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शनिवार, 30 जुलाई 2011

आदि मानव कूर्म क्षत्रिय:कितना सच कितना झूठ? लेखक:अशोक कुमार वर्मा'बिन्दु'

कश्यप गोत्र धारियों का इतिहास शेष गोत्रधारियों से पुराना है.

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From: Ashok kumar Verma Bindu <akvashokbindu@yahoo.in>
To: <akvashokbindu@gmail.com>,<deshpremi.bharat@gmail.com>,<rsahara@saharasamay.com>,<bareilly@livehindustan.com>,<admin@khabarindiya.com>,<article.hindi@delhipress.in>,<aajbareilly@gmail.com>,<Dr.Nagesh.Pandey.Sanjay@gmail.com>,<freelance@oneindia.co.in>
Date: रविवार, 31 जुलाई, 2011 4:09:29 पूर्वाह्न GMT+0000
Subject: आदि मानव कूर्म क्षत्रिय:कितना सच कितना झूठ? लेखक:अशोक कुमार वर्मा'बिन्दु'

प्रथम ऋषि थे कश्यप.प्रथम गोत्र था कश्यप.
इण्डोकैश्पियन जिनके वंशज थे.कुमायूं का एक नाम कूर्मांचल भी मिलता है.कूर्मांचल ,कश्मीर,तिब्बत,मानसरोवर,पाकिस्तान,अफगानिस्तान,आर्यान अर्थात ईरान आर्यों का मूलस्थान कहे जा सकते हैँ.कुमायूँनी व रोमनी भाषा मेँ समानता है,जिसे यमुनादत्त वैष्णव 'अशोक ' ने साबित किया है.

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From: Ashok kumar Verma Bindu <akvashokbindu@yahoo.in>
To: <go@blogger.com>
Date: रविवार, 31 जुलाई, 2011 9:19:58 पूर्वाह्न GMT+0530
Subject: यमुनादत्त वैष्णव 'अशोक':एक संक्षिप्त परिचय

दक्षिणी भारत,प्राचीन सुमेर,मिश्र और भूमध्य सागर देशों की मौलिक सांस्कृतिक समानता के अध्ययन क्षेत्र मेँ यमुनादत्त वैष्णव 'अशोक' का नाम चिरस्मरणीय रहेगा.
इनका जन्म कौसानी (अल्मोड़ा) के निकट ग्राम धौलरा मेँ 02अक्टूबर1915ई को हुआ था.

युनेस्को द्वारा कुमाऊंनी शब्दकोष के अन्तर्राष्ट्रीय महत्व को देखते हुए कोष निर्माण अनुबन्ध के लिए एशिया और प्रशान्त क्षेत्र के मुख्यालय बैंकाक का आमंत्रण .

कोष निर्माण के लिए युनेस्को को साझेदारी का अनुबन्ध और वित्तीय सहायता.

बैंकाक की यात्रा के दौरान "थाइलैण्ड की अयोध्या" शीर्षक 12 लेखों के ग्रन्थ का प्रणयन.


मार्च1989को 75वर्ष पूरे होने पर 02अक्टूबर सन 1990 को नैनीताल के बुद्धिजीवियोँ द्वारा अभिनन्दन तथा उनके ग्रन्थ "पुरस्कृत विज्ञान कथा साहित्य" का लोकार्पण .

सन 1990ई0 तक इनके द्वारा 34 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी थीं.जिनमेँ -विज्ञान कथा साहित्य ,15 उपन्यास, 07 कथा संग्रह ,08 हिन्दी विज्ञान साहित्य, 05 संस्कृति और इतिहास .

यह कुमाऊं संस्कृति परिषद ,नैनीताल के अध्यक्ष भी रहे.उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा 'द्रविण और विश्व मानवता'ग्रन्थ पर संस्कृति पुरस्कार से सम्मानि किया गया.

इण्डोकैस्पियन(आदि द्रविड़)संस्कृति पर यरुशलेम अन्तर्राष्ट्रीय स्वयंसेवी सम्मेलन मेँ मार्च अप्रैल 1985ई0 में मध्यपूर्व,मिश्र व रोम की यात्रा.

प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन नागपुर मेँ जनवरी 1975 मेँ 'कुमाऊंनी और अन्तर्राष्ट्रीय रोमनी (जिप्सी) भाषा'की समानता पर पढ़ा गया निबन्ध.

बालक हफ्कदम के सवाल?

आखिर आजादी वक्त के अनेक दस्तावेज सुभाष व शास्त्री की मृत्यु सम्बन्धी दस्तावेज गायब क्यों कर दिये गये थे?भिण्डरावाले को पैदा किसने किया था ? लिट्टे को किसने पैदा किया था?बोड़ो आन्दोलन को किसने पैदा किया था?राजीव व संजय गांधी की हत्या के पीछे वो अदृश्य लोग कौन थे?


बालक हफ्कदम युवती फदेस्हरर से बोला-"हम दोनों भुम्सन्दा की ओर चल तो रहे हैँ लेकिन मैँ सोंचता हूँ क्या हमें वास्तव मेँ भुम्सन्दा पर चलना चाहिए?"


"क्योँ?ऐसी बात क्योँ?"


"सद्भाव तक पहुँचने के आरदीस्वन्दी के 25 सदस्यीय टीम के अभियान मेँ आखिर हमेँ क्यों नहीं शामिर किया गया?जब हमेँ शामिल नहीं किया गया तो फिर भुम्सनदा पर हम क्योँ?हम क्यों जा रहे है भुम्सनदा?"

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From: Ashok kumar Verma Bindu <akvashokbindu@yahoo.in>
To: <akvashokbindu@gmail.com>
Date: रविवार, 31 जुलाई, 2011 4:34:24 पूर्वाह्न GMT+0530
Subject: बालक हफ्कदम के सवाल?

गुरुवार, 28 जुलाई 2011

भुम्सन्दा की ओर हफ्कदम!

भयानक जंगल! आरदीस्वन्दी की टीम मेँ 25 व्यक्ति शामिल थे जो अब भयानक जंगल मेँ थे.इधर तीन नेत्रधारी बालक हफ्कदम!पृथु मही पर बालक हफ्कदम अपने साथ सनडेक्सरन से आयी युवती फदेस्हरर के साथ एक लैण्डमार्क पर था।.दोनों भुम्सन्दा की ओर यान से रवाना होने वाले थे.
"प्रकृति मेँ मानव ही ऐसा है जिसने अपनी क्षमताओं के समक्ष अहंकार, द्वेषभाव, भौतिक निजी स्वार्थ,आदि के वशीभूत हो आपस में लड़कर हमेशा तीसरे को फायदा दिया है "-फदेस्हरर बोली .एक सन्यासी बोला-
"जाति पंथ चक्कर मेँ पड़कर मानव ही मानव का खून करता आया था.वीरभोग्या बसुन्धरा .....वीर धर्म की रक्षा के लिए नहीं भोग के लिए हो गया,प्रकृति व मानव पर मनमानी के लिए हो गया.महाभारत युग सारी पृथ्वी महाभा अर्थात महान प्रकाश मेँ रत न हो कर भोगबिलास मेँ लिप्त हो अन्यायवादियों के शिकार हो गयी थी.तो ऐसे मेँ पृथ्वी को भार से मुक्त कराने के लिए अनन्त शक्ति श्री कृष्ण मेँ जागृत हो धरती पर अवतरित हुई इसके जाने के कुछ हजार वर्ष बाद पृथ्वी फिर कालिमा से लदगयी.सोलहवी सत्ररहवीँ सदी मेँ वैज्ञानिक व मशीनरी विकास ने प्रकृति असन्तुलन खड़ा कर दिया. "सन्यासी की आंखे नम थी
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कांग्रेसी पुतले मेलों मेँ ! एक कल्पना

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सोमवार, 25 जुलाई 2011

भविष्य पर झलक : उड़नतश्तरी यान

अन्तरिक्ष विज्ञान को लेकर भविष्य को रेखांकित करती कथाएं जहां तहां नजर आती रहती हैँ.इसी पर मेरी कल्पनाओं का एक अंश , यह ब्लाग.कल्पनाओं पर आधारित कुछ और यह चित्र.
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एक किताब है नाम the eyes of darkness  1981 को पब्लिश हुई थी इसमे लिखा है कि कॅरोना वायरस को चीन ने अपने शहर वुहानके एक लैब में सबसे छुपा कर बनाया था ,बाद में चीन इसको use करेगा अपनी गरीब लोगों की आबादी कम करने के लिए जिससे कि उसे सुपर पावर बनने में आसानी हो ,और इस बुक में कॅरोना वायरस का नाम वुहान 400 के नाम पर है इस किताब में पहले ही बता दिया है कि आगे चलकर चीन इस वायरस का उपयोग करेगा बायो लॉजिकल हथियार के रूप में
लेखक का नाम dean Koontz
किताब के पेज 353 से 356

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इसमें कितनी सच्चाई है,हम अंजान है। मानवतावादी संगठनों को इस पर गौर करने की जरूरत है।संयुक्त राष्ट्र संघ को विश्व सरकार के लिए विचार बनाना चाहिए ही ,भविष्य में जैविक आक्रमण पर विचार होना चाहिए। भारत तो अपने स्तर पर काम करेगा ही।कुदरत के सम्मान में कौन सामने आएंगे?ये वक्त बताएगा। 2025 तक ऐसे हालात आ जाएंगे कि वर्तमान सिस्टम के बीच भारतीयता पनपेगी। चीन क्या विश्व युद्ध का कारण बनेगा???हम स्वप्न में चीन के सैनिकों के बीच अपने को डर में क्यों देखते हैं??

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शनिवार, 23 जुलाई 2011

चित्र : भविष्य कथांश

इस ब्लाग पर मैं अपने काल्पनिक कथांश प्रस्तुत करता ही रहता हूँ . अब कुछ यह सम्बन्धित चित्र.इस ब्लाग व इसकी कैसी भी सामग्री को कोई अन्यथा न ले.

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सोमवार, 18 जुलाई 2011

सदभाव की खोज मेँ !

सनडेक्सरन निवासी त्रीनेत्री युवती आरदीस्वन्दी की भुम्सनदा धरती पर युवक सदभाव से मुलाकात उड़नतश्तरीयान वाली धरती धधस्कनक के तीन निवासी हलदकरोड़ा(युवती),दस रलकम व फदरस्लन ने करायी थी .

सनडेक्सरन से त्रीनेत्री आरदीस्वन्दी सदभाव की ध्वनि 'ओम आमीन' तरंगों के आधार पर भुम्सनदा धरती पर पहुंच तो गयी थी लेकिन....?!


वे ध्वनि तरंगें अब शून्य मेँ थीँ.भुम्सनदा पर लैण्डमार्क के समीप सूर्यमंदिर के पास जहाँ एक दीवार पर यान व विशेष वेशभूषा पहनी एक युवती का चित्र बना था.पड़ोस मेँ एक पत्थर पर आरदीस्वन्दी बैठी थी.पशु पक्षियों द्वारा लाए गये फूल पत्तियां उसके आसपास पड़े हुए थे.ब्रह्माशकल कुछ सूक्ष्म शरीर उससे मुलाकात कर जा ही पाये थे कि वहाँ अपने उड़नतश्तरी यान से युवती हलदकरोड़ा अपने दोनेँ युवक साथी दस रलकम व फदरस्लन के साथ वहां आ पहुँची थी.

* * *

भयानक जंगल !सदभाव की ओर कदम!!

यह कदम एक अभियान से कम नहीं थे.


जून सन 5020 ई0 मेँ सदभाव के अज्ञातबास में जाने के एक हजार वर्ष बाद अब ब्राह्माण्ड से उसका सामना होने वाला था.जंगल मेँ आरदीस्वन्दी के साथ 25 लोग थे.

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बुधवार, 13 जुलाई 2011

द अफ्रीकन

भूमध्य सागरीय आदिमानव! क्रीट सभ्यता एवं अफ्रीका का इतिहास.....



दूसरी ओर एक मार्डन फैमिली,जिसमेँ एक युवती .....उम्र उसकी तीस वर्ष.


उसकी महत्वाकांक्षा कि मैं चाहती हूँ सारी दुनियां मेरी मुटठी में हो और वो (जीवनसाथी)जो हो ,उसके लिए मैं ही सारी दुनियां होऊँ.मेरे सिवा सारी दुनिया को वह भूल जाए.


इस युवती को जंगलों में जाकर विभिन्न औषधियों व वनस्पतियों के बारे में जानकारी एकत्रित करने का शौक था.वह एक मेडिकल इंस्टीटयूट मेँ कार्यरत थी.लेकिन इस वक्त वह अफ्रीका के जंगलों मे थी...




दूसरी ओर एक मनोचिकित्सालय.....एक पागल एक रुम में था,उसने कुछ चित्र बना डाले थे-
एक चित्र में भूमध्यसागरीय क्षेत्र, दूसरे मेँ संसार तीसरे मेँ पृथ्वी ,चौथे में एक आकाशीय पिण्ड ,पाँचवें मेँ एक अन्तरिक्ष यान .....


उस पागल ने अपनी आंखे बन्द कर रखी थीं.


क्या वह वास्तव मेँ पागल था-


अन्तरिक्ष मेँ एक यान!


एक स्क्रीन पर मनोचिकित्सालय के चलचित्र!उस पागल की तश्वीरें भी.....



"यह पागलखाने मेँ!"


"पृथु की धरती के हाल क्या है?कैसे बयां करें ? "


" चलो ठीक है,इसके माइण्ड हमारे कम्पयूटर के कांटेक्ट मेँ आ गया है.क्या था विचारा,दुष्ट इन्सानों ने इसे क्या बना डाला?इसका ही बेटा नहीं क्या इसके शक्ल का अफ्रीका के जंगलों मेँ?"


"नहीं!"

"इसके जुड़वा भाई की करतूत है वह..."



इधर अफ्रीका के जंगलों मेँ.....

मंगलवार, 12 जुलाई 2011

20जनवरी के विस्फोट !

तेज ठहाकों से कक्ष गूंज उठा था.
यह ठहाके थे-पच्स्कदन के,अर्थात एक सनडेक्सरन निवासी के.


"वो पृथ्वी के लिए जयचन्द्र ही सही लेकिन है हमारे काम के.ऐ न्यूयार्की,शाबाशी दे डालो मेरी ओर से सबको."


"ओके सर!"


फिर पच्स्कदन विडियो फोन पर एक युवती फन्जेफडस से सम्पर्क करता है.


"फन्जेफडस!आज मै बहुत खुश हूँ.देख लो मुझे तेरी जरुरत नहीं पड़ रही है.देख मै तेरे बिना भी बहुत खुश हूँ."


"यह तेरी खुशी नहीं, तेरी मौत का जश्न है."


"हूँ!तू तो मुझे चाहती है प्रेम करती है."



"तू तो कलंक है कलंक!सनडेक्सरन धरती के लिए.आगे चल कर तुझे यहाँ के नागरिक ही नहीँ सारी धरतियों के मनुज तुझपे थूकेँगे ."


"हूँ!होने दो!"


फिर पच्स्कदन कक्ष से बाहर हो जाता है.


इधर मोनिका-

मोनिका का सारा कामकाज ,उसका और उसके साथियों का कार्यालय,गुप्त आवास,नियन्त्रण कक्ष,आदि पहाड़ों के नीचे अण्डरग्राउण्ड थे.
जो अब कुशक्तियों के विध्वंसक कार्यवाहियों के शिकार हो चुके थे.


मोनिका अन्तरिक्ष के किसी अज्ञात धरती से यान द्वारा कहसरक्यूनसे (त्रीनेत्री सनडेक्सरन निवासी) व ननकरेमक निवासी ताम्ररंगी नाटा व्यक्ति के साथ हाहाहूस धरती की ओर जा रही थी.
* * *


हाहाहूस धरती पर!


हाहाहूस धरती पर एक गुफा के सामने 'कक् लएश्श देवय ' की आदम कद प्रतिमा लगी हुई थी.जिसके सामने एक चबूतरे पर बैठा शक्ति वम्मा अपने पुत्र के साथ मेडिटेशन मेँ था .




मोनिका का यान एक गुफा के अन्दर प्रवेश कर गया.यान के रुक ने के बाद मोनिका दोनों के साथ यान से बाहर आ गयी.आगे बढ़ जब तीनों एक विशाल कक्ष में प्रवेश किए तो वहाँ उपस्थित युवक युवतियाँ व व्यक्ति अपनी अपनी कुर्सी से उठ बैठे और -
अभिवादन के बाद मोनिका बोली-"शक्ति वम्मा कहाँ है ? "



एक युवती बोली-" उनका अभी मेडिटेशन का समय है,वे...."

फिर मोनिका दोनों के साथ दूसरे कक्ष में प्रवेश कर कुर्सी पर बैठ गयी.एक ओर मानीटर पर दृश्य,


कि-

कक् लएश्श की आदम कद की प्रतिमा के समीप अब शक्ति वम्मा अपने पुत्र व अन्य के साथ मेडिटेशन में था.



* * *



न्यूयार्क मेँ एक हवेली !


इस हवेली के एक कक्ष मेँ-

कुछ कुशक्ति व्यक्ति मीटिंग कर रहे थे जिसमें न्युयार्की भी उपस्थित था.


विडियो फोन से पच्स्कदन सभी को सम्बोधित कर रहा था.


"....ए न्यूयार्की!जरा सम्भल कर . मोनिका के ठिकानों के साथ साथ चर्चित के कुछ ठिकानों पर विस्फोटों से वे और सशक्त हो कर उभर रहे हैं.रुचिको पृथ्वी पर आने वाली है.हम नाटक खेल रहे है,देखो कितना कमयाब होते है कि वह पृथ्वी पर न आने की अपनी शपथ न तोड़े."


एक अनाम पागल को एक अमेरीकी पागल खाने से निकाल कर समुद्री जहाज से समुद्र के बीच फेँक दिया जाता है.

लेकिन कुछ देर बाद वह जहाज एक विस्फोट से नष्ट हो जाता है.



इधर अनाम....!


समुद्र की लहरों से जूझते अनाम की तश्वीरें स्क्रीन पर थीं.


जिस पर निगाह थी-अशोक शक्ल व्यक्ति की.
अशोक शक्ल व्यक्ति की ?

हाँ!अशोक शक्ल व्यक्ति की ही निगाहें स्क्रीन पर थीँ.


स्क्रीन पर-


एक व्यक्ति एक यान समुद्र में उतार कर उस पागल अनाम को बचा लेता है.



अशोक शक्ल व्यक्ति स्क्रीन से निगाहें हटा कर पीछे खड़ी एक नवयुवती को देख,जो स्कर्ट ब्लाउज पहने थी-
" तुम यहाँ से चलने की मेरी व्यवस्था करो."


"क्या?सर!आज और रुक लेते.वैसे भी इस बार डेढ़ महीने बाद यहाँ आये हो."


वह उठ कर वह नवयुवती के रोकने के बाबजूद बाहर निकल आया.



अशोक शक्ल जब बाहर आया तो अनाम को देख-
"धन्यवाद!"

"सर!धन्यवाद कैसा?मेरे होते भी वहाँ बम विस्फोट!"
"क्या सोंचने लगे?"
"हूँ, ये सत्तावाद व पूंजी वाद का खेल कब थमेगा?सन2019-20 से नया करबट लेगा!"
"क्या?समझा नहीं?"
"हिटलर याद है?पहले मुर्गे के पर को नोच डालो, फिर....??"
"फिर क्या?फिर दाना डाल दो।"
"जनता भी मूर्ख है?जनतंत्र तो जनता का शासन है लेकिन....?"
"अब भय का खेल वायरस,जैविक आक्रमण व उसके आड़ में व्यापार....अनेक सत्ताएं भी न समझ पाएगीं सन2020 में!"

न्यूमैक्सिको : सन1947ई0



               सन 1947ई 0 का समय!
               सत्ता हस्तान्तरण वक्त!

अप्रत्यक्ष रुप से सत्ता ब्रिटिश के ही हाथ में रहे ,इसके लिए नेहरु को तैयार कर लिया गया था.लार्ड माउण्टवेटन की पत्नी के झांसे उलझ कर देश का हित भूल देश विभाजन व कामनवेल्थ का सदस्य बनने को तैयार हो गये थे.



हिन्दुस्तान के इतिहास मे एक नये अध्याय का प्रारम्भ!



न्यू मैक्सिकोँ में दो स्थानों पर उड़नतश्तरियां गिरी थीं.जिसका गबाह था-
न्यू मैक्सिको का ही मि एस.जो मानवतावादी अण्डरवर्ल्ड चीफ मोनिका के नाना थे .
वह इस वक्त अमेरीकी जेल में कैद थे.जब उसकी निगाह सलाखों से बाहर गली में पड़ी तो -


सामने गली से एक त्रीनेत्री ग्यारह फूटी व्यक्ति उसके कठघरे की ओर ही आ रहा था.


तब मि एस सोंचने लगा -
"सनडेक्सरन धरती का निवासी !"


"हा! मैं सनडेक्सरन धरती का निबासी ."मि एस ने पीछे मुड़ कर देखा,लेकिन पीछे कोई न था .आवाज पीछे से ही आयी थी.

सनडेक्सरन नागरिक करीब आ चुका था.उसने अपना हाथ सलाखों से अन्दर डाल कर मि एस के शर्ट को सामने से पकड़ कर ऊपर उठा लिया और -

"मैने सोंचा कि मि एस का मुखड़ा भी देख लिया जाए."

फिर जब वह मि एस को छोड़ देता है तो मि एस जमीन में गिर जाता है.फिर सनडेक्सरन नागरिक वहां से चलते बना.वह मि एस की निगाहों से ओझल ही हो पाया था कि-तभी उसे एक चीख सुनायी दी.यह चीख पड़ोस के एक कठघरे से आयी थी.जिसमें उड़नतश्तरियों की धरती -'धधस्कनक' का वह नागरिक कैद था जो कि मि एस के फार्म पर मि एस के साथ ही गिरफ्तार किया गया था .


मि एस को तो जेल से छोंड़ दिया गया था लेकिन उसके साथी अर्थात धधस्कनक नागरिक को नहीं छोंड़ा गया था.


दो दिन बाद-
आकाश में एक यान तीब्र विस्फोट के बाद नष्ट हो गया,जिसमें मि एस उपस्थित था.


पूरी दीवार ही एक स्क्रीन में तब्दील थी.जिसमें अन्तरिक्ष के चलचित्र आ रहे थे.अनेक अन्तरिक्ष यान तीव्र विस्फोटों के शिकार हो रहे थे .



अधेड़ावस्था से निकल वृद्धावस्था मे प्रवेश करने वाली अब मोनिका बैठी स्क्रीन पर चित्रों को देख रही थी.


सन बीस सौ इक्कीस की उन्नीस जनवरी!


आज ओशो की पुण्यतिथि के अवसर पर अनेक स्थानों पर से कार्यक्रम की सूचनाएं थीँ.भारत के खजुराहों में भी कार्यक्रम का आयोजन था.खजुराहो बैसे तो सन1999ई में ही विश्वपरिदृश्य पर आ गया था.खजुराहो के एक हजार वर्ष पूर्ण होने के अबसर पर मध्य प्रदेश सरकार द्वारा एक भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया था.इस सम्बन्ध में ओशो की काफी विस्तृत योजना थी,लेकिन अफसोस वह सन उन्नीस सौ नब्बे में ही इस दुनिया से जा चुके थे.
सन1999 - 2000ई
खजुराहो कार्यक्रम ओशो प्रेमियों के लिए अधिक सन्तुष्टि प्रदान न कर सका था लेकिन 2031में19जनवरी से 26जनवरी तक का सांस्कृतिक आध्यात्मिक कार्यक्रम काफी आनन्ददायक था क्योंकि इस कार्यक्रम काफी आनन्ददायक था क्योंकि इस कार्यक्रम की सारी योजना ओशो प्रेमियों की थी.


लेकिन -


दुनियां में विभिन्न स्थानों ,कृत्रिम उपग्रहों,अन्तरिक्ष यानों व रडार केन्द्रों को विस्फोटों के माध्यम से निशाना बनाया गया था.




अन्तरिक्ष में एक अज्ञात धरती ,जहां से एक अन्तरिक्ष यान उड़ कर अन्तरिक्ष यात्रा पर था.इस अन्तरिक्ष यान में तीन लोग उपस्थित थे-मोनिका,ननकेरमक नागरिक जो कि ताम्ररंगी नाटा था,व तीसरा-सनडेक्सरन नागरिक 'कहसरक्यूनसे' .

'कहसरक्यूनसे' से मोनिका बोली-"यान को हाहाहूस की ओर मोड़ दो."



"हमारे पूर्वजों ने अमेरीका व अन्तरिक्ष की कुछ कुशक्तियों के साथ मिल कर मोनिका के मानवतावादी वर्ल्ड को ध्वस्त कर दिया था.आज हम फिर देवरावण के साथ मिल कर मानवतावादी शक्तियों को नष्ट करेंगे . "



-सनडेक्सरन का एक बागी नागरिक 'चटकाएतपयटचट' बोला.
"सन 2020ई0 एक संस्था अपना 75 वां वर्षगाँठ माना  रही होगी। वह संस्था के लोग पूरी दुनिया में अनेक स्थानों से अपने अपने स्तर से मुहिम चला रहे होंगे।"

"तो....."

"पूरी बात तो सुनों- मनुष्य इतना गिर चुका होगा कि सूक्ष्म जगत की नगेटिव पॉजीटिव घटनाएं उन्हें नहीं दिखाई दे रही होंगी।हर शहर में उसका अहसास करने वाले तो होंगे लेकिन उनको लोग जब तक जाने गे तब तक काफी देर हो चुकी होगी।

"ऐसा क्या...!?"

" कुदरत इंसान जाति के कुकृत्यों से प्रभावित हो कर सन्तुलन बनाने में जो करेगी वह का प्रभाव इंसान नहीं झेल पाएगा। दक्षिण भारत तब दुनिया के लिए महत्वपूर्ण होगा।कोरो-ना अभियान बीच साइबेरिया के पड़ोस से कुकर्म का परिणाम विश्व के इंसानों को निगले गा तब लोगों की आंखे खुलेंगी। कोरो को तब स्वीकर करेंगे।"

"ये कोरो क्या? कोरो - ना क्या?"

"इस पर अभी यही है कि कोरो का मतलब भारत के गांव में सफाई से है। विस्तार से तो तभी पता चलेगा।"

"बीसलपुर से कालसे महाराज के पास सन 1996-97 में....'

 "वहां भावी विश्व को लेकर सूक्ष्म शक्तियों से प्रभावित हो तीन चार बार वार्ताएं हुई हैं।"

" उसी दौरान एक रात्रि गोपी टाकीज की दुकानों के सामने चबूतरे पर सुन सान समय दो युवकों के बीच आई जी या जी आई नाम से एक मिशन को देखा गया।"

"जिसे सन 1990-91 में बीसलपुर के ही डिग्री कालेज के मैदान में कुछ विद्यार्थियों के बीच महाभारत का नाम दिया गया था।

शनिवार, 9 जुलाई 2011

बालक हफ्कदम और देवरावणी सेना

सन 6020ई0 का विजयादशमी पर्व! मातृदेवी की भव्य प्रतिमा के समक्ष शस्त्रपूजन कार्यक्रम चल रहा था.सनडेक्सरन नि वासी बालक हफ्कदम के एक युवती के साथ मंच पर उपस्थित था. दोनों तीननेत्री थे. एक वृद्व सन्यासी जो कि हरा व लाल रंग के वस्त्र पहने था.हवन कुण्ड की अग्नि प्रजव्लित करते हुए बोला -"जीवों में चेतना के दो अंश होते हैं-परमात्मांश व प्रकृतिअंश.इन दोनों में सन्तुलन का सिद्धान्त ही (एक ओर स्थापित श्री अर्द्धनारीश्वर प्रतिमा को देखकर) श्रीअर्द्धनारीश्वर स्वरुप में छिपादर्शन है.आज विजयादशमी पर आप सगुणप्रेमियोँ के द्वारा मातृदेवी के समक्ष शस्त्रों की पूजा का मतलब क्या है?प्रकृति को बचाने को शस्त्र उठने ही चाहिए लेकिन शस्त्र सिर्फ स्थूल ही नहीं होते.हर कोई प्रकृति का संरक्षक सगुण व क्षत्रिय है." आकाश में अनेक यान तेजी के साथ तेज आवाज करते हुए मड़राने लगे.
और... " हा... हा.. हा.. हा.....! " - अपने नियन्त्रण कक्ष से एक वृद्ध राजसी व्यक्ति ठहाके लगा रहा था. यह वृद्ध व्यक्ति...?!अचानक वह चौंका.स्क्रीन पर दिख रहा था कि सारे नष्ट किये जा रहे थे और अब बालक हफ्कदम हँसते हुए बोला-"देवरावण!तू ..."

ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU' WITH MANVATA HITAY SEVA SAMITI,U.P., INDIA .

....हंस कर लेंगे हिन्दु��्तान !

नादिरा खानम !

भविष्य त्रिपाठी के साथ अनुसंधान कार्य में लगी रहती थी-नादिरा खानम.



सन 2031ई0की हजरत अली जयन्ती!
मीरानपुर कटरा, शाहजहांपुर में कब्बाली का आयोजन था.



अपने जीवन में पचास बच्चे पैदा करने वाली फहरीन अंसारी को मुसलमानों की आबादी बढ़ाने में योगदान हेतु इनाम दिया गया .



इस कार्यक्रम की अतिथि थीं-नादिरा खानम.



"फहरीन अंसारी मुसलमानों की आबादी बढ़ाने मेँ योगदान दिया ,यह मेरे लिए ताजुब्ब की बात है.कहाँ है मुसलमान ?आप लोग कहते हैं कि दुनिया में मुसलमान की आबादी आसमान चूमने लगी है.दुनिया की सत्ता चन्द सालों बाद हमारे हाथ में होगी .यह आप लोगों का मानना है. मुझे तो मुट्ठी भर से भी कम मुसलमान दिखे हैं.मुसलमान कौन है?
जिसका ईमान दृढ है,वही मुसलमान है. मोहम्मद साहब से बढ़कर मुसलमान कौन है?उनसे बढ़कर क्या कोई दयालु है?वे उस दुष्ट महिला का सम्मान करना भी जानते हैं,जो प्रति दिन उनके ऊपर कूड़ा फेंकती है .आप ईमान से पक्के हैं क्या ?ईमान पर पक्के रहने वालों की आबादी बढ़ रही है क्या? "- नादिरा खानम बोल रही थीँ.




पब्लिक के बीच से दो युवक खुसुर फुसुर करने लगे थे-
"साली,यह थोड़ी बोल रही है.यह तो इसका यार भविष्य त्रिपाठी बुलवा रहा है.इन युवकों के पास पुष्प कन्नौजिया भी बैठा था.वह गुस्से का घूंट पी कर रह गया .


"पाकिस्तान लिया था लड़ के अब हिन्दुस्तान लेंगे हंस के ."-एक मुस्लिम युवक बोला.


पुष्प कन्नौजिया वहां से उठ बैठा.


नादिरा खानम अब भी बोल रही थी -



" यह धरती इन्सान व कुदरत के बिना क्या महत्वहीन नहीं हो जाएगी? जाति मजहब से ऊपर उठ कर करुणा व प्रेम की मिसाल प्रस्तुत कीजिए .सार्भौमिक सत्य के पथ पर यात्रा तय किए बिना इन्सान क्या इन्सान? अपने पन्थ के सामने अन्य पन्थ को हीन भावना से देख कर व जीव जन्तु वनस्पतियों का नाश करना कहां का ईमान है.पूरी दुनिया में अपना साम्राज्य स्थापित करना चाहते हो तो सर्वसम्मत्ति से विश्वसरकार तथा आम आदमी के लिए अन्तर्राष्ट्रीय शरहदों को खोल देने की वकालत करो.चाहें गैरमुसलमान क्यों न हो ,ईमानदार व दयालू व्यक्तियों का संरक्षण होना चाहिए . क्यों न कोई मुसलमान हो,यदि वह भ्रष्ट व हिंसक है तो उसकी बगावत करो."



* * *


मुगलिस्तान जिन्दावाद के नारे तेज हो चुके थे.


मुगलिस्तान में पाकिस्तान,अफगानिस्तान व बांग्लादेश सहित पूरा उत्तर भारत शामिल किया गया था .हर भारतीय मुसलमान का मकसद बन चुका था-मुगलिस्तान.



कुछ सेक्युलरवादी ताकतें उभरीं तो थीं लेकिन उनके साथ मुस्लिम आबादी नहीं थी.यह सम्राट अकबर की दीन ए इलाही पन्थ के आधार पर चल रहीं थी.यह दूसरी जाति में शादी करने की वकालत कर रही थीं.



ओशो जन्मशताब्दी वर्ष के अवसर पर कार्यक्रमों में ओशोप्रेमी व कुछ अन्य संगठन सार्क राष्ट्रों का एक संघ राज्य व आम आदमी के लिए अन्तर्राष्ट्रीय शरहदें खोलने की वकालत के साथ विश्व सरकार हेतु जनमत तैयार कर रहे थे.


लेकिन मुस्लिम आबादी गैरलोकतान्त्रिक व गैरसेक्यूलर मुस्लिम सरकार चाह रहे थे .बढ़ती मुस्लिम आबादी का दबाव मुस्लिम राज्य के लिए रास्ता सुगम बना रहा था.



फिर-


सन बीस सौ इक्कतीस की उन्नीस जनवरी!



आज से चालीस वर्ष पूर्व यानि कि उन्नीस जनवरी सन उन्नीस सौ नब्बे को ओशो परमसत्ता में विलीन हो गये थे.इसी अवसर पर पृथ्वी के अनेक नगरों में कार्यक्रमों का आयोजन था.सारी पृथ्वी पर सात जगह प्रमुख कार्यक्रम ,जैसे भारत में खजुराहो,अमेरीका में ओशो आश्रम,मास्को,नागासाकी,रोम,आदि स्थान .



सन2020ई0 तक अमेरिका व भारत साथ साथ आजाएँगे।
चीन की साम्राज्यवाद नीति उजागर होगी।
विभिन्न कारणों से सन 2050ई0 तक आबादी काफी कम होगी।

दिल्ली गद्दी भारत देश का भला नहीं कर पाएगी।
छद्म सेक्युलरवाद,पुराने दल, पुरानी व्यवस्था में बदलाव होगा।

बुधवार, 6 जुलाई 2011

राजीव की हत्या के पीछ��!

ब्रिटेन की एक बहुमंजिला इमारत के सबसे ऊपरी मंजिल पर एक गोष्ठी चल रही थी.

दो ब्रिटिश आपस में बात कर रहे थे.शेष सब खामोश थे.क्लेयर शार्ट का पिता थाम्पसन भी इस गोष्ठी में शामिल था.


"सर! पंजाब समस्या के प्रश्न पर सन्त लोंगोवाल व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बीच समझौते पर हस्ताक्षर के बाद अब सन्त लोंगोवाल पर..."




"शा.....शान्त......!तुम कुछ अधिक ही बोलने लगे हो.अभी यहाँ गोष्ठी का उद्देश्य...."



"सारी सर! "


"सारी ? तुम तो सारी कह कर काम चला लेते हो लेकिन.... . "



"सर!अमेरीका में कैद राबर्ट के अब कैद करने रखने से क्या लाभ, वो तो....... ."



"उसे अभी छोड़ा भी न जा सकता और मारा भी न जा सकता.चीफ का अब जो आदेश हो."


"वो काफी दृढ़ है,इण्डिया के खिलाफ कुछ भी नहीं बोल सकता लेकिन एक बात समझ में नहीं आती कि ओशो के खिलाफ......."



"तुम नहीं जानते उसके प्रेममय ,सत्य एवं ईमानदार भाषणों से विश्व की जनता उस ओर आकर्षित हो रही है.जनता अनभिज्ञता में रहे तभी हम लोगों व सत्तावादियोँ का लाभ है."


"लेकिन सर...."



उपस्थित थाम्पसन के मन में न जाने क्या आता है कि वह उठ कर चल देता है .


बाहर-

"थाम्पसन,सा'ब आप!?बहुत जल्दी!"



"स्वास्थ्य बिगड़ने लगा था"-कहते हुए थाम्पसन आगे बढ़ गया.



* * *


थाम्पसन रात्रि के समय अकेले बैठा चाँद की ओर निहार रहा था.



"मैं पैर से लेकर सिर तक कम्पित हो जाता हूँ - एकान्त में.इन विश्व की कुचक्रकारी शक्तियों की शाखाओं के सामने मैं झुक तो गया हूं बिना किसी कारण के,लेकिन मेरा एकान्त मुझे मेरे इस कुकृत्य को लेकर कुचेटने लगता है. मेरे व्यवहार को लेकर मेरा पुत्र क्लेयर मुझसे नाराज है ही.व्यक्तिगत व परिवार की पूर्तियों के लिए मेरी भौतिक लालसा के कारण कुशक्तियों के साथ के कारण वह ही नहीं....! हूँ;क्लेयर कहता ही रहता कि कहाँ गये वो तुम्हारे सिद्धान्त? उन पर कल्पनाएं जोड़ कर अनेक पुस्तकें लिख डाली लेकिन व्यवहार में....?मुझपे दबाव डाला जा रहा है अब कि मैं इण्डिया जाऊं,उद्देश्य बताया जाना बाकी है. "




"डैडी!"




वह देखता है कि सामने उसका बेटा क्लेयर शार्ट खड़ा है .



"चलो खाना तैयार है."



"आता हूँ ,तुम चलो."


फिर-


क्लेयर शार्ट चला जाता है.




"इण्डिया जाने से पहले न्यूयार्क के हिलटन होटल में आगामी मिटिंग की व्यवस्था मुझे ही करनी होगी."-थाम्पसन सोंच रहा था.




आज से चार पाँच वर्ष पूर्व !



स्थान दिल्ली दक्षिण के आर.के पुरम स्थित एअर हेड क्वार्टस.



वहां एक लोअर डिवीजन क्लर्क.



लोग उसके प्रति असमञ्जस्य में थे कि वह एक साधारण सा क्लर्क और उसकी जीवन शैली उसके पद के स्तर से काफी ऊंची.



आखिर-


उसको फाइव स्टार होटलों में विभिन्न पार्टियों से मिलते उसे देखा गया था .




एक विदेशी छात्रा-जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में,उससे उस क्लर्क का सम्पर्क !



वह था-एक भारतविरोधी जासूस.



उस विदेशी छात्रा के माध्यम से उसके विभिन्न लोगों से सम्पर्क हुए थे.



भारतीय गुप्तचर विभाग उसके खिलाफ सबूत एकत्रित करने में लग गया था.



सन चौरासी की छह अप्रैल को उसके लिए वर्खास्तगी के आदेश दे दिए गये थे.



संयोग से उन दिनों मैं यानि कि थाम्पसन दिल्ली में ही था.आठ अप्रैल की शाम मैं वहाँ से कलकत्ता रवाना हो गया था.उस समय मुझे इन्दिया गांधी की हत्या के सम्बन्ध में जानकारी भी थी. कलकत्ता में मैं लगभग एक मास रहा था फिर ब्रिटेन रवाना हो गया था.



हमारी टीम की उच्च समिति को जानकारी थी कि अमेरीकी गुप्तचर एजेंसी 'फडरेल ब्यूरो इनवेस्टिगेशन' का कोई एक एजेण्ट की हमारी टीम के एक सदस्य पर नजर पड़ गयी है.तेईस दिसम्बर को उसकी हत्या कर दी गयी थी लेकिन मुझे बुरा लगा था.यदि ऐसी स्थिति मेरे साथ तो......तो फिर मेरी भी हत्या?मैने मिटिंग में इस हत्या पर अनेक प्रश्न भी किये तो सब की निगाहें ऐसी थीं कि वे सब मुझे खा जायेंगे.



एक जनवरी को मुझे आदेश मिला कि मैं न्यूयार्क जा कर गुर प्रताप सिंह बिर्क , लाल सिंह,आदि युवकों से सम्पर्क करुँ.हमारी टीम को इन युवकों के सम्बन्ध में जानकारी हुई थी कि वे राजीव गांधी ,मुख्यमन्त्री भजन लाल सहित अनेक नेताओं की हत्या के साथ इण्डिया में अन्य विध्वंसकारी कार्य करना चाहते हैँ.हमारी टीम का विचार था कि उन्हें कैच कर सन्तुष्ट किया जाए और उनसे अपना काम भी लिया जाये.मैं पिच्चासी सन के सत्ताईस जनवरी को न्युयार्क मेँ प्रवेश कर चुका था लेकिन मुझे नववें दिन अन्य खास काम से ब्रिटेन बुला लिया गया.न्यूयार्क में हमारा दूसरा एजेण्ट आ चुका था.



थाम्पसन सोंच रहा था-



मैं सक्रिय तो हूँ इन लोगों के साथ लेकिन शुरु से अभी तक मेरा एकान्त मुझे कचोटता है.

"राजीव हत्या के पीछे...?"

मंगलवार, 5 जुलाई 2011

वो शक्तियां ....

मंजुला तीन युवतियों व तीन युवकों के साथ एक सड़क किनारे स्थित धर्मस्थल पर पीपल वृक्ष के नीचे बैठी वहां के अधेड़ सन्त से बातचीत कर रही थी.यह सब ओशो प्रेमी थे.



ओशो पर चर्चा के दौरान-



एक समय वह भी था जब ओशो सिर्फ अकेला था.नितान्त अकेला.



अमेरीकी प्रशासन ने उसे जंजीरों से जकड़ रखा था,भारी भारी जंजीरों से.



वह अकेला तब भी सरकारों को उससे भय?



क्यों...?



मात्र इसलिए क्योंकि वह जो बोलता था वह सत्य बोलता था.



उन दिनों ही अमेरीका में न्यूयार्क के एक जेल में एक हिन्दू राबर्ट के नाम से कैद था.


वह एक अधेड़ अमेरिकन से कह रहा था-



" तुम नहीं जानते कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है,तुम......."



"हा...हा....हा..!ऐ सब अपने पास रख.जानता हूँ इण्डिया का हर कोई उपदेशक से कम नहीं.हाँ;तुझे एक खुशखबरी,...?मेरे लिए खुशखबरी ही!ओशो पर फेंका गया हम लोगों का मिशन कामयाब रहा.बदनाम तो उसे कर ही चुके थे,अब उन्नीस जनवरी को स्वर्ग भी सिधार गया."


राबर्ट उस पर अपनी आंखे गड़ाते हुए-
"जान गया हूं तुम्हारे चमचों के द्वारा."



"चम्मचे तो तुम्हारे यहां नेताओं के होते हैं."




और अब...!




एक समय वह था जब परम्पराओं के ठेकेदार ओशो के विरोध में थे क्योंकि उन्हें अपनी दुकानें ठप्प होने का भय था.ऐसे ही लोग कृष्ण,सुकरात,ईसा,मोहम्मद,कबीर,आदि की उपस्थिति में इनके विरोध में ही रहे.परम्परायें नवीनता को शीघ्र नहीं स्वीकारतीं,हालांकि वह नवीनता नवीनता नहीं होती पुराने सिद्धान्तों की पुनर्व्याख्या होती है.जब नवीनता समाज में कुछ प्रतिष्ठित होने लगती है तभी उनकी दृष्टि नवीनता पर पड़ती है लेकिन तब तक वह नवीनता परम्परा हो चुकी है.फिर वही....
कोई नया आता है,फिर उसके साथ वही.



आज!

और आज जब ओशो जन्मशताब्दी वर्ष!

तब करोड़ों है उनके पक्ष में लेकिन अब लोग उनको लेकर बैठ गये और समय के मुताबिक नवीन परिस्थितियां.......सनातन धर्म की यात्रा में ठहरे हुए होते हैँ.



वह नवयुवती अर्थात मंजुला कमरे में अकेले बैठी डायरी पर लिखे जा रही थी.


उसकी कलम अभी रुकी न थी-



सन तिरानवे के अश्विन मास में हिन्दुस्थान आने के बाद क्लेयर शार्ट लगभग एक वर्ष यहां रहा था.वह इस वक्त ब्रिटेन में था.
जब वह
हिन्दुस्तान में तो
क्लेयर शार्ट अशोक से कह रहा था-



"अशोक ,मैने तुम्हें जब पहली बार हरिद्वार में देखा था तो लगा था कि तुमसे मेरा अनेक जन्म से सम्बन्ध है."



अशोक ने ऊपर आसमान की ओर देखा मानो वह सूक्ष्म शक्तियों को मौन संकेत कर रहा हो.



"अशोक! कल्पनाएं कभी झूठ नहीं होतीं और सन छियासी या सत्तासी से आपकी कल्पनाओं के जो बिन्दु हैं आश्चार्य है उन्हीं बिन्दुओं की बात मैने आपसे क्यों कर दी और कहता रहा कि अशोक,आपका नवीन क्रान्ति से सम्बन्ध है.मैं कहता था कि ऐसा होगा,वैसा होगा तुम कहते कि ऐसी तो मेरी कल्पना है..हम और आप एक दूसरे के अन्तरमन को न जानते फिर भी......."



"मैं......!" - फिर अशोक अन्दर की ओर तेजी से श्वास लेते हुए अपना सिर नीचे झुका कर अपने सीने पर निगाह डालता है.



"कुछ बोलने को थे तुम अशोक."



"बोलो,तुम बोलो,मै नहीं बोलूंगा अभी,(मुस्कुराते हुए) अभी बोलने की अक्ल नहीं,जब बोलूंगा तो सारी धरती एक बार हिल जाये."



"होगा अशोक,ऐसा ही होगा."



"अशोक,तुम जैसे लोग देश समाज विश्व के बारे में सोंचने वाले कम ही होते हैं."


"अच्छा,छोंड़ो यह व्यक्तिगत बाते!मैं ही जानता हूँ मैं क्या हूँ?एक अस्थिर,अनिर्णयशील,भययुक्त,आदि के अलावा और क्या....?"


"इक्कीसवीं सदी के प्रारम्भ में युगदर्शी से भेंट के बाद तुम्हारे बाहरी व्यक्तित्व में भी परिवर्तन हो जायेगा और जो विक्रान्तियां हैँ वे नष्ट होना आरम्भ हो जायेंगी."



"धन्यवाद!ऐसा ही हो ,मैं प्रभु से चाहूँ."



"ऐसा ही होगा.प्रभु से अपने लिए कुछ भी न मांगने वाला कोई....."



"यह तो मैं ही जानता हूँ."



......क्लेयर शार्ट अकेला ही जर्मन के एक शहर स्थित एक पार्क में लेटा सोंच रहा था-अशोक में बहुत कुछ छिपा है सिर्फ व्यवहार नहीं है पास,लेकिन एक दिन...




एक बहुमंजिला इमारत!


जिसके सबसे ऊपरी मंजिल पर अन्तर्राष्ट्रीय कुशक्तियों की एक गोष्ठी ,जिसमें पाक खुफिया ऐजेन्सी के प्रतिनिधि सहित अनेक उग्रवादी आतंकवादी एवं विध्वंसकारी संगठनों के प्रतिनिधि उपस्थित थे.


इस गोष्ठी के कुछ अंश-


"कल दिल्ली के किले पर राजीव का प्रथम भाषण होगा.मौत उस बेचारे को राजनीति में खींच लायी है."



" वो तो जाल बिछा ही रखा है राजीव के लिए सर.लेकिन फैजावाद में वो गुमनामी बाबा....!उसके सम्बन्ध में...... . "



"सब जानता हूँ , सुभाष के सम्बन्ध में यह सब प्रचार प्रसार ज्यादा सफल नहीं होंगे . "



"सर!पंजाब समस्या के प्रश्न पर सन्त लोंगोवाल व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के बीच समझौते पर ......

रविवार, 3 जुलाई 2011

ओशो जन्मशताब्दी वर्ष :एक झलक!



श्री रामचन्द्र महाराज फतेहगढ़ की पुण्य शताब्दी!!

ओशो जन्मशताब्दी !

यानि कि-
2031

हिन्द भूमि पर ओशो जन्मशताब्दी समारोहों व श्री रामचन्द्र जी फतेहगढ़ की पुण्य तिथि शताव्दी समारोहों का सिलसिला प्रारम्भ हो चुका था.विदेशों से भी इसकी खबरें थीं.



प्रात:काल का समय ! अभी सूर्य उदित भी न हुआ था.चर्चित अकेले ही पैदल गांव से बाहर खेतों की ओर चल दिया था.शीत ऋतु,हल्का हल्का कोहरा छाया हुआ था.खेतों में चारो ओर सरसों लहलहा रही थी.चर्चित अपने में खोया खोया आगे चलता जा रहा था.



अचानक!


चर्चित ने अचानक इधर उधर देखा -
उसके होंठों पर मुस्कान जगी.चर्चित चारो ओर से राइफलधारियों द्वारा घिरा हुआ था.वह मुस्कुराते हुए आगे बढ़ा.



"ठहरो!" - और एक ने चर्चित की ठोंढ़ी पर राइफल की नाल तान दी लेकिन चर्चित के होंठोँ पे मुस्कान ही थी.



चर्चित का स्थिर शरीर , लेकिन अपनी चलायमान आंखों से सामने उपस्थित राइफलधारियों के चेहरों पर नजर डाली.


फिर-


जिसने चर्चित पे राइफल तान रखी थी,उसके चेहरे पर पसीना देख कर,


"ऐसा काम क्यों करते हो जिससे भय पाये दिल?तुम तो अनेक राइफलधारियों के साथ हो,ऐसे में डर....?क्या दिल मेँ असलियत चुभ रही है और ऊपर से ढोंग किये जाते हो? "



"ऐ,स्पीच देना बन्द कर." -दूसरा बोला.


उसे देख कर चर्चित-

"रण में जाया जाता है,बुजदिली से नहीं जाया जात.तुम की ये आवाज भी बनी बनायी है,दिल की आवाज नहीं है . "



"हमें तू डिगा नहीं सकता."


एक बोला-

"हम लोग तुम्हारे साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं करना चाहते .हम लोगों का कहना है कि यदि तुम भला चाहते हो तो अपना प्रचार प्रसार बन्द करो,नहीं तो फिर.... ."


"नहीं तो फिर......"


"हमारा कहना मानो."



"हम....?वह भी तुम्हारा!बड़े हिम्मती बनते हो तभी तो हम लोगों की बातों का जबाब बातोँ से न दे अपनी राइफलों पर गुमान करते हो.स्वयं तुम.........?!और इस शरीर को मार भी दोगे तो भी मेरे शरीर को ही सिर्फ नष्ट करोगे मुझे नहीं.इससे अच्छी और क्या बात होगी कि मेरे शरीर का मरना भी तुम लोगों के शायद काम आये."



सब एक दूसरे का चेहरा देख रहे थे.चर्चित के होंठों पे हल्की सी मुस्कान अब भी बनी हुई थी.



चर्चित पर तानी गयी राइफल हटा ली गयी.




शाम को व दूसरे दिन सुबह -



समाचार पत्रों,टीवी चैनलों व आकाशवाणी ने ओशो जन्मशताब्दी पर प्रकाश डालने के साथ चर्चित के सामने राइफलधारियों के समर्पण की घटना को भी हाईलाइट किया गया था.जानकारी दे दूं कि अब भी कुछ लोग ओशो व ओशो जन्मशताब्दी कार्यक्रम के खिलाफ थे.




एक नवयुवती कुर्सी पर बैठी मेज पर डायरी रख कर उस पर कुछ लिखे जा रही थी.सामने विस्तर पर ओशो जन्मशताब्दी समारोह सम्बन्धी अनेक सामग्री पोस्टर बैनर आदि बिखरे पड़े थे .



कुछ समय पश्चात उस नवयुवती ने लिखना बन्द कर दिया और अपने गुलाबी होँठों पर सुन्दर डाटपेन टच कर रखी थी.


वह मन ही मन-"ओशो ने कहा था कि न मुझे स्वीकारो और न ही हमें भूलो."



जम्हाई लेते हुए उसने ओशो की तश्वीर पर निगाह डाली.



फिर वह युवती डाटपेन मेज पर रख कर कमरे से बाहर निकल कर बरामदे में पड़ी कुर्सी पर बैठ गयी.


कुछ मिनट बाद वह कुर्सी से उठ बैठी .



अब वह एक सड़क पर कुछ युवक युवतियों के थी.कुल सात थे,तीन नवयुवक व उस सहित चार नवयुवती.सभी अपनी अपनी साईकिल पर थे.सब अपने अपने माथे पर एक एक भगवा पट्टी बांधे थे ,जिस पर लिख था-ओशो.



आगे सड़क पर एक विशाल पीपल व उसके समीप एक बिल्डिंग नजर आ रही थी.



एक नवयुवक उस नवयुवती को देख कर -


"ओ मेरी मोनिका! क्यों न ......"


" देख मैं कितनी बार कह चुकी हूँ कि......कहाँ मोनिका और कहां मैं ? मैं तो उसके पैर की जूती तक नहीं.अब अपनी बात बोल."



" मैं मानता हूँ तेरी बात लेकिन यहां इस सोसायटी में तो तू ही मोनिका भांति,तू ही....(फिर मुस्कुराते हुए) क्यों न आगे पीपल नीचे कुछ पल रुक लिया जाये."



" जैसी मर्जी " - वह नवयुवती बोली.



फिर सभी आकर पीपल के नीचे रुक गये.



पड़ोस में एक हैण्ठपम्प था.उसके समीप एक विशाल बरामडा.आगे कुछ दूरी पर दो मंजिल कई कमरों सहित एक बिल्डिंग,जिसके सामने श्री कृष्ण की आदम कद एक प्रतिमा लखी थी.पीपल वृक्ष के दूसरी ओर एक छोटा सा बरामडा,जिसके ऊपर एक कमरा व बरामदा बना हुआ था.छत के इस बरामदा पर खपरैल पड़ा था.



सातो युवक युवतियां चबूतरे पर बैठ आपस में बात करने लगे थे.


कि-


एक गेंहुआ व स्वेत वस्त्रधारी अधेड़ उन ओर आया तो सभी उठ कर उससे नमस्ते करने लगे.


वह अधेड़ बोला-

"हां भाईयों एक खुशखबरी दे दूँ.व्यवस्था समिति यहां ओशो की प्रतिमा लगवाने के लिए मेरा सुझाव पर मान गयी है."

यह नवयुवती ओर कोई नहीं मंजुला ही थी.मंजुला बोली-
"धन्यवाद."
"अरे हम तो..... भाई आप जैसों के सामने विशेष रुप से चर्चित के सामने मैं नतमस्तक हूँ.मुझे अखबार से सूचना मिली कि चर्चित ने अकेले ही सशस्त्र बल से अपनी वाकपटुता माध्यम से कैसे मुकावला किया.वास्तव में अब बुद्ध कृष्णा के तटस्थ मार्ग पर तुम.

शनिवार, 2 जुलाई 2011

सन चार हजार साठ ई0 की त��यारी ....

चर्चित इस समय नवयुवती मंजुला के साथ था.


"अशोक सन छियानवे के बाईस जून को इस धरती से जा चुका था लेकिन उसकी कल्पनाओं को विस्तार देना अभी काफी बाकी है.अशोक भी कहा करता था कि मुझमें इतना भण्डार है कि एक हजार बार जन्म होने के बाद भी उसे कागजों पर नहीं उतार सकता.कहानी के अन्दर कहानी ,हर पात्र पर एक श्रंखला...."



"अभी पुरानी बातें छोंड़ों ....चर्चित,भविष्य की बातें छोंड़ो.वर्तमान की बात करो .अगले ओशो जन्मशताब्दी वर्ष के व्यवस्था सम्बन्धी......!? "


दूसरी ओर अधेड़ उम्र का एक व्यक्ति-किशोर.वह एक वैज्ञानिक अनुसंधानशाला में एक सेमीनार मेँ शामिल था.जिसमें निर्णय लिया जा रहा था कि डायनासोर के जीवित अण्डों पर कार्य करके डायनासोर की नस्ल की उत्पत्ति की जाए.



"नहीँ,मैं नहीं बर्दाश्त कर सकता.आप लोगें का निर्णय मेरी दृष्टि से प्राकृतिकता नहीं " - फिर गोष्ठी के मध्य से किशोर उठ बैठा तो लोगों में प्रतिक्रिया हुई-"रुकिए सर!रुक जाईए सर!कहाँ चले?" - आदि वाक्य लोगों के मुख से निकले लेकिन किशोर न रुका,वह वहां से चलता बना.



किशोर जब बाहर आया तो अपने पच्चीस वर्षीय बेटे को देख कर -"सुबिधा कहां है?"तो उसका बेटा उससे बोला-"पापा,वो तो नहेसुडेल्स के साथ गयी है."किशोर बोला-"चलना नहीं है उसे,उसे बुलाओ."

" वो तो अभी मना कर रही है ."


"तो मैं चलता हूं.तुम उसे ले आ जाना."-कहते हुए किशोर अपने यान की ओर बढ़ गया.
यान के दक्षिण ओर उसकी सात वर्षीय पुत्री सुविधा अपने हमउम्र तीन नेत्रधारी एक लड़की-नहेसुडेल्स के साथ
यान की ओर ही आ रही थी.इधर पीछे गोष्ठी भवन से ग्यारह फुटातीन नेत्रधारी व्यक्ति किशोर की आ रहा था.



सुविधा पास आते हुए किशोर से बोली-"आप तो अभी ही जा रहे हैं?"



" हां ,बेटी! मैं चलता हूँ.तुम भाई के साथ आ जाना. "


तब तक तीननेत्रधारी
व्यक्ति किशोर के समीप आ कर बोला-"सर,सुप्रीमो रुकने को कहते हैं."



"नहीं,मैं नहीं रुक सकता."


फिर किशोर अपने यान के अन्दर पहुंच गया.यान उड़ने के कुछ समय पश्चात अन्यत्र उतर गया.दो युवतियां जिसका इन्तजार कर रही थीँ.
किशोर जब यान से उतर कर आगे चल दिया तो दोनों युवतियां उसके दायें बायें चल दीँ.कमरे में जा कर किशोर कुर्सी पर बैठते हुए-


"न जाने उन्हें क्या हो गया?मैं तो नहीं चाहता कि अपनी इस धरती पर पुन:डायनासोर अपना अधिपत्य जमायें."


"लेकिन सर,डायनासोर यहां अधिपत्य कैसे जमायेँ? "



किशोर कुछ सोंचने लगा.







अब से लगभग बीस वर्ष पूर्व लगभग सन बीस सौ बारह या पन्द्रह की दो अक्टूबर तिथि-गांधी जयन्ती.


गांधी शास्त्री जयन्ती !



एक विशाल जनसभा !

मंच के पीछे तीन विशाल आकृतियां बनी थीं,जो दो स्पष्ट थी-गांधी व शास्त्री का चेहरा लेकिन तीसरा चेहरा अस्पष्ट था.उस पर अखण्ड भारत का नक्शा बना था.जिस पर लिखा था-दो अक्टूबर.


अनेक वक्ता बोल चुके थे.मंच का संचालन एक विकलांग सुन्दर युवती कर रही थी.



जब मंच पर एक वृद्ध व्यक्ति प्रवेश करता है तो सारा माहौल गूंज उठता है-जय विश्व ! जय ब्राह्माण्ड! !



जय विश्व जय ब्राह्माण्ड से सारा बातावरण गूंजते देख कर वह वृद्ध प्रफुल्लित होते हुए बोला-


"मैँ खुश हूँ कि एक लेखक मात्र की कल्पनाओं में गुञ्जारित होने वाला यह जयघोष इतना शीघ्र जनमानस मेँ छा गया लेकिन हमें मन से भी लक्ष्यों की ओर जाने का परिवेश बनाना होगा.आज दो अक्टूबर है ,सब जानते हैं.हमारे गांधी जी की भी कल्पना थी कि एक विश्वसरकार स्थापित हो.अपनी संस्कृति तो वसुधैव कुटुम्बकम की बात करती आयी है.अच्छाईयां होती हैं जहाँ ,तो वहां बुराईयां भी है.गांधी जी शास्त्री जी......."




अब सन बीस सौ चौबीस आने को आयी. आर एस एस अपनी स्थापना की 100 वीं वर्षगांठ की तैयारी कर चुका था। वह राजनीति के माध्यम से भी अपना अस्तित्व चमक में लिए था..चर्चित मंजुला के साथ था.चर्चित मंजुला से कह रहा था-



"उस मंगल यात्रा के बाद लेखक अशोक एवं उसके साहित्य का जिक्र समाचार पत्रों में एक बार फिर चर्चे में था."



"तो फिर अशोक के साहित्य में वर्णित उस अशोक शक्ल का भी चर्चा होगा. क्योंकि लेखक अशोक ने एक जगह पर अपने शक्ल के......... ."



"और फिर वह वृद्ध....."



"हूँ ....हूँ...."चर्चित मुस्कुराते हुए गर्दन हिलाता है.



और -

" प्रशासन के बीच एक बार वह वृद्ध बोला था कि मैं वो अशोक शक्ल नहीं हूं,चाहें मेरा परीक्षण भी करवा लें .कहां अशोक की उम्र कहां अशोक की उम्र और कहां वह वृद्ध...?! "





किशोर की एक न चली थी.



अधेड़ किशोर चिन्तित था कि वैसे भी पृथ्वी खतरे में है.भविष्य त्रिपाठी के अनुसार आगे दो सौ वर्षों के अन्दर हिन्दप्राय द्वीप दो भू भागों में विभक्त होने वाला है . ऊपर से यह सिरफिरे वैज्ञानिकों के हाथ डायनासोर के जीवित अण्डें क्या लगे कि वे इस धरती पर डायनासोर नस्ल को पुनर्जीवित करने का ख्वाब देखने लगे हैँ.



लेकिन...



अब सन चार हजार साठ !



वनमानव के दोनों पैर कांटों से घायल थे.

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

सन2031ई0:यहां ऐसे वो.

हिमालय प्रकृति की अनुपम देन !
चारो ओर बर्फ ही बर्फ!कुछ समय पश्चात....लेकिन यह क्या....?!ताज्जुब......?!एक चोटी पर का वर्फ तेजी के साथ पिघलने लगा था.सिर्फ एक चोटी पर ही ऐसा क्यों?




एक अण्डाकार अन्तरिक्ष यान हिमालय के एक स्थान पर उतरा.इस यान से एक तीननेत्रधारी बालिका के साथ तीननेत्रधारी दो युवतियां बाहर आयीं थीं.इन तीनों के स्वागत में एक चार वर्षीय बालक अपने माता पिता के साथ खड़ा था.

उस तीन नेत्रधारी बालिका का नाम था-माजेडीसीकल दी.जो चार वर्षीय बालक से बात करने लगी थी.यह चार वर्षीय बालक काफी उम्र का लगता था.




इधर-


हिमालय की एक चोटी ,जिसका वर्फ तेजी के साथ पिघलने लगा था.
जब सारा वर्फ पिघला तो....?!यह क्या.....?!यह चोटी तो शीशे की बनी......



कि-


पिरामिड आकार की इस इमारत के सभी शीशे एक पुष्प के पंखुड़ियों की तरह खुल गये.जिसमें से एक यान निकल कर तेजी से आकाश में उड़ने लगा.



और फिर वह पंखुड़ियों की तरह के शीशे ......?!शीशे पूर्व स्थिति में आ गये.अब फिर वही चोटी सा.धीरे धीरे कर उस पर वर्फ जमने लगी.




* * *



भयंकर जंगल!


जंगल मेँ एक ओर डायनासोर व दूसरी ओर विशालकाय अजगर .जंगल के किनारे एक पहाड़ी पर स्थित दुर्ग,जिसके अन्दर एक बालक श्री कृष्ण की प्रतिमा के सामने हाथ जोड़े आंख बन्द कर बैठा था.



यह जंगल अन्य धरती का नहीं अपनी इस धरती का ही,लगभग सन चार हजार साठ ई0का रहा होगा.दक्षिणी भाग में-




एक विशालकाय डायनासोर उत्तर पश्चिम की ओर तेजी के साथ आगे बढ़ता जा रहा था.वह डायनासोर झाड़ियों के मध्य एक खण्डित दीवार को पार कर जब आगे बढ़ता है तो झाड़ियों से घिरी एक चबूतरे पर लगी ओशो की प्रतिमा से टकरा जाता है.उस छोटे से चबूतरे सहित वह प्रतिमा गिर जाती है.



एक आदिमानव नग्न अवस्था में एक पेंड़ से दूसरे पेंड़ पर छलांग लगाते हुए आगे जा रहा था.डायनासोर को देख कर एक पल तो वह वनमानव भयभीत हुआ फिर वह तेजी से छलांग लगा ज्यों ही दूसरे पेंड़ पर पहुंचा त्यों ही जिस वृक्षशाखा को उसने पकड़ा ,वह शाखा सहित नीचे आ गया.पीछे डायनासोर काफी नजदीक था .वह तेजी से आगे भागा लेकिन आगे एक विशालकाय अजगर को देख वह ठिठका.उसके पैरों से खून निकल रहा था.ऐसा कांटे चुभने के कारण हुआ था.तेजी से दौड़ते दौड़ते वह जमीन पर गिरी ओशो की प्रतिमा के पास आ गया.उसने एक विशाल पत्थर उठा कर उसकी ओर मुख बढ़ाते डायनासोर के चेहरे पर मारा.जिससे डायनासोर की बायीं आंख फूट गयी.फिर भी डायनासोर को आगे बढ़ते देख उसने ओशो की प्रतिमा उठा ली कि आसमान से आयी तेज किरणों से डायनासोर स्थिर हो जमीन पर गिर पड़ा.ओशो की प्रतिमा ऊपर उठाये उठाये ही उसने ऊपर देखा-आसमान पर वही यान उड़ रहा था जो कि वर्फीली चोटी के नीचे से निकला था.


स्क्रीन पर दिखायी दे रहा था कि एक बालक प्रार्थना में था.


अपने समीप बैठे एक एक युवक से युवती बोली-"चर्चित! यह बालक कौन है?"


"मंजुला,आगे सब जान जाओगी."



चर्चित पुन: मंजुला से बोला-

"किशोर की कल्पनाओं के माध्यम से युवा लेखक अशोक ने आगे दो हजार तीस वर्ष बाद के अपने काल्पनिक जगत में जाने का प्रयत्न किया."


"हूँ"-मंजुला सिर्फ गर्दन हिला देती है.




चर्चित फिर मुस्कुराते हुए बोला-
"गणेश जी को देख आयीं?"


" हां "


फिर

"बीसवीं सदी में जुरासिक पार्क,द लास्ट वर्ल्ड,जैसी फिल्में लोंगों के लिए मनोरंजन मात्र बन कर रह गयी थीं लेकिन वे फिल्में एक संकेत भी थीं भविष्य की,लेखक अशोक के अनुसार."



"बाईस जून को यदि लेखक अशोक की मृत्यु न होती तो शायद हमारी उससे मुलाकात होती."



"सम्भवत:...."



"सन उन्नीस सौ चौरानवे के बाद रोबोट कृत डायनासोर लोगों के लिए विशेषकर बच्चों के लिए एक अच्छा मनोरंजन बन गये थे लेकिन अशोक की कल्पना के अनुसार चवालीसवीं सदी के बाद इस धरती पर भी डायनासोर........"



"हूँ! जैसा तुम जिक्र कर चुके हो,चर्चित."



इस धरती पर डायनासोर....?चवालीसवीं सदी के बाद .....?!



कैसे..?




यहां ऐसे वो....



डायनासोर के वे जीवित अण्डे इस धरती पर कहां से आये ? किशोर अपनी उम्र की अधेड़ावस्था में जी रहा था .उसने इन अण्डों को नष्ट करने की वकालत की थी लेकिन उसकी न सुनी गयी.


"क्या सोंच रहे हो?"
"सोंचता हूँ- सन 610 ई0 से पहले भी यवन हिन्द द्वीप के लिए खतरनाक थे। हिंदुओं,पारसियों, यहूदियों के लिए खतरा थे अब भी हैं।"

"आत्मघाती बनने को तैयार रहे है ये ।"

"ये विषाणु बम भी विषकन्याएं भी बनाने को तैयार हैं।इन्हें सारी मनुष्य जाति, धरती में शांति से मतलब नहीं।"

"तभी तो...सन2020 ई0 में ये भारत सरकार की समस्या बन गए।"
"इस साल की बात करो।क्या धूमकेतु पृथु महि से टकराएगा?"
"कुदरत जाने।"