तेज बरसात थी.
जंगल के बीच झोपड़ी व पेँड़ोँ पर बने मचानोँ पर कुछ शस्त्रधारी युवक युवतियाँ उपस्थित थे.
कुछ शस्त्रधारी युवतियाँ!
" रानी!जेल मेँ तो 'ललक' को लेकर बेचैन थी.अब यहाँ जंगल मेँ किसको लेकर?"
"मुझे क्या ऐसा वैसा समझ रखा है?मैँ क्या लौण्डे बदरते रहने वाली हूँ?"
"अच्छा,खामोश रहो.तुम सब हमेँ नहीँ जान सकती ? अनेक लौण्डोँ से व्वहार रखने का मतलब क्या सिर्फ एक ही होता है?...और बात है इस वक्त की, इस वक्त भी मेँ ललक को ही याद कर रही थी."
" साथ ले आती उसे भी."
"मै तो उसे समझाती रही,मेरे साथ चल लेकिन.... ."
"रानी, तू तो कहती है कि वह लड़की लड़की ही नहीँ जो लड़कोँ को अपनी ओर आकर्षित न कर सके, जो लड़कोँ को अपने इशारे पर नचा न सके."
"रानी!"
झाड़ी की ओर किसी की उपस्थिति ने युवतियोँ को सतर्क कर दिया.
"कौन?"
एक युवती अज्ञात व्यक्ति पर राइफल तान चुकी थी.
दूसरी युवती ने जब उस पर टार्च की रोशनी मारी तो-
"वाह!रानी यह तो तेरा ललक है."
"सारी,ललक!"
"रानी,तेरे बर्थ डे पर यह तोहफा."
"चुप बैठ."
""" *** """
गिरिजेश की गौरी के साथ सगाई हो चुकी थी.वह गौरी जो कभी ललक से प्यार करती थी लेकिन अब....?!दोनोँ की अर्थात गिरिजेश व गौरी की शादी अब दो दिन बाद सन2018ई019 नबम्व को हो जानी थी. गिरिजेश अपने गर्ल फ्रेण्डस व ब्याय फ्रेण्डस के साथ एक म्यूजिक क्लब मेँ था.
"यार गिरिजेश, आखिर तूने गौरी को पटा ही लिया."
एक युवती बोली-
"गिरिजेश! गौरी से शादी के बाद तू करोड़ोँ की सम्पत्ति का मालिक हो जाएगा,हमेँ भूल न जाना."
"कैसे भूल जाऊँगा? आप लोग ही तो मेरी मौज मस्ती के पार्टनर हो.आप लोगोँ के बिना मौज मस्ती कहाँ? और तुझे तो मुझे अपनी सचिव बनाना ही है."
"थैँक यू!"-
युवती बोली.
" गौरी से कोई प्यार थोड़े है.उससे तो प्यार का नाटक कर शादी के बाद उसकी सारी सम्पत्ति हथियाना है,बस. प्यार तो मैँ तुझसे करता हूँ"
"......लेकिन यह बात माननी होगी कि ललक है अच्छा इन्सान."
"हूँ!इस दुनिया मेँ इन्सानोँ की क्या औकात ? औकात तो जमीन जायदाद पद की है.मेरे पास क्या नहीँ है!जमीन जायदाद , माता पिता आईएएस व यह सुन्दर शरीर.....मेरे मन मेँ क्या है ? इससे दुनिया को मतलब नहीँ ! तभी तो गौरी आज मेरी मुट्ठी मेँ है और ललक....?! ललक जैसे प्रेमी ,धर्मवान ,औरोँ का हित सोँचने वाले.....जब तक ललक को दुनिया जानेगी,वह अपनी जवानी योँ ही तन्हाईयोँ परेशानियोँ मेँ बर्बाद कर...?! मौज मस्ती तो हम जैसोँ की जवानी करती है."
19नवम्बर2017 ई0 को ललक यादव ने अपने भाई मर्म यादव की हत्या कर दी थी.
मर्म यादव!
मर्म यादव इन्सान के शरीर मेँ एक शैतान था.
जिसका मकसद था सिर्फ अपना स्वार्थ.......एवं अपनी बासनाओँ की पूर्ति . जिसके लिए वह अन्य किशोर किशोरियोँ,युवतियोँ के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहा था.
आखिर फिर......
धर्म के पथ पर न कोई अपना होता है न कोई पराया.
कुरुशान अर्थात गीता सन्देश को स्मरण कर उसका ही भाई ललक यादव उसकी हत्या कर बैठा.
जय कुरुशान! जय कुरुआन!!
धरती पर सुप्रबन्धन के लिए प्रति पल जेहाद की आवश्यकता है,धर्म की आवश्यकता है.
कानून के रखवाले ही जब कानून के भक्षक बन जायेँ, कानून के रखवाले ही जब अपराधियोँ के रक्षक बन जाएँ तो ऐसे मेँ अन्याय व शोषण के खिलाफ ललक यादव जैसोँ के कदम...?!
इसी तरह!
जिन अधिकारियोँ नेताओँ से पब्लिक परेशान हो रही थी,शोषित हो रही थी जिन्हेँ शासन व प्रशासन संरक्षण दे रहा था.दस दिन की चेतावनी के बाद उनकी हत्या नक्सलियोँ व अन्य क्रान्तिकारियोँ के द्वारा हो रही थी.
सन2018ई0 की19 नबम्वर को ललक यादव की प्रेमिका गौरी की शादी गिरिजेश से हो चुकी थी.
गुरुवार, 30 सितंबर 2010
गांधी जयन्ती: सोनिय�� गांधी के आचरण मेँ गांधी दर्शन.
कांग्रेस अध्यक्ष के रूप मेँ सोनिया गांधी ने इन पाँच छ:वर्षोँ मेँ देश के अन्दर अपनी साख को बढ़ाया है लेकिन महात्मा गांधी की आर्थिक सामाजिक नीतियोँ पर वह खरी उतरी हैँ यह विचारणीय विषय है.महात्मा गांधी के 'रामराज्य' की अवधारणा का तात्पर्य था राज्य को धीरे धीरे शक्ति और हिँसा के संगठित रूप से निकाल कर एक ऐसी संस्था मेँ बदलना जो जनता की नैतिक शक्ति से संचालित हो.आदर्श ग्राम्य जीवन,आत्मनिर्भर गाँव, लघु व कुटीर उद्योग,स्वरोजगार,साम्प्रदायिक सौहार्द,स्वदेशी आन्दोलन,भयमुक्त समाज,शहरीकरण की अपेक्षा ग्रामीणीकरण,आदि के स्थापना प्रति दृढसंकल्प बिना गांधी की वकालत कर गांधी का अपमान ही कर रहे हैँ.इन पाँच सालोँ मेँ सोनिया गांधी ने आम जनता के दिल मेँ जगह बनायी है . राहुल गांधी की कार्यशैली के माध्यम से उन्होँने दलितोँ के बीच भी अपना स्थान बनाया है लेकिन उन्हेँ इस पर विचार करना चाहिए कि कुप्रबन्धन व भ्रष्टाचार के खिलाफ आरपार की लड़ाई के बिना गांधी दर्शन से प्रभावित आर्थिक सामाजिक नीतियाँ सफल नहीँ हो सकतीँ .जैसा की देखने मेँ आ रहा है कि विभिन्न योजनाएं भ्रष्टाचार की बलि चढ़ती जा रही हैँ.सर्वशिक्षा अभियान हो या मनरेगा या अन्य सब की सब योजनाओँ के साथ ऐसा ही है.गांधी के राष्ट्र विकास का रास्ता शहरोँ की ओर से नहीँ जाता लेकिन सोनिया गांधी शहरीकरण की अपेक्षा गांव व प्राथमिक साधनोँ के विकास पर कितना बल दे रही हैँ?ओशो ने कहा था
" गांधी को मैँ इस सदी का श्रेष्ठतम मनुष्य मानता हूँ. जो श्रेष्ठतम है उसके बाबत हमेँ बहुत सजग और होशपूर्वक विचार करना चाहिए.कहो कि गांधी ठीक हैँ तो फिर सौ प्रतिशत यही निर्णय लो.फिर छोड़ो सारी यांत्रिकता,फिर छोड़ो सारा केन्द्रीयकरण .बड़े शहरोँ को छोड़ दो,लौट आओ गाँव मेँ,और गांधी का पूरा प्रयोग करो. "
कृषि,बागवानी,प्रकृति की प्राकृतिकता को बनाये रखे बिना किया गया विकास गांधी की नीतियोँ के खिलाफ है.विकास परियोजनाओँ, व्यक्तियोँ की आवश्यकताओँ की पूर्ति की प्रक्रियाओँ को लागू करने की शर्त पर कृषि,बागवानी,प्रकृति,आदि का विनाश प्रकृति की प्राकृतिकता के खिलाफ है ,जिसके बिना भावी पीढ़ी का जीवन खतरे मेँ पड़ जाएगा.दूसरी ओर बजारीकरण ने हमारे सामाजिक समीकरण बदले ही हैँ , हमने गाँधी के खिलाफ भी कदम उठाए हैँ.अर्थशास्त्री अरुण कुमार का कहना है
" जिस प्रकार पश्चिम मेँ हर चीज को दौलत से तौल कर देखा जाता है कि फायदेमन्द है या नुकसानदायक है,उसी तरह से हमने अपने हर सामाजिक और सामुदायिक संस्था को बाजार के हिसाब से बदलना शुरु कर दिया है.उदाहरणत: शिक्षा व चिकित्सा को हम आदरणीय व्यवसाय मानते थे लेकिन...... जब 1947 मेँ हमेँ आजादी मिली थी ,तो उस वक्त भी समाज के समृद्ध तबके का नजरिया था कि पश्चिम के आधुनिकीकरण की गाड़ी बहुत तेजी से जा रही है ,किसी तरह हम उसे पकड़ लेँ.इसके विपरीत ,
गांधी जी का सपना था कि हम अपना अलग रास्ता चुने. "
यदि वास्तव मेँ सोनिया गांधी गांधी जी के मार्ग पर जाना चाहती हैँ तो अपनी व कांग्रेस की नियति से साक्षात्कार करते हुए विचार करना चाहिए कि क्या वास्तव मेँ देश गांधी जी के रास्ते पर है?
ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'
www.antaryahoo.blogspot.com
" गांधी को मैँ इस सदी का श्रेष्ठतम मनुष्य मानता हूँ. जो श्रेष्ठतम है उसके बाबत हमेँ बहुत सजग और होशपूर्वक विचार करना चाहिए.कहो कि गांधी ठीक हैँ तो फिर सौ प्रतिशत यही निर्णय लो.फिर छोड़ो सारी यांत्रिकता,फिर छोड़ो सारा केन्द्रीयकरण .बड़े शहरोँ को छोड़ दो,लौट आओ गाँव मेँ,और गांधी का पूरा प्रयोग करो. "
कृषि,बागवानी,प्रकृति की प्राकृतिकता को बनाये रखे बिना किया गया विकास गांधी की नीतियोँ के खिलाफ है.विकास परियोजनाओँ, व्यक्तियोँ की आवश्यकताओँ की पूर्ति की प्रक्रियाओँ को लागू करने की शर्त पर कृषि,बागवानी,प्रकृति,आदि का विनाश प्रकृति की प्राकृतिकता के खिलाफ है ,जिसके बिना भावी पीढ़ी का जीवन खतरे मेँ पड़ जाएगा.दूसरी ओर बजारीकरण ने हमारे सामाजिक समीकरण बदले ही हैँ , हमने गाँधी के खिलाफ भी कदम उठाए हैँ.अर्थशास्त्री अरुण कुमार का कहना है
" जिस प्रकार पश्चिम मेँ हर चीज को दौलत से तौल कर देखा जाता है कि फायदेमन्द है या नुकसानदायक है,उसी तरह से हमने अपने हर सामाजिक और सामुदायिक संस्था को बाजार के हिसाब से बदलना शुरु कर दिया है.उदाहरणत: शिक्षा व चिकित्सा को हम आदरणीय व्यवसाय मानते थे लेकिन...... जब 1947 मेँ हमेँ आजादी मिली थी ,तो उस वक्त भी समाज के समृद्ध तबके का नजरिया था कि पश्चिम के आधुनिकीकरण की गाड़ी बहुत तेजी से जा रही है ,किसी तरह हम उसे पकड़ लेँ.इसके विपरीत ,
गांधी जी का सपना था कि हम अपना अलग रास्ता चुने. "
यदि वास्तव मेँ सोनिया गांधी गांधी जी के मार्ग पर जाना चाहती हैँ तो अपनी व कांग्रेस की नियति से साक्षात्कार करते हुए विचार करना चाहिए कि क्या वास्तव मेँ देश गांधी जी के रास्ते पर है?
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सोमवार, 27 सितंबर 2010
परमाणु का जोर!
पोखरन के वाशिन्दोँ से पूछो
परमाणु बमोँ का जोर.
सत्ताओँ की साजिशेँ रचेँ बम
त्वचा ,कैँसर, कम होती निगाह-
शारीरिकीय परिवर्तन,
पोखरन के वाशिन्दोँ से पूछो-
परमाणु बमोँ का जोर.
हीरोशिमा,नागासाकी की मानवता,
अब भी नहीँ उबर पाई है,
सत्ताओँ की सजिशोँ को-
मानवता कब याद आई है,
पोखरन के वाशिन्दोँ से पूछो
परमाणु बमोँ का जोर.
परमाणु बमोँ का जोर.
सत्ताओँ की साजिशेँ रचेँ बम
त्वचा ,कैँसर, कम होती निगाह-
शारीरिकीय परिवर्तन,
पोखरन के वाशिन्दोँ से पूछो-
परमाणु बमोँ का जोर.
हीरोशिमा,नागासाकी की मानवता,
अब भी नहीँ उबर पाई है,
सत्ताओँ की सजिशोँ को-
मानवता कब याद आई है,
पोखरन के वाशिन्दोँ से पूछो
परमाणु बमोँ का जोर.
सभ्यता की पहचान महात��मा गांधी
हमने लोगोँ को कहते सुना है कि मजबूरी का नाम महात्मा गांधी लेकिन महात्मा गांधी का दर्शन,धर्म व अध्यात्म की ओर जाने का महान पथ है.वे आधुनिक दुनिया के श्रेष्ठ जेहादी हैँ.वे मजबूरी कैसे हो सकते हैँ ?महात्मा गांधी ने स्वयं कहा था कि अन्याय को सहना कायरता है.क्या हम कायर नहीँ ?आज के बातावरण से हम सन्तुष्ट भी नहीँ हैँ और खामोश भी हैँ.ऐसे मेँ हम पशुओँ की जिन्दगी से भी ज्यादा गिरे हैँ.
महात्मा गांधी वास्तव मेँ सभ्यता की पहचान हैँ.हम अभी उस स्तर पर नहीँ हैँ कि उन्हेँ या अन्य महापुरुष या धर्म को समझ सकेँ?अपनी इच्छाओँ की पूर्ति के लिए जवरदस्ती,दबंगता,हिँसा,दूसरे की इच्छाओँ को कुचलना,आदि पर उतर आना हमारी सभ्यता नहीँ है.उन धर्म ग्रन्थोँ व महापुरूषोँ को मैँ पूर्ण धार्मिक नहीँ मानता जो हिँसा के लिए प्रेरणा देते हैँ.हम शरीरोँ का सम्मान करेँ कोई बात नहीँ लेकिन उनमेँ विराजमान आत्मा व उसके उत्साह का तो सम्मान करेँ.हम किसी के उत्साह को मारने के दोषी न बनेँ.
उदारता,मधुरता,सद्भावना,त्याग,आदि का दबाव चित्त पर होना ही व्यक्ति की महानता है.चित्त पर आक्रोश,बदले का भाव, खिन्नता,हिँसा ,जबरदस्ती,दबंगता,आदि व्यक्ति के विकार हैँ जो कि व्यक्ति के सभ्यता की पहचान नहीँ हो सकती.भारतीय महाद्वीप के व्यकतियोँ के आचरणोँ को देख लगता है कि अभी असभ्यता बाकी है.मीडिया के माध्यम से अनेक घटनाएँ नजर मेँ आती है कि ईमानदार स्पष्ट कर्मचारियोँ,सूचनाधिकारियोँ,आदि पर कैसे व्यक्ति हावी हो जाता है.यहाँ तक कि हिँसा पर भी उतर आता है.यहाँ की अपेक्षा पश्चिम के देश कानूनी व्यवस्था के अनुसार ज्यादा चलते हैं.यहाँ के लोग तो यातायात के नियमोँ तक का पालन नहीँ कर पाते.
बात को बात से न मानने वाले कैसे सभ्य हो सकते ?शान्तिपूर्ण ढंग से अपनी बात कहने वालोँ के सामने शान्तिपूर्ण ढंग से जबाब न देने वाले क्या असभ्य नहीँ?जिस इन्सान के लिए अनुशासन हित जबरदस्ती या दबंगता का सहारा लेना पड़े तो समझो वह अभी पशुता व आदिम संस्कृति मेँ है,संस्कारित नहीँ.
" भय बिन होय न प्रीति"
भय के कारण अनुशासन या संस्कार एक प्रकार से ढोंग व पाखण्ड है.
भय व प्रीति अलग अलग भावना है.जरा,अपने अन्दर भय व प्रीति से साक्षात्कार कीजिए.मेरा अनुभव तो यही कहता है कि
प्रीति मेँ भय और खत्म हो जाता है.
ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'
A.B.V.I.COLLEGE,
MEERANPUR KATRA,
SHAHAJAHANPUR,
U.P.
महात्मा गांधी वास्तव मेँ सभ्यता की पहचान हैँ.हम अभी उस स्तर पर नहीँ हैँ कि उन्हेँ या अन्य महापुरुष या धर्म को समझ सकेँ?अपनी इच्छाओँ की पूर्ति के लिए जवरदस्ती,दबंगता,हिँसा,दूसरे की इच्छाओँ को कुचलना,आदि पर उतर आना हमारी सभ्यता नहीँ है.उन धर्म ग्रन्थोँ व महापुरूषोँ को मैँ पूर्ण धार्मिक नहीँ मानता जो हिँसा के लिए प्रेरणा देते हैँ.हम शरीरोँ का सम्मान करेँ कोई बात नहीँ लेकिन उनमेँ विराजमान आत्मा व उसके उत्साह का तो सम्मान करेँ.हम किसी के उत्साह को मारने के दोषी न बनेँ.
उदारता,मधुरता,सद्भावना,त्याग,आदि का दबाव चित्त पर होना ही व्यक्ति की महानता है.चित्त पर आक्रोश,बदले का भाव, खिन्नता,हिँसा ,जबरदस्ती,दबंगता,आदि व्यक्ति के विकार हैँ जो कि व्यक्ति के सभ्यता की पहचान नहीँ हो सकती.भारतीय महाद्वीप के व्यकतियोँ के आचरणोँ को देख लगता है कि अभी असभ्यता बाकी है.मीडिया के माध्यम से अनेक घटनाएँ नजर मेँ आती है कि ईमानदार स्पष्ट कर्मचारियोँ,सूचनाधिकारियोँ,आदि पर कैसे व्यक्ति हावी हो जाता है.यहाँ तक कि हिँसा पर भी उतर आता है.यहाँ की अपेक्षा पश्चिम के देश कानूनी व्यवस्था के अनुसार ज्यादा चलते हैं.यहाँ के लोग तो यातायात के नियमोँ तक का पालन नहीँ कर पाते.
बात को बात से न मानने वाले कैसे सभ्य हो सकते ?शान्तिपूर्ण ढंग से अपनी बात कहने वालोँ के सामने शान्तिपूर्ण ढंग से जबाब न देने वाले क्या असभ्य नहीँ?जिस इन्सान के लिए अनुशासन हित जबरदस्ती या दबंगता का सहारा लेना पड़े तो समझो वह अभी पशुता व आदिम संस्कृति मेँ है,संस्कारित नहीँ.
" भय बिन होय न प्रीति"
भय के कारण अनुशासन या संस्कार एक प्रकार से ढोंग व पाखण्ड है.
भय व प्रीति अलग अलग भावना है.जरा,अपने अन्दर भय व प्रीति से साक्षात्कार कीजिए.मेरा अनुभव तो यही कहता है कि
प्रीति मेँ भय और खत्म हो जाता है.
ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'
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SHAHAJAHANPUR,
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रविवार, 26 सितंबर 2010
ब्राह्माण्डखोर! < ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'>
सन 5020ई0की 25सितम्बर!
तीननेत्रधारी
एक नवयुवती आरदीस्वन्दी दीवार के एक भाग मेँ बने मानीटर पर अन्तरिक्ष की गति विधियोँ को देख रही थी.
अन्तरिक्ष मेँ एक विशालकाय प्रकाश पुञ्ज अनेक मन्दाकिनी को अपने मेँ समेटते जा रहा था.इस विनाशकारी ब्राह्माण्डभक्षी का जिक्र अब से लगभग 1990वर्ष पूर्व भविष्य त्रिपाठी ने किया था.
नादिरा खानम को कमरे मेँ आते देख कर भविष्य त्रिपाठी बोला-
"आओ आओ,आप भी देखो नादिरा खानम.आज से ढाई सौ वर्ष पूर्व अर्थात सन 2008ई 0 के 25सितम्बर दिन वृहस्पतिवार,01.29AMको 'सर जी' के द्वारा देखे गये स्वपन का विस्तार है यह मेरा स्वपन.उस स्वपन का परिणाम है यह सब.हमेँ कैसी देख रही हो? "
"आप को देख सोँच रही हूँ कि सात दिन बाद (अर्थात सन ई02258 10 सि तम्बर) बाद आप इस दुनियां मेँ नहीँ होँगे."
"मेरा शरीर तो आज से दो सौ वर्ष पूर्व ही मशीन हो चुका था,सिर्फ मस्तिष्क ही प्राकृतिक था लेकिन अब उसे भी साइन्स के सहारे कितना चलाया जाए?अब इस दुनिया से जाना ठीक है और फिर मेरा क्लोन तो इस धरती पर उपस्थित रहेगा ही.मेरे माइण्ड की भी फोटो कापी( प्रतिरुप) तैयार कर ली गयी है."
"मेरे पास भी शरीर के नाम से अपना अर्थात प्राकृतिक क्या है?मस्तिष्क के सिबा?मैँ भी तो ' साइबोर्ग' बन चुकी हूँ डेढ सो वर्ष पूर्व."
"अच्छा,इसे देखो ."
दोनोँ मानीटर पर चित्रोँ को देखने लगते हैँ.
अब फिर 5020 ई 0 !
सन 5020 ई0
की सितम्बर गुजर गयी,अक्टूबर गुजर गया फिर अब नवम्बर भी गुजरने को आयी.....
" 28 नवम्बर सन 5020ई0!"
"विचारणीय विषय है,वो बालक व वृद्ध साइन्टिस्ट हम लोगोँ को तो नजर आना चाहिए."
"आरदीस्वन्दी ,आप ठीक कहती हो लेकिन यह मात्र स्वपन नहीँ हो. "
" तो फिर ?!"
"वे दोनोँ खामोश हो,आरदीस्वन्दी! "
"हाँ,उनकी खामोशी का जिक्र मिलता भी है-अग्नि अण्कल."
"लेकिन ऐसे तकनीकी ज्ञाताओँ से सम्पर्क क्योँ न करो जो ....... . "
"जो होगा, सामने आ जायेगा ."
"हाँ, अपना देखो."
" 'दस सितम्बर' नाम के उपन्यास की पाण्डुलिपि आखिर किसने गुम की ? 'सर जी' तो अपने जीवन से सम्बन्धित हर कागज सँभाल कर रखते थे."
"देखो, अन्वेषण कर रहे है कुछ लोग.किसी कम्प्यूटर पर यदि डाला गया होगा तो जरूर सफलता मिलेगी. वह कम्प्यूटर जो कभी इण्टरनेट से जुड़ा हो.कुछ इण्टरनेट अपराधी .........?!"
""" *** """
एक नगरीय क्षेत्र!
अधिकतर इमारतेँ पिरामिड आकार की थीँ.कुछ दूरी पर जंगल के बीच ही एक भव्य इमारत -'सद्भावना'
'सदभावना' के बगल मेँ स्थित एक इमारत मेँ आरदीस्वन्दी की माँ अफस्केदीरन के साथ बैठ एक अधेड़ व्यक्ति'नारायण' मेडिटेशन मेँ था.
'सद्भावना'मेँ तो किसी स्त्री को जाना वर्जित था.वहाँ जो स्त्रियां थी भीँ वे ह्यूमोनायड थे.
नारायण के गुरु अर्थात महागुरू ने 'सद्भावना' इमारत का निर्माण करवाया था.
महागुरु का वास्तविक नाम था- 'उन्मुक्त जिन .'
अब से 220वर्ष पूर्व अर्थात सन 4800ई0 के 19 जनवरी!ओशो पुण्य दिवस!!
एक हाल मेँ बैठा वह मेडिटेशन मेँ था. उसके कानोँ मेँ आवाज गूँजी -
"आर्य, उन्मुक्त! तुम अभी 'जिन'नहीँ हुए हो.जिन के नाम पर तुम पाखण्डी हो.तुम को अभी कठोर तपस्या करनी होगी."
'उन्मुक्त जिन' के अज्ञातवास मेँ जाने के बाद कुख्यात औरतेँ ब्राह्माण्ड मेँ बेखौफ हो आतंक मचाने लगीँ.इन कुख्यात औरतोँ के बीच एक पाँच वर्षीय बालक ठहाके लगा रहा था.
यह कलि औरतेँ...?!
पाँच वर्षीय बालक मानीटर पर ब्राह्माण्डखोर की सक्रियता को देख देख ठहाके लगा रहा था.
इधर 'उन्मुक्त जिन' एक बर्फीली जगह मेँ एक गुफा के अन्दर मेडिटेशन मेँ था.
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www.twitter.com/AKVASHOKBINDU
A.B.V.INTER COLLEGE ,
MEERANPUR KATRA,
SHAHAJAHANPUR.
U.P.
तीननेत्रधारी
एक नवयुवती आरदीस्वन्दी दीवार के एक भाग मेँ बने मानीटर पर अन्तरिक्ष की गति विधियोँ को देख रही थी.
अन्तरिक्ष मेँ एक विशालकाय प्रकाश पुञ्ज अनेक मन्दाकिनी को अपने मेँ समेटते जा रहा था.इस विनाशकारी ब्राह्माण्डभक्षी का जिक्र अब से लगभग 1990वर्ष पूर्व भविष्य त्रिपाठी ने किया था.
नादिरा खानम को कमरे मेँ आते देख कर भविष्य त्रिपाठी बोला-
"आओ आओ,आप भी देखो नादिरा खानम.आज से ढाई सौ वर्ष पूर्व अर्थात सन 2008ई 0 के 25सितम्बर दिन वृहस्पतिवार,01.29AMको 'सर जी' के द्वारा देखे गये स्वपन का विस्तार है यह मेरा स्वपन.उस स्वपन का परिणाम है यह सब.हमेँ कैसी देख रही हो? "
"आप को देख सोँच रही हूँ कि सात दिन बाद (अर्थात सन ई02258 10 सि तम्बर) बाद आप इस दुनियां मेँ नहीँ होँगे."
"मेरा शरीर तो आज से दो सौ वर्ष पूर्व ही मशीन हो चुका था,सिर्फ मस्तिष्क ही प्राकृतिक था लेकिन अब उसे भी साइन्स के सहारे कितना चलाया जाए?अब इस दुनिया से जाना ठीक है और फिर मेरा क्लोन तो इस धरती पर उपस्थित रहेगा ही.मेरे माइण्ड की भी फोटो कापी( प्रतिरुप) तैयार कर ली गयी है."
"मेरे पास भी शरीर के नाम से अपना अर्थात प्राकृतिक क्या है?मस्तिष्क के सिबा?मैँ भी तो ' साइबोर्ग' बन चुकी हूँ डेढ सो वर्ष पूर्व."
"अच्छा,इसे देखो ."
दोनोँ मानीटर पर चित्रोँ को देखने लगते हैँ.
अब फिर 5020 ई 0 !
सन 5020 ई0
की सितम्बर गुजर गयी,अक्टूबर गुजर गया फिर अब नवम्बर भी गुजरने को आयी.....
" 28 नवम्बर सन 5020ई0!"
"विचारणीय विषय है,वो बालक व वृद्ध साइन्टिस्ट हम लोगोँ को तो नजर आना चाहिए."
"आरदीस्वन्दी ,आप ठीक कहती हो लेकिन यह मात्र स्वपन नहीँ हो. "
" तो फिर ?!"
"वे दोनोँ खामोश हो,आरदीस्वन्दी! "
"हाँ,उनकी खामोशी का जिक्र मिलता भी है-अग्नि अण्कल."
"लेकिन ऐसे तकनीकी ज्ञाताओँ से सम्पर्क क्योँ न करो जो ....... . "
"जो होगा, सामने आ जायेगा ."
"हाँ, अपना देखो."
" 'दस सितम्बर' नाम के उपन्यास की पाण्डुलिपि आखिर किसने गुम की ? 'सर जी' तो अपने जीवन से सम्बन्धित हर कागज सँभाल कर रखते थे."
"देखो, अन्वेषण कर रहे है कुछ लोग.किसी कम्प्यूटर पर यदि डाला गया होगा तो जरूर सफलता मिलेगी. वह कम्प्यूटर जो कभी इण्टरनेट से जुड़ा हो.कुछ इण्टरनेट अपराधी .........?!"
""" *** """
एक नगरीय क्षेत्र!
अधिकतर इमारतेँ पिरामिड आकार की थीँ.कुछ दूरी पर जंगल के बीच ही एक भव्य इमारत -'सद्भावना'
'सदभावना' के बगल मेँ स्थित एक इमारत मेँ आरदीस्वन्दी की माँ अफस्केदीरन के साथ बैठ एक अधेड़ व्यक्ति'नारायण' मेडिटेशन मेँ था.
'सद्भावना'मेँ तो किसी स्त्री को जाना वर्जित था.वहाँ जो स्त्रियां थी भीँ वे ह्यूमोनायड थे.
नारायण के गुरु अर्थात महागुरू ने 'सद्भावना' इमारत का निर्माण करवाया था.
महागुरु का वास्तविक नाम था- 'उन्मुक्त जिन .'
अब से 220वर्ष पूर्व अर्थात सन 4800ई0 के 19 जनवरी!ओशो पुण्य दिवस!!
एक हाल मेँ बैठा वह मेडिटेशन मेँ था. उसके कानोँ मेँ आवाज गूँजी -
"आर्य, उन्मुक्त! तुम अभी 'जिन'नहीँ हुए हो.जिन के नाम पर तुम पाखण्डी हो.तुम को अभी कठोर तपस्या करनी होगी."
'उन्मुक्त जिन' के अज्ञातवास मेँ जाने के बाद कुख्यात औरतेँ ब्राह्माण्ड मेँ बेखौफ हो आतंक मचाने लगीँ.इन कुख्यात औरतोँ के बीच एक पाँच वर्षीय बालक ठहाके लगा रहा था.
यह कलि औरतेँ...?!
पाँच वर्षीय बालक मानीटर पर ब्राह्माण्डखोर की सक्रियता को देख देख ठहाके लगा रहा था.
इधर 'उन्मुक्त जिन' एक बर्फीली जगह मेँ एक गुफा के अन्दर मेडिटेशन मेँ था.
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MEERANPUR KATRA,
SHAHAJAHANPUR.
U.P.
शनिवार, 25 सितंबर 2010
ब्राह्मण्डभक्षी !
अचानक वह सोते सोते जाग उठा.
स्वपन मेँ उसने यह क्या देख लिया?
मेडिटेशन से जब उसने अपने माइण्ड का सम्पर्क अपनी कम्प्यूटर प्रणाली से किया तो उसके माइण्ड मेँ टाइम स्मरण हुआ-1.29ए.एम. गुरुवार,25 सितम्बर 5020ई0!
खैर...
भविष्यवाणी थी कि घोर कलियुग के आते आते आदमी इतना छोटा हो जाएगा कि चने के खेत मेँ भी छिप सकता है.भाई ,शब्दोँ मेँ मत जाईए. वास्तव मेँ अब आदमी मानवीय मूल्योँ से दूर हो कर छोटा (शूद्र)ही हो जाएगा.हाँ,इतना नहीँ कि चने के खेत मेँ छिप जाये.
क्या कहा,छिप सकता है?
चना एवं उससे सम्बन्धित उत्पाद आदमी के छोटेपन (विकारोँ)को छिपा सकते हैँ.जब सबके लिए वृहस्पति खराब होगा तो.....?वृहस्पति किसके लिए खराब हो सकता है ?वृहस्पति किससे खुश रह सकता है?पीले रंग (थेरेपी )वस्त्र और बेसन से बने उत्पाद....?!और भाई हनुमान भक्तोँ द्वारा वन्दरोँ को चने खिलाना... ...?! सन 1980ई0 तक व्यायामशालाओँ व स्वास्थ्य केन्द्रोँ के द्वारा नाश्ते मेँ चने पर जोर.....
और यह....?अरे यह क्या ?
वैज्ञानिकोँ ने प्रयोगशाला मेँ चने के काफी बड़े बड़े पौधे विकसित कर लिए . वे नीबू करौँदे के पौधोँ के बराबर .....?!
खैर..?!
वह बालक सोते सोते जाग उठा.
और-
"भविष्यखोर, नहीँ ब्राह्माण्डखोर."
-वह बुदबुदाया.
फिर-
" किस सिद्धान्त पर'ब्राह्माण्डखोर'आर्थात'ब्राह्माण्डभक्षी'अर्थात ब्राह्माण्ड को खाने वाला....ब्राह्माण्ड का भक्षण....?!"
उस बालक ने प्रस्तुत की-'ब्राह्मण्डक्षी'वेबसाइड.
मचा दिया जिसने साधारण जन मानस मेँ तहलका.
लेकिन ,वह बालक कौन...?दुनिया अन्जान.
पहुँचा वह एक बुजुर्ग महान वैज्ञानिक के पास.
वह बुजुर्ग महान वैज्ञानिक उस बालक के माइण्ड के चेकअप बाद चौँका -
"ताज्जुब है ! एक सुपर कम्पयूटर से हजार गुना क्षमता रखने वाला इसका माइण्ड ? समाज इसे पागल कहता है ? इसके माइण्ड की यह कण्डीशन ? इतनी उच्च कण्डीशन कि स्वयं इस बालक का मन व शरीर ही इसको न झेल पाये और अपने रूम से निकलने के बाद अपने शरीर व मन को सँभाल पाये ? परिवार व समाज की उम्मीदोँ पर खरा न उतर पाये? क्या क्या? क्या ऐसा भी होता है? तो.....ऐसे मेँ इसे चाहिए ' सुपर मेडिटेशन '. मेडिटेशन के बाद इसका मन जब शान्त शान्ति व धैर्य धारण करे तो इसके स्वपन चिन्तन सम्पूर्ण मानवता के लिए वरदान साबित हो सकते है ? इनका एकान्त जितना महान होता है उतना ही कमरे से बाहर निकलने के बाद..... यह सब भीड़ मेँ कामकाजी बुद्धि न होने के कारण...."
पुन:
"इस बालक की वेबसाइडोँ मेँ जो भी है वह मात्र इसके अन्तर्द्वन्द,सामाजिक प्राकृतिक क्रियाओँ व्यवहारों के परिणाम स्वरूप विचलन से उपजे तथ्योँ का परिणाम है लेकिन सुपरमेडिटेशन के बाद जब इसका मन मस्तिष्क शान्त होगा तब......?!इस दुनिया का आम आदमी उस स्तर तक लाखोँ वर्षोँ बाद पहुँच पायेगा. वाह ! इसका माइण्ड....?!वास्तव मेँ इस बालक को व्यवसायी व मीडिया की गिरफ्त से दूर रखना होगा और फिर मीडिया के एक पार्ट ने अनेक बार जनमान स को मौत के मुँह मेँ भी ढकेला है,भय विछिप्तता के मुँह मेँ भी ढकेला है."
इस बालक ने मीडिया के सामने बस इतना बयान दिया-
" खामोश रहना ही ठीक है.मेरे अन्दर जो पैदा होता है,मैँ उसे नहीँ झेल पाता हूँ.विछिप्तता की स्थिति तक पहुँच जाता हूँ.अपने शरीर को मार देने की भी इच्छा चलने लगती है.ऐसे मेँ .......?!आप मेरे बयानोँ के आधार पर इस धरती पर व अन्य धरतियोँ पर भय या विछिप्तता का ही वातावरण बनायेँगे "
मानीटर युक्त दीवार पर बुजुर्ग महान वैज्ञानिक के साथ इस बालक को दर्शाया गया था.जिसे सम्बन्धित घटनाओँ के साथ कभी भविष्य त्रिपाठी ने कम्प्यूटर पर ग्राफ किया था.
" सन 2008 ई0 की 10 सितम्बर को पृथ्वी पर प्रारम्भ होने वाले महाप्रयोग के सम्बन्ध मेँ कुछ टीवी चैनलस जानस मेँ कितनी भयाक्रान्त स्थिति पैदा कर दिए थे ? कुछ लोग विछिप्त हो गए,यहाँ तक कि आत्महत्या तक कर बैठे.हमेँ के सम्बन्ध मेँ खामोश ही रहना चाहिए.सन 5020ई0 मेँ जो होँगे,वे देखेँगे इसे. "
पुन:-
"यह बालक व साइन्टिस्ट अभी तो मात्र मेरा स्वपन है जो इक्कयानवे वीँ सदी मेँ पूर्ण होगा.क्या डेट ? हाँ, याद आया 25 सित म्बर5020ई0 ......?!"
" भविष्य,क्या सोँच रहे हो ? "
क्या,भविष्य? यह व्यक्ति भविष्य?
हाँ,यह भविष्य ही अर्थात भविष्य त्रिपाठी ही.
"आओ आओ , आप भी देखो-नादिरा खानम.आज से ढाई सौ वर्ष पूर्व अर्थात सन 2008ई0के 25 सितम्बर दिन वृहस्पतिवार ,01.29
A.M.को 'सर जी'के द्वारा देखे गये स्वपन का विस्तार है यह मेरा स्वपन ."
इधर अन्तरिक्ष मेँ ब्राह्माण्डभक्षी विनाश करता चला जा रहा था.
स्वपन मेँ उसने यह क्या देख लिया?
मेडिटेशन से जब उसने अपने माइण्ड का सम्पर्क अपनी कम्प्यूटर प्रणाली से किया तो उसके माइण्ड मेँ टाइम स्मरण हुआ-1.29ए.एम. गुरुवार,25 सितम्बर 5020ई0!
खैर...
भविष्यवाणी थी कि घोर कलियुग के आते आते आदमी इतना छोटा हो जाएगा कि चने के खेत मेँ भी छिप सकता है.भाई ,शब्दोँ मेँ मत जाईए. वास्तव मेँ अब आदमी मानवीय मूल्योँ से दूर हो कर छोटा (शूद्र)ही हो जाएगा.हाँ,इतना नहीँ कि चने के खेत मेँ छिप जाये.
क्या कहा,छिप सकता है?
चना एवं उससे सम्बन्धित उत्पाद आदमी के छोटेपन (विकारोँ)को छिपा सकते हैँ.जब सबके लिए वृहस्पति खराब होगा तो.....?वृहस्पति किसके लिए खराब हो सकता है ?वृहस्पति किससे खुश रह सकता है?पीले रंग (थेरेपी )वस्त्र और बेसन से बने उत्पाद....?!और भाई हनुमान भक्तोँ द्वारा वन्दरोँ को चने खिलाना... ...?! सन 1980ई0 तक व्यायामशालाओँ व स्वास्थ्य केन्द्रोँ के द्वारा नाश्ते मेँ चने पर जोर.....
और यह....?अरे यह क्या ?
वैज्ञानिकोँ ने प्रयोगशाला मेँ चने के काफी बड़े बड़े पौधे विकसित कर लिए . वे नीबू करौँदे के पौधोँ के बराबर .....?!
खैर..?!
वह बालक सोते सोते जाग उठा.
और-
"भविष्यखोर, नहीँ ब्राह्माण्डखोर."
-वह बुदबुदाया.
फिर-
" किस सिद्धान्त पर'ब्राह्माण्डखोर'आर्थात'ब्राह्माण्डभक्षी'अर्थात ब्राह्माण्ड को खाने वाला....ब्राह्माण्ड का भक्षण....?!"
उस बालक ने प्रस्तुत की-'ब्राह्मण्डक्षी'वेबसाइड.
मचा दिया जिसने साधारण जन मानस मेँ तहलका.
लेकिन ,वह बालक कौन...?दुनिया अन्जान.
पहुँचा वह एक बुजुर्ग महान वैज्ञानिक के पास.
वह बुजुर्ग महान वैज्ञानिक उस बालक के माइण्ड के चेकअप बाद चौँका -
"ताज्जुब है ! एक सुपर कम्पयूटर से हजार गुना क्षमता रखने वाला इसका माइण्ड ? समाज इसे पागल कहता है ? इसके माइण्ड की यह कण्डीशन ? इतनी उच्च कण्डीशन कि स्वयं इस बालक का मन व शरीर ही इसको न झेल पाये और अपने रूम से निकलने के बाद अपने शरीर व मन को सँभाल पाये ? परिवार व समाज की उम्मीदोँ पर खरा न उतर पाये? क्या क्या? क्या ऐसा भी होता है? तो.....ऐसे मेँ इसे चाहिए ' सुपर मेडिटेशन '. मेडिटेशन के बाद इसका मन जब शान्त शान्ति व धैर्य धारण करे तो इसके स्वपन चिन्तन सम्पूर्ण मानवता के लिए वरदान साबित हो सकते है ? इनका एकान्त जितना महान होता है उतना ही कमरे से बाहर निकलने के बाद..... यह सब भीड़ मेँ कामकाजी बुद्धि न होने के कारण...."
पुन:
"इस बालक की वेबसाइडोँ मेँ जो भी है वह मात्र इसके अन्तर्द्वन्द,सामाजिक प्राकृतिक क्रियाओँ व्यवहारों के परिणाम स्वरूप विचलन से उपजे तथ्योँ का परिणाम है लेकिन सुपरमेडिटेशन के बाद जब इसका मन मस्तिष्क शान्त होगा तब......?!इस दुनिया का आम आदमी उस स्तर तक लाखोँ वर्षोँ बाद पहुँच पायेगा. वाह ! इसका माइण्ड....?!वास्तव मेँ इस बालक को व्यवसायी व मीडिया की गिरफ्त से दूर रखना होगा और फिर मीडिया के एक पार्ट ने अनेक बार जनमान स को मौत के मुँह मेँ भी ढकेला है,भय विछिप्तता के मुँह मेँ भी ढकेला है."
इस बालक ने मीडिया के सामने बस इतना बयान दिया-
" खामोश रहना ही ठीक है.मेरे अन्दर जो पैदा होता है,मैँ उसे नहीँ झेल पाता हूँ.विछिप्तता की स्थिति तक पहुँच जाता हूँ.अपने शरीर को मार देने की भी इच्छा चलने लगती है.ऐसे मेँ .......?!आप मेरे बयानोँ के आधार पर इस धरती पर व अन्य धरतियोँ पर भय या विछिप्तता का ही वातावरण बनायेँगे "
मानीटर युक्त दीवार पर बुजुर्ग महान वैज्ञानिक के साथ इस बालक को दर्शाया गया था.जिसे सम्बन्धित घटनाओँ के साथ कभी भविष्य त्रिपाठी ने कम्प्यूटर पर ग्राफ किया था.
" सन 2008 ई0 की 10 सितम्बर को पृथ्वी पर प्रारम्भ होने वाले महाप्रयोग के सम्बन्ध मेँ कुछ टीवी चैनलस जानस मेँ कितनी भयाक्रान्त स्थिति पैदा कर दिए थे ? कुछ लोग विछिप्त हो गए,यहाँ तक कि आत्महत्या तक कर बैठे.हमेँ
पुन:-
"यह बालक व साइन्टिस्ट अभी तो मात्र मेरा स्वपन है जो इक्कयानवे वीँ सदी मेँ पूर्ण होगा.क्या डेट ? हाँ, याद आया 25 सित म्बर5020ई0 ......?!"
" भविष्य,क्या सोँच रहे हो ? "
क्या,भविष्य? यह व्यक्ति भविष्य?
हाँ,यह भविष्य ही अर्थात भविष्य त्रिपाठी ही.
"आओ आओ , आप भी देखो-नादिरा खानम.आज से ढाई सौ वर्ष पूर्व अर्थात सन 2008ई0के 25 सितम्बर दिन वृहस्पतिवार ,01.29
A.M.को 'सर जी'के द्वारा देखे गये स्वपन का विस्तार है यह मेरा स्वपन ."
इधर अन्तरिक्ष मेँ ब्राह्माण्डभक्षी विनाश करता चला जा रहा था.
शुक्रवार, 24 सितंबर 2010
10 सितम्बर !
सन 5020ई 0की10 सितम्बर!
आरदीस्वन्दी का जन्मदिन!सनडेक्सरन धरती पर पिरामिड आकार की एक भव्य बिल्डिंग मेँ आरदीस्वन्दी के जन्मदिन पार्टी का आयोजन था.
दूसरी ओर एक अनुसन्धानशाला मेँ-
बड़े बड़े जारोँ मेँ अनेक युवतियोँ के क्लोन उपस्थित थे. अनेक बड़ी बड़ी परखनलियोँ मेँ बच्चोँ के भ्रूण विकसित हो रहे थे.अग्नि क्लोन पद्धति का स्पेस्लिस्ट .अपने प्रयोगशाला मेँ वह एक क्लोन व ह्यमोनायड पद्धति के सम तकनीकी से सम्कदेल वम्मा का प्रतिरूप तैयार किया था.जिससे अग्नि बोल रहा था-
" आप सम्कदेल वम्मा द्वितीय हैँ."
" आज आरदी स्वन्दी का जन्म दिन है जो कि सम्कदेल वम्मा की फ्रेण्ड थी."
फिर दोनोँ अनुसन्धानशाला से बाहर जाने लगे.
"अब हम दोनोँ आरदीस्वन्दी के बर्थ डे पार्टी मेँ चल रहे हैँ."
"थैँक यू!"
"किस बात का?"
" आज मैँ आरदीस्वन्दी से मिलूँगा ."
""" *** """
अचानक जब आरदीस्वन्दी ने सम्कदेल वम्मा द्वितीय को देखा तो उसे विश्वास नहीँ हुआ.
अग्नि के समीप आते हुए-
"अग्नि अण्कल! जरुर यह आपकी कृति होगी."
*** ## ***
आरदीस्वन्दी सम्कदेल वम्मा द्वितीय के साथ एक पार्क मेँ बैठी थी.
" कुछ वर्षोँ बाद कल्कि का अवतार होगा.यह समझने वाली बात है कि दो अवतारोँ के बीच हजारोँ वर्ष का अन्तर ...?क्या विधाता हर वक्त सजग नहीँ होता ?"
"आरदीस्वन्दी! विधाता तो हर वक्त सजग रहता है.वह सजग रहने या न रहने का प्रश्न ही नहीँ, यह तो स्थूल जगत की बात है.जिस तरह विधाता न कायर होता है न साहसी , उसी तरह वह न सजग रहता है न ही सजगहीन. न ही वह समय मेँ बँधा है.न उसका भविष्य है न उसका भूत,वह सदा वर्तमान मेँ है. उसके प्रतिनिधि हमेशा विभिन्ऩ धरतियोँ पर काम करते रहते हैँ,जिन धरतियोँ पर जीवन नहीँ है वहाँ भी जीवन की सम्भावनाएँ तलाशते रहते है."
पार्क मेँ एक विशालकाय नग्न व्यकति की प्रतिमा,जिसके शरीर पर एक अजगर लिपटा था और जिसका एक हाथ ऊपर आसमान की ओर उठा था,जिसमेँ दूज का चाँद था. दूसरे हाथ मेँ अजगर का मुँह पकड़ मेँ था.
" यह, यह प्रतिमा देख रहे हो. इसकी उपस्थिति पृथ्वी बासियोँ की तरह स्थूल मोह को दर्शाती है.ऐसा मोह प्रत्येक सृष्टि मेँ वैदिक काल के बाद पनपता है. कुछ लोग बाद मेँ स्थूल मोह के खिलाफ बात करने आते भी हैँ , उनको अधिकतर लोग नजर अन्दाज कर देते हैँ . जिसके परिणाम स्वरुप उन्हेँ कीट पतंगोँ जानवरोँ वृक्षोँ आदि का शरीर तक धारण करना होता है. . शरीर जब जीव के लायक नहीँ रहता तो जीव शरीर को छोड़ देता है और जब धरती ही जीवोँ के लायक नहीँ रह जाती तो...........?!"
"धरती को जीव छोड़ देते हैँ वे धरती पर रह जाते हैँ.और तब भी धरती पर शिव शंकर अपना खेल रचाते रहते हैँ. शिव ही हैँ जो विष को झेलते हैँ.प्रदूषण को झेलने वाले दो तरह के होते हैँ एक शिवमय दूसरे प्रदूषण के आदी...."
" हाँ,10 सितम्बर........"
सन2008ई0
10सितम्बर !
'कान्टेक्ट म्यूजिक डाट काम ' के मुताबिक ब्रिटिश गायक राबी विलियम्स ने बताया कि उनके घर एलियन आया था. ऐसा उस वक्त हुआ जब वे अपना गीत ' एरिजोना'लिखना खत्म ही किए थे.
10सितम्बर को ही-
बिग बैँग के समय की ऊर्जा तथा ब्राह्माण्ड की रचना से जुड़े गूढ़ रहस्योँ का पता लगाने के लिए 'लार्ज हेडरन कोलाइडर'(एल एच सी)के जरिए प्रयोग किया जाना निश्चित हुआ था.अत:वह भारतीय समयानुसार दिन मेँ एक बजे प्रारम्भ होना तय था.कुछ लोगोँ ने महाप्रलय की शंका भी व्यक्त कर दी थी.इस प्रयोग के प्रारम्भ होने से दो सेकण्ड मेँ पृथ्वी और चन्द्रमा नष्ट हो सकता था और आठ मिनट मेँ तो सूरज समेत पूरा सौरमण्डल .मीडिया ने इसी शंका के आधार पर पूरे विश्व को भ्रम शंका अफवाह मेँ ढकेल दिया था.
