Powered By Blogger

बुधवार, 9 मार्च 2011

सदभावना का अन्तिम वारिस

भुम्सनदा के बर्फीले भू भाग पर से कुछ बर्फीले टीलों से बर्फ खिसकना प्रारम्भ हुई और जिसमे से ब्रह्मा शक्ल व्यक्ति नजर आना प्रारम्भ हुए .पृथु मही के समयानुसार सैकड़ो वर्ष मेडिटेशन के बाद अब इन्होने अपनी आँखे खोली .



उड़नतश्तरी यान जब जमीन पर उतरा तो ब्रह्मा शक्ल व्यक्तियोँ ने यान की ओर देखा.


"यल्ह आर्य !"--उड़नतश्तरी यान से निकल कर धधस्कनक निबासी तीनो व्यक्ति एक साथ बोले.



" यल्ह !यल्ह!! "



"देव रावण के साम्राज्य के खिलाफ अपने स्थूल कर्म मे आने का वक्त आ गया है."-हलदकरोडा बोली.



" ब्रह्मा पद हेतु चुनाव के बाद हम सब स्थूल जगत के लिए कार्यक्रम तैयार करेगे .शाश्वत नियमों पर अवरोध नही लगाये जा सकते.हम सब निर्गुण रुप से सामर्थ्यवान व एक होकर भी प्रकृति को धारण कर प्रकृति से प्रभावित हो जाते है अर्थात चेतन यात्रा मे अन्य स्थूल सम्भावनाएं बनती बिगड़ती रहती हैं."


" हम लोगोँ के लिए आदेश !"



इसी धरती पर ही जंगल के बीच सूर्य मन्दिर जाओ. वहाँ सनडेक्सरन से आरदीस्वन्दी आयी हुई है.वह इस धरती पर सदभाव की ध्वनि संकेतो के आधार पर आ तो गयी है लेकिन सदभाव से उसकी मुलाकात तुम लोग ही कराओगे .



" जैसी आज्ञा आप सब की."



* * *


काफी समय बीत चुका था.



वह तीन नेत्रधारी वृद्ध अब भी बर्फीले मैदान मे एक गुफा के समीप ध्यान मुद्रा मेँ बैठा था.
जिसके शरीर के अधिकतर हिस्से बर्फ से ढक चुके थे.अनेक नर नारी इस तीन नेत्रधारी वृद्ध के इन्तजार मे खड़े स्वयं ध्यान मुद्रा मे लगभग हो चुके थे.



गुफा मे से एक युवती एक बालक के साथ बाहर आयी,जो कि तीन नेत्रधारी ही थी.



* * * वह युवती बालक के साथ एक अण्डाकार यान मेँ थी.यान पृथु मही के नजदीक था.



युवती बालक से बोली-"हफकदम!निन्यानवे प्रतिशत व्यक्ति प्रकृति व अपने शरीर पर प्रभावो प्रति तटस्थ नहीं रह पाता.हालांकि चेतना की सनातन यात्रा तटस्थ भाव ही होती है.वह समय के बन्धन से मुक्त हो वर्तमान मे जीती है."



बालक हफ्कदम बोला-" अपने लोग तो वर्तमान मे ही जीते है,उस वर्तमान मे जिसका न भूत है न भविष्य.वर्तमान, भूत, भविष्य तो स्थूल वस्तुओ व स्थूल जगत का होता है."


"मै पृथु मही के मनुष्यो के सम्बन्ध मे कह रही हूँ."


" जो भी होता है वह पूर्व नियोजित है,शाश्वत नियमो से बंधा होता है.मनुष्य के द्वारा भी जैसा होना होता है,वैसा उसके मन बुद्धि मे आ जाता है.इस धरती पर पैतालीस हजार साल पहले ही प्रलय की कहानी प्रारम्भ हो गयी थी.देखो तो कैसी हो गयी है यह धरती?लेकिन अब भी तो सुधरने का नाम नही लेता यहाँ का मनुष्य. निर्गुण शक्तियाँ कल्कि अवतार लेंगी तो कहीं कुछ समय ठीक रहेगा लेकिन फिर....यहाँ आ माया मोह लोभ मेँ उलझ कर रह जाता है प्राणी."



"पृथु मही पर जीवन कैसे आया?यहाँ से लगभग आठ प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित लुन्धक तारे से."


"साइरियस से ?! "


"हाँ वही, साइरियस को ही लुन्धक कहते हैं. पृथ्वी पर सर्व प्रथम मानव का जन्म अफ्रीका महाद्वीप मे मत्स्यमानव के रूप मेँ हुआ था.डोगिन कबीले की शुरुआत अन्तरिक्ष से आये 'नोम्नो' नाम के एक विचित्र प्राणी ने की थी."


".....तो फिर तिब्बत मे .?!"



"तिब्बत आर्यो की उत्पत्ति का स्थान कहा जाना उचित होगा,मानव जाति की उत्पत्ति का स्थान नही ."



यान पृथु मही अर्थात पृथ्वी के करीब आकर पृथ्वी के चारो ओर चक्कर लगाने लगा था.



" साइवेरिया मे भी तो कोई एलियन्स अन्तरिक्ष से आ कर रहा था ? "



" सुनो,जिस धरती पर मानव जीवन की संभावनाएं नजर आती है तो वहाँ एलियन्स के द्वारा ही मानव सत्ता का उदय होता है.जिसके लिए निर्गुण शक्तियाँ ब्रह्मा विष्णु महेश व उनके परिवार तथा परिषद के रुप में स्थूल जीवन का संचालन करती हैं. "



भू मध्य सागरीय क्षेत्र मे स्थित जंगल के समीप यान उतरते ही डोगोन मनुष्य यान के करीब आ गये.



* * *



पृथ्वी पर ही पूर्वोत्तर भारत मे स्थित एक अन्तरिक्ष व विज्ञान संस्थान के समीप बनी एक इमारत 'सदभावना' ,


सन5020ई0 की जून!


सद्भावना इमारत के सामने कुछ दूरी पर अपने यान के करीब खड़ी आरदीस्वन्दी ,जो कि उस वक्त किशोरावस्था मेँ थी,क्रोध भाव मेँ एक मैरुन वस्त्रधारी एक वृद्व सन्यासी से बोली-"यदि सदभाव को कुछ हो गया तो हमसे बुरा कोई न होगा.सारी पृथ्वी को हिला कर रख दूँगी."




" आप गलत सोच रही है.वह सदभावना का अन्तिम वारिस है,गंगा जमुनी संस्कृति का अन्तिम वारिस है.उसे सुरक्षा की ......"



" तुम्हारी धरती पर होगी गंगा जमुनी संस्कृति,प्रकृति मेँ निर्गुण मेँ ....सनातन यात्रा मे क्या गंगा क्या जमुना? जाती हूँ सात दिन का वक्त देकर!"




फिर वह यान पर बैठ कर चली गयी.आज लगभग 1000वर्ष बाद अब.....




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें