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मंगलवार, 8 मार्च 2011

भम्सनदा के ब्रह्मा !

अन्तरिक्ष!


विभिन्न पिण्डोँ,उल्काओँ,सूक्ष्म ग्रहों आदि के बीच से अपना बचाव करते हुए तेजी के साथ जाता 'उड़नतश्तरी ' यान . इस यान में उपस्थित दो पुरुष व एक स्त्री तीन फुट कद ,वाह्य कर्णविहीन थे.उनके शरीर पर कहीं भी बाल नहीं थे,न भवेँ व पलकें,बिल्कुल वैसे ही जैसे'कोई मिल गया' फिल्म मेँ एलियन्स.




पृथु मही पर स्थित न्यू मैक्सिको मे सन 14जून1946ई0 को दो उड़नतश्तरी दुर्घटनाग्रस्त हो गयी थीँ.दूसरे दिन इस घटना को समाचार पत्रो ने प्रकाशित किया था लेकिन अमेरीकी सरकार ने समाचार पत्रो की इस सम्बन्धित खबरो का खण्डन कर कहा था कि कही भी न तो उड़नतश्तरिया पायी गयी और न ही उड़नतश्तरियो से सम्बन्धित कोई एलियन्स.



आखिर इस घटना को अमेरीकी सरकार ने क्यो छिपाया?लगभग दो सौ वर्षो तक यह रहस्य बना रहा था लेकिन......??लेकिन सन 2147ई0मेँ.....?!



" दस् रलकम ! पृथु मही के मनुष्यो की करतूतो के बारे मे क्या सोचना?उन्हे अपने किए की सजा मिल तो गयी."



"मै सोचता हूँ कि क्या वास्तव मे उस वक्त अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष आतंकवादी नही था ? हलदकरोडा! "



हलदकरोडा बोली--
" मै जानती हूँ कि अमेरिका पृथु मही का अपराधी था ही वह अन्तरिक्ष अपराधी भी था ? "



सामने स्क्रीन पर 'भुम्सनदा' ग्रह को देख कर दस्करलकम बोला....

" फदरस्लन! भुम्सनदा करीब आ गया है ."



" भुम्सनदा क्या वास्तव मे ब्रह्मा की धरती है? "



"हलदकरोडा ! भुम्सनदा पर ही चल रहे है, जान जाओगी ."


" हूँ,पृथु मही के हिन्दू पौराणिक कथाओ मे वर्णित ब्रह्मा विष्णु महेश का अस्तित्व क्या स्थूल रुप से भी वास्तविक नही है? "



"हाँ,उस वक्त पृथु मही के एक वैज्ञानिक ने यह कहा भी था कि कही ऐसा तो नही कि ब्रह्मा विष्णु महेश एलियन्स ही हो ? "



"....और एक ने यह भी कहा था कि आत्माएँ एलियन्स ही होती है."


"खैर....! "




* * *


भुम्सनदा धरती पर गैरबर्फीली भूमि पर लैण्ड मार्क के करीब सूर्यमन्दिर के खण्डहर के पास ,जहाँ दीवार पर एक यान व विशेष वेशभूषा पहनी एक युवती का चित्र बना था.जिसे पशु पक्षियो ने फूल पत्तियो से लाद दिया था.



खामोशी !


पत्थर पर आरदीस्वन्दी खामोश हुए बैठी.चारो ओर काफी मात्रा मे फूल पत्तियाँ पड़ी हुई थी.पशु पक्षी भी खामोश थे.कुछ पशु पक्षियो के आँखो मे आँसू थे.



आत्म साक्षात्कार खामोशी ही कराती है,एक दूसरे आत्म का भी.खामोशी हमे एकाग्रता ,लयता व निरन्तरता देती है -आत्म मे बनाये रखने को.उपनिषद का भी क्या अर्थ है ,उपासना का भी क्या अर्थ है,खामोशी का भी क्या अर्थ है?-" बैठना" बैठकर अर्थात अपने मन को स्थिर कर अपने आत्म से जोड़ना.वेद को प्राप्त कर वेदान्त तक पहुँचना.क्यो मूर्तियाँ,क्यो तश्वीरे,क्यो धर्म स्थल?यह सब तो इस धरती की ही बाते है? वेद(ज्ञान)तक जाने की बात तो दूर ,इस धरती की स्थूल सामग्री मे ही उलझ गये हो.सत की ओर यदि चल दिए तो फिर अब क्या जरुरत मूर्तियो तश्वीरो धर्मस्थलो मे उलझने की?फिर क्या जरुरत अमरूद से'अ',आम से 'आ,'.......जब चल दिए तो अ ,आ ,इ ,ई,.....इनसे शब्द .......?!इसका मतलब यह नही कि अमरूद ,आम,.....भोग भाव रखे या फिर बुजुर्ग होने के बाद भी ' अ','आ', ..... के करीब जाने के लिए अमरुद,आम, ..... के करीब जाये ,फिर तो यह एक विकार है.जीवन भर तब तुमने किया भी क्या? ऐसे मे तो फिर जब सारी इन्द्रियाँ कमजोर पड़ जाऐगी बुद्धि कमजोर पड़ जाएगी तो फिर अ, आ , .....याद नही करोगे ,भोग लालसा के लिए याद करोगे.पानी सूखने के वाद भी वेल सूखने के वाद भी आकार जरुरी न बदले.आंतें जबाब दे जायेगी ,दाँत जबाब दे जायेगे ,जीभ जबाब दे जायेगी लेकिन......?!



खामोशी !


खामोशी हमे तटस्थता की ओर भी ले जाती है-भावनाओ लालसाओ के प्रति भी.



आत्म साक्षात्कार के लिए सांसारिक वस्तुओ ,तश्वीरो मूर्तियो धर्मस्थलोँ आदि की आवश्यकता जरुरी नहीँ है.



ओ3म आमीन !


ओ3म आमीन दोनो क्यो?



सिन्धु के इस पार ओ3म तो सिन्धु के उस पार आमीन !



......लेकिन शक्ति एक ही,सिर्फ भाषा व नजरिया का फर्क.



आरदीस्वनदी के अन्त:कर्ण मे पड़ने वाली ध्वनि-" ओ3म आमीन ".....



आरदीस्वन्दी के अन्त:कर्ण मे "ओ3म आमीन" ध्वनि प्रसारित करने वाला कौन था ?...और फिर उसका "ओ3म आमीन"ध्वनि से क्या सम्बन्ध था?भुम्सनदा के लिए चलने से पूर्व उसमे घबराहट लेकिन जब उसके अन्त : कर्ण मे "ओ3म आमीन" ध्वनि पड़ी तो उसकी घबराहट दूर हो गयी और उस ध्वनि के आधार पर यहाँ भुम्सनदा आ पहुँची?



गैर बर्फीले भूमि पर पीपल नीम वृक्षोँ की अधिकता थी व पशुओ मे गौ वंशीय पशुओ की.




इधर आकाश मे उड़नतश्तरी यान भुम्सनदा के काफी करीब आ चुका था.वह इस वक्त भुम्सनदा के बर्फीले भाग के ऊपर आकाश मेँ था.

बर्फीले भाग पर अनेक बर्फीले टीलों से बर्फ खिसकना प्रारम्भ हुआ जिससे ब्रह्म....

उधर आंध्र क्षेत्र में.... उत्तर भारत का एक आंदोलन अपना गढ़ बना चुका था!

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