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मंगलवार, 5 जुलाई 2011

वो शक्तियां ....

मंजुला तीन युवतियों व तीन युवकों के साथ एक सड़क किनारे स्थित धर्मस्थल पर पीपल वृक्ष के नीचे बैठी वहां के अधेड़ सन्त से बातचीत कर रही थी.यह सब ओशो प्रेमी थे.



ओशो पर चर्चा के दौरान-



एक समय वह भी था जब ओशो सिर्फ अकेला था.नितान्त अकेला.



अमेरीकी प्रशासन ने उसे जंजीरों से जकड़ रखा था,भारी भारी जंजीरों से.



वह अकेला तब भी सरकारों को उससे भय?



क्यों...?



मात्र इसलिए क्योंकि वह जो बोलता था वह सत्य बोलता था.



उन दिनों ही अमेरीका में न्यूयार्क के एक जेल में एक हिन्दू राबर्ट के नाम से कैद था.


वह एक अधेड़ अमेरिकन से कह रहा था-



" तुम नहीं जानते कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है,तुम......."



"हा...हा....हा..!ऐ सब अपने पास रख.जानता हूँ इण्डिया का हर कोई उपदेशक से कम नहीं.हाँ;तुझे एक खुशखबरी,...?मेरे लिए खुशखबरी ही!ओशो पर फेंका गया हम लोगों का मिशन कामयाब रहा.बदनाम तो उसे कर ही चुके थे,अब उन्नीस जनवरी को स्वर्ग भी सिधार गया."


राबर्ट उस पर अपनी आंखे गड़ाते हुए-
"जान गया हूं तुम्हारे चमचों के द्वारा."



"चम्मचे तो तुम्हारे यहां नेताओं के होते हैं."




और अब...!




एक समय वह था जब परम्पराओं के ठेकेदार ओशो के विरोध में थे क्योंकि उन्हें अपनी दुकानें ठप्प होने का भय था.ऐसे ही लोग कृष्ण,सुकरात,ईसा,मोहम्मद,कबीर,आदि की उपस्थिति में इनके विरोध में ही रहे.परम्परायें नवीनता को शीघ्र नहीं स्वीकारतीं,हालांकि वह नवीनता नवीनता नहीं होती पुराने सिद्धान्तों की पुनर्व्याख्या होती है.जब नवीनता समाज में कुछ प्रतिष्ठित होने लगती है तभी उनकी दृष्टि नवीनता पर पड़ती है लेकिन तब तक वह नवीनता परम्परा हो चुकी है.फिर वही....
कोई नया आता है,फिर उसके साथ वही.



आज!

और आज जब ओशो जन्मशताब्दी वर्ष!

तब करोड़ों है उनके पक्ष में लेकिन अब लोग उनको लेकर बैठ गये और समय के मुताबिक नवीन परिस्थितियां.......सनातन धर्म की यात्रा में ठहरे हुए होते हैँ.



वह नवयुवती अर्थात मंजुला कमरे में अकेले बैठी डायरी पर लिखे जा रही थी.


उसकी कलम अभी रुकी न थी-



सन तिरानवे के अश्विन मास में हिन्दुस्थान आने के बाद क्लेयर शार्ट लगभग एक वर्ष यहां रहा था.वह इस वक्त ब्रिटेन में था.
जब वह
हिन्दुस्तान में तो
क्लेयर शार्ट अशोक से कह रहा था-



"अशोक ,मैने तुम्हें जब पहली बार हरिद्वार में देखा था तो लगा था कि तुमसे मेरा अनेक जन्म से सम्बन्ध है."



अशोक ने ऊपर आसमान की ओर देखा मानो वह सूक्ष्म शक्तियों को मौन संकेत कर रहा हो.



"अशोक! कल्पनाएं कभी झूठ नहीं होतीं और सन छियासी या सत्तासी से आपकी कल्पनाओं के जो बिन्दु हैं आश्चार्य है उन्हीं बिन्दुओं की बात मैने आपसे क्यों कर दी और कहता रहा कि अशोक,आपका नवीन क्रान्ति से सम्बन्ध है.मैं कहता था कि ऐसा होगा,वैसा होगा तुम कहते कि ऐसी तो मेरी कल्पना है..हम और आप एक दूसरे के अन्तरमन को न जानते फिर भी......."



"मैं......!" - फिर अशोक अन्दर की ओर तेजी से श्वास लेते हुए अपना सिर नीचे झुका कर अपने सीने पर निगाह डालता है.



"कुछ बोलने को थे तुम अशोक."



"बोलो,तुम बोलो,मै नहीं बोलूंगा अभी,(मुस्कुराते हुए) अभी बोलने की अक्ल नहीं,जब बोलूंगा तो सारी धरती एक बार हिल जाये."



"होगा अशोक,ऐसा ही होगा."



"अशोक,तुम जैसे लोग देश समाज विश्व के बारे में सोंचने वाले कम ही होते हैं."


"अच्छा,छोंड़ो यह व्यक्तिगत बाते!मैं ही जानता हूँ मैं क्या हूँ?एक अस्थिर,अनिर्णयशील,भययुक्त,आदि के अलावा और क्या....?"


"इक्कीसवीं सदी के प्रारम्भ में युगदर्शी से भेंट के बाद तुम्हारे बाहरी व्यक्तित्व में भी परिवर्तन हो जायेगा और जो विक्रान्तियां हैँ वे नष्ट होना आरम्भ हो जायेंगी."



"धन्यवाद!ऐसा ही हो ,मैं प्रभु से चाहूँ."



"ऐसा ही होगा.प्रभु से अपने लिए कुछ भी न मांगने वाला कोई....."



"यह तो मैं ही जानता हूँ."



......क्लेयर शार्ट अकेला ही जर्मन के एक शहर स्थित एक पार्क में लेटा सोंच रहा था-अशोक में बहुत कुछ छिपा है सिर्फ व्यवहार नहीं है पास,लेकिन एक दिन...




एक बहुमंजिला इमारत!


जिसके सबसे ऊपरी मंजिल पर अन्तर्राष्ट्रीय कुशक्तियों की एक गोष्ठी ,जिसमें पाक खुफिया ऐजेन्सी के प्रतिनिधि सहित अनेक उग्रवादी आतंकवादी एवं विध्वंसकारी संगठनों के प्रतिनिधि उपस्थित थे.


इस गोष्ठी के कुछ अंश-


"कल दिल्ली के किले पर राजीव का प्रथम भाषण होगा.मौत उस बेचारे को राजनीति में खींच लायी है."



" वो तो जाल बिछा ही रखा है राजीव के लिए सर.लेकिन फैजावाद में वो गुमनामी बाबा....!उसके सम्बन्ध में...... . "



"सब जानता हूँ , सुभाष के सम्बन्ध में यह सब प्रचार प्रसार ज्यादा सफल नहीं होंगे . "



"सर!पंजाब समस्या के प्रश्न पर सन्त लोंगोवाल व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के बीच समझौते पर ......

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