Powered By Blogger

रविवार, 3 जुलाई 2011

ओशो जन्मशताब्दी वर्ष :एक झलक!



श्री रामचन्द्र महाराज फतेहगढ़ की पुण्य शताब्दी!!

ओशो जन्मशताब्दी !

यानि कि-
2031

हिन्द भूमि पर ओशो जन्मशताब्दी समारोहों व श्री रामचन्द्र जी फतेहगढ़ की पुण्य तिथि शताव्दी समारोहों का सिलसिला प्रारम्भ हो चुका था.विदेशों से भी इसकी खबरें थीं.



प्रात:काल का समय ! अभी सूर्य उदित भी न हुआ था.चर्चित अकेले ही पैदल गांव से बाहर खेतों की ओर चल दिया था.शीत ऋतु,हल्का हल्का कोहरा छाया हुआ था.खेतों में चारो ओर सरसों लहलहा रही थी.चर्चित अपने में खोया खोया आगे चलता जा रहा था.



अचानक!


चर्चित ने अचानक इधर उधर देखा -
उसके होंठों पर मुस्कान जगी.चर्चित चारो ओर से राइफलधारियों द्वारा घिरा हुआ था.वह मुस्कुराते हुए आगे बढ़ा.



"ठहरो!" - और एक ने चर्चित की ठोंढ़ी पर राइफल की नाल तान दी लेकिन चर्चित के होंठोँ पे मुस्कान ही थी.



चर्चित का स्थिर शरीर , लेकिन अपनी चलायमान आंखों से सामने उपस्थित राइफलधारियों के चेहरों पर नजर डाली.


फिर-


जिसने चर्चित पे राइफल तान रखी थी,उसके चेहरे पर पसीना देख कर,


"ऐसा काम क्यों करते हो जिससे भय पाये दिल?तुम तो अनेक राइफलधारियों के साथ हो,ऐसे में डर....?क्या दिल मेँ असलियत चुभ रही है और ऊपर से ढोंग किये जाते हो? "



"ऐ,स्पीच देना बन्द कर." -दूसरा बोला.


उसे देख कर चर्चित-

"रण में जाया जाता है,बुजदिली से नहीं जाया जात.तुम की ये आवाज भी बनी बनायी है,दिल की आवाज नहीं है . "



"हमें तू डिगा नहीं सकता."


एक बोला-

"हम लोग तुम्हारे साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं करना चाहते .हम लोगों का कहना है कि यदि तुम भला चाहते हो तो अपना प्रचार प्रसार बन्द करो,नहीं तो फिर.... ."


"नहीं तो फिर......"


"हमारा कहना मानो."



"हम....?वह भी तुम्हारा!बड़े हिम्मती बनते हो तभी तो हम लोगों की बातों का जबाब बातोँ से न दे अपनी राइफलों पर गुमान करते हो.स्वयं तुम.........?!और इस शरीर को मार भी दोगे तो भी मेरे शरीर को ही सिर्फ नष्ट करोगे मुझे नहीं.इससे अच्छी और क्या बात होगी कि मेरे शरीर का मरना भी तुम लोगों के शायद काम आये."



सब एक दूसरे का चेहरा देख रहे थे.चर्चित के होंठों पे हल्की सी मुस्कान अब भी बनी हुई थी.



चर्चित पर तानी गयी राइफल हटा ली गयी.




शाम को व दूसरे दिन सुबह -



समाचार पत्रों,टीवी चैनलों व आकाशवाणी ने ओशो जन्मशताब्दी पर प्रकाश डालने के साथ चर्चित के सामने राइफलधारियों के समर्पण की घटना को भी हाईलाइट किया गया था.जानकारी दे दूं कि अब भी कुछ लोग ओशो व ओशो जन्मशताब्दी कार्यक्रम के खिलाफ थे.




एक नवयुवती कुर्सी पर बैठी मेज पर डायरी रख कर उस पर कुछ लिखे जा रही थी.सामने विस्तर पर ओशो जन्मशताब्दी समारोह सम्बन्धी अनेक सामग्री पोस्टर बैनर आदि बिखरे पड़े थे .



कुछ समय पश्चात उस नवयुवती ने लिखना बन्द कर दिया और अपने गुलाबी होँठों पर सुन्दर डाटपेन टच कर रखी थी.


वह मन ही मन-"ओशो ने कहा था कि न मुझे स्वीकारो और न ही हमें भूलो."



जम्हाई लेते हुए उसने ओशो की तश्वीर पर निगाह डाली.



फिर वह युवती डाटपेन मेज पर रख कर कमरे से बाहर निकल कर बरामदे में पड़ी कुर्सी पर बैठ गयी.


कुछ मिनट बाद वह कुर्सी से उठ बैठी .



अब वह एक सड़क पर कुछ युवक युवतियों के थी.कुल सात थे,तीन नवयुवक व उस सहित चार नवयुवती.सभी अपनी अपनी साईकिल पर थे.सब अपने अपने माथे पर एक एक भगवा पट्टी बांधे थे ,जिस पर लिख था-ओशो.



आगे सड़क पर एक विशाल पीपल व उसके समीप एक बिल्डिंग नजर आ रही थी.



एक नवयुवक उस नवयुवती को देख कर -


"ओ मेरी मोनिका! क्यों न ......"


" देख मैं कितनी बार कह चुकी हूँ कि......कहाँ मोनिका और कहां मैं ? मैं तो उसके पैर की जूती तक नहीं.अब अपनी बात बोल."



" मैं मानता हूँ तेरी बात लेकिन यहां इस सोसायटी में तो तू ही मोनिका भांति,तू ही....(फिर मुस्कुराते हुए) क्यों न आगे पीपल नीचे कुछ पल रुक लिया जाये."



" जैसी मर्जी " - वह नवयुवती बोली.



फिर सभी आकर पीपल के नीचे रुक गये.



पड़ोस में एक हैण्ठपम्प था.उसके समीप एक विशाल बरामडा.आगे कुछ दूरी पर दो मंजिल कई कमरों सहित एक बिल्डिंग,जिसके सामने श्री कृष्ण की आदम कद एक प्रतिमा लखी थी.पीपल वृक्ष के दूसरी ओर एक छोटा सा बरामडा,जिसके ऊपर एक कमरा व बरामदा बना हुआ था.छत के इस बरामदा पर खपरैल पड़ा था.



सातो युवक युवतियां चबूतरे पर बैठ आपस में बात करने लगे थे.


कि-


एक गेंहुआ व स्वेत वस्त्रधारी अधेड़ उन ओर आया तो सभी उठ कर उससे नमस्ते करने लगे.


वह अधेड़ बोला-

"हां भाईयों एक खुशखबरी दे दूँ.व्यवस्था समिति यहां ओशो की प्रतिमा लगवाने के लिए मेरा सुझाव पर मान गयी है."

यह नवयुवती ओर कोई नहीं मंजुला ही थी.मंजुला बोली-
"धन्यवाद."
"अरे हम तो..... भाई आप जैसों के सामने विशेष रुप से चर्चित के सामने मैं नतमस्तक हूँ.मुझे अखबार से सूचना मिली कि चर्चित ने अकेले ही सशस्त्र बल से अपनी वाकपटुता माध्यम से कैसे मुकावला किया.वास्तव में अब बुद्ध कृष्णा के तटस्थ मार्ग पर तुम.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें