प्रथम भाष्यकार ,विजयनगर राज्य के सेनापति, राजपुरोहित #सायण ने कुटम्बी/कूर्मि को सर्वशक्तिमान कहा है। आदि काल में जो कुटुम्ब भाव में रहते थे, जाति से मुक्त थे।उनमें से ही कुछ अब कूर्मि/कुटुम्बी/कुनबी आदि है।जो वन्य/कृषक जीवन जीते थे।दयानन्द सरस्वती ने तुंबी कूर्मि को मित्र कहा है।वास्तव में जो कुटुम्बकम भाव मे रहता है वही जगत में श्रेष्ठ है।#अशोकबिन्दु
मानव की जन्म भूमि हम अफ्रीका लेकिन सभ्यता की जन्मभूमि एशिया है।
आज से 600वर्ष पूर्व जाति व्यवस्था इतनी जटिल नहीं थी। श्रम विभाजन व कुल व्यवस्था थी। आदि कालीन कुटुम्ब परम्परा से ही आगे चलकर जन बने, जन से जनपद।जनपद से राज्य। ऐसे में पूरा विश्व भारत था, भारत विश्व।आज कल की तरह राज्यों के बीच जटिल सीमांकन न था।विभिन्न परिस्थितियों में पूरे विश्व में आना जाना, रहना, बसना था।इसलिए हम इस विचार से सहमत नहीं है कि आर्य मध्य एशिया से आए।यहाँ से वहां वहां से यहां आना जाना रहा।प्रत्येक कल्प,चतुर्युग,प्रत्येक युग बाद हम सबके आबास की स्थितियां बदलती रही हैं। वर्तमान में ही लो,ऐसा कौन सा देश है जहां भारतीय न हो और कौन सा देश नहीं जिसके निबासी भारत में आते नहीं। देश व विश्व में स्थितियां राजनीति, साम्राज्यवाद, लूट खसोट ,भीड़ हिंसा आदि ने बिगड़ी है। हम तो ये भी कहेंगे कि जो विदेशी भारत आकर बस गए ,जिन्होंने आक्रमण किए....आदि आदि हम उन्हें पराया नहीं मानते।हां, भटका हुआ या अलग हुआ या अज्ञान में जिया हुआ मानते है।इतिहास खंगालें तो इतिहास एक ही निकलेगा।
यवन कोई पराये नहीं थे।राजा दशरथ के दरबार में अन्य आर्य राजा के दरबार में वे मंत्री आदि भी हुआ करते थे। वे ययाति पुत्र तुर्वसु के वंशज थे। मध्य एशिया में एक पहाड़ी मिलती है.तुर।जो अनेक रूहानी आंदोलन।में लगे लोगों के लिए तपस्या स्थली थी।पाक को पाक कहने के पीछे भी एक इतिहास है।तुर या कुतुब से मतलब दिव्य प्रकाश या दिव्य प्रकाश धारण करने वाला है।
कभी कश्यप देश था, जिसमें ऋषि भृगु रहते थे जो कश्यप पौत्र थे।जल तत्व तक पकड़ की अपनी चेतना व समझ का स्तर बनाने वालों का क्षेत्र पश्चिम में था जो जय पुर,अरब सागर से भूमध्य सागर तक था।वरुण एक बार वहां (मेसोपोटामिया)में मनु भी हुए।जो क्षेत्र कभी कश्यप क्षेत्र प्रभावित भी था। 'मान' शब्द आर्य शब्द है।जैसे हनुमान, सलमान, बलमान आदि।शुक्र, शुक्रिया ,अरब(ओर्ब)आदि शब्द आर्य शब्द ही हैं।
स्वायम्भुव मनु
!
!
------------------------------------------------------------
! !
प्रियवृत उत्तानपाद
(इस शाखा के कुटम्ब यूरोप में भी गए)
!
अग्नीध्र
!
अग्नीध्र के नौ पुत्र!
नाभि,हरि, इलावृत, कुरु, रम्यक,
भद्राश्व, किम रूप, हिरण्य व केतु
नाभि के पुत्र-ऋषभ देव
(जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर)
!
!
जड़ भरत
!
जड़ भरत की 21वी पीढ़ी में
!
विषग्ज्योति
!
विषग्ज्योति की 23वीं पीढ़ी में
!
पृथु वैन्य
(प्रथम वास्तविक राजा व कृषि के
आविष्कारक)
!
हरिरधान
!
प्रचेतस
(कृषि का महत्व पूर्ण विकास किया)
!
दक्ष
!
60 पुत्रियां (भृगु काल)
!
अदिति प्रमुख पुत्री व नारद की बहिन
!
11 पुत्र + विवस्वान(सूर्य)
!
विवस्वान(सूर्य) से वैवस्वत मनु(त्रेता युग प्रारम्भ)
!
इक्ष्वाकु+अन्य सात पुत्र और इला पुत्री
!
इक्ष्वाकु से जो वंश चला उसमे श्रीरामचन्द्र
!
इला+बुध से एल या चन्द्र वंश!इलाहबाद राज्य
!
बुध+इला से पुरुरवा
!
आयु
!
नहुष आदि
!
ययाति आदि
!
तुर्वसु, यदु आदि
इस तरह से अन्य वंश बिटप हैं।कुल मिला कर हम कहना चाहें गे कि विश्व में सभी जन के आदि पूर्वज का इतिहास एक ही है।
ऐसे।में हम सब को ऋषियों की बसुधैव कुटुम्बकम भावना को गम्भीरता से लेना चाहिए।हम इससे विश्व में विश्व शांति, मानव कल्याण की भावना कायम कर सकते हैं।
सभी समस्याओं का हल मानवता, आध्यत्म ही है।
गांधी हों या लोहिया, दलाई लामा हों या ओशो, या अन्य सन्त ;सभी ने विश्व सरकार की भावनाओं को व्यक्त किया है।
(अशोकबिन्दु)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें