एलियन्स आक्रमण ?!
हम सोंच रहे थे-भविष्य में एलियन्स पृथु महि पर आक्रमण करेंगे।
उधर अंतरिक्ष मे एक धरती 'हा- हा- हूस'- जहाँ विशालकाय जंतु!! मिस्टर एस की पुत्री -'रुचिको'को वहीं छोंड़ दिया गया था।
एक विशालकाय डायनासोर!
वह चलता तो लगता कि सारी धरती कांप रही हो।
'ह ह न स र क'-एक पहाड़ी की आड़ ले खड़ा हो जाता है।
कुछ समय पश्चात डायनासोर तो आगे बढ़ जाता है लेकिन ' ह ह न स र क'- दो फन वाले एक सांप का शिकार हो जाता है। सांप उसके बांये पैर से लिपट गया था।काफी प्रयत्न के बाद उस दो मुहे वाले साँप से उसने पीछा छुड़ाया और आगे बढ़ गया।
और--
मिस्टर एस की पुत्री-रुचिको सस्कनपल को अपनी ओर आते देख कर सहमी सहमी एक वृक्ष तले झाड़ी में दुबक जाती है।लेकिन-
सस्कनपल उस झाड़ी के समीप ही आ चुका था।
उस झाड़ी में दो मुहे सांप की फुसकार पर रुचिको डर कर खड़ी हो जाती है।
तो सस्कनपल उसे देख मुस्कुरा देता है।और.....
किसी धरती पर एक कमरे में महात्मा गांधी शक्ल एक बुजुर्ग व्यक्ति टहल रहा था।
वह-
"इन महान वैज्ञानिकों ने पृथु महि के महात्मा गांधी का क्लोन अर्थात हमें बना कर सफलता तो पा ली है, लेकिन....!? हमारा नाम दिया गया है- ब्रह्मांड बी.गांधी।"
आगे जा कर वह एक दीवार की ओर देखता है।वह दीवार एक स्क्रीन में बदल कर चलचित्र दिखाने लगती है।
"पृथु महि व उसके सौर परिवार, उसके मंदाकिनी की स्थिति बड़ी भयावह हो गयी है।मंगल ग्रह की तरह क्या अब पृथु महि का मानव भी अब खत्म हो जाएगा। वह मानव भी बड़ा बनता था?हूँ, स्वयं ही सभी प्राणियों में सर्वश्रष्ठ?लेकिन उसने पृथुमहि ही नहीं सारे अंतरिक्ष के हालात मुश्किल कर दिए?वह भूल गया कि प्रकृति अभियान से बढ़ कर कुछ भी नहीं।जैविक क्रमिक विकास में मानव ही सर्वश्रेष्ठ कृति नहीं है अभी।ये जैविक क्रमिक विकास तो अनन्त है।अभी अनेक स्तर दर स्तर क्रमिक प्राणी आयंगे जो हर पूर्व मानव से श्रेष्ठ होंगे। हूँ, अनेक धरतियों के प्राणी जो पृथु महि के मानव से बेहतर तकनीकी में है नाराज हैं।इस कारण वे पृथुमहि के मानवों पर आक्रमण भी करने वाले हैं।"
'सर जी'- कहते रहे हैं कि धरती पर सबसे बड़ी समस्या है-वह प्राणी जो मानव कहा जाता है लेकिन उसमें मानवता नहीं है।और सबसे बड़ा भृष्टाचार है शिक्षा।क्योकि कोई भी शिक्षित का आचरण,विचार व भाव ज्ञान के आधार पर नही है।
हूँ.....
उन दिनों हम शिशु क या शिशु ख में विद्यार्थी थे। एक महात्मा अपने आवास स्थल पर प्राइमरी स्तर का विद्यालय चला रहे थे।हमारा वहीं पढ़ने के लिए आना जाना था।कायस्थ जाति के बच्चों के हमारी दोस्ती होगयी थी। बात सन 1978-79ई0 की रही होगी। उन दिनों मई- जून की छुट्टियों में खजुरिया नवीराम(भीकमपुर),बिलसंडा आना जाना होता था।अपने पैतृक गांव का आता पता अहसास न था।
उन दिनों शान्ति कुंज, आर्य समाज में पिताजी की सक्रियता काफी ज्यादा थी।
खजुरिया नवीराम की स्थापना कुनबी मराठा ठाकुरों ने की थी।जो अब कुर्मी गिने जाते हैं।जिनके हजारों गांव पूरे के पूरे उत्तर भारत के तराई में बस गए थे।ये भी सुना जाता है कि सन1761ई0 के मराठा व अब्दाली युद्ध में अनेक भारतीय शक्तियों की मदद न मिलने या तटस्थता या गद्दारी के कारण कुनबी मराठा पराजित हुए थे।वे इतने स्वभिमानी होने व देश की विभक्त राजनीति से परेशान होकर यहां के जंगलों में बस गए थे।जिन्हें अंग्रजों ने खेत जोतने ,कृषि करने की स्वतंत्रता दे दी थी। बताते है इनके पूर्वज अयोध्या में क्षत्रिय थे।जिन्हें विभिन्न परिस्थितियों के कारण दक्षिण व अन्य क्षेत्रों में जाकर बसना लड़ा था।कोलार, कर्णकट आदि क्षेत्र में अपना राज्य स्थापित किया था।जिनके पूर्वज चोल वंश, गंग वंश में भी प्रतिष्ठित हुए थे।ददिगी जिनका प्रमुख नेता था।विजय नगर साम्राज्य में भी इनका योगदान था।विजयनगर के राजपुरोहित, सेनापति व सर्वप्रथम वेद भाष्यकार #सायण ने तक कहा था कि कूर्मि सर्वशक्तिमान होता है।ये लोग वर्मा या वर्मन उपाधि भी लगाने लगे थे। खजुरिया नवीराम में पिता जी की ननिहाल थी। सुना जाता है कि नवीराम कुनबियों के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे।एक समय पूरे तराई क्षेत्र में इनकी तूती बोलती थी।
जून की छुट्टियां चल रही थीं।
हम खजुरिया नवीराम में उपस्थित थे।
उन दिनों बादलों में विभिन्न आकृतियां खोजना शौक था।
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