सेरेना की आत्मकथा-'मेरे जीवन के पल ' मानीटर युक्त कमरे की एक दीवार पर थी .आरदीस्वन्दी व सम्कदेल वम्मा द्वितीय जिसे देख रहे थे.
सन2007ई0 10सितम्बर!
शिवानी प्रकरण ने 'सर जी' को हतास उदास निराश बना दिया था.
.....लगभग एक साल बीतने जा रहा था. 'सर जी'को शिवानी से बोलने की इच्छा तो होती थी लेकिन 10सितम्बर 2007 से शिवानी नहीँ बोला था.शिवानी बोलेगी तो ठीक,नहीँ तो......?!
'सर जी' को शिवानी से कोई शिकायत न थी,न ही वे शिवानी के प्रति कोई गैरकानूनी या अप्राकृतिक सोँच रखते थे.जमाने का क्या ?सावन के अन्धे को हरा ही दिखायी देता है.'सर जी' कहते थे कि वह प्रेम प्रेम नहीँ जो आज है कल खत्म हो जाए.प्रेम खत्म नहीँ होता,प्रेम का रुपान्तरण होता है.प्रेम जब पैदा हो जाता है तब व्यक्ति नहीँ चाहता कि जिस से प्रेम है उस पर अपनी इच्छाएं थोपी जाएँ,उसे जान बूझ कर परेशान किया जाए या फिर उसकी इच्छाओँ को नजर अ न्दाज किया जाये. प्रेम मेँ 'मैँ'समाप्त हो जाता है.
आरदीस्वन्दी का जन्मदिन!सनडेक्सरन धरती पर पिरामिड आकार की एक भव्य बिल्डिंग मेँ आरदीस्वन्दी के जन्मदिन पार्टी का आयोजन था.
दूसरी ओर एक अनुसन्धानशाला मेँ-
बड़े बड़े जारोँ मेँ अनेक युवतियोँ के क्लोन उपस्थित थे. अनेक बड़ी बड़ी परखनलियोँ मेँ बच्चोँ के भ्रूण विकसित हो रहे थे.अग्नि क्लोन पद्धति का स्पेस्लिस्ट .अपने प्रयोगशाला मेँ वह एक क्लोन व ह्यमोनायड पद्धति के सम तकनीकी से सम्कदेल वम्मा का प्रतिरूप तैयार किया था.जिससे अग्नि बोल रहा था-
" आप सम्कदेल वम्मा द्वितीय हैँ."
" आज आरदी स्वन्दी का जन्म दिन है जो कि सम्कदेल वम्मा की फ्रेण्ड थी."
फिर दोनोँ अनुसन्धानशाला से बाहर जाने लगे.
"अब हम दोनोँ आरदीस्वन्दी के बर्थ डे पार्टी मेँ चल रहे हैँ."
"थैँक यू!"
"किस बात का?"
" आज मैँ आरदीस्वन्दी से मिलूँगा ."
""" *** """
अचानक जब आरदीस्वन्दी ने सम्कदेल वम्मा द्वितीय को देखा तो उसे विश्वास नहीँ हुआ.
अग्नि के समीप आते हुए-
"अग्नि अण्कल! जरुर यह आपकी कृति होगी."
*** ## ***
आरदीस्वन्दी सम्कदेल वम्मा द्वितीय के साथ एक पार्क मेँ बैठी थी.
" कुछ वर्षोँ बाद कल्कि का अवतार होगा.यह समझने वाली बात है कि दो अवतारोँ के बीच हजारोँ वर्ष का अन्तर ...?क्या विधाता हर वक्त सजग नहीँ होता ?"
"आरदीस्वन्दी! विधाता तो हर वक्त सजग रहता है.वह सजग रहने या न रहने का प्रश्न ही नहीँ, यह तो स्थूल जगत की बात है.जिस तरह विधाता न कायर होता है न साहसी , उसी तरह वह न सजग रहता है न ही सजगहीन. न ही वह समय मेँ बँधा है.न उसका भविष्य है न उसका भूत,वह सदा वर्तमान मेँ है. उसके प्रतिनिधि हमेशा विभिन्ऩ धरतियोँ पर काम करते रहते हैँ,जिन धरतियोँ पर जीवन नहीँ है वहाँ भी जीवन की सम्भावनाएँ तलाशते रहते है."
पार्क मेँ एक विशालकाय नग्न व्यकति की प्रतिमा,जिसके शरीर पर एक अजगर लिपटा था और जिसका एक हाथ ऊपर आसमान की ओर उठा था,जिसमेँ दूज का चाँद था. दूसरे हाथ मेँ अजगर का मुँह पकड़ मेँ था.
" यह, यह प्रतिमा देख रहे हो. इसकी उपस्थिति पृथ्वी बासियोँ की तरह स्थूल मोह को दर्शाती है.ऐसा मोह प्रत्येक सृष्टि मेँ वैदिक काल के बाद पनपता है. कुछ लोग बाद मेँ स्थूल मोह के खिलाफ बात करने आते भी हैँ , उनको अधिकतर लोग नजर अन्दाज कर देते हैँ . जिसके परिणाम स्वरुप उन्हेँ कीट पतंगोँ जानवरोँ वृक्षोँ आदि का शरीर तक धारण करना होता है. . शरीर जब जीव के लायक नहीँ रहता तो जीव शरीर को छोड़ देता है और जब धरती ही जीवोँ के लायक नहीँ रह जाती तो...........?!"
"धरती को जीव छोड़ देते हैँ वे धरती पर रह जाते हैँ.और तब भी धरती पर शिव शंकर अपना खेल रचाते रहते हैँ. शिव ही हैँ जो विष को झेलते हैँ.प्रदूषण को झेलने वाले दो तरह के होते हैँ एक शिवमय दूसरे प्रदूषण के आदी...."
" हाँ,10 सितम्बर........"
सन2008ई0
10सितम्बर !
'कान्टेक्ट म्यूजिक डाट काम ' के मुताबिक ब्रिटिश गायक राबी विलियम्स ने बताया कि उनके घर एलियन आया था. ऐसा उस वक्त हुआ जब वे अपना गीत ' एरिजोना'लिखना खत्म ही किए थे.
10सितम्बर को ही-
बिग बैँग के समय की ऊर्जा तथा ब्राह्माण्ड की रचना से जुड़े गूढ़ रहस्योँ का पता लगाने के लिए 'लार्ज हेडरन कोलाइडर'(एल एच सी)के जरिए प्रयोग किया जाना निश्चित हुआ था.अत:वह भारतीय समयानुसार दिन मेँ एक बजे प्रारम्भ होना तय था.कुछ लोगोँ ने महाप्रलय की शंका भी व्यक्त कर दी थी.इस प्रयोग के प्रारम्भ होने से दो सेकण्ड मेँ पृथ्वी और चन्द्रमा नष्ट हो सकता था और आठ मिनट मेँ तो सूरज समेत पूरा सौरमण्डल .मीडिया ने इसी शंका के आधार पर पूरे विश्व को भ्रम शंका अफवाह मेँ ढकेल दिया था.
सेरेना की आत्मकथा-'मेरे जीवन के पल ' मानीटर युक्त कमरे की एक दीवार पर थी .आरदीस्वन्दी व सम्कदेल वम्मा द्वितीय जिसे देख रहे थे.
सन2007ई0 10सितम्बर!
शिवानी प्रकरण ने 'सर जी' को हतास उदास निराश बना दिया था.
.....लगभग एक साल बीतने जा रहा था. 'सर जी'को शिवानी से बोलने की इच्छा तो होती थी लेकिन 10सितम्बर 2007 से शिवानी नहीँ बोला था.शिवानी बोलेगी तो ठीक,नहीँ तो......?!
'सर जी' को शिवानी से कोई शिकायत न थी,न ही वे शिवानी के प्रति कोई गैरकानूनी या अप्राकृतिक सोँच रखते थे.जमाने का क्या ?सावन के अन्धे को हरा ही दिखायी देता है.'सर जी' कहते थे कि वह प्रेम प्रेम नहीँ जो आज है कल खत्म हो जाए.प्रेम खत्म नहीँ होता,प्रेम का रुपान्तरण होता है.प्रेम जब पैदा हो जाता है तब व्यक्ति नहीँ चाहता कि जिस से प्रेम है उस पर अपनी इच्छाएं थोपी जाएँ,उसे जान बूझ कर परेशान किया जाए या फिर उसकी इच्छाओँ को नजर अ न्दाज किया जाये. प्रेम मेँ 'मैँ'समाप्त हो जाता है.
बुधवार, 22 सितंबर 2010
सम्कदेल का अन्त!
....सम्कदेल वम्मा मुश्किल मेँ था.अब कैसे यान को वह आगे निकाले?दुश्मनोँ के यान से छोड़ी जा रही घातक तरंगे यान को नुकसान पहुँचा सकती थी.ऐसे मेँ उसने अनेक धरतियोँ पर उपस्थित अपने सहयोगियोँ से एक साथ सम्पर्क साधा.
"मेरे यान को घेर लिया गया है."
सम्कदेल वम्मा के सहयोगियोँ के द्वारा अपने अपने नियन्त्रण कक्ष से अपने अपने कृत्रिम उपग्रहोँ मेँ फिट हथियारोँ से दुश्मन के यानोँ पर घातक तरंगे छोड़ी जाने लगीँ.अनेक यान नष्ट भी हुए.
लेकिन....?!
सम्कदेल वम्मा के यान मेँ आग लग गयी .
"मित्रोँ!सर! यान मेँ आग लग गयी है. दुश्मनोँ के यानोँ से छोड़ी जाने वाली घातक तरंगोँ से मेरा यान अब भी घिरा हुआ है. कोई अपने कृत्रिम उपग्रह से पायलटहीन यान भेजेँ . लेकिन.....?!मैँ......मैँ... ....मैँ.....आ.....आ...(कराहते हुए) आत्मसमर्पण करने जा रहा हूँ."
फिर सम्कदेल वम्मा ने सिर झुका लिया.
सम्कदेल वम्मा ने अपने बेल्ट पर लगा एक स्बीच आफ कर दिया.जिससे उसके ड्रेश पर की जहाँ तहाँ टिमटिमाती रोशनियाँ बन्द हो गयीँ. इसके साथ ही यानोँ से घातक तरंगोँ का अटैक समाप्त हो गया और जैसे ही उसने अपने यान का दरवाजा खोला एक विशेष प्रकार की चुम्बकीय तरंगोँ ने उसे खीँच कर दुश्मन के एक यान मेँ पहुंचा दिया.वह यान के बन्द होते दरबाजे की ओर देखने लगा.
"दरबाजे की ओर क्योँ देख रहे हो?"
"तुम?!"
"हाँ मै,तुम हमसे दोस्ती कर लो.मौज करोगे."
"मेरा मौज मेरे मिशन मेँ है."
" हा S S S S हा S S S S हा S S S हा S S S S हा S S S " - ठाहके लगाते हुए.
फिर-
"धर्म मेँ क्या रखा है? जेहाद मेँ क्या रखा है ? ' जय कुरुशान जय कुरुआन' का जयघोष छोड़ो.'जय काम' बोलो 'जय अर्थ' बोलो.जितना 'काम'और 'अर्थ'मेँ मजा है उतना 'धर्म'और 'मोक्ष'मेँ कहाँ ? 'काम'और'अर्थ'की लालसा पालो,'धर्म'और 'मोक्ष' की नहीँ."
"तुम मार दो मेरे तन को.तभी तुम्हारी भलाई है."
" सम्कदेल वम्मा! अपने पिता की तरह क्या तुम मरना पसन्द करोगे? "
" पिता कैसा पिता?शरीर तो नश्वर ही है . तू हमेँ मारेगा ? भूल गया तू क्या कुरुशान को अर्थात गीता सन्देश को ? भूल गया तू क्या कुरुआन को -हुसैन की शहादत को ? "
"सम्कदेल! तू भी अपने पिता की तरह बोलता है? "
"हूँ! तुम जैसे भोगवादी! धन लोलुप! कामुक!थू! "
"सम्कदेल!"
"हमारी कोशिसेँ बेकार नहीँ जायेगी . क्योँ न बार बार मर कर बार बार जन्म लेना पड़े? राम कृष्ण के जन्म हेतु अतीत मेँ कारण छिपे होते है. तेरा अहंकार जाग कर जब तक सौ प्रतिशत नहीँ हो जाता तब तक तू मोक्ष नहीँ पा सकता, इसके लिए तुझे बार बार जन्म लेना पड़ सकता है. तू चाहे मेरे इस शरीर को मार दे लेकिन तेरा अहंकार चकनाचूर करने को मैँ फिर जन्म लूँगा -देव रावण . "
" अपनी फिलासफी तू अपने पास रख. कुछ दिनोँ बाद ब्राहमाण्ड की सारी शक्तियाँ हमारे हाथ मेँ होगी. तुम मुट्ठी भर लोग क्या करोगे? अब हम वो दुर्योधन बनेँगे जो कृष्ण को भी अपने साथ रखेगा ,कृष्ण की नारायणी सेना भी. अब मैँ वह रावण बनूंगा जो विभीषण से प्रेम करेगा,राम के पास नहीँ जाने देगा.अगर जायेगा भी तो जिन्दा नहीँ जाएगा."
"यह तो वक्त बतायेगा,जनाब . वक्त आने पर अच्छे अच्छे की बुद्धि काम नहीँ करती.आप क्या चीज हैँ ?"
"हूँ!"
फिर-
" सम्कदेल! जानता हूँ धर्म मोक्ष देता है लेकिन तुम क्या यह नहीँ जानते कि अधर्म भी मोक्ष देता है?मैँ आखिरी वार कह रहा हूँ कि मेरे साथ आ जाओ. नहीँ तो मरने को तैयार हो जाओ."
" मार दो, मेरे शरीर को मार दो."
"डरना नहीँ मरने से?"
"क्योँ डरुँ? चल मार."
सम्कदेल वम्मा के सहयोगी अपने अपने ठिकाने से अन्तरिक्ष मेँ आ चुके थे.
लेकिन...?!
सम्कदेल वम्मा ......?!
""" *** """
एक चालकहीन कम्प्यूटरीकृत यान सनडेक्सरन धरती पर आ कर सम्कदेल वम्मा के मृतक शरीर को छोड़ गया था. आरदीस्वन्दी भागती हुई मृतक शरीर के पास आयी और शान्त भाव मेँ खड़ी हो गयी.
उसके मन मस्तिष्क मेँ सम्कदेल वम्मा के कथन गूँज उठे.
".....शरीर तो नश्वर है . हमे तू मारेगा? भूल गया कुरुशान को अर्थात गीता सन्देश को ? ..... हमारी कोशिसेँ बेकार नहीँ जाएगी. क्योँ न बार बार मर कर बार बार जन्म लेना पड़े?"
आरदीस्वन्दी अभी कुछ समय पहले सम्कदेल वम्मा व देव रावण की वार्ता को सचित्र देख रही थी.आरदीस्वन्दी ने सिर उठा कर देखा कि यान अन्तरिक्ष से वापस आ रहे थे.
कुछ दूर एक विशालकाय स्क्रीन पर अन्तरिक्ष युद्ध के चित्र प्रसारित हो रहे थे. देव रावण के अनेक यानोँ को नष्ट किया जा चुका था.
अब भी-
"..... तेरा अहंकार जाग कर जब तक सौ प्रतिशत नहीँ हो जाता तब तक तू भी मोक्ष नहीँ पा सकता है, इसके लिए तुझे भी बार बार जन्म लेना पड़ सकता है. तू चाहे मेरे इस शरी
"मेरे यान को घेर लिया गया है."
सम्कदेल वम्मा के सहयोगियोँ के द्वारा अपने अपने नियन्त्रण कक्ष से अपने अपने कृत्रिम उपग्रहोँ मेँ फिट हथियारोँ से दुश्मन के यानोँ पर घातक तरंगे छोड़ी जाने लगीँ.अनेक यान नष्ट भी हुए.
लेकिन....?!
सम्कदेल वम्मा के यान मेँ आग लग गयी .
"मित्रोँ!सर! यान मेँ आग लग गयी है. दुश्मनोँ के यानोँ से छोड़ी जाने वाली घातक तरंगोँ से मेरा यान अब भी घिरा हुआ है. कोई अपने कृत्रिम उपग्रह से पायलटहीन यान भेजेँ . लेकिन.....?!मैँ......मैँ... ....मैँ.....आ.....आ...(कराहते हुए) आत्मसमर्पण करने जा रहा हूँ."
फिर सम्कदेल वम्मा ने सिर झुका लिया.
सम्कदेल वम्मा ने अपने बेल्ट पर लगा एक स्बीच आफ कर दिया.जिससे उसके ड्रेश पर की जहाँ तहाँ टिमटिमाती रोशनियाँ बन्द हो गयीँ. इसके साथ ही यानोँ से घातक तरंगोँ का अटैक समाप्त हो गया और जैसे ही उसने अपने यान का दरवाजा खोला एक विशेष प्रकार की चुम्बकीय तरंगोँ ने उसे खीँच कर दुश्मन के एक यान मेँ पहुंचा दिया.वह यान के बन्द होते दरबाजे की ओर देखने लगा.
"दरबाजे की ओर क्योँ देख रहे हो?"
"तुम?!"
"हाँ मै,तुम हमसे दोस्ती कर लो.मौज करोगे."
"मेरा मौज मेरे मिशन मेँ है."
" हा S S S S हा S S S S हा S S S हा S S S S हा S S S " - ठाहके लगाते हुए.
फिर-
"धर्म मेँ क्या रखा है? जेहाद मेँ क्या रखा है ? ' जय कुरुशान जय कुरुआन' का जयघोष छोड़ो.'जय काम' बोलो 'जय अर्थ' बोलो.जितना 'काम'और 'अर्थ'मेँ मजा है उतना 'धर्म'और 'मोक्ष'मेँ कहाँ ? 'काम'और'अर्थ'की लालसा पालो,'धर्म'और 'मोक्ष' की नहीँ."
"तुम मार दो मेरे तन को.तभी तुम्हारी भलाई है."
" सम्कदेल वम्मा! अपने पिता की तरह क्या तुम मरना पसन्द करोगे? "
" पिता कैसा पिता?शरीर तो नश्वर ही है . तू हमेँ मारेगा ? भूल गया तू क्या कुरुशान को अर्थात गीता सन्देश को ? भूल गया तू क्या कुरुआन को -हुसैन की शहादत को ? "
"सम्कदेल! तू भी अपने पिता की तरह बोलता है? "
"हूँ! तुम जैसे भोगवादी! धन लोलुप! कामुक!थू! "
"सम्कदेल!"
"हमारी कोशिसेँ बेकार नहीँ जायेगी . क्योँ न बार बार मर कर बार बार जन्म लेना पड़े? राम कृष्ण के जन्म हेतु अतीत मेँ कारण छिपे होते है. तेरा अहंकार जाग कर जब तक सौ प्रतिशत नहीँ हो जाता तब तक तू मोक्ष नहीँ पा सकता, इसके लिए तुझे बार बार जन्म लेना पड़ सकता है. तू चाहे मेरे इस शरीर को मार दे लेकिन तेरा अहंकार चकनाचूर करने को मैँ फिर जन्म लूँगा -देव रावण . "
" अपनी फिलासफी तू अपने पास रख. कुछ दिनोँ बाद ब्राहमाण्ड की सारी शक्तियाँ हमारे हाथ मेँ होगी. तुम मुट्ठी भर लोग क्या करोगे? अब हम वो दुर्योधन बनेँगे जो कृष्ण को भी अपने साथ रखेगा ,कृष्ण की नारायणी सेना भी. अब मैँ वह रावण बनूंगा जो विभीषण से प्रेम करेगा,राम के पास नहीँ जाने देगा.अगर जायेगा भी तो जिन्दा नहीँ जाएगा."
"यह तो वक्त बतायेगा,जनाब . वक्त आने पर अच्छे अच्छे की बुद्धि काम नहीँ करती.आप क्या चीज हैँ ?"
"हूँ!"
फिर-
" सम्कदेल! जानता हूँ धर्म मोक्ष देता है लेकिन तुम क्या यह नहीँ जानते कि अधर्म भी मोक्ष देता है?मैँ आखिरी वार कह रहा हूँ कि मेरे साथ आ जाओ. नहीँ तो मरने को तैयार हो जाओ."
" मार दो, मेरे शरीर को मार दो."
"डरना नहीँ मरने से?"
"क्योँ डरुँ? चल मार."
सम्कदेल वम्मा के सहयोगी अपने अपने ठिकाने से अन्तरिक्ष मेँ आ चुके थे.
लेकिन...?!
सम्कदेल वम्मा ......?!
""" *** """
एक चालकहीन कम्प्यूटरीकृत यान सनडेक्सरन धरती पर आ कर सम्कदेल वम्मा के मृतक शरीर को छोड़ गया था. आरदीस्वन्दी भागती हुई मृतक शरीर के पास आयी और शान्त भाव मेँ खड़ी हो गयी.
उसके मन मस्तिष्क मेँ सम्कदेल वम्मा के कथन गूँज उठे.
".....शरीर तो नश्वर है . हमे तू मारेगा? भूल गया कुरुशान को अर्थात गीता सन्देश को ? ..... हमारी कोशिसेँ बेकार नहीँ जाएगी. क्योँ न बार बार मर कर बार बार जन्म लेना पड़े?"
आरदीस्वन्दी अभी कुछ समय पहले सम्कदेल वम्मा व देव रावण की वार्ता को सचित्र देख रही थी.आरदीस्वन्दी ने सिर उठा कर देखा कि यान अन्तरिक्ष से वापस आ रहे थे.
कुछ दूर एक विशालकाय स्क्रीन पर अन्तरिक्ष युद्ध के चित्र प्रसारित हो रहे थे. देव रावण के अनेक यानोँ को नष्ट किया जा चुका था.
अब भी-
"..... तेरा अहंकार जाग कर जब तक सौ प्रतिशत नहीँ हो जाता तब तक तू भी मोक्ष नहीँ पा सकता है, इसके लिए तुझे भी बार बार जन्म लेना पड़ सकता है. तू चाहे मेरे इस शरी
रविवार, 19 सितंबर 2010
20सितम्बर:आचार्य श्री��ाम शर्मा जन्म दिन
Sun, 19 Sep 2010 07:59 IST
20 सितम्बर: श्रीराम शर्मा आचार्य जन्म दिवस
आधुनिक भारत मेँ वैज्ञानिक अध्यात्म के जगत मेँ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य का योगदान सराहनीय रहेगा. विशेष रूप से उनके द्वारा 'ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान ' की स्थापना के लिए हम जैसे युवा बड़े ऋणी रहेँगे. 'यज्ञपैथी' की खोज विश्व के लिए वरदान बनने जा ही रहा है.
मैँ व्यक्तिपूजा का विरोधी रहा हूँ.हम तक धरती पर हैँ प्रकृति का सम्मान करते रहना है.आत्म साक्षात्कार के साथ साथ महापुरुषोँ से प्रेरणा लेते रहना है.हमने कभी ओशो,कभी जयगुरुदेव,कभी अन्य की लोगोँ को आलोचना करते देखा है और वे जिसके अनुयायी होते है,उसके पीछे अन्धे हो जाते हैँ ..मैँ किसी का अनुयायी नहीँ बनना चाहता.बस,आत्म साक्षात्कार,सत्य
अन्वेषण,स्वाध्याय,सम्वाद,मुलाकात,आदि के माध्यम से अपने अन्तर जगत को अपनी आत्मा मेँ लीन कर देना चाहता हूँ.अनुयायी तो झूठे होते है,वे लकीर के फकीर होते है.सुबह से शाम,शाम से सुबह तक अपने कर्मोँ के प्रति वे जो नियति रखते हैँ,वह निन्दनीय हो सकती है.महापुरुषोँ के दर्शन के खिलाफ भी देखी है मैने इनकी सोच.एक दो घण्टे स्थूल रूप से अपने महापुरूष के लिए समय देने का मतलब यह नहीँ हो
जाता कि हम श्रेष्ठ हो गये, सोँच से आर्य हो गये.
मैँ जब कक्षा 5 का विद्यार्थी था ,तब से मेँ अखण्ड ज्योति पत्रिका व आचार्य जी से सम्बन्धित साहित्य पढ़ता आया हूँ.कक्षा 12 मेँ आते आते ओशो ,ओरसन स्वेट मार्डेन,आर्य साहित्य,आदि का अध्ययन प्रारम्भ कर दिया था.
लेकिन किताबेँ पढ़ डालना व पढ़ लेने मेँ फर्क होता है. आत्मसाक्षात्कार व समाज के लिए भी समय देना आवश्यक है.
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य के जन्म के अवसर पर तटस्थ विद्वानोँ व दार्शनिकोँ को मेरा शत् शत् नमन् !
एक नई वैचारिक क्रान्ति के साथ-
www.ashokbindu.blogspot.com
20 सितम्बर: श्रीराम शर्मा आचार्य जन्म दिवस
आधुनिक भारत मेँ वैज्ञानिक अध्यात्म के जगत मेँ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य का योगदान सराहनीय रहेगा. विशेष रूप से उनके द्वारा 'ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान ' की स्थापना के लिए हम जैसे युवा बड़े ऋणी रहेँगे. 'यज्ञपैथी' की खोज विश्व के लिए वरदान बनने जा ही रहा है.
