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गुरुवार, 4 अगस्त 2011

मत्स्य मानव व जलचर!

त्रिनेत्री नागरिकों की धरती -सनडेक्सरन !
आरदीस्वन्दी की वृद्ध माँ-अफस्केदीरन दीवार पर आ रहे चलचित्र को देख रही थी.
यह चलचित्र भुम्सन्दा धरती के थे.एक वृद्ध व्यक्ति वहां आ पहुंचा और चलचित्र को देखने लगा.चलचित्र मेँ आरदीस्वन्दी को अपनी टीम के साथ भयानक जंगल में वाधाओं को पार करते हुए आगे बढ़ते दिखाया गया था.
चलचित्र मेँ जंगल के बीच मूसलाधार बरसात होना स्पष्ट था.

तेज मूसलाधार बरसात!
बरसात कि.......?!

एक आकाशगंगा जहां जल ही जल!बिल्कुल थल नहीं! ऐसे मेँ जलचर प्राणियों के बीच मत्स्यमानव ! मत्स्यनर व नारी दोनों ही!

नारायण अब क्वासर क्षेत्र में पहुंच चुका था.

* * * *

सागर की तेज उठती लहरें !
समुद्र में ही एक विशालकाय नाग के ऊपर एक मत्स्यनारी बैठी लहरों की मौज ले रही थी.उसने जब देखा कि एक वृद्ध व्यक्ति अर्थात नारायण तो जल में छलांग लगा कर नारायण की ओर बढ़ गयी.

"यचाखँठपिकठेटचतछटे छडकच अर्थात आज यहां कैसे ?" मत्स्यनारी ने नारायण से पूछा.

"अटेपतकचीयपत चारक अर्थात बस तुम्हारी याद आ गयी."

..तो मत्स्यनारी मुस्कुरा दी.


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मेरें Nokia फ़ोन से भेजा गया












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