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गुरुवार, 30 सितंबर 2010

गांधी जयन्ती: सोनिय�� गांधी के आचरण मेँ गांधी दर्शन.

कांग्रेस अध्यक्ष के रूप मेँ सोनिया गांधी ने इन पाँच छ:वर्षोँ मेँ देश के अन्दर अपनी साख को बढ़ाया है लेकिन महात्मा गांधी की आर्थिक सामाजिक नीतियोँ पर वह खरी उतरी हैँ यह विचारणीय विषय है.महात्मा गांधी के 'रामराज्य' की अवधारणा का तात्पर्य था राज्य को धीरे धीरे शक्ति और हिँसा के संगठित रूप से निकाल कर एक ऐसी संस्था मेँ बदलना जो जनता की नैतिक शक्ति से संचालित हो.आदर्श ग्राम्य जीवन,आत्मनिर्भर गाँव, लघु व कुटीर उद्योग,स्वरोजगार,साम्प्रदायिक सौहार्द,स्वदेशी आन्दोलन,भयमुक्त समाज,शहरीकरण की अपेक्षा ग्रामीणीकरण,आदि के स्थापना प्रति दृढसंकल्प बिना गांधी की वकालत कर गांधी का अपमान ही कर रहे हैँ.इन पाँच सालोँ मेँ सोनिया गांधी ने आम जनता के दिल मेँ जगह बनायी है . राहुल गांधी की कार्यशैली के माध्यम से उन्होँने दलितोँ के बीच भी अपना स्थान बनाया है लेकिन उन्हेँ इस पर विचार करना चाहिए कि कुप्रबन्धन व भ्रष्टाचार के खिलाफ आरपार की लड़ाई के बिना गांधी दर्शन से प्रभावित आर्थिक सामाजिक नीतियाँ सफल नहीँ हो सकतीँ .जैसा की देखने मेँ आ रहा है कि विभिन्न योजनाएं भ्रष्टाचार की बलि चढ़ती जा रही हैँ.सर्वशिक्षा अभियान हो या मनरेगा या अन्य सब की सब योजनाओँ के साथ ऐसा ही है.गांधी के राष्ट्र विकास का रास्ता शहरोँ की ओर से नहीँ जाता लेकिन सोनिया गांधी शहरीकरण की अपेक्षा गांव व प्राथमिक साधनोँ के विकास पर कितना बल दे रही हैँ?ओशो ने कहा था

" गांधी को मैँ इस सदी का श्रेष्ठतम मनुष्य मानता हूँ. जो श्रेष्ठतम है उसके बाबत हमेँ बहुत सजग और होशपूर्वक विचार करना चाहिए.कहो कि गांधी ठीक हैँ तो फिर सौ प्रतिशत यही निर्णय लो.फिर छोड़ो सारी यांत्रिकता,फिर छोड़ो सारा केन्द्रीयकरण .बड़े शहरोँ को छोड़ दो,लौट आओ गाँव मेँ,और गांधी का पूरा प्रयोग करो. "


कृषि,बागवानी,प्रकृति की प्राकृतिकता को बनाये रखे बिना किया गया विकास गांधी की नीतियोँ के खिलाफ है.विकास परियोजनाओँ, व्यक्तियोँ की आवश्यकताओँ की पूर्ति की प्रक्रियाओँ को लागू करने की शर्त पर कृषि,बागवानी,प्रकृति,आदि का विनाश प्रकृति की प्राकृतिकता के खिलाफ है ,जिसके बिना भावी पीढ़ी का जीवन खतरे मेँ पड़ जाएगा.दूसरी ओर बजारीकरण ने हमारे सामाजिक समीकरण बदले ही हैँ , हमने गाँधी के खिलाफ भी कदम उठाए हैँ.अर्थशास्त्री अरुण कुमार का कहना है


" जिस प्रकार पश्चिम मेँ हर चीज को दौलत से तौल कर देखा जाता है कि फायदेमन्द है या नुकसानदायक है,उसी तरह से हमने अपने हर सामाजिक और सामुदायिक संस्था को बाजार के हिसाब से बदलना शुरु कर दिया है.उदाहरणत: शिक्षा व चिकित्सा को हम आदरणीय व्यवसाय मानते थे लेकिन...... जब 1947 मेँ हमेँ आजादी मिली थी ,तो उस वक्त भी समाज के समृद्ध तबके का नजरिया था कि पश्चिम के आधुनिकीकरण की गाड़ी बहुत तेजी से जा रही है ,किसी तरह हम उसे पकड़ लेँ.इसके विपरीत ,
गांधी जी का सपना था कि हम अपना अलग रास्ता चुने. "


यदि वास्तव मेँ सोनिया गांधी गांधी जी के मार्ग पर जाना चाहती हैँ तो अपनी व कांग्रेस की नियति से साक्षात्कार करते हुए विचार करना चाहिए कि क्या वास्तव मेँ देश गांधी जी के रास्ते पर है?

ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'


www.antaryahoo.blogspot.com

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