मैँ व्यक्तिपूजा का विरोधी रहा हूँ.हम तक धरती पर हैँ प्रकृति का सम्मान करते रहना है.आत्म साक्षात्कार के साथ साथ महापुरुषोँ से प्रेरणा लेते रहना है.हमने कभी ओशो,कभी जयगुरुदेव,कभी अन्य की लोगोँ को आलोचना करते देखा है और वे जिसके अनुयायी होते है,उसके पीछे अन्धे हो जाते हैँ ..मैँ किसी का अनुयायी नहीँ बनना चाहता.बस,आत्म साक्षात्कार,सत्य
अन्वेषण,स्वाध्याय,सम्वाद,मुलाकात,आदि के माध्यम से अपने अन्तर जगत को अपनी आत्मा मेँ लीन कर देना चाहता हूँ.अनुयायी तो झूठे होते है,वे लकीर के फकीर होते है.सुबह से शाम,शाम से सुबह तक अपने कर्मोँ के प्रति वे जो नियति रखते हैँ,वह निन्दनीय हो सकती है.महापुरुषोँ के दर्शन के खिलाफ भी देखी है मैने इनकी सोच.एक दो घण्टे स्थूल रूप से अपने महापुरूष के लिए समय देने का मतलब यह नहीँ हो
जाता कि हम श्रेष्ठ हो गये, सोँच से आर्य हो गये.
मैँ जब कक्षा 5 का विद्यार्थी था ,तब से मेँ अखण्ड ज्योति पत्रिका व आचार्य जी से सम्बन्धित साहित्य पढ़ता आया हूँ.कक्षा 12 मेँ आते आते ओशो ,ओरसन स्वेट मार्डेन,आर्य साहित्य,आदि का अध्ययन प्रारम्भ कर दिया था.
लेकिन किताबेँ पढ़ डालना व पढ़ लेने मेँ फर्क होता है. आत्मसाक्षात्कार व समाज के लिए भी समय देना आवश्यक है.
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य के जन्म के अवसर पर तटस्थ विद्वानोँ व दार्शनिकोँ को मेरा शत् शत् नमन् !
एक नई वैचारिक क्रान्ति के साथ-
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सम्कदेल के आखिरी दिन
सन 5012की14जून!
एक सभागार से निकलने के बाद सम्कदेल वम्मा अपने अण्कल सर के साथ दलित व गरीब वस्ती मेँ कुछ समय गुजारने के बाद हवाई पट्टी पर आ कर अपने यान मेँ प्रवेश कर गये.
निम्न व मध्य वर्ग मेँ कल्कि अवतार की काफी चर्चा थी.उच्च वर्ग के लोग जो कि अधिकतर वैज्ञानिक थे,प्रयोगशालाओँ मेँ सुपर मैन निर्मित कर रहे थे.यह सुपर मैन अपने स्वामियोँ के दिशा निर्देश पर कार्य कर रहे थे.कुछ शक्तिया इन सपर मैन के ग्रुपोँ से हट कर एक जुट रहने, परिश्रम करने,धैर्य रखने ,ध्यान योग करने,आदि की शिक्षा दिलवा रही थीँ लेकिन इनके पीछे भीड़ कम ही थी. धर्म व प्रेम के आधार पर चलने वाले इन चन्द लोगोँ का कुशक्तियोँ ,सुपर मैन,साइबोर्ग,प्रशिक्षित जानवर,आदि जीवन जीना मुश्किल कर रहे थे.कुछ सात्विक शक्तियां एकान्त जीवन जी कर ध्यान योग आदि मेँ जीते हुए कल्कि अवतार का इन्तजार कर रहे थे.
सम्कदेल वम्मा अपने अंकल सर के साथ अपने यान मेँ था.
"अंकल सर ! ब्राह्माण्ड मेँ अनेक शक्तियां ऐसी पैदा हो गयी हैँ, जो अपना उल्लू सीधा करना चाहती हैँ. रोज एक दो मेँ अन्तरिक्ष युद्ध होते देखा जा रहा है. ब्राह्माण्ड शान्ति दल अपनी मुहिम मेँ असफल होता जा रहा है. तिब्बत से बार बार सारी धरतियोँ पे शान्ति सन्देश प्रसारित किए जा रहे हैँ लेकिन लोगोँ पर उसका असर नहीँ पड़ रहा है. क्या संघर्ष मेँ लीन अहंकारी शक्तियोँ को एक मंच पर ला कर उनको मारने की योजना बनानी पड़ेगी ? "
"सम्कदेल!तू तो बड़े होशियारी की बात कर रहै. "
"थैँक यू! जिस तरह से रामायण काल मेँ विश्वामित्र ,कैकयी,शूर्पनखा , वाल्मिकि,आदि ने मिल कर रावण के मारने की योजना बनायी और असुरोँ को रावण के तले लाया गया .उसी तरह ......?! "
"सम्कदेल,तू क्या कह रहा है? पृथुवंशी क्या इसे सत्य मानते हैँ?"
" न माने तो क्या ? "
"सर,जिस तरह श्री कृष्ण को मजबूरी मेँ महाभारत युध्द की रचना करनी पड़ी और अनेक दुष्ट राजाओँ को मरवाना पड़ा.वैसे ही....."
"अब की यदि कृष्ण कौरवोँ के संग हो गया तो...?"
"कौरव कभी भी कृष्ण को नहीँ माँग सकते,रावण कभी भी ,रावण कभी भी विभीषण को शरण नहीँ दे सकता . भूखे इन्सान को रोटी ही चाहिए,प्यासे को पानी ही चाहिए ,कामुक व्यक्ति को स्त्री ही चाहिए,धनलोलुप व्यक्ति को धन ही चाहिए ,ईश्वर भक्त को सिर्फ ईश्वर ही चाहिए. अर्जुन सिर्फ कृष्ण ही चाहता है, विभीषण तो राम ही चाहता है, .... और भी बताऊँ क्या ?कौन कौन क्या क्या चाहता है?दुर्योधन कभी भी कृष्ण को नहीँ चाह सकता?"
"तो कृष्ण कहाँ से खोजोगे?"
"महाभारत के लिए अकेले कृष्ण से कुछ नहीँ होने वाला. पाण्डवोँ व कौरवोँ मेँ सारे ब्राह्माण्ड की शक्तियोँ को विभक्त कर देना है.यह काम हम सब करेँगे. हमारे बाद हमारे उत्तराधिकारी करेँगे . "
"और कृष्ण .......?!"
"कृष्ण तो आ ही जाएगा."
फिर सम्कदेल वम्मा ऊपर सिर उठा कर यान की छत को देखने लगा जो स्क्रीन के रुप मेँ थी,जिस पर अन्तरिक्ष के चित्र आ रहे थे.
"सर! धर्म के बिना जीवन पशुवत जीवन से भी ज्यादा बेकार . सोरी सर.,आज कुछ ज्यादा ही बोल गया."
"और कब कम बोलते हो?"
"सर!"
"सम्कदेल! मुझे तुम पर नाज है."
"थैँक यू ,सर."
एक अमेरीकी कुख्यात शक्ति अन्दर ही अन्दर ब्रह्मा ,विष्णु,महेश,गणेश,हनुमान, आदि के स्वरुप मेँ कुछ मनुष्योँ को तैयार कर चुकी थी.महेश के लिए सनडेक्सरन की धरती से एक मनुष्य को तैयार कर लिया गया था. अन्य एक प्रजनन केन्द्र मेँ परखनली पद्धति से तैयार किए गये थे.जिसका उद्देश्य था धरती पर अपना धार्मिक आधिपत्य भी स्थापित करना और अपनी तय एक योजना के अनुसार एक स्त्री से कल्कि का अवतार कराना.
वैज्ञानिक तकनीकी इतनी उच्च हो चुकी थी कि कमजोर व अस्वस्थ व्यक्ति के मन मस्तिष्क को अपने हिसाब से नियन्त्रित किया जा सकता था.अपने हिसाब से उसे स्वपन देखने के लिए विवश किया जा सकता था. जिस तरह से हजारोँ वर्ष पहले विश्वामित्र ने सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र की परीक्षा लेने के लिए अपने योजना के तहत स्वपन दिखवाया था. ऐसा ही विज्ञान तकनीकि से सम्भव हो गया था.
समय गुजरा-
एक दिन सम्कदेल वम्मा अपने यान से अन्तरिक्ष यात्रा पर अकेले ही था.
कि-
नकली देवताओँ को विज्ञान व नवीन तकनीकी से धरती पर पेश करने वाली कुशक्तियोँ ने सम्कदेल वम्मा के यान पर आक्रमण करवा दिया.
सम्कदेल वम्मा अपने यान को कुछ विशेष तरंगोँ के माध्यम से अदृश्य कर काफी तेजी से आगे बढ़ गया.
लेकिन..!?
यान को चारो ओर से अनेक यानोँ के सहयोग से घेर लिया गया था.यान के ऊपर विशेष तरंगोँ के प्रभाव कारण दुश्मनोँ को यान जरुर दिखायी नहीँ दे रहा था लेकिन तब भी सम्कदेल वम्मा मुश्किल मेँ था.
एक सभागार से निकलने के बाद सम्कदेल वम्मा अपने अण्कल सर के साथ दलित व गरीब वस्ती मेँ कुछ समय गुजारने के बाद हवाई पट्टी पर आ कर अपने यान मेँ प्रवेश कर गये.
निम्न व मध्य वर्ग मेँ कल्कि अवतार की काफी चर्चा थी.उच्च वर्ग के लोग जो कि अधिकतर वैज्ञानिक थे,प्रयोगशालाओँ मेँ सुपर मैन निर्मित कर रहे थे.यह सुपर मैन अपने स्वामियोँ के दिशा निर्देश पर कार्य कर रहे थे.कुछ शक्तिया इन सपर मैन के ग्रुपोँ से हट कर एक जुट रहने, परिश्रम करने,धैर्य रखने ,ध्यान योग करने,आदि की शिक्षा दिलवा रही थीँ लेकिन इनके पीछे भीड़ कम ही थी. धर्म व प्रेम के आधार पर चलने वाले इन चन्द लोगोँ का कुशक्तियोँ ,सुपर मैन,साइबोर्ग,प्रशिक्षित जानवर,आदि जीवन जीना मुश्किल कर रहे थे.कुछ सात्विक शक्तियां एकान्त जीवन जी कर ध्यान योग आदि मेँ जीते हुए कल्कि अवतार का इन्तजार कर रहे थे.
सम्कदेल वम्मा अपने अंकल सर के साथ अपने यान मेँ था.
"अंकल सर ! ब्राह्माण्ड मेँ अनेक शक्तियां ऐसी पैदा हो गयी हैँ, जो अपना उल्लू सीधा करना चाहती हैँ. रोज एक दो मेँ अन्तरिक्ष युद्ध होते देखा जा रहा है. ब्राह्माण्ड शान्ति दल अपनी मुहिम मेँ असफल होता जा रहा है. तिब्बत से बार बार सारी धरतियोँ पे शान्ति सन्देश प्रसारित किए जा रहे हैँ लेकिन लोगोँ पर उसका असर नहीँ पड़ रहा है. क्या संघर्ष मेँ लीन अहंकारी शक्तियोँ को एक मंच पर ला कर उनको मारने की योजना बनानी पड़ेगी ? "
"सम्कदेल!तू तो बड़े होशियारी की बात कर रहै. "
"थैँक यू! जिस तरह से रामायण काल मेँ विश्वामित्र ,कैकयी,शूर्पनखा , वाल्मिकि,आदि ने मिल कर रावण के मारने की योजना बनायी और असुरोँ को रावण के तले लाया गया .उसी तरह ......?! "
"सम्कदेल,तू क्या कह रहा है? पृथुवंशी क्या इसे सत्य मानते हैँ?"
" न माने तो क्या ? "
"सर,जिस तरह श्री कृष्ण को मजबूरी मेँ महाभारत युध्द की रचना करनी पड़ी और अनेक दुष्ट राजाओँ को मरवाना पड़ा.वैसे ही....."
"अब की यदि कृष्ण कौरवोँ के संग हो गया तो...?"
"कौरव कभी भी कृष्ण को नहीँ माँग सकते,रावण कभी भी ,रावण कभी भी विभीषण को शरण नहीँ दे सकता . भूखे इन्सान को रोटी ही चाहिए,प्यासे को पानी ही चाहिए ,कामुक व्यक्ति को स्त्री ही चाहिए,धनलोलुप व्यक्ति को धन ही चाहिए ,ईश्वर भक्त को सिर्फ ईश्वर ही चाहिए. अर्जुन सिर्फ कृष्ण ही चाहता है, विभीषण तो राम ही चाहता है, .... और भी बताऊँ क्या ?कौन कौन क्या क्या चाहता है?दुर्योधन कभी भी कृष्ण को नहीँ चाह सकता?"
"तो कृष्ण कहाँ से खोजोगे?"
"महाभारत के लिए अकेले कृष्ण से कुछ नहीँ होने वाला. पाण्डवोँ व कौरवोँ मेँ सारे ब्राह्माण्ड की शक्तियोँ को विभक्त कर देना है.यह काम हम सब करेँगे. हमारे बाद हमारे उत्तराधिकारी करेँगे . "
"और कृष्ण .......?!"
"कृष्ण तो आ ही जाएगा."
फिर सम्कदेल वम्मा ऊपर सिर उठा कर यान की छत को देखने लगा जो स्क्रीन के रुप मेँ थी,जिस पर अन्तरिक्ष के चित्र आ रहे थे.
"सर! धर्म के बिना जीवन पशुवत जीवन से भी ज्यादा बेकार . सोरी सर.,आज कुछ ज्यादा ही बोल गया."
"और कब कम बोलते हो?"
"सर!"
"सम्कदेल! मुझे तुम पर नाज है."
"थैँक यू ,सर."
एक अमेरीकी कुख्यात शक्ति अन्दर ही अन्दर ब्रह्मा ,विष्णु,महेश,गणेश,हनुमान, आदि के स्वरुप मेँ कुछ मनुष्योँ को तैयार कर चुकी थी.महेश के लिए सनडेक्सरन की धरती से एक मनुष्य को तैयार कर लिया गया था. अन्य एक प्रजनन केन्द्र मेँ परखनली पद्धति से तैयार किए गये थे.जिसका उद्देश्य था धरती पर अपना धार्मिक आधिपत्य भी स्थापित करना और अपनी तय एक योजना के अनुसार एक स्त्री से कल्कि का अवतार कराना.
वैज्ञानिक तकनीकी इतनी उच्च हो चुकी थी कि कमजोर व अस्वस्थ व्यक्ति के मन मस्तिष्क को अपने हिसाब से नियन्त्रित किया जा सकता था.अपने हिसाब से उसे स्वपन देखने के लिए विवश किया जा सकता था. जिस तरह से हजारोँ वर्ष पहले विश्वामित्र ने सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र की परीक्षा लेने के लिए अपने योजना के तहत स्वपन दिखवाया था. ऐसा ही विज्ञान तकनीकि से सम्भव हो गया था.
समय गुजरा-
एक दिन सम्कदेल वम्मा अपने यान से अन्तरिक्ष यात्रा पर अकेले ही था.
कि-
नकली देवताओँ को विज्ञान व नवीन तकनीकी से धरती पर पेश करने वाली कुशक्तियोँ ने सम्कदेल वम्मा के यान पर आक्रमण करवा दिया.
सम्कदेल वम्मा अपने यान को कुछ विशेष तरंगोँ के माध्यम से अदृश्य कर काफी तेजी से आगे बढ़ गया.
लेकिन..!?
यान को चारो ओर से अनेक यानोँ के सहयोग से घेर लिया गया था.यान के ऊपर विशेष तरंगोँ के प्रभाव कारण दुश्मनोँ को यान जरुर दिखायी नहीँ दे रहा था लेकिन तब भी सम्कदेल वम्मा मुश्किल मेँ था.
शनिवार, 18 सितंबर 2010
झुंझलाया पुष्प
सन 5012ई0 की 10जून !
सम्कदेल वम्मा कम्पयूटरी कृत कमरे की दीवार पर एक स्थान से सेरेना की आत्म कथा से सम्बन्धित जानकारियां कर रहा था.
उसने एक स्थान पर लिखे ' यति और पुष्प ' के नीचे लिखे सर्च शव्द को मनोयोग से एकाग्र हो कर देखा,कि चित्र बदल गये.सेरेना नामक युवती के स्थान पर अब एक यति के चित्र आने लगे.एक बर्फीले स्थान पर 'यति' को घूमते हुए दर्शाया जा रहा था.
कि-
कमरे के अन्दर कमरा! शून्य के नीचे माइन्स मेँ तापमान!
जमीन पर जमी बर्फ,इधर उधर से आती बर्फीली हवाएं ! यति हिम मानव टहल रहा था.
भविष्य त्रिपाठी के साथ युवक पुष्प कन्नौजिया उपस्थित हुआ. दोनोँ गर्म वेश भूषा मेँ थे.
"सर!यह तो यति....इसके जीवन व सहजता के साथ अन्याय है ? "
"सारी पुष्प! इसके लिए हम विधाता से भी क्षमा मांगते हैँ लेकिन इस पर कुछ प्रयोगोँ के लिए आवश्यक था ? "
पुष्प कन्नौजिया भविष्य त्रिपाठी को वहीँ छोँड़ कर तेजी के साथ आगे बढ़ गया.
"अरे रुको,पुष्प."
"सारी,सर."
पुष्प कन्नौजिया अपने रूम मेँ आकर कुर्सी पर बैठ गया.
एक युवती आकर बोली-
"सर!"
"जाओ."
"सर,सर सेरेना की एक छोटी बहिन थी - आज्ञा."
"हां ,जाओ.जानता हूँ."
युवती फिर बोली-
"सर!"
पुष्प कन्नौजिया चीखा -
"मैने कहा न,जाओ."
"सारी,सर."
""" ** """
सन 2165ई0की मार्च!
भविष्य त्रिपाठी खन्ना जी अर्थात राघवेन्द्र खन्ना के साथ उपस्थित था जो कि अब दोनोँ 'साइबोर्ग ' के रूप मेँ थे.
"दस करोड़ इक्कीस सौ चौसठ वर्ष पहले टेथिस सागर द्वारा विभाजित इण्डो आस्ट्रेलियन और यूरेशियन प्लेट,जो पहली बार करीब छ:करोड़ वर्ष पहले टकरायी.प्रतिवर्ष एक दूसरे की तरफ 02 इंच खिसकती रही थी. ....लेकिन फिर भारत की भूगर्भीय चट्टान या प्लेट को नये बने सागर ने दो भागोँ मेँ कैसे बाँट दिया ? "
" सनडेक्सरन धरती की गुफा से प्राप्त एक पुस्तक-'जय कुरुशान जया कुरुआन' से जानकारी मिलती है कि सिन्धु घाटी सम्यता के नष्ट होने व इण्डो आस्ट्रेलियन और यूरेशियन प्लेट के करीब आने से आया भूकम्प ही ही है."
"....... कारण भूकम्प है,यह सत्य हो सकता है लेकिन इन दोनोँ प्लेट के करीब आने के कारण.......?! ''
" हाँ , भविष्य ! तो पुष्प कन्नोजिया को फिर आप मरने से क्योँ नहीँ बचा पाये?उसको साईबोर्ग बनाया जा सकता था."
"पुष्प,साईबोर्ग बनने के खिलाफ था.प्रकृति पर अपनी इच्छाएं थोपने के खिलाफ था.हालांकि आयुर्विज्ञान के सहयोग से वह एक सौ सात वर्ष जिया था."
"तो इस हिसाब से......... ."
"वह 26जून2100ई0 को इस दुनिया को छोँड़ गया."
"सेरेना आज्ञा की बड़ी बहिन थी लेकिन .........?भविष्य!"
"जब मैँ मीरानपुर कटरा मेँ था तो आज्ञा से मेरी मुलाकात होती रहती थी. हालांकि वह आदर्श बाल विद्यालय इण्टर कालेज मेँ पड़ती थी और मैँ श्री बलवन्त सिँह इण्टर कालेज मेँ.उसने एक बार मुझे अपनी बड़ी बहिन सेरेना के बारे मेँ बताया था . "
"क्या?"
"अपना घर छोड़ने से पहले सेरेना का नाम था शिल्पा सिँह."
"तो सेरेना अर्थात शिल्पा सिँह को अपना घर क्योँ छोड़ना पड़ा ? "
"दरअसल...?!"
सेरेना उर्फ शिल्पा सिँह .....?!
वह शोध छात्रा थी .हालांकि वह अभी शादी नहीँ करना चाहती थी लेकिन माता पिता का दबाव मेँ आकर शादी करनी पड़ गयी.उसे अपना पति पसन्द न आया,वह दारु पीता था ,तस्करी का भी कार्य करवाता था,हर रात नई नई लड़कियोँ से सम्बन्ध स्थापित करता था.जब शिल्पा सिँह ने विरोध करना शुरु कर दिया तो वह उसे पीटने लगा.शिल्पा सिँह अपने मायके आ गयी लेकिन मायके से भी अब कोई मदद नहीँ.
तो शिल्पा सिँह..!?
जीवन जीने का मतलब यह नहीँ कि घुट घुट कर जियो .कम से कम व्यक्तिगत जीवन मेँ सहजता होनी चाहिए.व्यक्तिगत जीवन उसी के साथ जियो जिससे प्रेम हो या जो हमसे प्रेम करता हो या जिसके साथ जीना मजबूरी हो या जिससे हमारा लक्ष्य पूर्ण हो रहा हो.मुझे अपने पति से बिलकुल प्रेम नहीँ है.मेरे पति को मुझसे बिलकुल प्रेम नहीँ है .मेरा उसके साथ जीना मजबूरी नहीँ है.उसके साथ जीने से मेरे कोई से लक्ष्य पूर्ण नहीँ हो रहे.किसी ने कहा है कि अपनी प्रतिभा के साथ समझौता नहीँ करना चाहिए.
फिर-
शिल्पा सिँह ने अपने पति से तलाक ले लिया.
ऐसे मेँ समाज मेँ अलग थलग पड़ने पर उसका सहयोगी बना शाहजहाँपुर के एक चर्च मेँ एक युवा पादरी .हिन्दू समाज मेँ लोगोँ के कमेँट्स , उपेक्षा , कोई जीवन साथी न पाने व ईसाई समाज मेँ अपना जीवन साथी पाने के परिणाम स्वरूप उसने पन्थ परिवर्तित कर लिया.
और फिर वह शिल्पा सिँह से बन गयी - सेरेना.
सन 2008 ई0 की 10 सितम्बर!
'कान्टेक्ट म्यूजिक डाट काम' के मुताबिक ब्रिटिश गायक राबी .....
सम्कदेल वम्मा कम्पयूटरी कृत कमरे की दीवार पर एक स्थान से सेरेना की आत्म कथा से सम्बन्धित जानकारियां कर रहा था.
उसने एक स्थान पर लिखे ' यति और पुष्प ' के नीचे लिखे सर्च शव्द को मनोयोग से एकाग्र हो कर देखा,कि चित्र बदल गये.सेरेना नामक युवती के स्थान पर अब एक यति के चित्र आने लगे.एक बर्फीले स्थान पर 'यति' को घूमते हुए दर्शाया जा रहा था.
कि-
कमरे के अन्दर कमरा! शून्य के नीचे माइन्स मेँ तापमान!
जमीन पर जमी बर्फ,इधर उधर से आती बर्फीली हवाएं ! यति हिम मानव टहल रहा था.
भविष्य त्रिपाठी के साथ युवक पुष्प कन्नौजिया उपस्थित हुआ. दोनोँ गर्म वेश भूषा मेँ थे.
"सर!यह तो यति....इसके जीवन व सहजता के साथ अन्याय है ? "
"सारी पुष्प! इसके लिए हम विधाता से भी क्षमा मांगते हैँ लेकिन इस पर कुछ प्रयोगोँ के लिए आवश्यक था ? "
पुष्प कन्नौजिया भविष्य त्रिपाठी को वहीँ छोँड़ कर तेजी के साथ आगे बढ़ गया.
"अरे रुको,पुष्प."
"सारी,सर."
पुष्प कन्नौजिया अपने रूम मेँ आकर कुर्सी पर बैठ गया.
एक युवती आकर बोली-
"सर!"
"जाओ."
"सर,सर सेरेना की एक छोटी बहिन थी - आज्ञा."
"हां ,जाओ.जानता हूँ."
युवती फिर बोली-
"सर!"
पुष्प कन्नौजिया चीखा -
"मैने कहा न,जाओ."
"सारी,सर."
""" ** """
सन 2165ई0की मार्च!
भविष्य त्रिपाठी खन्ना जी अर्थात राघवेन्द्र खन्ना के साथ उपस्थित था जो कि अब दोनोँ 'साइबोर्ग ' के रूप मेँ थे.
"दस करोड़ इक्कीस सौ चौसठ वर्ष पहले टेथिस सागर द्वारा विभाजित इण्डो आस्ट्रेलियन और यूरेशियन प्लेट,जो पहली बार करीब छ:करोड़ वर्ष पहले टकरायी.प्रतिवर्ष एक दूसरे की तरफ 02 इंच खिसकती रही थी. ....लेकिन फिर भारत की भूगर्भीय चट्टान या प्लेट को नये बने सागर ने दो भागोँ मेँ कैसे बाँट दिया ? "
" सनडेक्सरन धरती की गुफा से प्राप्त एक पुस्तक-'जय कुरुशान जया कुरुआन' से जानकारी मिलती है कि सिन्धु घाटी सम्यता के नष्ट होने व इण्डो आस्ट्रेलियन और यूरेशियन प्लेट के करीब आने से आया भूकम्प ही ही है."
