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रविवार, 5 सितंबर 2010

भविष्य:कथांश (BHAVISHY : KATHANSH)

मैँ अशोक कुमार वर्मा'बिन्दु' बस इस धरती पर एक अतिथि हूँ.प्रकृति हमेशा हमे संवारती रही है.बस,इन्सानो की भीड़ मे हतास निराश हुआ हूँ.

बचपन से ही तन्हा,झेलता दंश.प्रकृति के बीच अध्यात्म,योग,स्वाध्याय हमे अपने से जोड़े रखा है.तथाकथित अपनो,परिजनो ने बस दुख दिया है.उनका मरहम भी हमारे दर्द को बढ़ाता ही रहा.

कक्षा पाँच मेँ आते आते कल्पनाओ, लेखन,शान्ति कुञ्ज व सम्बन्धित अखण्ड ज्योति पत्रिका से सम्बन्ध स्थापित हो गया.कक्षा 6 मेँ कुरुशान(गीता )हाथ आगयी.कक्षा 12 मेँ आते आते ओशो,आर्य समाज, श्री रामचन्द्र मिशन, जय गुरुदेव आदि के      साहित्य ने प्रभावित किया.लेकिन...



परिवार व परम्परागत समाज मेँ ऊबा हुआ मैँ,मैँ एक अन्तर्मुखी होता गया.ऐसे मेँ मैँ अनचाही शादी करने की गलती कर बैठा.मैँ अपने से ही जैसे अलग हो बैठा.लेखन कार्य या ध्यात्म ही मुझे उत्साह देता आया था लेकिन.....अब तो मैँ जिन्दा लाश बन चुका हूँ.लगभग 50पुस्तकोँ भर की सामग्री लिख चुका हूँ.धनाभाव मेँ इसे मैँ प्रकाशित भी नहीँ करवा सकता हूँ. ऐसे मेँ ब्लागिँग अभी एक सहारा बना हुआ है.



यह ब्लाग भविष्य को समर्पित!


भविष्य के माध्यम जो मैँ प्रस्तुत करने जा रहा हूँ,वह मात्र मेरी कल्पना है.जिसका उद्देश्य है मात्र मनोरंजन.

www.ashokbindu.blogspot.com

www.antaryahoo.blogspot.com



हाँ,तो भविष्य........



आज सन 2164ई0 की दो अक्टूबर!



आज से लगभग एक सौ छप्पन वर्ष पूर्व इस धरती पर एक वैज्ञानिक हुए थे-ए.पी.जे.अब्दुल कलाम.मुझे स्मरण है कि एक बार उन्होने कहा था कि भविष्य मेँ लोग हमेँ इसलिए याद नहीँ करेँगे कि हम धर्मस्थलोँ जातियोँ के लिए संघर्ष करते रहे थे.



आज सन2164ई0की02अक्टूबर!विश्व अहिँसा दिवस!महात्मा गांधी अब आधुनिक जेहाद अर्थात आन्दोलन के अग्रदूत के रूप मेँ स्थापित हो चुके थे.मैँ एक आक्सीजन वार मेँ विश्राम पर था,जहाँ साउण्ड थेरापी,कलर थेरापी,आदि का भी प्रयोग किया जा सकता था.पाँच मिनट आकसीजन ग्रहण करने के बाद मैँ अपना जेट सूट पहन कर बिल्डिँग की छत पर आ गया.लगभग दस मिनट मेँ मैँ चालीस किलोमीटर हवाई दूरी तय करने के बाद एक नदी के किनारे स्थित भव्य बिल्डिँग के सामने प्राँगण मेँ पहुँच गया.जहाँ पिरामिड आकर की इमारतोँ की बहुलता थी.



"आईए,त्रिपाठी जी."



"गुड मोर्निँग , खन्ना जी ."



मैँ फिर खन्ना जी के साथ बिल्डिँग के अन्दर आ गया.सभागार मेँ काफी लोग एकत्रित थे.


मैने भी इस सभागार मेँ अपने विचार रखे थे.


कुछ विचार इस प्रकार हैँ--



"कुछ भू सर्वेक्षक बता रहे हैँ क सूरत,कोट,ग्वालियर,आगरा,मुरादाबाद झील,चीन स्थित साचे,हामी,लांचाव,बीजिंग,त्सियांगटाव,उत्तरी दक्षिणी कोरिया,आदि की भूमि के नीचे एक दरार बन कर ऊपर आ रही है,जो हिन्द प्रायद्वीप को दो भागोँ मेँ बाँट देगी तथा जो एक सागर का रुप धारण कर लेगी. इस भौगोलिक परिवर्तन से भारत व चीन की भारी तबाही होगी,जिससे एक हजार वर्ष बाद भी उबरना मुश्किल होगा. .....हूँ! इस धरती पर मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जो अपने को सभी प्राणियोँ मेँ श्रेष्ठ तो मानता है लेकिन अपनी श्रेष्ठता को प्रकृति की ही नजर मेँ स्थापित न रख सका . "



सभा विसर्जन के बाद-



"अरे त्रिपाठी जी,समय होत बलवान.इन्सान की इच्छाओँ से सिर्फ क्या होता है?भाई,संसार की वस्तुएँ वैसे भी परिवर्तनशील हैँ."



मैँ मुस्कुरा दिया.


"प्रकृति पर अपनी इच्छाओँ को थोपना और प्रकृति से हट कर कृत्रिम एवं शहरी जीवन ने प्रकृति कि प्रकृति को तोड़ा ही ,मनुष्य की भी प्रकृति टूटी है.कृत्रिमताओँ मेँ जी जी स्वयं मनुष्य ही कृत्रिम होगया. देख नहीँ रहे हो कि हर साधारण मनुष्य तक का स्वपन हो गया है अब-'साइबोर्ग' बनना अर्थात कम्प्यूटर कृत होना."



खन्ना जी अपने साथ खड़ी एक युवती की ओर देखने लगे.



"खन्ना जी,उधर क्या देख रहे हो?अपने शरीर को ही देखो,हमारे शरीर को ही देखो.हम आप भोजन सिर्फ अपने मस्तिष्क को ऊर्जा देने के लिए करते हैँ .शेष शरीर तो मशीन हो चुका है.हम आप जैसे 'साइबोर्ग' क्या प्रकृति का अपमान नहीँ हैँ?प्रकृति से दूरी बना ,प्रकृति पर अपनी इच्छाएँ थोपकर व क्रत्रिम जीवन स्वीकार कर मनुष्य भी कृत्रिम हो गया,उसका मस्तिष्क ही सिर्फ बचा है."



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विश्व मेँ कानून व शान्ति व्यवस्था , विश्व सरकार व विश्व संविधान के लिए मुहिम बीसवीँ सदी के मध्य मेँ ही प्रारम्भ हो चुकी थी.
जिस हेतु कुछ मानवतावादी अण्डरवर्ल्ड ग्रुप भी सक्रिय हो चुके थे.
प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध ने शान्ति प्रिय लोगोँ को झकझोर कर रख दिया था.हालाँकि ऐसे मेँ परिस्थितियाँ बनी अनेक देशोँ के स्वतन्त्रता की.जिसका लाभ उठा कर हिन्दुस्तान मेँ नेता जी सुभाष चन्द्र बोस नायक बन कर उभरे थे.नौ सेना विद्रोह के साथ साथ ब्रिटिश शासन के अन्य स्तम

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