएगी. क्योँ न बार बार मर कर बार बार जन्म लेना पड़े?"


आरदीस्वन्दी अभी कुछ समय पहले सम्कदेल वम्मा व देव रावण की वार्ता को सचित्र देख रही थी.आरदीस्वन्दी ने सिर उठा कर देखा कि यान अन्तरिक्ष से वापस आ रहे थे.


कुछ दूर एक विशालकाय स्क्रीन पर अन्तरिक्ष युद्ध के चित्र प्रसारित हो रहे थे. देव रावण के अनेक यानोँ को नष्ट किया जा चुका था.


अब भी-


"..... तेरा अहंकार जाग कर जब तक सौ प्रतिशत नहीँ हो जाता तब तक तू भी मोक्ष नहीँ पा सकता है, इसके लिए तुझे भी बार बार जन्म लेना पड़ सकता है. 

और....



सन 6020ई0 का विजयादशमी पर्व! मातृदेवी की भव्य प्रतिमा के समक्ष शस्त्रपूजन कार्यक्रम चल रहा था.सनडेक्सरन नि वासी बालक हफ्कदम के एक युवती के साथ मंच पर उपस्थित था. दोनों तीननेत्री थे. एक वृद्व सन्यासी जो कि हरा व लाल रंग के वस्त्र पहने था.हवन कुण्ड की अग्नि प्रजव्लित करते हुए बोला -"जीवों में चेतना के दो अंश होते हैं-परमात्मांश व प्रकृतिअंश.इन दोनों में सन्तुलन का सिद्धान्त ही (एक ओर स्थापित श्री अर्द्धनारीश्वर प्रतिमा को देखकर) श्रीअर्द्धनारीश्वर स्वरुप में छिपादर्शन है.आज विजयादशमी पर आप सगुणप्रेमियोँ के द्वारा मातृदेवी के समक्ष शस्त्रों की पूजा का मतलब क्या है?प्रकृति को बचाने को शस्त्र उठने ही चाहिए लेकिन शस्त्र सिर्फ स्थूल ही नहीं होते.हर कोई प्रकृति का संरक्षक सगुण व क्षत्रिय है." आकाश में अनेक यान तेजी के साथ तेज आवाज करते हुए मड़राने लगे. 
और... " हा... हा.. हा.. हा.....! " - अपने नियन्त्रण कक्ष से एक  वृद्ध राजसी व्यक्ति ठहाके लगा रहा था. यह वृद्ध व्यक्ति...?!अचानक वह चौंका.स्क्रीन पर दिख रहा था कि सारे नष्ट किये जा रहे थे और अब बालक हफ्कदम हँसते हुए बोला-"देवरावण!तू ..."



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