"....... कारण भूकम्प है,यह सत्य हो सकता है लेकिन इन दोनोँ प्लेट के करीब आने के कारण.......?! ''
" हाँ , भविष्य ! तो पुष्प कन्नोजिया को फिर आप मरने से क्योँ नहीँ बचा पाये?उसको साईबोर्ग बनाया जा सकता था."
"पुष्प,साईबोर्ग बनने के खिलाफ था.प्रकृति पर अपनी इच्छाएं थोपने के खिलाफ था.हालांकि आयुर्विज्ञान के सहयोग से वह एक सौ सात वर्ष जिया था."
"तो इस हिसाब से......... ."
"वह 26जून2100ई0 को इस दुनिया को छोँड़ गया."
"सेरेना आज्ञा की बड़ी बहिन थी लेकिन .........?भविष्य!"
"जब मैँ मीरानपुर कटरा मेँ था तो आज्ञा से मेरी मुलाकात होती रहती थी. हालांकि वह आदर्श बाल विद्यालय इण्टर कालेज मेँ पड़ती थी और मैँ श्री बलवन्त सिँह इण्टर कालेज मेँ.उसने एक बार मुझे अपनी बड़ी बहिन सेरेना के बारे मेँ बताया था . "
"क्या?"
"अपना घर छोड़ने से पहले सेरेना का नाम था शिल्पा सिँह."
"तो सेरेना अर्थात शिल्पा सिँह को अपना घर क्योँ छोड़ना पड़ा ? "
"दरअसल...?!"
सेरेना उर्फ शिल्पा सिँह .....?!
वह शोध छात्रा थी .हालांकि वह अभी शादी नहीँ करना चाहती थी लेकिन माता पिता का दबाव मेँ आकर शादी करनी पड़ गयी.उसे अपना पति पसन्द न आया,वह दारु पीता था ,तस्करी का भी कार्य करवाता था,हर रात नई नई लड़कियोँ से सम्बन्ध स्थापित करता था.जब शिल्पा सिँह ने विरोध करना शुरु कर दिया तो वह उसे पीटने लगा.शिल्पा सिँह अपने मायके आ गयी लेकिन मायके से भी अब कोई मदद नहीँ.
तो शिल्पा सिँह..!?
जीवन जीने का मतलब यह नहीँ कि घुट घुट कर जियो .कम से कम व्यक्तिगत जीवन मेँ सहजता होनी चाहिए.व्यक्तिगत जीवन उसी के साथ जियो जिससे प्रेम हो या जो हमसे प्रेम करता हो या जिसके साथ जीना मजबूरी हो या जिससे हमारा लक्ष्य पूर्ण हो रहा हो.मुझे अपने पति से बिलकुल प्रेम नहीँ है.मेरे पति को मुझसे बिलकुल प्रेम नहीँ है .मेरा उसके साथ जीना मजबूरी नहीँ है.उसके साथ जीने से मेरे कोई से लक्ष्य पूर्ण नहीँ हो रहे.किसी ने कहा है कि अपनी प्रतिभा के साथ समझौता नहीँ करना चाहिए.
फिर-
शिल्पा सिँह ने अपने पति से तलाक ले लिया.
ऐसे मेँ समाज मेँ अलग थलग पड़ने पर उसका सहयोगी बना शाहजहाँपुर के एक चर्च मेँ एक युवा पादरी .हिन्दू समाज मेँ लोगोँ के कमेँट्स , उपेक्षा , कोई जीवन साथी न पाने व ईसाई समाज मेँ अपना जीवन साथी पाने के परिणाम स्वरूप उसने पन्थ परिवर्तित कर लिया.
और फिर वह शिल्पा सिँह से बन गयी - सेरेना.
सन 2008 ई0 की 10 सितम्बर!
'कान्टेक्ट म्यूजिक डाट काम' के मुताबिक ब्रिटिश गायक राबी .....
गुरुवार, 16 सितंबर 2010
मुर्झाया पुष्प
सेरेना के आत्म कथा से-
'सर जी' मीरानपुर कटरा मेँ आने के चार वर्ष पुवायाँ शहर मेँ थे.वे जहाँ एक शिशु मन्दिर मेँ अध्यापन कर रहे थे. उनका एक प्रिय छात्र था -पुष्प.पुष्प कक्षा दो का छात्र था.पढ़ने मेँ तो वह ठीक था लेकिन दबाव व भय से ग्रस्त था. 'सर जी ' नम्र व्यवहारोँ ने उसे 'सर जी' के नजदीक ला दिया था.पुष्प के पिता दबंगवादी व आलोचनावादी थे .जो परिवार के अन्दर नुक्ताचीनी से ही अपना समय व्यतीत करते थे.जिसका प्रभाव अन्तरमुखी पुष्प पर ऋणात्मक पड़ा.
एक दिन उसकी माँ का पत्र 'सर जी' के पास आया.जिससे पता चला कि पुष्प अब इस दुनिया मेँ नहीँ रहा.
उस पत्र मेँ -" आप थे तो अच्छा लगता था.आप घर पर आते थे तो और अच्छा लगता था. अब भी अच्छा लगता है, अन्यथा आपका शिष्य कैसे कह लाऊँगा?आपने कहा था कि सिर्फ ईश्वर अपना है , आत्मा अपनी है और सब यहीँ छूट जाता है --इस सेन्स मेँ अनेक बार पुष्प मुझसे बोला था. यह भाषा तो मैँ लिख रही हूँ. आज वह इस दुनिया मेँ नहीँ है. अपने पिता की उसके अस्तित्व पर बार बार चोटेँ........ पिता की मार से एक दिन बेहोश हो गया.काफी इलाज हुआ.बेहोशी टूटी पुष्प की ,तो उसे आप की याद आयी और कहा कि आपको पत्र लिखे.अत:मैँ पत्र लिख रही हूँ ,मैँ पुष्प की माँ."
पुष्प को एक तालाब के किनारे जमीन मेँ दफना दिया गया था. एक अघोरी की पुष्प पर निगाह रहती थी, जब पुष्प दफन हो गया तो....?!
घनी अन्धेरी बर सात की रात ! वह अघोरी मिट्टी हटा कर पुष्प की लाश लाकर जंगल के बीच एक खण्डहर मेँ आ गया.जहाँ काली देवी का मन्दिर भी था.
पुष्प की लाश को स्नान करवाने के बाद उसे एक पवित्र आसन पर लिटा दिया गया था.आस पास धूपवत्ती व अगरवत्तियाँ लगा दी गयीँ थी.हवन कुण्ड की आग तेज हो गयी थी.अघोरी मन्त्र उच्चारण के साथ हवन कुण्ड मेँ आहुतियाँ देने लगा था.आस पड़ोस मेँ साधु व साध्वी शान्तभाव मेँ बैठे थे या कुछ दूरी पर खड़े थे.वहाँ उपस्थित एक युवती पुष्प की लाश को बार बार देखे जा रही थी.
वह युवती.......?!
वह युवती!
खैर....?!
जंगल के बीच से गुजरती एक नदी ! नदी के किनारे स्थित एक टीले पर एक युवती की मूर्ति और ऊपर छत्र.नीचे चबूतरे पर लिखा था-
'जय शिवानी'. उस चबूतरे पर थी अब पुष्प की लाश.पीछे कुछ दूरी पर पशुपति की भव्य मूर्ति .
वह युवती नग्नावस्था मेँ मंत्रोच्चारण के साथ नृत्य मेँ मग्न थी.
वहाँ और कोई न था.
और.....
कुछ दूरी पर एक खण्डहर मेँ काली देवी की प्रतिमा के सामने एक बुजुर्ग साधु जो कि काले व लाल वस्त्रोँ मेँ था ,हवन कर रहा था.
उस अघोरी के स्थान से युवती पुष्प की लाश को बड़ी मुश्किल से यहाँ तक ला पायी थी.
इस युवती पर एक वैज्ञानिक की जब नजर पड़ी तो...... !?
मानीटर पर इस युवती के चित्र !
इन चित्रोँ को देखते देखते वैज्ञानिक अपने रूम मेँ बैठा बैठा सोंच रहा था कि आज के युग मेँ भी तन्त्र विद्याओँ पर विश्वास ?
"सर!" - कमरे मेँ एक युवती ने प्रवेश किया.
"आओ बेटी ."
"सर,इस युवती का नाम है-संध्या बैरागी........."
"अरे सेरेना,तुमने तो बहुत जल्दी इस युवती के बारे मेँ पता चला लिया."
"सर,यह सन्ध्या बैरागी जिस बुजुर्ग साधु के साथ रह रही है,उस बुजुर्ग साधु को सत्रह साल पहले अर्थात जून सन1993ई0मेँ नदी के सैलाब मेँ बह कर आयी एक गर्भवती महिला मिली थी,जो बेहोश थी.वह महिला तो जिन्दा न बच सकी लेकिन उससे पैदा सन्ध्या बैरागी को बचा लिया गया.."
" संध्या बैरागी नामकरण कैसे...?"
"उसकी माँ के हाथ मेँ लिखा था रजनी बैरागी. इसी आधार पर....."
"सर,क्या हम इस बालक की लाश पर प्रक्टीकल नहीँ कर सकते ? "
"सेरेना,तुम ठीक कहती हो."
सेरेना.....?!
एक पुस्तक जिस पर बड़े बड़े अक्षरोँ मेँ लिखा था -सेरेना.जिस पर ऊपर के एक कोने पर लिखा था-मेरे जीवन के कुछ पल.
नादिरा खानम भविष्य त्रिपाठी के करीब आते हुए बोली-
"सेरेना के आत्म कथा से क्या कुछ मिला आपको?"
भविष्य त्रिपाठी खामोश ही रहा.
"""***"""
सन2017ई
0 के 22जून !
एक युवक भविष्य त्रिपाठी व नादिरा खानम के सामने उपस्थित हुआ.
" गुड मार्निँग सर! गुड मार्निग मैडम!"
"गुड मोर्निग!"
"..आप का स्वागत है.अब आप मेरे मित्र भी हो,हमारी टीम के सदस्य भी हो-पुष्प."
" थैँक यू,सर."
पुष्प कन्नौजिया इधर उधर देखते हुए -" सर "
"पुष्प!लगता है कि अपने आलोक वम्मा सर को चार साल बिस्तर पर और रहना होगा."
"क्या,नौ साल हो गये .अब चार साल और...?!"
"हाँ,सोरी पुष्प,सोरी! लेकिन विश्वास रखो मुझ पर.एक दिन ऐसा आयेगा कि वह चलेँगे बोलेँगे.मुझे चिन्ता है उनके मस्तिष्क की.बस, उनका मस्तिष्क सलामत रहे.उन्हेँ'साइबोर्ग'बना दिया जाएगा"
'सर जी' मीरानपुर कटरा मेँ आने के चार वर्ष पुवायाँ शहर मेँ थे.वे जहाँ एक शिशु मन्दिर मेँ अध्यापन कर रहे थे. उनका एक प्रिय छात्र था -पुष्प.पुष्प कक्षा दो का छात्र था.पढ़ने मेँ तो वह ठीक था लेकिन दबाव व भय से ग्रस्त था. 'सर जी ' नम्र व्यवहारोँ ने उसे 'सर जी' के नजदीक ला दिया था.पुष्प के पिता दबंगवादी व आलोचनावादी थे .जो परिवार के अन्दर नुक्ताचीनी से ही अपना समय व्यतीत करते थे.जिसका प्रभाव अन्तरमुखी पुष्प पर ऋणात्मक पड़ा.
एक दिन उसकी माँ का पत्र 'सर जी' के पास आया.जिससे पता चला कि पुष्प अब इस दुनिया मेँ नहीँ रहा.
उस पत्र मेँ -" आप थे तो अच्छा लगता था.आप घर पर आते थे तो और अच्छा लगता था. अब भी अच्छा लगता है, अन्यथा आपका शिष्य कैसे कह लाऊँगा?आपने कहा था कि सिर्फ ईश्वर अपना है , आत्मा अपनी है और सब यहीँ छूट जाता है --इस सेन्स मेँ अनेक बार पुष्प मुझसे बोला था. यह भाषा तो मैँ लिख रही हूँ. आज वह इस दुनिया मेँ नहीँ है. अपने पिता की उसके अस्तित्व पर बार बार चोटेँ........ पिता की मार से एक दिन बेहोश हो गया.काफी इलाज हुआ.बेहोशी टूटी पुष्प की ,तो उसे आप की याद आयी और कहा कि आपको पत्र लिखे.अत:मैँ पत्र लिख रही हूँ ,मैँ पुष्प की माँ."
पुष्प को एक तालाब के किनारे जमीन मेँ दफना दिया गया था. एक अघोरी की पुष्प पर निगाह रहती थी, जब पुष्प दफन हो गया तो....?!
घनी अन्धेरी बर सात की रात ! वह अघोरी मिट्टी हटा कर पुष्प की लाश लाकर जंगल के बीच एक खण्डहर मेँ आ गया.जहाँ काली देवी का मन्दिर भी था.
पुष्प की लाश को स्नान करवाने के बाद उसे एक पवित्र आसन पर लिटा दिया गया था.आस पास धूपवत्ती व अगरवत्तियाँ लगा दी गयीँ थी.हवन कुण्ड की आग तेज हो गयी थी.अघोरी मन्त्र उच्चारण के साथ हवन कुण्ड मेँ आहुतियाँ देने लगा था.आस पड़ोस मेँ साधु व साध्वी शान्तभाव मेँ बैठे थे या कुछ दूरी पर खड़े थे.वहाँ उपस्थित एक युवती पुष्प की लाश को बार बार देखे जा रही थी.
वह युवती.......?!
वह युवती!
खैर....?!
जंगल के बीच से गुजरती एक नदी ! नदी के किनारे स्थित एक टीले पर एक युवती की मूर्ति और ऊपर छत्र.नीचे चबूतरे पर लिखा था-
'जय शिवानी'. उस चबूतरे पर थी अब पुष्प की लाश.पीछे कुछ दूरी पर पशुपति की भव्य मूर्ति .
वह युवती नग्नावस्था मेँ मंत्रोच्चारण के साथ नृत्य मेँ मग्न थी.
वहाँ और कोई न था.
और.....
कुछ दूरी पर एक खण्डहर मेँ काली देवी की प्रतिमा के सामने एक बुजुर्ग साधु जो कि काले व लाल वस्त्रोँ मेँ था ,हवन कर रहा था.
उस अघोरी के स्थान से युवती पुष्प की लाश को बड़ी मुश्किल से यहाँ तक ला पायी थी.
इस युवती पर एक वैज्ञानिक की जब नजर पड़ी तो...... !?
मानीटर पर इस युवती के चित्र !
इन चित्रोँ को देखते देखते वैज्ञानिक अपने रूम मेँ बैठा बैठा सोंच रहा था कि आज के युग मेँ भी तन्त्र विद्याओँ पर विश्वास ?
"सर!" - कमरे मेँ एक युवती ने प्रवेश किया.
"आओ बेटी ."
"सर,इस युवती का नाम है-संध्या बैरागी........."
"अरे सेरेना,तुमने तो बहुत जल्दी इस युवती के बारे मेँ पता चला लिया."
"सर,यह सन्ध्या बैरागी जिस बुजुर्ग साधु के साथ रह रही है,उस बुजुर्ग साधु को सत्रह साल पहले अर्थात जून सन1993ई0मेँ नदी के सैलाब मेँ बह कर आयी एक गर्भवती महिला मिली थी,जो बेहोश थी.वह महिला तो जिन्दा न बच सकी लेकिन उससे पैदा सन्ध्या बैरागी को बचा लिया गया.."
" संध्या बैरागी नामकरण कैसे...?"
"उसकी माँ के हाथ मेँ लिखा था रजनी बैरागी. इसी आधार पर....."
"सर,क्या हम इस बालक की लाश पर प्रक्टीकल नहीँ कर सकते ? "
"सेरेना,तुम ठीक कहती हो."
सेरेना.....?!
एक पुस्तक जिस पर बड़े बड़े अक्षरोँ मेँ लिखा था -सेरेना.जिस पर ऊपर के एक कोने पर लिखा था-मेरे जीवन के कुछ पल.
नादिरा खानम भविष्य त्रिपाठी के करीब आते हुए बोली-
"सेरेना के आत्म कथा से क्या कुछ मिला आपको?"
भविष्य त्रिपाठी खामोश ही रहा.
"""***"""
सन2017ई
0 के 22जून !
एक युवक भविष्य त्रिपाठी व नादिरा खानम के सामने उपस्थित हुआ.
" गुड मार्निँग सर! गुड मार्निग मैडम!"
"गुड मोर्निग!"
"..आप का स्वागत है.अब आप मेरे मित्र भी हो,हमारी टीम के सदस्य भी हो-पुष्प."
" थैँक यू,सर."
पुष्प कन्नौजिया इधर उधर देखते हुए -" सर "
"पुष्प!लगता है कि अपने आलोक वम्मा सर को चार साल बिस्तर पर और रहना होगा."
"क्या,नौ साल हो गये .अब चार साल और...?!"
"हाँ,सोरी पुष्प,सोरी! लेकिन विश्वास रखो मुझ पर.एक दिन ऐसा आयेगा कि वह चलेँगे बोलेँगे.मुझे चिन्ता है उनके मस्तिष्क की.बस, उनका मस्तिष्क सलामत रहे.उन्हेँ'साइबोर्ग'बना दिया जाएगा"
मंगलवार, 14 सितंबर 2010
भविष्य:सन5012ई0...
सन 2165ई की फरबरी !
भारतीय महाद्वीप की भूमि दो भागोँ बँट चुकी थी.
पूंजीपति व वैज्ञानिकोँ के अतिरिक्त अन्य बचे खुचे लोग अत्यन्त दयनीय स्थिति मेँ पहुँच चुके थे.
झारखण्ड के जंगल मेँ स्थित भूमिगत अनुसन्धानशाला को भी काफी छति पहुँची थी.भविष्य त्रिपाठी,नादिरा खानम व उनके सहयोगी अधिकतर पिरामिड तकनीकी इमारत मेँ रहते थे.जिस कारण वे व उनका मिशन सुरक्षित था.
कम्प्यूटरीकृत कमरोँ की दीवारोँ पर ब्राह्माण्ड की तश्वीरेँ आनी बन्द हो गयी थीँ .अब भविष्य त्रिपाठी सम्बन्धित जानकारी आने लगी थी.
"सम्कदेल, भविष्य त्रिपाठी ने 'ब्राह्माण्डभक्षी 'पर भी तो कुछ कार्य किया था?"
"हाँ,ऐसा है -आरदीस्वन्दी !"
आरदीस्वन्दी अपनी तीसरी आँख मसलने लगी.
"क्या हो गया?"
"कल पार्क मेँ एक कीड़ा आ गया था.जलन मेँ सुधार है,हाँ ब्रह्माण्डभक्षी के सम्बन्ध मेँ जानकारी दिलवाओ."
" समय पर सब पता चल जाएगा."
हाहाहूस धरती पर सन 1955ई0 मेँ अनुसन्धानशाला सनडेक्सरन के एक निवासी कन्कनरेसु की सलाह पर एक गुफा मेँ बन कर तैयार हो चुकी थी.हालांकि कन्कनरेसु हाहाहूस धरती पर ही सन 1947ई0मेँ एक विस्फोट मेँ मारा गया था.इस घटना से कुछ दिन पूर्व सनडेक्सरन धरती के ही एक निबासी बब्बाग्गी के द्वारा अमेरीकी अन्तरिक्ष वै ज्ञानिक मि एस की पुत्री रूचिको का अपहरण कर लिया गया था.बब्बाग्गी की पत्नी व बालिका सहक्नन की माँ दग्नब्ल्सन के विनाश कारी संगठनोँ की समन्वय समिति की बैठक मेँ उपस्थिति की सूचना जब मोहनदास कर्मचन्द्र गांधी के बायोनिक मानव ब्राहमाण्ड बी गांधी आर्थात गग्नध देवय को मिली तो वह तुरन्त बब्बाग्गी के पास जा पहुँचे और-
"तुम्हारी बीबी दग्नबल्सन कहाँ है?"
"जी......वो ........!"
"अब तुम क्या बोलोगे ?विनाशकारी संगठनोँ की समन्वय समिति की बैठक मेँ अपनी बीबी को भेजते हो और ऊपर से......! "
और....
कक्ष कम्प्यूटर मानीटर युक्त एक दीवार पर हहनसरक की तश्वीर उभरी.जिसने बोलना प्रारम्भ किया -
" बब्बाग्गी! तुझ पर रुचिको के अपहरण के साथ साथ अनेक आरोप है ही!तू ने अपनी बीबी को विनाशकारी संगठन के प्रतिनिधियोँ के बीच भेज कर अच्छा नहीँ किया. "
" देखो-हहनसरक! मैने नहीँ भेजा उसे,और मुझे इसकी जानकारी अभी मि.गांधी से ही हुई है."
"मि.गांधी से ? "
"हाँ,यह सब सस्कनपल की साजिश है.वह ही मेरी बीबी को ले गया हो."
"सस्कनपल!?"
उधर
फिर हहनरक सम्पर्क विच्छेद बब्बाग्गी से करते हुए अपने पास उपस्थित मिस्टर डेमियन से बोलता है-
"मि डेमियन ! तुम्हारी मुस्कान को मैँ समझता हूँ.मेरी तुम्हेँ व तुम्हारी पृथ्वी को सलाह है कि ब्राहमाण्ड की घटनाओँ प्रति तटस्थ रहो अन्यथा फिर ........! तुम जानते हो तुम्हारी सत्ता अन्य धरतियोँ की सत्ता के समक्ष कम से कम दो सौ वर्ष पीछे है."
मि डेमियन कौन ?मि डेमियन न्युयार्क नगर का निवासी .
न्यूयार्क मेँ ही एक बहुमंजिला इमारत की पांचवी मंजिल पर एक कक्ष मेँ चार अमेरिकन विचार विमर्श कर रहे थे.
कि
" सर,मि डेमियन हमसे सम्पर्क किया है. "
फिर
"हैलो! मि डेमियन !"
" सर!इस वक्त मैँ ववस्कनड धरती की ओर हूँ."
"यह ववस्कनड कौन सी धरती है?"
"सब इत्मीनान से बताऊँगा,सर! अभी यह सूचना है कि रुचिको हाहाहूस से लापता है . साथ मेँ एक यह भी जानकारी कि गुफा मेँ उसे कैद कर रखा था."
"बब्बाग्गी से सम्पर्क किया ?"
"अभी नहीँ,सर!"
-इस प्रसंग से निकल वर्तमान मेँ आते हुए सम्कदेल वम्मा आरदीस्वन्दी से बोला -"अमेरीका के कुछ लोग गुप्त रुप से उड़नतश्तरीयोँ की धरती के निवासियोँ के सम्पर्क मेँ आ चुके थे."
आरदीस्वन्दी बोली-
" उड़न तश्तरियोँ की धरती यानि कि 'धधस्कनक' धरती!"
"हाँ,धधस्कनक धरती! इस धरती से दो उड़नतश्तरियाँ अन्तरिक्ष यात्रा पर थीँ जो रास्ता भटकने के कारण अमेरिका के आकाश मेँ आ पहुँचीँ और किसी कारण 14जून1947 को दुर्घटना ग्रस्त हो कर न्यूमैक्सिको मेँ दो पृथक पृथक स्थान पर गिरी . जिस मेँ उपस्थित तीन फुटा व्यक्ति जिनकी न भवेँ न पलकेँ न कान थे,उन्हेँ कुछ लोगोँ ने अपने अण्डर मेँ ले लिया था. यह घटना सन3005ई0 तक पृथ्वी पर एक रहस्य बनी रही थी."
" इण्टरनेट से भविष्य त्रिपाठी व पुष्प कन्नौजिया के बीच सम्बन्धोँ पर क्या जानकारी मिलती है?"
" इक्कीसवीँ सदी के प्रारम्भिक दशकोँ मेँ सर जी नाम का एक चरित्र उस समय की कुछ कहानियोँ व उपन्यासोँ मेँ नजर आता है.जिसके साथ पुष्प कन्नौजिया का भी जिक्र मिलता है. "
" और फिर भविष्य त्रिपाठी ...."
"हाँ,बताऊँगा.बेचारा मुर्झाया पुष्प....."
मुर्झाया पुष्प !
भारतीय महाद्वीप की भूमि दो भागोँ बँट चुकी थी.
पूंजीपति व वैज्ञानिकोँ के अतिरिक्त अन्य बचे खुचे लोग अत्यन्त दयनीय स्थिति मेँ पहुँच चुके थे.
झारखण्ड के जंगल मेँ स्थित भूमिगत अनुसन्धानशाला को भी काफी छति पहुँची थी.भविष्य त्रिपाठी,नादिरा खानम व उनके सहयोगी अधिकतर पिरामिड तकनीकी इमारत मेँ रहते थे.जिस कारण वे व उनका मिशन सुरक्षित था.
