बालक अशोक अपने दोनों हाथ सिर पर रखे ऊपर बरगद के वृक्ष को देख रहा था कि दीपक उसके पास आते बोला-
"ऊपर क्या देख रहे हो?" तब अशोक बोल पड़ा- "कुछ भी नहीं यों ही ,तुम काफी पीछे थे।सोंचा साथ ले लूं।"
दीपक बोला-"तुम्हारी चाल भी तो बड़ी तेज है।"
फिर दोनो साथ साथ आगे बढ़ गए। कुछ समय बाद दीपक बोला- "परसों में स्कूल नहीं आया था।विज्ञान का काम अपूर्ण हो गया।कापी दे देना।पूरा कर लूंगा।"
"ठीक है, ले लेना।"
आगे जा कर दोनों बाला जी की मढ़ी के सामने मैदान में बैठ गए और बातचीत करने लगे। काफी समय गुजर गया।
"दीपक अगर डायनासोर जैसे जंतुओं पर फिल्में बने और कामिक्सों के फौलादी सिंह जैसे पात्रों पर यदि फिल्में बने तो कैसा लगे?"
"ऐसा हो भी कैसे?सोंचने वाले दूसरे तो करने वाले भी दूसरे?"
"अच्छा, दीपक।अब चला जाये।लगभग एक घण्टा बीतने को आया होगा।"
घड़ी देख कर दीपक कहता है-"सवा घण्टा हो गया है।"
फिर दोनों उठ कर चल देते हैं। घर पर आ कर अशोक- मध्य जून की बात। अशोक अपने ही क्लास के दो छात्र जो भाई भाई थे, के घर से आकर घर पर खाना खा कर ऊपर पहुंच ही पाया होगा कि आसमान पर काफी नीचे से ही एक लड़ाकू विमान उड़ कर पूरब की ओर निकल जाता है कि वह कई बार देखे गए एक स्वप्न में खो जाता है--
"वह तेजी के साथ घबराहट लिए भागता जा रहा था कि वह ऊपर देखता है-एक उड़न तश्तरी तीब्र गति के साथ ऊपर से गुजर जाती है।उसके पीछे एक डायनासोर तीब्र गति से भागता आ रहा था।"
फिर अपने मन को यथार्थ में ला अशोक आगे जा एक छोटे से कमरे के सामने पड़े छप्पर के नीचे चारपाई पर आकर बैठ जाता है। और फिर- कि एकाएक मिस्टर एस सामने खड़े गैर पृथ्वी के तीन फूटा प्राणी को देख चौका। तीन फूटा कान विहीन वह प्राणी शरीर पर बिल्कुल बाल नहीं रखता था और भवें-पलकों रहित । मिस्टर एस उसे अपनी ओर आते देख कर खड़ा हो गया। मिस्टर एस के मुख से सिर्फ इतना निकला -"तुम!तुम यहाँ क्यों---?"
तब वह प्राणी बोला- "मित्र!मेरी ओर से तुम निश्चित रहो।क्या तुम हमारी मदद कर सकते हो?" "जी....?!"
"हमारे साथियों का एक यान यहाँ दुर्घटना ग्रस्त हो गया, जिसमें दो लोग जीवित थे-सम्भवतः।उन सबको आपकी सेना ले गयी।मेरी मदद करो।"
"आप हमारी भाषा जानते हैं?" "दरअसल यह सब विज्ञान सिस्टम है।"
"आओ बैठो।"
तब वह एलियन अर्थात गैर पृथ्वी प्राणी कुर्सी पर बैठ गया।
"क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं?"
"जी!दरअसल मैं, मैं भी अभी इस सम्बंध में अज्ञात के भंवर में हूँ।मैं कोशिश करूंगा।"
"तुम कोशिस करोगे?"
"तुम विश्वास रखो, मुझे जितना बनेगा उतना प्रयत्न करूंगा।"
"जी, ठीक है।" फिर मिस्टर एस कहीं खो गया तो-
"मिस्टर एस मुझे दुख है तुम्हारी बीबी की उन लोगों के द्वारा हत्या व तुम्हारी पुत्री का अपहरण हुआ है। "
"किन लोगों के द्वारा?"
तब वह 3 फुट गैर पृथ्वी का प्राणी मौन हो गया और कुछ समय बाद बोला -
"आपकी बीवी की हत्या करने वालों की जानकारी अभी स्पष्ट नहीं है लेकिन यह उम्मीद लगाई जाती है कि जिन लोगों ने तुम्हारी पुत्री का अपहरण किया है उनका हाथ हो सकता है।"
" किनका?"
" सनडेक्सरन धरती के कुछ निवासियों।"
" सनडेक्सरन ?!"
"हां '11 फुट तीन नेत्र धारी व्यक्तियों की धरती।"
"आप किस धरती से आए हैं ?"
"धधस्कनक धरती से।"
"धधस्कनक ? आज आपके मुख से दो धरतियों के नामों से मैं परिचित हुआ हूँ।"
"अब हमारा आपका सम्पर्क हुआ है।अब तो ज्ञान का आदान प्रदान चलता रहेगा।"
@@@@ @@@@@@ @@@@@
एस एस कालेज, शाहजहांपुर के प्रांगण में कुछ विद्यार्थी बैठे बातचीत कर रहे थे।
"सर जी भी न जाने कहाँ कहाँ खोए रहते हैं?"
"ऐसे लोग सब कुछ होकर भी दुनिया में कुछ भी नहीं होते।"
"बस,जीते चले जाते हैं।ऐसे लोग दुनिया की समझ से परे होते हैं।"
"इस कालेज से उनका आत्मीय लगाव रहा है।उनके पिता जी भी यहीं सम्भवतः सन 1968-1969ई0 के आसपास सक्सेना जी के समय में यही बी ए व बी एड किए है।बड़े दबंग थे, उनकी उन दिनों यहीं नहीं शाहजहांपुर में खूब दगती थी।"
"तो क्या?अब सर जी?! हर वक्त सहमे सहमे से रहते हैं।
"उसका कारण है।ऐसे लोग मनोविज्ञान में बड़े संवेदनशील होते हैं, नाजुक होते हैं।लेकिन इसका मतलब ये नही,ऐसे लोगों में प्रतिभाओं की कमी नहीं होती।लेकिन वे उजागर नहीं हो पाती।अभिव्यक्ति नही पा पाती।"
"हम लोग तो देख चुके हैं।वे स्वयं कहते हैं कि एकांत में न जाने हम कैसे हो जाते हैं?कभी अंतरिक्ष के बादशाह तो कभी ऐसी हालत कि दुनिया में सबसे कमजोर इंसान?ये दुनिया में फिट नहीं बैठ पाते।"
"हां, ऐसा तो है।चालाकी-फरेब नहीं होता।इतना कि बच्चे भी भोले भाले बन चूतिया बना दें।"
"हा हा हा...!"-सब हंसने लगे।
"हां, तो सर जी ने आगे लिखा है....!?"
मिस्टर एस के आश्वासन पर धधस्कनक धरती का वह कान विहीन बाल विहीन प्राणी मिस्टर एस के आवास पर रुक गया।रात्रि बीतने के बाद सुबह मिस्टर एस अखबार पड़ रहा था।
"और फिर...?!"
"वे किशोरावस्था से ही मेडिटेशन, कल्पनाचिंतन व लेखन में लग गए थे।"
और.....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें