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गुरुवार, 28 जुलाई 2011

भुम्सन्दा की ओर हफ्कदम!

भयानक जंगल! आरदीस्वन्दी की टीम मेँ 25 व्यक्ति शामिल थे जो अब भयानक जंगल मेँ थे.इधर तीन नेत्रधारी बालक हफ्कदम!पृथु मही पर बालक हफ्कदम अपने साथ सनडेक्सरन से आयी युवती फदेस्हरर के साथ एक लैण्डमार्क पर था।.दोनों भुम्सन्दा की ओर यान से रवाना होने वाले थे.
"प्रकृति मेँ मानव ही ऐसा है जिसने अपनी क्षमताओं के समक्ष अहंकार, द्वेषभाव, भौतिक निजी स्वार्थ,आदि के वशीभूत हो आपस में लड़कर हमेशा तीसरे को फायदा दिया है "-फदेस्हरर बोली .एक सन्यासी बोला-
"जाति पंथ चक्कर मेँ पड़कर मानव ही मानव का खून करता आया था.वीरभोग्या बसुन्धरा .....वीर धर्म की रक्षा के लिए नहीं भोग के लिए हो गया,प्रकृति व मानव पर मनमानी के लिए हो गया.महाभारत युग सारी पृथ्वी महाभा अर्थात महान प्रकाश मेँ रत न हो कर भोगबिलास मेँ लिप्त हो अन्यायवादियों के शिकार हो गयी थी.तो ऐसे मेँ पृथ्वी को भार से मुक्त कराने के लिए अनन्त शक्ति श्री कृष्ण मेँ जागृत हो धरती पर अवतरित हुई इसके जाने के कुछ हजार वर्ष बाद पृथ्वी फिर कालिमा से लदगयी.सोलहवी सत्ररहवीँ सदी मेँ वैज्ञानिक व मशीनरी विकास ने प्रकृति असन्तुलन खड़ा कर दिया. "सन्यासी की आंखे नम थी
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मेरें Nokia फ़ोन से भेजा गया

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