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शनिवार, 7 मई 2011

सद्भाव वाणी !

सद्भाव अब भी युवा था ,इसका एक मात्र कारण आयुर्वेद योग,तप,आदि था.वह आरदीस्वन्दी व धधस्कनक निवासी हलदकरोड़ा युवती,दस् रलकम व फदरस्लन की उपस्थिति में सामने उपस्थित पशु पक्षियों व विभिन्न मानवों को सम्बोधित कर रहा था.




विधाता की सत्ता शक्ति का सृष्टि में अंशविभाजन है-ब्रह्मा,विष्णु व महेश.इन तीनों से ऊपर है वह विधाता ,जिसे ब्लेक होल में आने व जाने की शक्ति प्राप्त कर लेने के बाद ही जाना जा सकता है.जहां तक अभी श्री कृष्ण ही अर्जुन को लेकर पहुंचे हैं.तब जब वे एक के मरे हुए पुत्रों को लेने पहुंचे थे.श्री कूष्ण के बाद ऐसी क्षमता कल्कि भगवान में ही होगी.ब्रह्मा जी एक बार नारद जी की जिज्ञासा को शान्त करते हुए बोले थे कि उन भगवान वासुदेव की मैं वन्दना करता हूँ और ध्यान भी,जिनकी दुर्जय माया से मोहित होकर लोग मुझे जगतगुरु कहते हैं.वेद नारायण के परायण हैं.देवता भी नारायण के ही अंगों में कल्पित हुए हैं और समस्त यज्ञ भी नारायण की प्रसन्ता के लिये ही हैं तथा उनसे जिन लोकों की प्राप्ति होती है,वे भी नारायण में ही कल्पित हैँ.वे द्रष्टा होने पर भी ईश्वर है,स्वामी हैं;निर्विकार होने पर भी सर्वस्वरुप हैं.उन्होने ही मुझे बनाया है और उनकी दृष्टि से ही प्रेरित होकर मैं उनके इच्छानुसार सृष्टि रचना करता हूँ.



सद्भाव एक विशालकाय अजगर को देख कर बोला कि आप लोग महान आत्मा रखते हैँ,एक साथ आपसब की यहाँ उपस्थिति इस बात का परिचय है.विज्ञान की खाद्य श्रंखला भी यहाँ पर फेल हो जाती है,क्यों कि खाद्यश्रंखला की अवधारणा में प्रकृति व्यवस्था है.चेतना की व्यवस्था काफी आगे की है.एक दूसरे के प्रति जन्माधारित हिँसात्मक सम्बन्ध रखने वाले जन्तु भी अपनी आत्मा में आने पर अहिंसक हो सकते हैं.चाहें को भी सम्प्रदाय हो सब जगह उसी विधाता के स्मरण के असफल कार्य हैं लेकिन कोई भी हम से आगे का एहसास या वखान नहीं रखते.ब्लेक का अन्धकार का बखान नहीं कर पाते,जो कहते हैं ईश्वर नहीं है और ब्रह्म से भी आगे के शून्य की बात करते हैं तो लोग उन्हें अनिश्वरवादी कह उठते,हालांकि उन्हें अनिश्वरवादी कहने वाले क्यों न अभी तक हम तक पहुंचे हों.देवी देवताओं ,पितरों,भूतों,आदि में ही रमण कर रहे हों.शून्य या शून्य से आगे की बात करने वाले बुद्धों को लोग अनिश्वरवादी कह ही उठते हैं.वहां पर हम जैसे व अन्य देवी देवता व भगवान नहीं होते.ब्लेक व शून्य को झेलने के बाद ही कोई उस सत्नारायण से साक्षात्कार पा सकता है.आम आदमी चन्द पल के लिए ब्लैक व शून्य का सामना करने पर परेशान हो उठता है,मतकटा का शिकार हो जाता है क्यों कि वह दृष्टा न बन दुनिया की नजर में बेहतर प्रदर्शन व अपने अहंकार व अस्तित्व को बचा कर रखना चाहता है .वह घबरा तो जाता है लेकिन इस बात से अन्जान होता है कि ब्लैक व शून्य प्रति तटस्थ होने पर ही हम अपने चेतना के स्रोत यानि कि उस बासुदेव को पा सकते हैं.



युवती हलदकरोड़ा बोली -" यह कलाप गांव कहाँ अस्तित्व में आयेगा?जिसकी जमीन में स्थित तहखाने में मरु मेडिटेशन में है? "


सद्भाव बोला-
"समय आने पर सब सामने आ जाएगा.मरु कलियुग के अन्त में नजर आयेगा और सूर्यवंश को फिर चलायेगा.अनेक योगसाधक है जो दुनियां से अन्जान हो मेडिटेशन में हैं. "



"हाँ,ऐसा तो है.पृथु मही पर एक टीले की खुदाई मेँ एक तहखाने मेँ एक व्यक्ति मेडिटेशन में मिला.उसने कलियुग खत्म हो जाने के बाद ही दुनिया में सक्रिय होने की बात की.फिर तहखाने से बाहर नहीं निकला और तहखाना बन्द कर दिया गया."




* * * * *


पृथु मही पर हिमालय के तराई क्षेत्र में स्थित माधव(माधौटांडा) वन में एक मन्दिर के के चारो ओर चक्कर लगा कर चला जाता था.



युवती फदेस्हरर बालक हफ्कदम के साथ इसी जंगल में थी.मन्दिर के चबूतरे पर आकर दोनों बैठ गये.मन्दिर के अन्दर दो साधु दरबाजे बन्द कर बैठे थे.



"अरे,अन्दर आ जाओ .शेर आने वाला है फांड़ डालेगा."



बालक हफ्कदम बोला-" किस स्तर के साधु हो. ".


युवती फदेस्हरर बोली
"हफ्कदम,क्या बोलते हो?".



मन्दिर के अन्दर खुसुरफुसुर हुई कि कोई लेडीज है ,अन्दर ले ले. ....क्या,हर वक्त नियति खराब न रखा रख,कहीं शेर आ गया तो...?.....आ गया.



शेर आकर मन्दिर का एक चक्कर लगाने के बाद फदेस्हरर व हफ्कदम के सामने रुक कर दहाड़ा.
दोनों शान्त भाव में बैठे रहे.



बालक हफ्कदम शेर से बोला-"तुम पिछले जन्म यहां साधु थे.अब चले आते हो चक्कर लगाने.बिचारे यह साधु डरते है .तू भी निर्जीव के पीछे पड़ गया?तेरा जल्दी ही मोक्ष होगा.तेरा अभी कुछ काम रह गया है.देवरावण को मारने वाला पैदा होने वाला है.भूम्सनदा पर आरदीस्वन्दी व सद्भाव की मुलाकात हो चुकी है".



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