कम्प्यूटरीकृत कमरोँ की दीवारोँ पर ब्राह्माण्ड की तश्वीरेँ आनी बन्द हो गयी थीँ .अब भविष्य त्रिपाठी सम्बन्धित जानकारी आने लगी थी.
"सम्कदेल, भविष्य त्रिपाठी ने 'ब्राह्माण्डभक्षी 'पर भी तो कुछ कार्य किया था?"
"हाँ,ऐसा है -आरदीस्वन्दी !"
आरदीस्वन्दी अपनी तीसरी आँख मसलने लगी.
"क्या हो गया?"
"कल पार्क मेँ एक कीड़ा आ गया था.जलन मेँ सुधार है,हाँ ब्रह्माण्डभक्षी के सम्बन्ध मेँ जानकारी दिलवाओ."
" समय पर सब पता चल जाएगा."
हाहाहूस धरती पर सन 1955ई0 मेँ अनुसन्धानशाला सनडेक्सरन के एक निवासी कन्कनरेसु की सलाह पर एक गुफा मेँ बन कर तैयार हो चुकी थी.हालांकि कन्कनरेसु हाहाहूस धरती पर ही सन 1947ई0मेँ एक विस्फोट मेँ मारा गया था.इस घटना से कुछ दिन पूर्व सनडेक्सरन धरती के ही एक निबासी बब्बाग्गी के द्वारा अमेरीकी अन्तरिक्ष वै ज्ञानिक मि एस की पुत्री रूचिको का अपहरण कर लिया गया था.बब्बाग्गी की पत्नी व बालिका सहक्नन की माँ दग्नब्ल्सन के विनाश कारी संगठनोँ की समन्वय समिति की बैठक मेँ उपस्थिति की सूचना जब मोहनदास कर्मचन्द्र गांधी के बायोनिक मानव ब्राहमाण्ड बी गांधी आर्थात गग्नध देवय को मिली तो वह तुरन्त बब्बाग्गी के पास जा पहुँचे और-
"तुम्हारी बीबी दग्नबल्सन कहाँ है?"
"जी......वो ........!"
"अब तुम क्या बोलोगे ?विनाशकारी संगठनोँ की समन्वय समिति की बैठक मेँ अपनी बीबी को भेजते हो और ऊपर से......! "
और....
कक्ष कम्प्यूटर मानीटर युक्त एक दीवार पर हहनसरक की तश्वीर उभरी.जिसने बोलना प्रारम्भ किया -
" बब्बाग्गी! तुझ पर रुचिको के अपहरण के साथ साथ अनेक आरोप है ही!तू ने अपनी बीबी को विनाशकारी संगठन के प्रतिनिधियोँ के बीच भेज कर अच्छा नहीँ किया. "
" देखो-हहनसरक! मैने नहीँ भेजा उसे,और मुझे इसकी जानकारी अभी मि.गांधी से ही हुई है."
"मि.गांधी से ? "
"हाँ,यह सब सस्कनपल की साजिश है.वह ही मेरी बीबी को ले गया हो."
"सस्कनपल!?"
उधर
फिर हहनरक सम्पर्क विच्छेद बब्बाग्गी से करते हुए अपने पास उपस्थित मिस्टर डेमियन से बोलता है-
"मि डेमियन ! तुम्हारी मुस्कान को मैँ समझता हूँ.मेरी तुम्हेँ व तुम्हारी पृथ्वी को सलाह है कि ब्राहमाण्ड की घटनाओँ प्रति तटस्थ रहो अन्यथा फिर ........! तुम जानते हो तुम्हारी सत्ता अन्य धरतियोँ की सत्ता के समक्ष कम से कम दो सौ वर्ष पीछे है."
मि डेमियन कौन ?मि डेमियन न्युयार्क नगर का निवासी .
न्यूयार्क मेँ ही एक बहुमंजिला इमारत की पांचवी मंजिल पर एक कक्ष मेँ चार अमेरिकन विचार विमर्श कर रहे थे.
कि
" सर,मि डेमियन हमसे सम्पर्क किया है. "
फिर
"हैलो! मि डेमियन !"
" सर!इस वक्त मैँ ववस्कनड धरती की ओर हूँ."
"यह ववस्कनड कौन सी धरती है?"
"सब इत्मीनान से बताऊँगा,सर! अभी यह सूचना है कि रुचिको हाहाहूस से लापता है . साथ मेँ एक यह भी जानकारी कि गुफा मेँ उसे कैद कर रखा था."
"बब्बाग्गी से सम्पर्क किया ?"
"अभी नहीँ,सर!"
-इस प्रसंग से निकल वर्तमान मेँ आते हुए सम्कदेल वम्मा आरदीस्वन्दी से बोला -"अमेरीका के कुछ लोग गुप्त रुप से उड़नतश्तरीयोँ की धरती के निवासियोँ के सम्पर्क मेँ आ चुके थे."
आरदीस्वन्दी बोली-
" उड़न तश्तरियोँ की धरती यानि कि 'धधस्कनक' धरती!"
"हाँ,धधस्कनक धरती! इस धरती से दो उड़नतश्तरियाँ अन्तरिक्ष यात्रा पर थीँ जो रास्ता भटकने के कारण अमेरिका के आकाश मेँ आ पहुँचीँ और किसी कारण 14जून1947 को दुर्घटना ग्रस्त हो कर न्यूमैक्सिको मेँ दो पृथक पृथक स्थान पर गिरी . जिस मेँ उपस्थित तीन फुटा व्यक्ति जिनकी न भवेँ न पलकेँ न कान थे,उन्हेँ कुछ लोगोँ ने अपने अण्डर मेँ ले लिया था. यह घटना सन3005ई0 तक पृथ्वी पर एक रहस्य बनी रही थी."
" इण्टरनेट से भविष्य त्रिपाठी व पुष्प कन्नौजिया के बीच सम्बन्धोँ पर क्या जानकारी मिलती है?"
" इक्कीसवीँ सदी के प्रारम्भिक दशकोँ मेँ सर जी नाम का एक चरित्र उस समय की कुछ कहानियोँ व उपन्यासोँ मेँ नजर आता है.जिसके साथ पुष्प कन्नौजिया का भी जिक्र मिलता है. "
" और फिर भविष्य त्रिपाठी ...."
"हाँ,बताऊँगा.बेचारा मुर्झाया पुष्प....."
मुर्झाया पुष्प !
रविवार, 12 सितंबर 2010
सन 5012ई0 मेँ सम्कदेल !
पृथ्वी से लाखोँ प्रकाश दूर एक धरती -सनडेक्सरन. जहाँ के मूल निबासी तीन नेत्रधारी थे और कद लगभग 11फुट.
इसी धरती पर एक कम्पयूटरीकृत कक्ष मेँ दो व्यक्ति उपस्थित थे.कक्ष मेँ एक बालिका दौड़ती हुई आयी और बोली-
"अण्कल ! अब तो सम्कदेल वम्मा से बात कराओ.वे हाहाहूस पर पहुँच चुके होँगे. "
" छ: घण्टे बाद बात करना तब वे हाहाहूस पर होँगे."
इधर अन्तरिक्ष मेँ एक यान लगभग प्रकाश की गति के उड़ान पर था.
जिसमेँ एक किशोर व एक युवक उपस्थित था.
युवक बोला-
"अब से तीन हजार वर्ष पूर्व लगभग सन 2012-13 मेँ उस समय पृथ्वी पर स्थापित एक देश भारत ,जिसने अपना एक यान अपने कुछ वैज्ञानिकोँ को बैठा कर भेजा था. वह यान जब बापस आ रहा था तो उसमेँ उपस्थित भारतीय वैज्ञानिकोँ की मृत्यु हो गयी. "
"क्योँ,ऐसा क्योँ ?"
".... ... "
"..... ....."
"सर! हाहाहूस पर डायनासोर अस्तित्व मेँ कैसे आये?"
" सब नेचुरल है,प्राकृतिक है."
अन्तरिक्ष यान हाहाहूस नामक आकाशीय पिण्ड के नजदीक आ गया था.
इस हाहाहूस धरती पर पचपन प्रतिशत भाग मेँ जंगल था.शेष भाग पर समुद्र,पठार,बर्फीली पहाड़ियाँ ,आदि थी.
कुछ समय पश्चात !
जब यान हाहाहूस धरती पर आते ही तो....
एक अण्डरग्राउण्ड सैकड़ोँ किमी लम्बी पट्टी पर दौड़ने के बाद अपनी गति को धीमा करते जाने के बाद रुका.
यान से बाहर निकलने के बाद दोनोँ एक रुम मेँ प्रवेश कर गये.
"""" * * * """"
अन्तरिक्ष केन्द्र के गेट तक एक कार से आने बाद दोनोँ आगे पैदल ही चल पड़े.
किशोर बोला - " अण्कल! वो विशालकाय काफी ऊँचा स्तम्भ ....?"
"सम्कदेल! सन 2099ई0 की बात है .यहाँ गुफा के अन्दर उपस्थित अनुसन्धानशाला के कुछ वैज्ञानिक पृथ्वी के उत्तराखण्ड मेँ स्थित टेहरी के समीप जंगल मेँ अपने शोधकार्य मेँ लगे थे कि टेहरी बाँध के विध्वंस ने उन्हेँ मौत की नीँद सुला दिया. भूकम्प के कारण विध्वन्स टेहरी बाँध से ऋषिकेश ,देहरादून और हरिद्वार के साथ साथ अनेक क्षेत्रोँ मेँ तबाही हुई.ऐसे मेँ फिर याद आगयी पर्यावरणविद सुन्दर लाल बहुगुणा ,मेधा पाटेकर , आदि की...हूँ,सत्तावादी,पूँजीवादी,स्वार्थी लोग क्या समझेँ विद्वानोँ व वैज्ञानिकोँ की भाषा. "
रुक कर पुन :
"हाँ,यह स्मारक है.इस गुफा के अन्दर स्थापित अनुसन्धानशाला के उन वैज्ञानिकोँ की स्मृति मेँ जो टेहरी डैम की तबाही मेँ स्वाह हो गये. "
" अंकल सर ! पृथ्वी का मनुष्य अन्य प्राणियोँ कु अपेक्षा अपने को श्रेष्ठ तो मान बैठाथा लेकिन उसकी श्रेष्ठता कैसी थी? इसका गवाह है-पृथ्वी पर जीवन की बर्बादी. 'अरे,हम क्या कर सकते हैँ? हम मजबूर हैँ.' - कह कर मनुष्य वास्तविकताओँ से मुख तो मोड़ता आया लेकिन उसने पृथ्वी के पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति जरा सा भी न सोँचा.
""""" * * * """""
हाहाहूस धरती की यात्रा करने के बाद सम्कदेल वम्मा सनडेक्सरन धरती पर वापस आ गया.
कम्पयूटरीकृत कक्ष मेँ उपस्थित दोनोँ तीन नेत्रधारी व्यक्ति उस तीन नेत्र धारी बालिका के साथ बिल्डिंग से बाहर आकर सम्कदेल वम्मा के यान की ओर बढ़े.दोनोँ व्यक्ति अंकल सर को लेकर बिल्डिँग की ओर बढ़ गये तथा सम्केदल वम्मा उस बालिका के साथ चलते चलते एक पार्क मेँ आ गये.
पार्क मेँ कमर पर शेर की खाल पहने एक विशालकाय नग्न व्यक्ति की प्रतिमा लगी हुई थी.जिसके शरीर पर एक अजगर लिपटा हुआ था और जिसका एक हाथ ऊपर आसमान की ओर उठा था जिसमेँ दूज का चाँद था,दूसरे हाथ मेँ अजगर का मुँह पकड़ मेँ था.
सम्कदेल वम्मा बालिका अर्थात आरदीस्वन्दी को कुछ पत्तियाँ पकड़ाते हुए बोला -
" ये पत्तियाँ मैँ हाहाहूस से लाया हूँ. इनकी विशेषता है कि इन्हेँ खा कर आप बिना भोजन किए पन्द्रह दिन ताजगी व ऊर्जावान महसूस करते हुए बीता सकती हैँ."
आरदीस्वन्दी दो पत्तियाँ खाते हुए-
"इसका स्वाद तो बड़ा बेकार है."
"हाँ,यह तो है."
"और कुछ सुनाओ. "
"और कुछ ?!हाहाहूस स्थित अनुसन्धानशाला से हमेँ एक सूचना प्राप्त हुई ,आज से लगभग 3000वर्ष पूर्व अर्थात 20सितम्बर2002ई0 मेँ दिल्ली से एक समाचार पत्र ने ' धरती पर आ चुके हैँ परलोकबासी ' के नाम से एक लेख प्रकाशित किया था. जो साधना सक्सेना ने लिखा.इस लेख मेँ दिया गया था कि दुनियाँ अर्थात पृथ्वी की अनेक प्राचीन सभ्यताओँ के अवशेषोँ से ऐसे संकेत मिलते हैँ जैसे वहाँ कभी परलोकबासी आए थे. "
"तो....?!"
" उस वक्त धरतीबासी अनेक अनसुलझी गुत्थी मेँ हिलगे रहे लेकिन वे इस सच्चाई से वाकिफ नहीँ हो पाये कि उस समय कही जाने वाली प्राचीन सभ्यताएं वास्तव मेँ परलोकबासियोँ से परिचित थीँ."
"हाँ, यह तो है."
"उस वक्त एक वैज्ञानिक ने यह अवश्य कहा था ब्रह्मा ,विष्णु,महेश एलियन्स थे."
इसी धरती पर एक कम्पयूटरीकृत कक्ष मेँ दो व्यक्ति उपस्थित थे.कक्ष मेँ एक बालिका दौड़ती हुई आयी और बोली-
"अण्कल ! अब तो सम्कदेल वम्मा से बात कराओ.वे हाहाहूस पर पहुँच चुके होँगे. "
" छ: घण्टे बाद बात करना तब वे हाहाहूस पर होँगे."
इधर अन्तरिक्ष मेँ एक यान लगभग प्रकाश की गति के उड़ान पर था.
जिसमेँ एक किशोर व एक युवक उपस्थित था.
युवक बोला-
"अब से तीन हजार वर्ष पूर्व लगभग सन 2012-13 मेँ उस समय पृथ्वी पर स्थापित एक देश भारत ,जिसने अपना एक यान अपने कुछ वैज्ञानिकोँ को बैठा कर भेजा था. वह यान जब बापस आ रहा था तो उसमेँ उपस्थित भारतीय वैज्ञानिकोँ की मृत्यु हो गयी. "
"क्योँ,ऐसा क्योँ ?"
".... ... "
"..... ....."
"सर! हाहाहूस पर डायनासोर अस्तित्व मेँ कैसे आये?"
" सब नेचुरल है,प्राकृतिक है."
अन्तरिक्ष यान हाहाहूस नामक आकाशीय पिण्ड के नजदीक आ गया था.
इस हाहाहूस धरती पर पचपन प्रतिशत भाग मेँ जंगल था.शेष भाग पर समुद्र,पठार,बर्फीली पहाड़ियाँ ,आदि थी.
कुछ समय पश्चात !
जब यान हाहाहूस धरती पर आते ही तो....
एक अण्डरग्राउण्ड सैकड़ोँ किमी लम्बी पट्टी पर दौड़ने के बाद अपनी गति को धीमा करते जाने के बाद रुका.
यान से बाहर निकलने के बाद दोनोँ एक रुम मेँ प्रवेश कर गये.
"""" * * * """"
अन्तरिक्ष केन्द्र के गेट तक एक कार से आने बाद दोनोँ आगे पैदल ही चल पड़े.
किशोर बोला - " अण्कल! वो विशालकाय काफी ऊँचा स्तम्भ ....?"
"सम्कदेल! सन 2099ई0 की बात है .यहाँ गुफा के अन्दर उपस्थित अनुसन्धानशाला के कुछ वैज्ञानिक पृथ्वी के उत्तराखण्ड मेँ स्थित टेहरी के समीप जंगल मेँ अपने शोधकार्य मेँ लगे थे कि टेहरी बाँध के विध्वंस ने उन्हेँ मौत की नीँद सुला दिया. भूकम्प के कारण विध्वन्स टेहरी बाँध से ऋषिकेश ,देहरादून और हरिद्वार के साथ साथ अनेक क्षेत्रोँ मेँ तबाही हुई.ऐसे मेँ फिर याद आगयी पर्यावरणविद सुन्दर लाल बहुगुणा ,मेधा पाटेकर , आदि की...हूँ,सत्तावादी,पूँजीवादी,स्वार्थी लोग क्या समझेँ विद्वानोँ व वैज्ञानिकोँ की भाषा. "
रुक कर पुन :
"हाँ,यह स्मारक है.इस गुफा के अन्दर स्थापित अनुसन्धानशाला के उन वैज्ञानिकोँ की स्मृति मेँ जो टेहरी डैम की तबाही मेँ स्वाह हो गये. "
" अंकल सर ! पृथ्वी का मनुष्य अन्य प्राणियोँ कु अपेक्षा अपने को श्रेष्ठ तो मान बैठाथा लेकिन उसकी श्रेष्ठता कैसी थी? इसका गवाह है-पृथ्वी पर जीवन की बर्बादी. 'अरे,हम क्या कर सकते हैँ? हम मजबूर हैँ.' - कह कर मनुष्य वास्तविकताओँ से मुख तो मोड़ता आया लेकिन उसने पृथ्वी के पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति जरा सा भी न सोँचा.
""""" * * * """""
हाहाहूस धरती की यात्रा करने के बाद सम्कदेल वम्मा सनडेक्सरन धरती पर वापस आ गया.
कम्पयूटरीकृत कक्ष मेँ उपस्थित दोनोँ तीन नेत्रधारी व्यक्ति उस तीन नेत्र धारी बालिका के साथ बिल्डिंग से बाहर आकर सम्कदेल वम्मा के यान की ओर बढ़े.दोनोँ व्यक्ति अंकल सर को लेकर बिल्डिँग की ओर बढ़ गये तथा सम्केदल वम्मा उस बालिका के साथ चलते चलते एक पार्क मेँ आ गये.
पार्क मेँ कमर पर शेर की खाल पहने एक विशालकाय नग्न व्यक्ति की प्रतिमा लगी हुई थी.जिसके शरीर पर एक अजगर लिपटा हुआ था और जिसका एक हाथ ऊपर आसमान की ओर उठा था जिसमेँ दूज का चाँद था,दूसरे हाथ मेँ अजगर का मुँह पकड़ मेँ था.
सम्कदेल वम्मा बालिका अर्थात आरदीस्वन्दी को कुछ पत्तियाँ पकड़ाते हुए बोला -
" ये पत्तियाँ मैँ हाहाहूस से लाया हूँ. इनकी विशेषता है कि इन्हेँ खा कर आप बिना भोजन किए पन्द्रह दिन ताजगी व ऊर्जावान महसूस करते हुए बीता सकती हैँ."
आरदीस्वन्दी दो पत्तियाँ खाते हुए-
"इसका स्वाद तो बड़ा बेकार है."
"हाँ,यह तो है."
"और कुछ सुनाओ. "
"और कुछ ?!हाहाहूस स्थित अनुसन्धानशाला से हमेँ एक सूचना प्राप्त हुई ,आज से लगभग 3000वर्ष पूर्व अर्थात 20सितम्बर2002ई0 मेँ दिल्ली से एक समाचार पत्र ने ' धरती पर आ चुके हैँ परलोकबासी ' के नाम से एक लेख प्रकाशित किया था. जो साधना सक्सेना ने लिखा.इस लेख मेँ दिया गया था कि दुनियाँ अर्थात पृथ्वी की अनेक प्राचीन सभ्यताओँ के अवशेषोँ से ऐसे संकेत मिलते हैँ जैसे वहाँ कभी परलोकबासी आए थे. "
"तो....?!"
" उस वक्त धरतीबासी अनेक अनसुलझी गुत्थी मेँ हिलगे रहे लेकिन वे इस सच्चाई से वाकिफ नहीँ हो पाये कि उस समय कही जाने वाली प्राचीन सभ्यताएं वास्तव मेँ परलोकबासियोँ से परिचित थीँ."
"हाँ, यह तो है."
"उस वक्त एक वैज्ञानिक ने यह अवश्य कहा था ब्रह्मा ,विष्णु,महेश एलियन्स थे."
शनिवार, 11 सितंबर 2010
वो एलियन्स........ क्रमश : ...BHAVISHY : KATHANSH
" वो एलियन्स कहाँ गये?"
सन2007ई0 की जून!
इन्हीँ दिनोँ.....
"इण्डिया ने 1857 क्रान्ति की 150 वीँ वर्षगाँठ मनानी शुरु कर दिया है.अभी नौ महीने और वहाँ इस उपलक्ष्य मेँ कार्यक्रम मनाये जाते रहेँगे.इस अवसर पर नक्सली एक और क्रान्ति की योजना बनाए बैठे हैँ,कुछ और संगठन इस अवसर पर इण्डियन मिशनरी को ध्वस्त कर देना चाहते हैँ. "
"जार्ज सा'ब!आप अमेरीकी विदेश मन्त्रालय मेँ सचिव हैँ,आप जान सकते हैँ अमेरीकी विदेश नीति क्या है? यह विचारणीय विषय है कि आपके राष्ट्रपति का जनाधार अमेरीका मेँ ही नीचे खिसका है."
" हाँ ,राष्ट्रपति जी इसे महसूस करते हैँ."
"हूँ!.....और यह सवाल कभी न कभी उठेगा कि अमेरीकी फौज ने सन 1947 मेँ जिन एलियन्स को अपने अण्डर मेँ लिया था,आखिर उनका क्या हुआ ? "
" यह सब झूठ है , आप............"
" बैठे रहिए , जार्ज सा'ब बैठे रहिए . बौखलाहट मत लाईए."
" हूँ!"
" हमारी अर्थात ब्रिटिश सरकार इस स्थिति का एहसास करने लगी है जब हम पर एलियन्स आक्रमण करेँगे?"
" अपनी कल्पनाएँ अपने पास रखो ."
" तुम एक वास्तविकता को झुठला रहो हो.."
" झुठला क्या रहा हूँ?और तुम.....?! अन्दर ही अन्दर तुम ' सनडेक्सरन' धरती के ग्यारह फुटी तीन नेत्रधारी किस व्यक्ति का अपहरण कर उसे ट्रेण्ड कर 'पशुपति'के रूप मेँ इस धरती पर पेश कर भारतीयोँ की धर्मान्धता को भुनाने का ख्वाब देखते हो. तुम लोगोँ का दबाव कलकत्ता मेँ कुछ पाण्डालोँ को खरीदने का भी है ."
जार्ज उठ बैठा.
" बैठिए-बैठिए . कैसे चल पड़े ? हम आपकी असलियत से अन्जान नहीँ हैँ."
"जनवरी 1990ई0 की उस बैठक का स्मरण है क्या ? हम जानते हैँ कि हमारे भू वैज्ञानिकोँ ने घोषणा की है कि भारतीय प्रायद्वीप की भूमि के अन्दर दरार पड़ रही है जो अरब सागर को मानसरोबर झील से मिला देगी और भारत दो भागोँ मेँ बँट जाएगा. इस दरार को बढ़ाने के लिए हमारे कुछ वैज्ञानिक कूत्रिम उपाय मेँ लगे हुए हैँ. दूसरी ओर समुन्द्र मेँ सुनामी लहरेँ लाने की कृत्रिम व्यवस्था की जा रही है. अन्तरिक्ष व अन्य आकाशीय पिण्डोँ पर भी अधिकार स्थापित करने की योजना है.."
सब चौँके-"अरे, यह क्या ? "
कमरे का दरबाजा अपने आप से खुल गया.कुछ सेकण्ड के लिए कमरे की लाइटेँ मन्द पड़ गयीँ.
" डकदलेमनस ! "- एक के मुख से निकला.
दरबाजे पर तीन नेत्रधारी ग्यारह फुटी एक व्यक्ति उपस्थित हुआ.जार्ज उसके स्वागत मेँ मुस्कुराते आगे बड़ा.
" आओ, डकदलेमनस!"
डकदलेमनस बोला-" यह नहीँ पूछा,कैसे आना हुआ?"
"सर ! "
डकदलेमनस
फिर बोला-
"तुम पृथु बासी कितने स्वार्थी हो? तुम सब स्वार्थी हम लोगोँ का सहयोग पाकर अपने स्वार्थोँ का भविष्य ही देख रहे हो ?इस धरती पर जीवन को बचाने के लिए मुहिम छेड़ना तो दूर अपनी कूपमण्डूकताओँ मेँ जीते इस धरती पर मनुष्यता तक को नहीँ बचा पा रहे हो. खानदानी जातीय मजहबी राष्ट्रीय भावनाओँ आदि से ग्रस्त हो, मनुष्यता को बीमार कर ही रहे हो. यहाँ से लाखोँ प्रकाश दूर हमारी तथा अन्य एलियन्स की धरतियो पर अपनी विकृत भेद युक्त सोँच नियति का प्रभाव फैलाने चाहते हो. जून 1947ई 0 मेँ यहाँ आये वे एलियन्स आप लोगोँ ने गायब कर दिए थे लेकिन हम लोगोँ को क्या भुगतना पड़ा? नहीँ जानते हो. इस धरती पर जीवन का जीवन खतरे मेँ है ही .हम लोगोँ का एक आक्रमण ही इस धरती को श्मसान बना देगा ? आखिर वो एलियन्स कहाँ गये? बड़े श्रेष्ठ बनते हो व खुद ही अपने को आर्य कहते हो..? लेकिन तुम लोगोँ के आचरण व व्यवहार क्या प्रदर्शित कर रहे हैँ.? अपनी फैमिली के मैम्बर की मुस्कान छीन लेते हो,पृथ्वी की प्रकृति ,जीवन की ,अन्तरिक्ष की मुस्कान के लिए क्या करोगे ? तम्हारी धरती जाए भाड़ मेँ,बस हमेँ उन एलियन्स की रिपोर्ट चाहिए.."
