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शनिवार, 2 जुलाई 2011

सन चार हजार साठ ई0 की त��यारी ....

चर्चित इस समय नवयुवती मंजुला के साथ था.


"अशोक सन छियानवे के बाईस जून को इस धरती से जा चुका था लेकिन उसकी कल्पनाओं को विस्तार देना अभी काफी बाकी है.अशोक भी कहा करता था कि मुझमें इतना भण्डार है कि एक हजार बार जन्म होने के बाद भी उसे कागजों पर नहीं उतार सकता.कहानी के अन्दर कहानी ,हर पात्र पर एक श्रंखला...."



"अभी पुरानी बातें छोंड़ों ....चर्चित,भविष्य की बातें छोंड़ो.वर्तमान की बात करो .अगले ओशो जन्मशताब्दी वर्ष के व्यवस्था सम्बन्धी......!? "


दूसरी ओर अधेड़ उम्र का एक व्यक्ति-किशोर.वह एक वैज्ञानिक अनुसंधानशाला में एक सेमीनार मेँ शामिल था.जिसमें निर्णय लिया जा रहा था कि डायनासोर के जीवित अण्डों पर कार्य करके डायनासोर की नस्ल की उत्पत्ति की जाए.



"नहीँ,मैं नहीं बर्दाश्त कर सकता.आप लोगें का निर्णय मेरी दृष्टि से प्राकृतिकता नहीं " - फिर गोष्ठी के मध्य से किशोर उठ बैठा तो लोगों में प्रतिक्रिया हुई-"रुकिए सर!रुक जाईए सर!कहाँ चले?" - आदि वाक्य लोगों के मुख से निकले लेकिन किशोर न रुका,वह वहां से चलता बना.



किशोर जब बाहर आया तो अपने पच्चीस वर्षीय बेटे को देख कर -"सुबिधा कहां है?"तो उसका बेटा उससे बोला-"पापा,वो तो नहेसुडेल्स के साथ गयी है."किशोर बोला-"चलना नहीं है उसे,उसे बुलाओ."

" वो तो अभी मना कर रही है ."


"तो मैं चलता हूं.तुम उसे ले आ जाना."-कहते हुए किशोर अपने यान की ओर बढ़ गया.
यान के दक्षिण ओर उसकी सात वर्षीय पुत्री सुविधा अपने हमउम्र तीन नेत्रधारी एक लड़की-नहेसुडेल्स के साथ
यान की ओर ही आ रही थी.इधर पीछे गोष्ठी भवन से ग्यारह फुटातीन नेत्रधारी व्यक्ति किशोर की आ रहा था.



सुविधा पास आते हुए किशोर से बोली-"आप तो अभी ही जा रहे हैं?"



" हां ,बेटी! मैं चलता हूँ.तुम भाई के साथ आ जाना. "


तब तक तीननेत्रधारी
व्यक्ति किशोर के समीप आ कर बोला-"सर,सुप्रीमो रुकने को कहते हैं."



"नहीं,मैं नहीं रुक सकता."


फिर किशोर अपने यान के अन्दर पहुंच गया.यान उड़ने के कुछ समय पश्चात अन्यत्र उतर गया.दो युवतियां जिसका इन्तजार कर रही थीँ.
किशोर जब यान से उतर कर आगे चल दिया तो दोनों युवतियां उसके दायें बायें चल दीँ.कमरे में जा कर किशोर कुर्सी पर बैठते हुए-


"न जाने उन्हें क्या हो गया?मैं तो नहीं चाहता कि अपनी इस धरती पर पुन:डायनासोर अपना अधिपत्य जमायें."


"लेकिन सर,डायनासोर यहां अधिपत्य कैसे जमायेँ? "



किशोर कुछ सोंचने लगा.







अब से लगभग बीस वर्ष पूर्व लगभग सन बीस सौ बारह या पन्द्रह की दो अक्टूबर तिथि-गांधी जयन्ती.


गांधी शास्त्री जयन्ती !



एक विशाल जनसभा !

मंच के पीछे तीन विशाल आकृतियां बनी थीं,जो दो स्पष्ट थी-गांधी व शास्त्री का चेहरा लेकिन तीसरा चेहरा अस्पष्ट था.उस पर अखण्ड भारत का नक्शा बना था.जिस पर लिखा था-दो अक्टूबर.


अनेक वक्ता बोल चुके थे.मंच का संचालन एक विकलांग सुन्दर युवती कर रही थी.



जब मंच पर एक वृद्ध व्यक्ति प्रवेश करता है तो सारा माहौल गूंज उठता है-जय विश्व ! जय ब्राह्माण्ड! !



जय विश्व जय ब्राह्माण्ड से सारा बातावरण गूंजते देख कर वह वृद्ध प्रफुल्लित होते हुए बोला-


"मैँ खुश हूँ कि एक लेखक मात्र की कल्पनाओं में गुञ्जारित होने वाला यह जयघोष इतना शीघ्र जनमानस मेँ छा गया लेकिन हमें मन से भी लक्ष्यों की ओर जाने का परिवेश बनाना होगा.आज दो अक्टूबर है ,सब जानते हैं.हमारे गांधी जी की भी कल्पना थी कि एक विश्वसरकार स्थापित हो.अपनी संस्कृति तो वसुधैव कुटुम्बकम की बात करती आयी है.अच्छाईयां होती हैं जहाँ ,तो वहां बुराईयां भी है.गांधी जी शास्त्री जी......."




अब सन बीस सौ चौबीस आने को आयी. आर एस एस अपनी स्थापना की 100 वीं वर्षगांठ की तैयारी कर चुका था। वह राजनीति के माध्यम से भी अपना अस्तित्व चमक में लिए था..चर्चित मंजुला के साथ था.चर्चित मंजुला से कह रहा था-



"उस मंगल यात्रा के बाद लेखक अशोक एवं उसके साहित्य का जिक्र समाचार पत्रों में एक बार फिर चर्चे में था."



"तो फिर अशोक के साहित्य में वर्णित उस अशोक शक्ल का भी चर्चा होगा. क्योंकि लेखक अशोक ने एक जगह पर अपने शक्ल के......... ."



"और फिर वह वृद्ध....."



"हूँ ....हूँ...."चर्चित मुस्कुराते हुए गर्दन हिलाता है.



और -

" प्रशासन के बीच एक बार वह वृद्ध बोला था कि मैं वो अशोक शक्ल नहीं हूं,चाहें मेरा परीक्षण भी करवा लें .कहां अशोक की उम्र कहां अशोक की उम्र और कहां वह वृद्ध...?! "





किशोर की एक न चली थी.



अधेड़ किशोर चिन्तित था कि वैसे भी पृथ्वी खतरे में है.भविष्य त्रिपाठी के अनुसार आगे दो सौ वर्षों के अन्दर हिन्दप्राय द्वीप दो भू भागों में विभक्त होने वाला है . ऊपर से यह सिरफिरे वैज्ञानिकों के हाथ डायनासोर के जीवित अण्डें क्या लगे कि वे इस धरती पर डायनासोर नस्ल को पुनर्जीवित करने का ख्वाब देखने लगे हैँ.



लेकिन...



अब सन चार हजार साठ !



वनमानव के दोनों पैर कांटों से घायल थे.

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