"देखिए सर, 1947ई0मेँ हम लोग पैदा भी नहीँ हुए थे."
"उनके उत्तरधिकारी तो तक हो? उनका काम तो आगे बढ़ा रहे हो?"
" सर,यहाँ हमारी कुछ कण्डीशन हैँ जिससे हम मजबूर हो जाते हैँ?"
"एक वर्ष का मौका और दो,इन्सानियत व जीवन के नाते."
" हूँ! इन्सानियत व जीवन के नाते? किस मुख से वकालत करते हो इन्सानियत व जीवन की? अपनी कूपमण्डूकता के बाहर का सोँच ऩहीँ पाते, सिर्फ मतभेद व विध्वन्स के सिवा.एक वर्ष बाद फिर आऊँगा." - डकदलेमनस चल देता है.
"रुकिए सर, इतने दूर से आये हो तो......"
"यह दूरी, मेरे लिए नहीँ है दूरी. तुम लोग इस पर काम करो आखिर वो ए लियन्स कहाँ गये ? एक साल बाद फिर आऊँगा. अगली बार 'न 'का मतलब प्रलयकारी होगा ."
डकदलेमनस कमरे से बाहर हो गया.
फिर-
भविष्य त्रिपाठी कम्प्यूटर मानीटर से अपनी दृष्टि हटाते हुए नादिरा खानम को देखने लगा.
"भविष्य, फिर एक साल बाद.....?!"
"नादिरा, एक साल बाद अर्थात14अप्रैल2009ई0 को....?!"
सन2007ई0 की जून!
इन्हीँ दिनोँ.....
"इण्डिया ने 1857 क्रान्ति की 150 वीँ वर्षगाँठ मनानी शुरु कर दिया है.अभी नौ महीने और वहाँ इस उपलक्ष्य मेँ कार्यक्रम मनाये जाते रहेँगे.इस अवसर पर नक्सली एक और क्रान्ति की योजना बनाए बैठे हैँ,कुछ और संगठन इस अवसर पर इण्डियन मिशनरी को ध्वस्त कर देना चाहते हैँ. "
"जार्ज सा'ब!आप अमेरीकी विदेश मन्त्रालय मेँ सचिव हैँ,आप जान सकते हैँ अमेरीकी विदेश नीति क्या है? यह विचारणीय विषय है कि आपके राष्ट्रपति का जनाधार अमेरीका मेँ ही नीचे खिसका है."
" हाँ ,राष्ट्रपति जी इसे महसूस करते हैँ."
"हूँ!.....और यह सवाल कभी न कभी उठेगा कि अमेरीकी फौज ने सन 1947 मेँ जिन एलियन्स को अपने अण्डर मेँ लिया था,आखिर उनका क्या हुआ ? "
" यह सब झूठ है , आप............"
" बैठे रहिए , जार्ज सा'ब बैठे रहिए . बौखलाहट मत लाईए."
" हूँ!"
" हमारी अर्थात ब्रिटिश सरकार इस स्थिति का एहसास करने लगी है जब हम पर एलियन्स आक्रमण करेँगे?"
" अपनी कल्पनाएँ अपने पास रखो ."
" तुम एक वास्तविकता को झुठला रहो हो.."
" झुठला क्या रहा हूँ?और तुम.....?! अन्दर ही अन्दर तुम ' सनडेक्सरन' धरती के ग्यारह फुटी तीन नेत्रधारी किस व्यक्ति का अपहरण कर उसे ट्रेण्ड कर 'पशुपति'के रूप मेँ इस धरती पर पेश कर भारतीयोँ की धर्मान्धता को भुनाने का ख्वाब देखते हो. तुम लोगोँ का दबाव कलकत्ता मेँ कुछ पाण्डालोँ को खरीदने का भी है ."
जार्ज उठ बैठा.
" बैठिए-बैठिए . कैसे चल पड़े ? हम आपकी असलियत से अन्जान नहीँ हैँ."
"जनवरी 1990ई0 की उस बैठक का स्मरण है क्या ? हम जानते हैँ कि हमारे भू वैज्ञानिकोँ ने घोषणा की है कि भारतीय प्रायद्वीप की भूमि के अन्दर दरार पड़ रही है जो अरब सागर को मानसरोबर झील से मिला देगी और भारत दो भागोँ मेँ बँट जाएगा. इस दरार को बढ़ाने के लिए हमारे कुछ वैज्ञानिक कूत्रिम उपाय मेँ लगे हुए हैँ. दूसरी ओर समुन्द्र मेँ सुनामी लहरेँ लाने की कृत्रिम व्यवस्था की जा रही है. अन्तरिक्ष व अन्य आकाशीय पिण्डोँ पर भी अधिकार स्थापित करने की योजना है.."
सब चौँके-"अरे, यह क्या ? "
कमरे का दरबाजा अपने आप से खुल गया.कुछ सेकण्ड के लिए कमरे की लाइटेँ मन्द पड़ गयीँ.
" डकदलेमनस ! "- एक के मुख से निकला.
दरबाजे पर तीन नेत्रधारी ग्यारह फुटी एक व्यक्ति उपस्थित हुआ.जार्ज उसके स्वागत मेँ मुस्कुराते आगे बड़ा.
" आओ, डकदलेमनस!"
डकदलेमनस बोला-" यह नहीँ पूछा,कैसे आना हुआ?"
"सर ! "
डकदलेमनस
फिर बोला-
"तुम पृथु बासी कितने स्वार्थी हो? तुम सब स्वार्थी हम लोगोँ का सहयोग पाकर अपने स्वार्थोँ का भविष्य ही देख रहे हो ?इस धरती पर जीवन को बचाने के लिए मुहिम छेड़ना तो दूर अपनी कूपमण्डूकताओँ मेँ जीते इस धरती पर मनुष्यता तक को नहीँ बचा पा रहे हो. खानदानी जातीय मजहबी राष्ट्रीय भावनाओँ आदि से ग्रस्त हो, मनुष्यता को बीमार कर ही रहे हो. यहाँ से लाखोँ प्रकाश दूर हमारी तथा अन्य एलियन्स की धरतियो पर अपनी विकृत भेद युक्त सोँच नियति का प्रभाव फैलाने चाहते हो. जून 1947ई 0 मेँ यहाँ आये वे एलियन्स आप लोगोँ ने गायब कर दिए थे लेकिन हम लोगोँ को क्या भुगतना पड़ा? नहीँ जानते हो. इस धरती पर जीवन का जीवन खतरे मेँ है ही .हम लोगोँ का एक आक्रमण ही इस धरती को श्मसान बना देगा ? आखिर वो एलियन्स कहाँ गये? बड़े श्रेष्ठ बनते हो व खुद ही अपने को आर्य कहते हो..? लेकिन तुम लोगोँ के आचरण व व्यवहार क्या प्रदर्शित कर रहे हैँ.? अपनी फैमिली के मैम्बर की मुस्कान छीन लेते हो,पृथ्वी की प्रकृति ,जीवन की ,अन्तरिक्ष की मुस्कान के लिए क्या करोगे ? तम्हारी धरती जाए भाड़ मेँ,बस हमेँ उन एलियन्स की रिपोर्ट चाहिए.."
"देखिए सर, 1947ई0मेँ हम लोग पैदा भी नहीँ हुए थे."
"उनके उत्तरधिकारी तो तक हो? उनका काम तो आगे बढ़ा रहे हो?"
" सर,यहाँ हमारी कुछ कण्डीशन हैँ जिससे हम मजबूर हो जाते हैँ?"
"एक वर्ष का मौका और दो,इन्सानियत व जीवन के नाते."
" हूँ! इन्सानियत व जीवन के नाते? किस मुख से वकालत करते हो इन्सानियत व जीवन की? अपनी कूपमण्डूकता के बाहर का सोँच ऩहीँ पाते, सिर्फ मतभेद व विध्वन्स के सिवा.एक वर्ष बाद फिर आऊँगा." - डकदलेमनस चल देता है.
"रुकिए सर, इतने दूर से आये हो तो......"
"यह दूरी, मेरे लिए नहीँ है दूरी. तुम लोग इस पर काम करो आखिर वो ए लियन्स कहाँ गये ? एक साल बाद फिर आऊँगा. अगली बार 'न 'का मतलब प्रलयकारी होगा ."
डकदलेमनस कमरे से बाहर हो गया.
फिर-
भविष्य त्रिपाठी कम्प्यूटर मानीटर से अपनी दृष्टि हटाते हुए नादिरा खानम को देखने लगा.
"भविष्य, फिर एक साल बाद.....?!"
"नादिरा, एक साल बाद अर्थात14अप्रैल2009ई0 को....?!"
: अंतरिक्ष यात्रा ?!
भारत एक सनातन यात्रा का नाम है.पौराणिक कथाओँ से स्पष्ट है कि हम विश्व मेँ ही नहीँ अन्तरिक्ष मेँ भी उत्साहित तथा जागरूक रहे हैँ.अन्तरिक्ष विज्ञान से हमारा उतना पुराना नाता है जितना पुराना नाता हमारा हमारी देवसंस्कृति का इस धरती से.विभिन्न प्राचीन सभ्यताओँ के अवशेषोँ मेँ मातृ देवि के प्रमाण मिले हैँ.एक लेखिका साधना सक्सेना का कुछ वर्ष पहले एक समाचार पत्र मेँ लेख
प्रकाशित हुआ था-'धरती पर आ चुके है परलोकबासी'.
अमेरिका ,वोल्गा ,आदि कीअनेक जगह से प्राप्त अवशेषोँ से ज्ञात होता है कि वहाँ कभी भारतीय आ चुके थे.भूमध्यसागरीय सभ्यता के कबीला किसी परलोकबासी शक्ति की ओर संकेत करते हैँ.वर्तमान के एक वैज्ञानिक का तो यह मानना है कि अंशावतार ब्रह्मा, विष्णु ,महेश परलोक बासी ही रहे होँ?
मध्य अमेरिका की प्राचीन सभ्यता मय के लोगोँ को कलैण्डर व्यवस्था किसी अन्य ग्रह के प्राणियोँ से बतौर उपहार प्राप्त हुई थी. इसी प्रकार पेरु की प्राचीन सभ्यता इंका के अवशेषोँ मेँ एक स्थान पर पत्थरोँ की जड़ाई से बनी सीधी और वृताकार रेखाएँ दिखाई पड़ती हैँ.ये पत्थर आकार मेँ इतने बड़े है कि इन रेखाओँ को हवाई जहाज से ही देखा जा सकता है.अनुमान लगाया जाता है कि शायद परलोकबासी अपना
यान उतारने के लिए इन रेखाओँ को लैण्ड मार्क की तरह इस्तेमाल करते थे.इसी सभ्यता के एक प्राचीन मन्दिर की दीवार पर एक राकेट बना हुआ है.राकेट के बीच मेँ एक आदमी बैठा है,जो आश्चर्यजनक रुप से हैलमेट लगाए हुए है.
पेरु मेँ कुछ प्राचीन पत्थर मिले हैँ जिन पर अनोखी लिपि मेँ कुछ खुदा है और उड़न तश्तरी का चित्र भी बना है.दुनिया के अनेक हिस्सोँ मेँ मौजूद गुफाओँ मेँ अन्तरिक्ष यात्री जैसी पोशाक पहने मानवोँ की आकृति बनाई या उकेरी गई है.कुछ प्राचीन मूर्तियोँ को भी यही पोशाक धारण किए हुए बनाया गया है.जापान मेँ ऐसी मूर्तियोँ की तादाद काफी है.सिन्धु घाटी की सभ्यता और मौर्य काल मेँ भी कुछ ऐसी
ही मूर्तियाँ गढ़ी गयी थीँ.इन्हेँ मातृदेवि कहा जाता है.जिनके असाधारण पोशाक की कल्पना की उत्पत्ति अभी भी पहेली बनी हुई है.
ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'
A.B.V. INTER COLLEGE,
KATRA, SHAHAJAHANPUR, U.P.
प्रकाशित हुआ था-'धरती पर आ चुके है परलोकबासी'.
अमेरिका ,वोल्गा ,आदि कीअनेक जगह से प्राप्त अवशेषोँ से ज्ञात होता है कि वहाँ कभी भारतीय आ चुके थे.भूमध्यसागरीय सभ्यता के कबीला किसी परलोकबासी शक्ति की ओर संकेत करते हैँ.वर्तमान के एक वैज्ञानिक का तो यह मानना है कि अंशावतार ब्रह्मा, विष्णु ,महेश परलोक बासी ही रहे होँ?
मध्य अमेरिका की प्राचीन सभ्यता मय के लोगोँ को कलैण्डर व्यवस्था किसी अन्य ग्रह के प्राणियोँ से बतौर उपहार प्राप्त हुई थी. इसी प्रकार पेरु की प्राचीन सभ्यता इंका के अवशेषोँ मेँ एक स्थान पर पत्थरोँ की जड़ाई से बनी सीधी और वृताकार रेखाएँ दिखाई पड़ती हैँ.ये पत्थर आकार मेँ इतने बड़े है कि इन रेखाओँ को हवाई जहाज से ही देखा जा सकता है.अनुमान लगाया जाता है कि शायद परलोकबासी अपना
यान उतारने के लिए इन रेखाओँ को लैण्ड मार्क की तरह इस्तेमाल करते थे.इसी सभ्यता के एक प्राचीन मन्दिर की दीवार पर एक राकेट बना हुआ है.राकेट के बीच मेँ एक आदमी बैठा है,जो आश्चर्यजनक रुप से हैलमेट लगाए हुए है.
पेरु मेँ कुछ प्राचीन पत्थर मिले हैँ जिन पर अनोखी लिपि मेँ कुछ खुदा है और उड़न तश्तरी का चित्र भी बना है.दुनिया के अनेक हिस्सोँ मेँ मौजूद गुफाओँ मेँ अन्तरिक्ष यात्री जैसी पोशाक पहने मानवोँ की आकृति बनाई या उकेरी गई है.कुछ प्राचीन मूर्तियोँ को भी यही पोशाक धारण किए हुए बनाया गया है.जापान मेँ ऐसी मूर्तियोँ की तादाद काफी है.सिन्धु घाटी की सभ्यता और मौर्य काल मेँ भी कुछ ऐसी
ही मूर्तियाँ गढ़ी गयी थीँ.इन्हेँ मातृदेवि कहा जाता है.जिनके असाधारण पोशाक की कल्पना की उत्पत्ति अभी भी पहेली बनी हुई है.
ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'
A.B.V. INTER COLLEGE,
KATRA, SHAHAJAHANPUR, U.P.
गुरुवार, 9 सितंबर 2010
अदृश्य?!
jo ankhon se dikhata hai ,usake siba bhi kuchh hai.
मीरानपुर कटरा में आकर हम 01 जुलाई 2004 ई0 से रहने लगे थे। हम ने एक नई पांडुलिपी तैयार करना शुरू कर दी थी - 'अपना अदृश्य?!' कुछ चीजें हम अपने जीवन में घटित होकर अचरज व कौतूहल में थे।
मीरानपुर कटरा में आकर हम 01 जुलाई 2004 ई0 से रहने लगे थे। हम ने एक नई पांडुलिपी तैयार करना शुरू कर दी थी - 'अपना अदृश्य?!' कुछ चीजें हम अपने जीवन में घटित होकर अचरज व कौतूहल में थे।
वो एलियन्स कहाँ गये?
यह इत्तफाक कहेँ या और कुछ कि मैँ तथाकथित हिन्दू परिवार मेँ जन्मा जरुर था लेकिन वहाँ प्रेम नहीँ पा सका था .मेरे लेडीज एण्ड जेण्टस जो भी फ्रेण्डस थे,इत्तफाक से गैर हिन्दू थे. एम एस सी करने के बाद मैँ शोधकार्य मेँ लग गया था.जिसकी सघनता मेँ प्रेम मित्रता या शादी पर सोँचने की फर्सत ही नहीँ थी.मेरी एक फ्रेण्ड रही थी नादिरा खानम. वह सम्भवत: हमेँ नहीँ भूली थी,कभी कभार हमसे मिलने चली आती थी.ऐसे मेँ वह ही मैँ और समाज के बीच सेतु थी.प्रत्येक वर्ष 16 नवम्बर को मैँ उसके जन्म दिन पर उसके घर जाना नहीँ भूलता था.एक दिन उसने अचानक मुझसे पूछ लिया-
" भविष्य! क्या ऐसे ही गम्भीरता मेँ जीवन गवाँ दोगे? शादी का क्या नहीँ सोँचा?"
तब मैँ बोला-"शादी ,हमसे कौन करेगा शादी? क्या तुम करोगी शादी? "
इसके बाद मैँ डर सा गया था.नादिरा खानम के गम्भीर होते चेहरे ने हमेँ और डरा दिया था.
वह बोली-"होश मेँ हो भविष्य?"
मैँ बोल दिया-"सारी,सारी नादिरा.मैँ तो योँ ही तुम्हारे मन को......"
नादिरा खानम मुस्कुरा दी-" आप तो पसीना पसीना हो रहे हो? नो टेन्शन,भविष्य. "
नादिरा खानम की शादी के एक साल बाद ही एक एक्सीडेण्ट मेँ उसके पति की मृत्यु हो गयी.एक दिन मैने उससे कह दिया -"नादिरा,मेरे साथ काम पर आ जाओ.तुमको रोजगार भी मिल जाएगा और ...... "
अब हम और नादिरा खानम एक साथ थे,जीवन के हर क्षण एक साथ थे.
एक दिन मैँ नादिरा के साथ बैठा अपने कम्पयूटर पर एलियन्स के सम्बन्ध मेँ एकत्रित विभिन्न जानकारियोँ का अध्ययन कर रहा था. वर्ष 1971ई0के 'अपोलो 14' के चाँद मिशन के एक यात्री रह चुके-डा0 मिशेल द्वारा वृहस्पतिवार 24 जुलाई 2008ई को एलियन्स के सम्बन्ध मेँ दिए बयान भी संकलित थे.
* * *
टीवी पर अन्तरिक्ष के दृश्य दिखाये जा रहे थे.
क्या वास्तव मेँ एक उड़नतश्तरी न्यू मैक्सिको के एक खेत मेँ जून 1947ई0 मेँ गिरी थी?जिससे सम्बन्धित तथ्योँ को पेश करने के साथ अन्तरिक्ष की भावी सम्भावनाएँ एक टीवी चैनल पर दिखाई जा रही थीं.
एक युवक तासीन अजीम कुर्सी पर बैठते हुए बोला -
"भाई जान! अन्तर्रास्ट्रीय दबाव के रहते अब पाकिस्तान से जेहादियोँ का आना कम हो गया है."
"हाँ ,जो आ भी रहे हैँ वे शिविरोँ से भाग कर अपने घर जा रहे हैँ,एक मिनट....."
मोबाइल पर किसी ने काल किया.
मोईनुद्दीन मोबाइल देखते हुए बोला-
" मेरी लड़की का फोन है."
"पापा ,घर कब आ रहे हो ? "
" बेटी ,एक घण्टे बाद आ रहा हूँ."
"पापा ,एक खास बात.टीवी पर आ रहा है कि शाहजहाँपुर के एक गाँव मेँ दूसरी धरती का यान उतरा ,जो अण्डाकार का था."
"अच्छा,कहीँ ऐसा तो नहीँ कोई सीरियल बगैरा देख लिया हो नीँद के नशे मेँ ?"
"पापा आप भी? मैँ क्या इतनी ऐसी हूँ?"
रुबी मोबाइल आफ कर सोँचने लगी-
जून 1947ई0की बात,न्यू मैक्सिको का रहने वाला मिस्टर एस.जो एक अन्तरिक्ष संस्था मेँ वैज्ञानिक था.अपने अवकाश के दिन वह न्यू मैक्सिको के बाहर अपने कृषि फार्म पर बीताता था.
एक दिन वह अपने कृषि फार्म पर ही था कि अचानक अपने सामने एक परग्रही प्राणी/एलियन को पाकर चौँका.
मिस्टर एस के मुँह से सिर्फ इतना निकला-"तुम!तुम यहाँ क्योँ?क्योँ?"
तब एलियन बोला-
"मित्र,निश्चिन्त रहो.क्या तुम हमारी मदद कर सकते हो?"
मि एस खामोश हो उसे आश्चर्य से देखता रहा.
"हमारे साथियोँ का एक यान यहाँ दुर्घटना ग्रस्त हो गया था ,जिसमेँ दो लोग जीवित थे सम्भवत:.उन सब को आपकी सेना ले गयी."
मि एस उसे एक कमरे मेँ ले जा कर बोला-" मुझसे जितना बनेगा,उतना प्रत्यन करूँगा. "
फिर मि एस कहीँ का सोँचने लगा तो एलियन बोला -
"मि एस मुझे दुख है कि तुम्हारी बीबी की हत्या एवं पुत्री रुचिको का अपहरण उन लोगोँ के द्वारा कर लिया गया . "
एलियन फिर बोला-"सनडेक्सरन धरती के कुछ निवासियोँ का... "
मि एस बोला- "सनडेक्सरन ?"
तब एलियन बोला - "हाँ, ग्यारह फुटी और तीन नेत्रधारी व्यक्तियोँ की धरती!?"
मि एस चौँका-" क्या,क्या कहते हो?"
एलियन बोला-"अन्तरिक्ष मेँ और भी धरतियाँ हैँ,आप लोगोँ से कहीँ ज्यादा उच्च विज्ञान व तकनीकी रखते हैँ वहाँ के निवासी.अतीत मेँ भूमध्य सागर व कश्यप सागर के समीपवर्ती कुछ कबीलोँ का अन्तरिक्ष की अन्य धरतियोँ से सम्बन्ध था."
मि एस सोँचने लगा-
कुछ दिन पूर्व गिरी दोनोँ उड़नतश्तरियाँ जरुर ' धधस्कनक' धरती की होगी.एक तो मेरे ही खेत मेँ गिरी थी...."
अमरीकी सेना ने उड़नतश्तरियोँ के मलवे व एलियन्स को गायब करवा दिया था.अब इस एलियन के साथ साथ मि एस को जेल मेँ डाल दिया गया.जेल से छूटने के दो दिन बाद वायु यान दुर्घटना मेँ मि एस की मृत्यु हो गयी.
रुबी सोँच रही थी-"वो एलियन्स कहाँ गये?"
सन 2007ई0 की जून....
सोमवार, 6 सितंबर 2010
भविष्य !फिर....24 फरबरी 2165ई0:अरब सागर से प्रशांत महासागर तक?
" भविष्य!फिर...."
प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध ने विश्व को झकझोर कर रख दिया था.हालाँकि ऐसे मेँ परिस्थितियाँ बनी अनेक देशोँ के स्वतन्त्रता की.जिसका लाभ उठाकर हिन्दुस्तान मेँ नेता जी सुभाष चन्द्र बोस नायक बन कर उभरे .नौ सेना विद्रोह के साथ साथ ब्रिटिश शासन के अन्य स्तम्भ भी विद्रोह की चपेट मेँ आ गये. यूरोपीय उपनिवेशवाद के स्थान पर अमेरीकी भौतिक उपनिवेशवाद अपना स्थान जमाने लगा .
इक्कीसवीँ सदी के प्रारम्भ के साथ मानवतावादी अण्डरवर्ल्ड ग्रुप मेँ एक नाम सामने आया -देवकृष्णा का. हिन्दुस्तान के ही एक जंगल मेँ तमाम मानवतावादी अण्डरवर्ल्ड ग्रुपस की उपस्थिति मेँ देवकृष्णा को मिशन का प्रथम नायक बनाया गया.सुनने को तो यह मिला कि जब देवकृष्णा को नायक घोषित किया गया तो उस वक्त एलियन्स भी उपस्थित थे.खैर जो भी हो,देवकृष्णा का सम्बन्ध तिब्बत के एक क्षेत्र से रहा था,जो चीन के अधिकार मेँ था.आपात काल मेँ जीता तिब्बत अपनी संस्कृति व दर्शन के अस्तित्व के लिए चिन्तित था.देवकृष्णा ने अपने सम्बोधनोँ मेँ अनेक बार घोषणा की थी कि जिस तरह महाभारत मेँ द्वारिका का स्थान था वही आने वाले समय मेँ तिब्बत का होगा लेकिन कृष्ण की भूमिका कौन निभायेगा?भविष्य मेँ सामने आ जायेगा.
काफी वर्ष पहले से ही कुछ वैज्ञानिक गांधी का क्लोन बनाने की कोशिस मेँ थे लेकिन सफलता प्राप्त नहीँ कर पा रहे थे.मैँ उन दिनोँ बरेली कालेज,बरेली मेँ बीएससी सेकण्ड का छात्र था.यूपी मेँ मुलायम सिँह यादव की सरकार थी.पूर्व प्रधानमन्त्री विश्वनाथ प्रताप सिँह व राजबब्बर के नेतृत्व मेँ यूपी का किसान भूमि अधिग्रहण एवं भूमि की कीमतोँ के सम्बन्ध मेँ आन्दोलनरत था.हर शनिवार को मैँ बरेली से मीरानपुर कटरा आ जाता था.एक बार इस यात्रा के दौरान मेरी मुलाकात विश्वा नाम की एक युवती से हुई, जिसने मुझे आलोक वम्मा नामक एक युवक से मिलाने का वादा किया .एक महीने बाद मैँ जब बरेली स्थित श्यामतगंज मेँ विश्वा के आवास पर पहुँचा तो उसने मेरी मुलाकात आलोक वम्मा से करायी.
आलोक वम्मा से सम्पर्क के बाद मुझे अनेक विचारकोँ ,वैज्ञानिकोँ ,क्रान्तिकारियोँ,यहाँ तक कि कुछ अहिँसक नक्सलियोँ से मिलवाया गया था.मेरा लक्ष्य तो एम एस सी पूरी करने के बाद वैज्ञानिक बनने का था.एम एस सी पूरी करने के बाद मुझे झारखण्ड स्थित एक जंगल मेँ भूमिगत अनुसन्धानशाला मेँ ले जाया गया.जहाँ मेरी कल्पनाओँ को साकार करने की पृष्ठभूमि मिली.
लेकिन यह क्या ? इस धरती पर वैज्ञानिक गांधी का क्लोन बनाने की सोँचते ही रह गये.
गग्नध देवय उर्फ ब्राह्माण्ड बी.गांधी ......?!कुछ एलियन्स के द्वारा जानकारी मिली कि अन्तरिक्ष मेँ एक अन्य धरती पर महात्मा गांधी की शक्ल का एक व्यक्ति उपस्थित है. जो मानवतावादी ब्राह्माण्ड शक्ति दल का संरक्षक है. एलियन्स का जिक्र हुआ है तो मैँ आपको बता दूँ,इस धरती के कुछ वैज्ञानिक ऐसे हैँ,जिनकी मुलाकात एलियन्स से हुई है. मेरी भी एलियन्स से मुलाकात हो चुकी है.
मै बता दूँ कि अने तथ्य ऐसे होते हैँ जो अनुसन्धानशालाओँ और पुरातत्व विभाग तक ही सीमित हो कर रह जाते हैँ.
"""""" * * * """"""
लगभग एक वर्ष बाद सन 2165ई0 की फरबरी,
भारतीय उपमहाद्वीप एवं चीन को दो भागोँ मेँ बाँटने की योजना?
आखिर सफलता पा ली कुशक्तियोँ ने .
24 फरबरी को भूमि तीब्र भूकम्प के साथ चटक गयी.
इन दो भूमियोँ के बीच अब सागर....?! भूकम्प और सुनामी लहरेँ;बाँधोँ के टूटने से बाढ़ . गुजरात के सूरत से हरिद्वार,उत्तर काशी,मानसरोवर होते हुए चीन की भूमि को चीरते हुए उत्तरी दक्षिणी कोरिया आदि से हो इस चटक ने अरब की खाड़ी और उधर चीन सागर से हो कर प्रशान्त महासागर को मिला दिया . भारतीय उपमहाद्वीप की चट्टान खिसक कर पूर्व की ओर बढ़ गयी थी. म्यामार, वियतनाम, आदि बर्बादी के गवाह बन चुके थे.
इससे क्या मिला कुशक्तियोँ को?
लेकिन !
जन धन प्रकृति की हानि जरुर हुई.
प्रकृति के अन्धविदोहन एवं कृत्रिम जीवन के स्वीकार्य ने पृथ्वी पर दो हजार चार ई0 से ही तेजी के साथ परिवर्तन प्रारम्भ कर दिए थे. सुनामी लहरोँ के बाद यह परिवर्तन और तेज हो गये थे . सुनामी लहरेँ भी क्या प्राकृतिक थीँ या फिर किसी कुशक्ति की हरकत थी ?इस पर मतभेद रहा था.
एलियन्स के सम्बन्ध मेँ ?
सन1947ई0 मेँ कुछ शक्तियोँ के एलियन्स से क्या सम्पर्क हुए थे कि वे पृथ्वी और अन्तरिक्ष मेँ अपनी साजिशेँ रचने लगे. पृथ्वी का मनुष्य आखिर कब तक जगेगा?अपने स्वार्थोँ मेँ अन्धा हो पृक्रति व ब्राह्माण्ड मेँ भी विकृतियाँ फैला दीँ .
""""" * * * """""
जन्म के वक्त ही मेरा नाम रख दिया गया था-भविष्य .
प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध ने विश्व को झकझोर कर रख दिया था.हालाँकि ऐसे मेँ परिस्थितियाँ बनी अनेक देशोँ के स्वतन्त्रता की.जिसका लाभ उठाकर हिन्दुस्तान मेँ नेता जी सुभाष चन्द्र बोस नायक बन कर उभरे .नौ सेना विद्रोह के साथ साथ ब्रिटिश शासन के अन्य स्तम्भ भी विद्रोह की चपेट मेँ आ गये. यूरोपीय उपनिवेशवाद के स्थान पर अमेरीकी भौतिक उपनिवेशवाद अपना स्थान जमाने लगा .
इक्कीसवीँ सदी के प्रारम्भ के साथ मानवतावादी अण्डरवर्ल्ड ग्रुप मेँ एक नाम सामने आया -देवकृष्णा का. हिन्दुस्तान के ही एक जंगल मेँ तमाम मानवतावादी अण्डरवर्ल्ड ग्रुपस की उपस्थिति मेँ देवकृष्णा को मिशन का प्रथम नायक बनाया गया.सुनने को तो यह मिला कि जब देवकृष्णा को नायक घोषित किया गया तो उस वक्त एलियन्स भी उपस्थित थे.खैर जो भी हो,देवकृष्णा का सम्बन्ध तिब्बत के एक क्षेत्र से रहा था,जो चीन के अधिकार मेँ था.आपात काल मेँ जीता तिब्बत अपनी संस्कृति व दर्शन के अस्तित्व के लिए चिन्तित था.देवकृष्णा ने अपने सम्बोधनोँ मेँ अनेक बार घोषणा की थी कि जिस तरह महाभारत मेँ द्वारिका का स्थान था वही आने वाले समय मेँ तिब्बत का होगा लेकिन कृष्ण की भूमिका कौन निभायेगा?भविष्य मेँ सामने आ जायेगा.
काफी वर्ष पहले से ही कुछ वैज्ञानिक गांधी का क्लोन बनाने की कोशिस मेँ थे लेकिन सफलता प्राप्त नहीँ कर पा रहे थे.मैँ उन दिनोँ बरेली कालेज,बरेली मेँ बीएससी सेकण्ड का छात्र था.यूपी मेँ मुलायम सिँह यादव की सरकार थी.पूर्व प्रधानमन्त्री विश्वनाथ प्रताप सिँह व राजबब्बर के नेतृत्व मेँ यूपी का किसान भूमि अधिग्रहण एवं भूमि की कीमतोँ के सम्बन्ध मेँ आन्दोलनरत था.हर शनिवार को मैँ बरेली से मीरानपुर कटरा आ जाता था.एक बार इस यात्रा के दौरान मेरी मुलाकात विश्वा नाम की एक युवती से हुई, जिसने मुझे आलोक वम्मा नामक एक युवक से मिलाने का वादा किया .एक महीने बाद मैँ जब बरेली स्थित श्यामतगंज मेँ विश्वा के आवास पर पहुँचा तो उसने मेरी मुलाकात आलोक वम्मा से करायी.
आलोक वम्मा से सम्पर्क के बाद मुझे अनेक विचारकोँ ,वैज्ञानिकोँ ,क्रान्तिकारियोँ,यहाँ तक कि कुछ अहिँसक नक्सलियोँ से मिलवाया गया था.मेरा लक्ष्य तो एम एस सी पूरी करने के बाद वैज्ञानिक बनने का था.एम एस सी पूरी करने के बाद मुझे झारखण्ड स्थित एक जंगल मेँ भूमिगत अनुसन्धानशाला मेँ ले जाया गया.जहाँ मेरी कल्पनाओँ को साकार करने की पृष्ठभूमि मिली.
लेकिन यह क्या ? इस धरती पर वैज्ञानिक गांधी का क्लोन बनाने की सोँचते ही रह गये.
गग्नध देवय उर्फ ब्राह्माण्ड बी.गांधी ......?!कुछ एलियन्स के द्वारा जानकारी मिली कि अन्तरिक्ष मेँ एक अन्य धरती पर महात्मा गांधी की शक्ल का एक व्यक्ति उपस्थित है. जो मानवतावादी ब्राह्माण्ड शक्ति दल का संरक्षक है. एलियन्स का जिक्र हुआ है तो मैँ आपको बता दूँ,इस धरती के कुछ वैज्ञानिक ऐसे हैँ,जिनकी मुलाकात एलियन्स से हुई है. मेरी भी एलियन्स से मुलाकात हो चुकी है.
मै बता दूँ कि अने तथ्य ऐसे होते हैँ जो अनुसन्धानशालाओँ और पुरातत्व विभाग तक ही सीमित हो कर रह जाते हैँ.
"""""" * * * """"""
लगभग एक वर्ष बाद सन 2165ई0 की फरबरी,
भारतीय उपमहाद्वीप एवं चीन को दो भागोँ मेँ बाँटने की योजना?
आखिर सफलता पा ली कुशक्तियोँ ने .
24 फरबरी को भूमि तीब्र भूकम्प के साथ चटक गयी.
इन दो भूमियोँ के बीच अब सागर....?! भूकम्प और सुनामी लहरेँ;बाँधोँ के टूटने से बाढ़ . गुजरात के सूरत से हरिद्वार,उत्तर काशी,मानसरोवर होते हुए चीन की भूमि को चीरते हुए उत्तरी दक्षिणी कोरिया आदि से हो इस चटक ने अरब की खाड़ी और उधर चीन सागर से हो कर प्रशान्त महासागर को मिला दिया . भारतीय उपमहाद्वीप की चट्टान खिसक कर पूर्व की ओर बढ़ गयी थी. म्यामार, वियतनाम, आदि बर्बादी के गवाह बन चुके थे.
इससे क्या मिला कुशक्तियोँ को?
लेकिन !
जन धन प्रकृति की हानि जरुर हुई.
प्रकृति के अन्धविदोहन एवं कृत्रिम जीवन के स्वीकार्य ने पृथ्वी पर दो हजार चार ई0 से ही तेजी के साथ परिवर्तन प्रारम्भ कर दिए थे. सुनामी लहरोँ के बाद यह परिवर्तन और तेज हो गये थे . सुनामी लहरेँ भी क्या प्राकृतिक थीँ या फिर किसी कुशक्ति की हरकत थी ?इस पर मतभेद रहा था.
एलियन्स के सम्बन्ध मेँ ?
सन1947ई0 मेँ कुछ शक्तियोँ के एलियन्स से क्या सम्पर्क हुए थे कि वे पृथ्वी और अन्तरिक्ष मेँ अपनी साजिशेँ रचने लगे. पृथ्वी का मनुष्य आखिर कब तक जगेगा?अपने स्वार्थोँ मेँ अन्धा हो पृक्रति व ब्राह्माण्ड मेँ भी विकृतियाँ फैला दीँ .
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जन्म के वक्त ही मेरा नाम रख दिया गया था-भविष्य .
रविवार, 5 सितंबर 2010
भविष्य:कथांश (BHAVISHY : KATHANSH)
मैँ अशोक कुमार वर्मा'बिन्दु' बस इस धरती पर एक अतिथि हूँ.प्रकृति हमेशा हमे संवारती रही है.बस,इन्सानो की भीड़ मे हतास निराश हुआ हूँ.
बचपन से ही तन्हा,झेलता दंश.प्रकृति के बीच अध्यात्म,योग,स्वाध्याय हमे अपने से जोड़े रखा है.तथाकथित अपनो,परिजनो ने बस दुख दिया है.उनका मरहम भी हमारे दर्द को बढ़ाता ही रहा.
कक्षा पाँच मेँ आते आते कल्पनाओ, लेखन,शान्ति कुञ्ज व सम्बन्धित अखण्ड ज्योति पत्रिका से सम्बन्ध स्थापित हो गया.कक्षा 6 मेँ कुरुशान(गीता )हाथ आगयी.कक्षा 12 मेँ आते आते ओशो,आर्य समाज, श्री रामचन्द्र मिशन, जय गुरुदेव आदि के साहित्य ने प्रभावित किया.लेकिन...
परिवार व परम्परागत समाज मेँ ऊबा हुआ मैँ,मैँ एक अन्तर्मुखी होता गया.ऐसे मेँ मैँ अनचाही शादी करने की गलती कर बैठा.मैँ अपने से ही जैसे अलग हो बैठा.लेखन कार्य या ध्यात्म ही मुझे उत्साह देता आया था लेकिन.....अब तो मैँ जिन्दा लाश बन चुका हूँ.लगभग 50पुस्तकोँ भर की सामग्री लिख चुका हूँ.धनाभाव मेँ इसे मैँ प्रकाशित भी नहीँ करवा सकता हूँ. ऐसे मेँ ब्लागिँग अभी एक सहारा बना हुआ है.
यह ब्लाग भविष्य को समर्पित!
भविष्य के माध्यम जो मैँ प्रस्तुत करने जा रहा हूँ,वह मात्र मेरी कल्पना है.जिसका उद्देश्य है मात्र मनोरंजन.
www.ashokbindu.blogspot.com
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हाँ,तो भविष्य........
आज सन 2164ई0 की दो अक्टूबर!
आज से लगभग एक सौ छप्पन वर्ष पूर्व इस धरती पर एक वैज्ञानिक हुए थे-ए.पी.जे.अब्दुल कलाम.मुझे स्मरण है कि एक बार उन्होने कहा था कि भविष्य मेँ लोग हमेँ इसलिए याद नहीँ करेँगे कि हम धर्मस्थलोँ जातियोँ के लिए संघर्ष करते रहे थे.
आज सन2164ई0की02अक्टूबर!विश्व अहिँसा दिवस!महात्मा गांधी अब आधुनिक जेहाद अर्थात आन्दोलन के अग्रदूत के रूप मेँ स्थापित हो चुके थे.मैँ एक आक्सीजन वार मेँ विश्राम पर था,जहाँ साउण्ड थेरापी,कलर थेरापी,आदि का भी प्रयोग किया जा सकता था.पाँच मिनट आकसीजन ग्रहण करने के बाद मैँ अपना जेट सूट पहन कर बिल्डिँग की छत पर आ गया.लगभग दस मिनट मेँ मैँ चालीस किलोमीटर हवाई दूरी तय करने के बाद एक नदी के किनारे स्थित भव्य बिल्डिँग के सामने प्राँगण मेँ पहुँच गया.जहाँ पिरामिड आकर की इमारतोँ की बहुलता थी.
"आईए,त्रिपाठी जी."
"गुड मोर्निँग , खन्ना जी ."
मैँ फिर खन्ना जी के साथ बिल्डिँग के अन्दर आ गया.सभागार मेँ काफी लोग एकत्रित थे.
मैने भी इस सभागार मेँ अपने विचार रखे थे.
कुछ विचार इस प्रकार हैँ--
"कुछ भू सर्वेक्षक बता रहे हैँ क सूरत,कोट,ग्वालियर,आगरा,मुरादाबाद झील,चीन स्थित साचे,हामी,लांचाव,बीजिंग,त्सियांगटाव,उत्तरी दक्षिणी कोरिया,आदि की भूमि के नीचे एक दरार बन कर ऊपर आ रही है,जो हिन्द प्रायद्वीप को दो भागोँ मेँ बाँट देगी तथा जो एक सागर का रुप धारण कर लेगी. इस भौगोलिक परिवर्तन से भारत व चीन की भारी तबाही होगी,जिससे एक हजार वर्ष बाद भी उबरना मुश्किल होगा. .....हूँ! इस धरती पर मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जो अपने को सभी प्राणियोँ मेँ श्रेष्ठ तो मानता है लेकिन अपनी श्रेष्ठता को प्रकृति की ही नजर मेँ स्थापित न रख सका . "
सभा विसर्जन के बाद-
"अरे त्रिपाठी जी,समय होत बलवान.इन्सान की इच्छाओँ से सिर्फ क्या होता है?भाई,संसार की वस्तुएँ वैसे भी परिवर्तनशील हैँ."
मैँ मुस्कुरा दिया.
"प्रकृति पर अपनी इच्छाओँ को थोपना और प्रकृति से हट कर कृत्रिम एवं शहरी जीवन ने प्रकृति कि प्रकृति को तोड़ा ही ,मनुष्य की भी प्रकृति टूटी है.कृत्रिमताओँ मेँ जी जी स्वयं मनुष्य ही कृत्रिम होगया. देख नहीँ रहे हो कि हर साधारण मनुष्य तक का स्वपन हो गया है अब-'साइबोर्ग' बनना अर्थात कम्प्यूटर कृत होना."
खन्ना जी अपने साथ खड़ी एक युवती की ओर देखने लगे.
"खन्ना जी,उधर क्या देख रहे हो?अपने शरीर को ही देखो,हमारे शरीर को ही देखो.हम आप भोजन सिर्फ अपने मस्तिष्क को ऊर्जा देने के लिए करते हैँ .शेष शरीर तो मशीन हो चुका है.हम आप जैसे 'साइबोर्ग' क्या प्रकृति का अपमान नहीँ हैँ?प्रकृति से दूरी बना ,प्रकृति पर अपनी इच्छाएँ थोपकर व क्रत्रिम जीवन स्वीकार कर मनुष्य भी कृत्रिम हो गया,उसका मस्तिष्क ही सिर्फ बचा है."
""""" *** """""
विश्व मेँ कानून व शान्ति व्यवस्था , विश्व सरकार व विश्व संविधान के लिए मुहिम बीसवीँ सदी के मध्य मेँ ही प्रारम्भ हो चुकी थी.
जिस हेतु कुछ मानवतावादी अण्डरवर्ल्ड ग्रुप भी सक्रिय हो चुके थे.
प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध ने शान्ति प्रिय लोगोँ को झकझोर कर रख दिया था.हालाँकि ऐसे मेँ परिस्थितियाँ बनी अनेक देशोँ के स्वतन्त्रता की.जिसका लाभ उठा कर हिन्दुस्तान मेँ नेता जी सुभाष चन्द्र बोस नायक बन कर उभरे थे.नौ सेना विद्रोह के साथ साथ ब्रिटिश शासन के अन्य स्तम
बचपन से ही तन्हा,झेलता दंश.प्रकृति के बीच अध्यात्म,योग,स्वाध्याय हमे अपने से जोड़े रखा है.तथाकथित अपनो,परिजनो ने बस दुख दिया है.उनका मरहम भी हमारे दर्द को बढ़ाता ही रहा.
कक्षा पाँच मेँ आते आते कल्पनाओ, लेखन,शान्ति कुञ्ज व सम्बन्धित अखण्ड ज्योति पत्रिका से सम्बन्ध स्थापित हो गया.कक्षा 6 मेँ कुरुशान(गीता )हाथ आगयी.कक्षा 12 मेँ आते आते ओशो,आर्य समाज, श्री रामचन्द्र मिशन, जय गुरुदेव आदि के साहित्य ने प्रभावित किया.लेकिन...
परिवार व परम्परागत समाज मेँ ऊबा हुआ मैँ,मैँ एक अन्तर्मुखी होता गया.ऐसे मेँ मैँ अनचाही शादी करने की गलती कर बैठा.मैँ अपने से ही जैसे अलग हो बैठा.लेखन कार्य या ध्यात्म ही मुझे उत्साह देता आया था लेकिन.....अब तो मैँ जिन्दा लाश बन चुका हूँ.लगभग 50पुस्तकोँ भर की सामग्री लिख चुका हूँ.धनाभाव मेँ इसे मैँ प्रकाशित भी नहीँ करवा सकता हूँ. ऐसे मेँ ब्लागिँग अभी एक सहारा बना हुआ है.
यह ब्लाग भविष्य को समर्पित!
भविष्य के माध्यम जो मैँ प्रस्तुत करने जा रहा हूँ,वह मात्र मेरी कल्पना है.जिसका उद्देश्य है मात्र मनोरंजन.
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हाँ,तो भविष्य........
आज सन 2164ई0 की दो अक्टूबर!
आज से लगभग एक सौ छप्पन वर्ष पूर्व इस धरती पर एक वैज्ञानिक हुए थे-ए.पी.जे.अब्दुल कलाम.मुझे स्मरण है कि एक बार उन्होने कहा था कि भविष्य मेँ लोग हमेँ इसलिए याद नहीँ करेँगे कि हम धर्मस्थलोँ जातियोँ के लिए संघर्ष करते रहे थे.
आज सन2164ई0की02अक्टूबर!विश्व अहिँसा दिवस!महात्मा गांधी अब आधुनिक जेहाद अर्थात आन्दोलन के अग्रदूत के रूप मेँ स्थापित हो चुके थे.मैँ एक आक्सीजन वार मेँ विश्राम पर था,जहाँ साउण्ड थेरापी,कलर थेरापी,आदि का भी प्रयोग किया जा सकता था.पाँच मिनट आकसीजन ग्रहण करने के बाद मैँ अपना जेट सूट पहन कर बिल्डिँग की छत पर आ गया.लगभग दस मिनट मेँ मैँ चालीस किलोमीटर हवाई दूरी तय करने के बाद एक नदी के किनारे स्थित भव्य बिल्डिँग के सामने प्राँगण मेँ पहुँच गया.जहाँ पिरामिड आकर की इमारतोँ की बहुलता थी.
"आईए,त्रिपाठी जी."
"गुड मोर्निँग , खन्ना जी ."
मैँ फिर खन्ना जी के साथ बिल्डिँग के अन्दर आ गया.सभागार मेँ काफी लोग एकत्रित थे.
मैने भी इस सभागार मेँ अपने विचार रखे थे.
कुछ विचार इस प्रकार हैँ--
"कुछ भू सर्वेक्षक बता रहे हैँ क सूरत,कोट,ग्वालियर,आगरा,मुरादाबाद झील,चीन स्थित साचे,हामी,लांचाव,बीजिंग,त्सियांगटाव,उत्तरी दक्षिणी कोरिया,आदि की भूमि के नीचे एक दरार बन कर ऊपर आ रही है,जो हिन्द प्रायद्वीप को दो भागोँ मेँ बाँट देगी तथा जो एक सागर का रुप धारण कर लेगी. इस भौगोलिक परिवर्तन से भारत व चीन की भारी तबाही होगी,जिससे एक हजार वर्ष बाद भी उबरना मुश्किल होगा. .....हूँ! इस धरती पर मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जो अपने को सभी प्राणियोँ मेँ श्रेष्ठ तो मानता है लेकिन अपनी श्रेष्ठता को प्रकृति की ही नजर मेँ स्थापित न रख सका . "
सभा विसर्जन के बाद-
"अरे त्रिपाठी जी,समय होत बलवान.इन्सान की इच्छाओँ से सिर्फ क्या होता है?भाई,संसार की वस्तुएँ वैसे भी परिवर्तनशील हैँ."
मैँ मुस्कुरा दिया.
"प्रकृति पर अपनी इच्छाओँ को थोपना और प्रकृति से हट कर कृत्रिम एवं शहरी जीवन ने प्रकृति कि प्रकृति को तोड़ा ही ,मनुष्य की भी प्रकृति टूटी है.कृत्रिमताओँ मेँ जी जी स्वयं मनुष्य ही कृत्रिम होगया. देख नहीँ रहे हो कि हर साधारण मनुष्य तक का स्वपन हो गया है अब-'साइबोर्ग' बनना अर्थात कम्प्यूटर कृत होना."
खन्ना जी अपने साथ खड़ी एक युवती की ओर देखने लगे.
"खन्ना जी,उधर क्या देख रहे हो?अपने शरीर को ही देखो,हमारे शरीर को ही देखो.हम आप भोजन सिर्फ अपने मस्तिष्क को ऊर्जा देने के लिए करते हैँ .शेष शरीर तो मशीन हो चुका है.हम आप जैसे 'साइबोर्ग' क्या प्रकृति का अपमान नहीँ हैँ?प्रकृति से दूरी बना ,प्रकृति पर अपनी इच्छाएँ थोपकर व क्रत्रिम जीवन स्वीकार कर मनुष्य भी कृत्रिम हो गया,उसका मस्तिष्क ही सिर्फ बचा है."
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विश्व मेँ कानून व शान्ति व्यवस्था , विश्व सरकार व विश्व संविधान के लिए मुहिम बीसवीँ सदी के मध्य मेँ ही प्रारम्भ हो चुकी थी.
जिस हेतु कुछ मानवतावादी अण्डरवर्ल्ड ग्रुप भी सक्रिय हो चुके थे.
प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध ने शान्ति प्रिय लोगोँ को झकझोर कर रख दिया था.हालाँकि ऐसे मेँ परिस्थितियाँ बनी अनेक देशोँ के स्वतन्त्रता की.जिसका लाभ उठा कर हिन्दुस्तान मेँ नेता जी सुभाष चन्द्र बोस नायक बन कर उभरे थे.नौ सेना विद्रोह के साथ साथ ब्रिटिश शासन के अन्य स्तम
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